डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता  “सीता ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 6 ☆

 

☆ सीता ☆

 

सीता! तुम भूमिजा

धरती की पुत्री

जनक के प्रांगण में

राजकुमारी सम पली-बढ़ी

 

अनगिनत स्वप्न संजोए

विवाहोपरांत राम संग विदा हुई

परन्तु माता कैकेयी के कहने पर

तुमने पति का साथ निभाने हेतु

चौदह वर्ष के लिए वन गमन किया

नंगे पांव कंटकों पर चली

और नारी जगत् का आदर्श बनी

 

परन्तु रावण ने

छल से किया तुम्हारा अपहरण

अशोक वाटिका में रही बंदिनी सम

अपनी अस्मत की रक्षा हित

तुम हर दिन जूझती रही

तुम्हारे तेज और पतिव्रत निर्वहन

के सम्मुख रावण हुआ पस्त

नहीं छू पाया तुम्हें

क्योंकि तुम थी राम की धरोहर

सुरक्षित रही वहां निशि-बासर

 

अंत में खुशी का दिन आया

राम ने रावण का वध कर

तुम्हें उसके चंगुल से छुड़ाया

अयोध्या लौटने पर दीपोत्सव मनाया

 

परन्तु एक धोबी के कहने पर

राम ने तुम्हें राजमहल से

निष्कासित करने का फरमॉन सुनाया

लक्ष्मण तुम्हें धोखे से वन में छोड़ आया

 

तुम प्रसूता थी,निरपराधिनी थी

राम ने यह कैसा राजधर्म निभाया…

वाहवाही लूटने या आदर्शवादी

मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने के निमित्त

भुला दिया पत्नी के प्रति

अपना दायित्व

 

सीता! जिसने राजसी सुख त्याग

पति के साथ किया वन-गमन

कैसे हो गया वह

हृदयहीन व संवेदनविहीन

नहीं ली उसने कभी तुम्हारी सुध

कहां हो,किस हाल में हो?

 

हाय!उसे तो अपनी संतान का

ख्याल भी कभी नहीं आया

क्या कहेंगे आप उसे

शक्की स्वभाव का प्राणी

या दायित्व-विमुख कमज़ोर इंसान

जिसने अग्नि-परीक्षा लेने के बाद भी

नहीं रखा प्रजा के समक्ष

तुम्हारा पक्ष

और अपने जीवन से तुम्हें

दूध से मक्खी की मानिंद

निकाल किया बाहर

 

क्या गुज़री होगा तुम पर?

उपेक्षित व तिरस्कृत नारी सम

तुमने पल-पल

खून के आंसू बहाये होंगे

नासूर सम रिसते ज़ख्मों की

असहनीय पीड़ा को

सीने में दफ़न कर

कैसे सहलाया होगा?

कैसे सुसंस्कारित किया होगा

तुमने अपने बच्चों को…

शालीन और वीर योद्धा बनाया होगा

 

अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ने पर

झल्लायी होगी तुम लव कुश पर

और उनके ज़िद करने पर

पिता-पुत्र के मध्य

युद्ध की संभावना से आशंकित

तुमने बच्चों का

पिता से परिचय कराया होगा

‘यह पिता है तुम्हारे’

कैसे सामना किया होगा तुमने

राम का उस पल?

 

बच्चों का सबके सम्मुख

रामायण का गान करना

माता की वंदना करना

और अयोध्या जाने से मना करना

देता है अनगिनत प्रश्नों को जन्म

 

क्या वास्तव में राम

मर्यादा पुरुषोत्तम

सूर्यवंशी आदर्श राजा थे

या प्रजा के आदेश को

स्वीकारने वाले मात्र संवाहक

निर्णय लेने में असमर्थ

कठपुतली सम नाचने वाले

जिस में था

आत्मविश्वास का अभाव

वैसे अग्नि-परीक्षा के पश्चात्

सीता का निष्कासन

समझ से बाहर है

 

गर्भावस्था में पत्नी को

धोखे से वन भेजना…

और उसकी सुध न लेना

क्या क्षम्य अपराध है?

राम का राजमहल में रहते हुए

सुख-सुविधाओं का त्याग करना

क्या सीता पर होने वाले

ज़ुल्मों व अन्याय की

क्षतिपूर्ति करने में समर्थ है

 

अपनी भार्या के प्रति

अमानवीय कटु व्यवहार

क्या राम को कटघरे में

खड़ा नहीं करता

प्रश्न उठता है…

आखिर सीता ने क्यों किया

यह सब सहन?

क्या आदर्शवादी.पतिव्रता

अथवा समस्त महिलाओं की

प्रेरणा-स्रोत बनने के निमित्त

 

आज भी प्रत्येक व्यक्ति

चाहता है

सीता जैसी पत्नी

जो बिना प्रतिरोध व जिरह के

पति के वचनों को सत्य स्वीकार

गांधारी सम आंख मूंदकर

उसके आदेशों की अनुपालना करे

आजीवन प्रताड़ना

व तिरस्कार सहन कर

आशुतोष सम विषपान करे

पति व समाज की

खुशी के लिये

कर्तव्य-परायणता का

अहसास दिलाने हेतु

हंसते-हंसते अपने अरमानों का

गला घोंट प्राणोत्सर्ग करे

और पतिव्रता नारी के

प्रतीक रूप में प्रतिष्ठित हो पाए।

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

 

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments