(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय आलेख की शृंखला – “रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन” का पहला भाग।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 250 ☆

? आलेख – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन – भाग-1 ?

रामचरित मानस विश्व का ऐसा महान ग्रंथ है, जिसे शोध कीजिस दृष्टि से देखा जावे, तो अध्येता इतना कुछ पाता है, कि वह उसे चमत्कृत कर देने को पर्याप्त होता है। रामचरित मानस की मूल कथा में अयोध्या, जनकपुर, लंका, चित्रकूट, नन्दीग्राम, श्रंगवेरपुर, किष्किंधा, कैकेय, कौशल आदि नगरों, राज्यों का वर्णन मिलता है। रामजन्म भूमि प्रकरण की राष्ट्रीय ज्वलंत समस्या के निराकरण हेतु न्यायालय के आदेश पर, इन दिनों भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विशेषज्ञ, अयोध्या के विवादित स्थल पर उत्खनन कार्य कर रहे है। सारा देश इस उत्खनन के परिणामों की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस अवधपुरी का वर्णन करते हुए लिखा है:-

 अयोध्या

बंदऊ अवधपुरी अति पावनि । सरजू सरि कालि कलुष नसावनि ॥ (प्रसंग : वन्दना)

बालकाण्ड 1/16

 अवधपुरी सोइहि एहि भाँती । प्रभुहि मिलन आई जनु राती ॥ (प्रसंग : रामजन्म)

 बालकाण्ड 2/195

 इसी तरह रामविवाह के प्रसंग में भी अयोध्या का वर्णन मिलता है –

 जद्यपि अवध सदैव सुहावनि । रामपुरी मंगलमय पावनि ॥ तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई। मंगल रचना रची बनाई ॥

 बालकाण्ड 3/296

इसी प्रसंग में गोस्वामी जी लिखते है कि रामविवाह की प्रसन्नता में, माँ सीता के नववधू के रूप में स्वागत हेतु अयोध्यावासियों ने अपने घर सजा कर अपनी भावनायें इसी तरह अभिव्यक्त की।

मंगलमय निज-निज भवन, लोगव्ह रचे बनाई । बीथी सींची चतुर सम, चौके चारू पुराई ।।

बालकाण्ड 296 राजा दशरथ के देहान्त एवं राम वन गमन के प्रसंग में भी अयोध्या के राजमहल का वर्णन मिलता है :-

गए सुमंत तब राउर माही। देखि भयावन जातं डेराहीं ॥ (राउर अर्थात राजमहल)

 अयोध्या काण्ड 2/38

अयोध्या का नगर एवं प्रासाद वर्णन पुनः उत्तर काण्ड में मिलता है, जब श्रीर। म वनवास से लौटते है।

बहुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन विमान । देखि मधुर सुर हरषित करहि सुमंगल गान ॥

उत्तरकाण्ड /3 ख

जद्यपि सब बैकुण्ठ बखाना । वेद पुरान विदितजग जाना । अवधपुरी सम प्रिय नहीं सोऊ । यह प्रसंग जानड़ कोऊ कोऊ ॥

उत्तरकाण्ड 2/4

 जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि । उत्तर दिसि बह सरजू पावनि ।

उत्तरकाण्ड 3/4

रामराज्य के वर्णन के प्रसंग के अंतर्गत भी अवधपुरी के भवनों, सडकों, बाजारों का विवरण मिलता है।

जातरूप मनि रचित अटारी । नाना रंग रूचिर गच ढारी ॥

पुर चहुं पास कोट अति सुन्दर । रचे कंगूरा रंग-रंग वर ।।

स्वर्ण और रत्नों से बनी हुई अटारियां है। उनमें मणि, रत्नों की अनेक रंगों की फर्श ढली है। नगर के चारों ओर सुन्दर परकोटा है। जिस पर सुन्दर कंगूरे बने है।

नवग्रह निकर अनीक बनाई । जनु घेरी अमरावति आई ।।

मानों नवग्रहों ने अमरावति को घेर रखा हो।

धवल धाम ऊपर नग चुंबत । कलस मनहुं रवि ससि दुति निंदत ॥ उज्जवल महल ऊपर आकाश को छू रहें है, महलों के कलश मानो सूर्य-चंद्र की निंदा कर रहे है, अर्थात उनसे ज्यादा शोभायमान है।

छंद-

मनि दीप राजहिं भवन भ्राजहिं देहरी विदुम रची ।

मनि खंब भीति, विरचि विरचि कनक मनि मरकत खची । 

सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर रूचिर फटिक रचे ।

प्रति द्वार-द्वार कपाट पुरट बनाई बहु बजहिं खचे ॥

घरों में मणियों के दीपक हैं। मूंगों की देहरी है। मणियों के खम्बे है।

पन्नों से जड़ित दीवारें ऐसी है, मानों उन्हें स्वयं ब्रम्हा जी ने बनाया हो। महल मनोहर और विशाल है। उनके आगंन संगमरमर के है। दरवाजे सोने के हीरे लगे हुये है।

चारू चित्रसाला गृह-गृह प्रति लिखे बनाई । राम चरित जे निरख मुनि, ते मन लेहि चौटाई ॥

सुमन बाटिका सबहि लगाई । विविध शाति करि जतन वनाई ।।

घर-घर में सुन्दर चित्रांकन कर राम कथा वर्णित है। सभी नगरवासियों ने घरों में पुष्प वाटिकायें भी लगा रखी है।

