डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक लघुकथा  “सोच —-”।  यह लघुकथा हमें  एक सकारात्मक सन्देश देती है।  परिवार के सभी सदस्यों को अपनी सोच बदलने की  आवश्यकता  है। वैसे  इस मंत्र को आज सभी  ने महसूस किया है एवं उसका अनुपालन भी हो रहा है। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस बेहद खूबसूरत सकारात्मक रचना रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 25 ☆

☆ लघुकथा – सोच —-

माँ ! भाभी की मीटिंग तो खत्म ही नहीं हो रही है.

तो तुझे क्या करना है? कुछ काम है भाभी से?

अरे नहीं,  लॉकडाउन की वजह से खाना बनानेवाली काकी तो नहीं आएगी ना? बर्तन, कपडे, झाडू-पोंछा सब करना पडेगा हमें?

हाँ, तो क्या हुआ? पहले नहीं करते थे क्या हम सब? कामवाली बाईयां तो अब कोरोना महामारी  खत्म होने के बाद ही आएगी. लॉकडाउन की वजह से कोई कहीं आ-जा नहीं सकता है.

हाँ वही तो मैं भी कह रही हूँ और भाभी हर समय अपने ऑफिस के काम में ही लगी रहती हैं, घर के काम कौन करेगा? निधि ने मुँह बनाते हुए कहा.

ओह, तो अब समझ आया कि तुझे भाभी की इतनी याद क्यों आ रही है – सुनयना मुस्कुराती हुई बोली- ये बता जब तक तेरे भैया की शादी नहीं हुई थी तो घर के काम कौन करता था ?

मैं और तुम, हाँ छुट्टी वाले दिन पापा और भैया भी हमारी मदद कर दिया करते थे.

तो आज भाभी का इतना इंतजार क्यों हो रहा है? हम सब आराम से घर में बैठे हैं और वो बेचारी सुबह से लैपटॉप पर आँखें गडाए काम कर रही है. उसमें से भी जब समय मिलता है तो उठकर घर के काम निपटा देती है. उसका भी तो मन करता होगा ना थोडा आराम करने का, वह इंसान नहीं है क्या ? चल उठ, हम दोनों जल्दी से रसोई का काम निपटा देते है. सबको मिलकर काम करना चाहिए,  बहू अकेले कितना काम करेगी?

शुभा आज बहुत थक गई थी, सिर में दर्द भी हो रहा था.  आठ दस घंटे काम करने के बाद भी मैनेजर का मुँह चढा ही रहता है, इसी बात को लेकर मैनेजर से झिक-झिक भी हो गई थी. कोरोना के कारण लोग घर बैठकर बिना काम के बोर हो रहे थे पर आई टी वालों को तो घर से काम करना था. वह अपने कमरे से निकल ही रही थी कि उसे अपनी सास और नंद निधि की बातचीत सुनाई दी. उसकी आँखें भर आईं वह सोचने लगी काश! ऐसी ही सोच समाज में सबकी हो जाए?

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Chetan Raweliya

बहुत सुंदर ?