श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आदर्श विचार संहिता।)

?अभी अभी # 349 ⇒ आदर्श विचार संहिता? श्री प्रदीप शर्मा  ?

 विचार का संबंध सोचने से होता है, और आचार का संबंध आचरण से। आहार विहार की तरह ही एक व्यक्ति का आचार विचार भी महत्वपूर्ण होता है। सामाजिक मापदंड के अनुसार हमारे आचरण को हम आचार विचार के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।

चुनाव के मौसम में अचानक आचार संहिता लागू हो जाती है, जिसका संबंध सिर्फ राजनीतिक प्रचार के कोड ऑफ कंडक्ट से होता है। किसी व्यक्ति, दल (पार्टी) या संगठन के लिये निर्धारित सामाजिक व्यवहार, नियम एवं उत्तरदायित्वों के समूह को आचरण संहिता कहते हैं। कथनी और करनी अर्थात् व्यवहार और सिद्धांत में अंतर देखना हो तो जरा लकीर के फकीर बनकर आचार संहिता पर गौर कीजिए ;

1. सरकार के द्वारा लोक लुभावन घोषणाएँ नहीं करना।

2.चुनाव के दौरान सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न करना।

3.राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के द्वारा जाति, धर्म व क्षेत्र से संबंधित मुद्दे न उठाना।

4.चुनाव के दौरान धन-बल और बाहु-बल का प्रयोग न करना।

5.आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद किसी भी व्यक्ति को धन का लोभ न देना।

6.आचार संहिता लागू हो जाने के बाद किसी भी योजनाओ को लागू नहीं कर सकते।

इतनी समझ तो एक बच्चे में भी है कि जो करना है, आचार संहिता लागू होने के पहले ही कर लो। कल्लो, अब क्या कर लोगे। पेट्रोल कल से महंगा हो रहा है, आज ही गाड़ी फुल कर लो, लेकिन वहां जाओ, तो पेट्रोल खत्म। तुम डाल डाल, तो हम पात पात। इधर किसी वस्तु के भाव बढ़े, और उधर वह वस्तु बाजार से गायब। गोडाउन सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं, जमाखोरी के लिए नहीं।।

हमारा व्यवहार ही आचरण के दायरे में आता है, हमारी सोच नहीं। हमारे जैसे विचार होंगे, वैसा हमारा आचरण होगा। लाइए कोई कानून, और लगाइए हमारी सोच पर आचार संहिता। मुख में राम हमारा आचरण है, और अब तो कंधे पर धनुष बाण भी है, विपक्षी रावण का वध करने के लिए।

एक आदर्श आचार संहिता वह होती है, जहां हमारी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता। जब समाज में नैतिकता और आदर्श का स्थान, साम, दाम, दंड, और भेद ले लेगा, तो जीवन की सहजता समाप्त हो जाएगी। रिश्तों और प्यार में भी सौदेबाजी शुरू हो जाएगी। हमारा असली चेहरा हम ही नहीं पहचान पाएंगे। आचरण की शुद्धता के लिए एक आदर्श विचार संहिता भी जरूरी है, खुद पर खुद का शासन, आत्मानुशासन।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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