श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “फॉलो अनफॉलो का चक्कर । इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 125 ☆

☆ फॉलो अनफॉलो का चक्कर ☆ 

एक दूसरे को देखकर बहुत कुछ सीखा जा सकता है।  सोशल मीडिया ने लगभग सभी को रील / शार्ट वीडियो बनाना सिखा दिया है। बस उसमें प्रचलित ऑडियो को सेट करें और वायरल का हैस्टैग करते हुए सब जगह फैला दीजिए। ये सब देखते हुए विचार आया कि इसे तकनीकी यात्रा का नाम दिया जाए तो कैसा रहेगा। वैसे भी यात्राएँ रुचिकर होती हैं। पुस्तकों में भी यात्रा वृतांत पढ़ने में आता है।

एक शहर से दूसरे शहर जाना अर्थात कुछ  बदलना। ये बदलाव हमारे अवलोकन को बढ़ाता है। जगह – जगह का खान- पान, रहन-सहन, वेश- भूषा सब कुछ अलग होता है। चारों धाम की यात्रा  यही सोच कर सदियों से की जा रही है। जब हम यात्रा संस्मरण पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है कि इस पुस्तक के माध्यम से हमने भी यात्रा कर ली। रास्ता नापने के मुहावरा शायद यही सोचकर बनाया गया होगा। आजकल सड़कें भी बायपास हो गयीं हैं। बिना धक्के का रास्ता आनन्द के साथ- साथ रुचिकर भी होने लगा है। तेजी से बढ़ते कदम मंजिल की ओर जब जाते हों तो लक्ष्य मिलने में देरी नहीं लगती। आस- पास हरियाली हो, वन वे ट्रैफिक हो, बस और क्या चाहिए।

यात्राएँ हमें जोड़ने का कार्य बखूबी करतीं हैं। बहुत बार हम किसी विशेष स्थान से प्रभावित होकर वहीं बसने का फैसला कर लेते हैं। हम तो ठहरे तकनीकी युग के सो सारा समय फेसबुक, इंस्टा, व्हाट्सएप व ट्विटर पर बिताते हैं। जब मामला अटकता है तो गूगल बाबा या यू ट्यूब की शरण में पहुँच कर वहाँ से हर प्रश्नों के उत्तर ले आते हैं। ये सब कुछ बिना टिकट के घर बैठे हो रहा है। पहले तो किसी से कुछ पूछो तो काम की बात वो बाद में करता था अनावश्यक का ज्ञान मुफ्त में बाँट देता था। चलो अच्छा हुआ इक्कीसवीं सदी में कम से कम इससे तो पीछा छूट गया है।

ये सब मिलेगा बस अच्छी पोस्ट को फॉलो और खराब को अनफॉलो करने की कला आपको आनी चाहिए। पहले अवलोकन करें जाँचे- परखे और सीखते- सिखाते हुए  सबके साथ आगे बढ़ते रहें।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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