डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से अब आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की  शिक्षाप्रद लघुकथा  शब्द तुम मीत मेरे”।

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – #4  साहित्य निकुंज ☆

 

☆ शब्द तुम मीत मेरे 

 

शब्द तुम मीत मेरे

शब्द में

छुपे अर्थ सारे

मैं कहती जाऊं

तुम सुनते जाना

शब्द मेरे तुम सो न जाना

नहीं कहूंगी कुछ भी व्यर्थ

तुम खोना न शब्द अपने अर्थ

शब्द बढ़ते ही जाएंगे

सागर नदिया पार लगाएंगे।

 

आएंगे शब्द

इतिहास ग्रंथों से

वे आएंगे तरह तरह के रूप में

बदलेंगे अपना वेश

जाना चाहेंगे देश-देश

पहनेंगे अपनत्व का जामा

बढ़ाएंगे दोस्ती का हाथ

जब उन्हें मिल जाएंगे

अपने शब्दों के अर्थ

तब वे तुम्हें पहचानेंगे नहीं

रख देंगे कुचलकर

तुम्हें बता दिया जाएगा

देश और समाज का दुश्मन

होशियार हो जाओ

शब्द तुम …..

 

चारों ओर घेरा है गिद्ध का

उपदेश सही है बुद्ध का

शब्दों को सही चुनों

बोलने से पहले गुनों

शब्द तुम…….

 

© डॉ भावना शुक्ल

 

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