श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल तुमने  निगाहों से गिरा नश्तर चुभा दिया…” ।)

? ग़ज़ल # 109 – “तुमने  निगाहों से गिरा नश्तर चुभा दिया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हमको  दुआएँ दो तुम्हें माशूक़ बना दिया, 

तुमने  निगाहों से गिरा नश्तर चुभा दिया। 

*

हमको तुम्हारे इश्क़  ने चाकर बना दिया,

हुक्म तुम्हारा मानकर पोंछा  लगा  दिया।

*

तुमने कुछ बना कर खिलाने को कहा हमें,

बनता कुछ न था तो पराठा ही जला दिया। 

*

बैठक  अस्त व्यस्त  पड़ी थी  बेतरतीब सी,

हमने सब  जगह झाड़ पोंछ उसे सजा दिया। 

*

आशिक़ सजाए हसीं  सपने घर बसाते वक्त,

आतिश ख़्वाब फ़र्श  धुलाई  में  बहा  दिया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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