श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता  – आभास दायिनी है बिजली !।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 169 ☆  

? कविता  – आभास दायिनी है बिजली ! ?

शक्ति स्वरूपा, चपल चंचला, दीप्ति स्वामिनी है बिजली ,

निराकार पर सर्व व्याप्त है, आभास दायिनी है बिजली !

 

मेघ प्रिया की गगन गर्जना, क्षितिज छोर से नभ तक है,

वर्षा ॠतु में प्रबल प्रकाशित, तड़ित प्रवाहिनी है बिजली !

 

क्षण भर में ही कर उजियारा, अंधकार को विगलित करती ,

हर पल बनती, तिल तिल जलती, तीव्र गामिनी है बिजली !

 

कभी उजाला, कभी ताप तो, कभी मशीनों का ईंधन बन जाती है,

रूप बदल, सेवा में तत्पर, हर पल हाजिर है बिजली !

 

सावधान ! चोरी से इसकी, छूने से भी, दुर्घटना घट सकती है ,

मितव्ययिता से सदुपयोग हो, माँग अधिक, कम है बिजली !

 

गिरे अगर दिल पर दामिनि तो, सचमुच, बचना मुश्किल है,

प्रिये हमारी ! हम घायल हैं, कातिल हो तुम, अदा तुम्हारी है बिजली !

 

सर्वधर्म समभाव सिखाये, छुआछूत से परे तार से, घर घर जोड़े ,

एक देश है ज्यों शरीर और, तार नसों से , रक्त वाहिनी है बिजली !!

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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