आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सुधियों के दोहे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 87 ☆ 

सुधियों के दोहे 

*

वसुधा माँ की गोद है, कहो शहर या गाँव.

सभी जगह पर धूप है, सभी जगह पर छाँव..

*

निकट-दूर हों जहाँ भी, अपने हों सानंद.

यही मनाएँ दैव से, झूमें गायें छंद..

*

जीवन का संबल बने, सुधियों का पाथेय.

जैसे राधा-नेह था, कान्हा भाग्य-विधेय..

*

तन हों दूर भले प्रभो!, मन हों कभी न दूर.

याद-गीत नित गा सके, साँसों का सन्तूर..

*

निकट रहे बेचैन थे, दूर हुए बेचैन.

तरस रहे तरसा रहे, ‘बोल अबोले नैन..

*

‘सलिल’ स्नेह को स्नेह का, मात्र स्नेह उपहार.

स्नेह करे संसार में, सदा स्नेह-व्यापार..

*

स्नेह तजा सिक्के चुने, बने स्वयं टकसाल.

खनक न हँसती-बोलती, अब क्यों करें मलाल?.

*

जहाँ राम तहँ अवध है, जहाँ आप तहँ ग्राम.

गैर न मानें किसी को, रिश्ते पाल अनाम..

*

अपने बनते गैर हैं, अगर न पायें ठौर.

आम न टिकते पेड़ पर, पेड़ न तजती बौर..

*

तनखा तन को खा रही, मन को बना गुलाम.

श्रम करता गम कम ‘सलिल’, औषध यह बेदाम.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१९-३-२०१०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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