छंद-

बाजार रूचिर न बनई बटनत वस्तु बिनु गश्च पाइये । जहं भूप रमानिवास तहं की संपदा किमि गाइये ।

बैठे बजाज, सराफ बनिक, अनेक मनहुं कुबेर ते । सब सुखी, सब सच्चरित सुंदर, नारि नर सिसुजख ते ॥

सुन्दर बाजारों में कपड़े के व्यापारी, सोने के व्यापारी, वणिक आदि इस तरह से लगते है, मानो कुबेर बैठे हों। सभी सदाचारी और सुखी है। इसी तरह सरयू नदी के तट पर स्नान एवं जल भरने हेतु महिलाओं के लिए अलग पक्के घाट की भी व्यवस्था अयोध्या में थी –

दूरि फराक रूचिर सो घाटा, जहं जल पिअहिं बाजि गज ठाटा ।

पनिघट परम् मनोहर नाना, तहाँ न पुरूष करहि स्नाना ॥

उत्तरकाण्ड 1/29 जल व्यवस्था हेतु बावड़ी एवं तालाब भी अयोध्या में थे । सार्वजनिक बगीचे भी वहाँ थे।

पुट शोभा कछु बरनि न जाई । बाहेर नगर परम् रूचिराई ।

देखत पुरी अखिल अध भागा । बन उपबन बाटिका तड़ागा ।।

उत्तरकाण्ड 4/29 इस प्रकार स्थापत्य की दृष्टि से अयोध्या एक सुविचारित दृष्टि से बसाई गई नगरी थी। जहाँ राजमहल बहुमंजिले थे। रनिवास अलग से निर्मित थे। रथ, घोड़े, और हाथियों के रखने हेतु अलग भवन थे। आश्रम और यज्ञशाला अलग निर्मित थी। पाकशाला अलग बनी थी। शहर में पक्की सड़कें थी। आम नागरिकों के घरों में भी छोटी सी वाटिका होती थी। घर साफ सुथरे थे, जिनकी दीवारों पर चित्रांकन होता था। शहर में सार्वजनिक बगीचे थे। जल स्रोत के रूप में बावड़ी, तालाब, स्त्री एवं पुरुषों हेतु अलग-अलग पक्के घाट एवं कुंए थे। ऐसा वर्णन तुलसीदास जी ने किया है।

 जनकपुरी :-

मानस में वर्णित दूसरा बड़ा नगर मिथिला अर्थात जनकपुरी है। जिसका वर्णन करते हुये गोस्वामी जी ने लिखा है कि –

बनई न बरनत नगर निकाई । जहाँ जाई मन तहंड लाभाई ॥

 उत्तरकाण्ड 1/213

जनकपुर का वर्णन धनुष यज्ञ एवं श्रीराम सीता विवाह के प्रसंग में सविस्तार मिलता है।

जनकपुर में बाजार का वर्णन :-

धनिक बनिक वर धनद समाना । बैठे सकल वस्तु लै नाना ।

चौहर सुंदर गली सुहाई। संतत रहहिं सुगंध सिंचाई ॥

अर्थात यहाँ चौराहे, सड़के सुंदर है, जिनमें सुगंध बिखरी है। सुव्यवस्थित बाजारों में वणिक विभिन्न वस्तुयें विक्रय हेतु लिये बैठे है।

मंगलमय मंदिर सब केरे । चित्रित जनु रतिनाथ चितेरे ।

अर्थात, सभी घरों पर सुंदर चित्रांकन होता था।

भवनों के दरवाजों पर परदे होते थे। किवाड़ों पर सुन्दर नक्काशी और रत्न जड़े होते थे –

सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा । भूप भीर नट मागध भाटा ।

सेनापति, मंत्रिगण आदि के घर भी महल की ही तरह सुन्दर और बड़े थे। घुड़साल, गजशाला, अलग बनी थीं। धनुष यज्ञ हेतु एक सुन्दर यज्ञशाला नगर के पूर्व में बनाई गई थी। जहां लंबा चौड़ा आंगन एवं बीच में बेदी बनाई गई थी। चारों ओर बड़े-बडे मंच बने थे। उनके पीछे दूसरे मकानों का घेरा था। पुष्पवाटिका जहां पहली बार श्रीराम का सीताजी से साक्षात्कार हुआ था, का वर्णन भी गोस्वामी जी रचित मानस में मिलता है। वटिका में मंदिर भी है। बाग के बीचों बीच एक सरोवर है। सरोवर में पक्की सीढ़ियां भी बनी है। इस प्रकार हम पाते है कि स्वयं श्रीराम जिनको चौदहों लोकों का प्रणेता कहा जाता है, जब अपने मानव अवतार में संसारी व्यवहारों से गुजरते है, तो

“मकान” की मानवीय आवश्यकता के अनेक वर्णन उनकी लीला में मिलते है। भगवान विश्वकर्मा, जो देवताओं के स्थापत्य प्रभारी के रूप में पूजित है, जो क्षण भर में मायावी सृष्टि की संरचना करने में सक्षम है, जैसे उन्होनें ही माँ सीता की नगरी बसाई हो, इतनी सुव्यवस्थित नगरी वर्णित है जनकपुर।

क्रमशः… 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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