प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “जिस तरफ भी नजरें घुमाई…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 75 ☆ गजल – ’जिस तरफ भी नजरें घुमाई… ’’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

 दर्द को दिल में अपने छुपायें आज महफिल में आये हुये हैं।

क्या बतायें कि अपनों के गम से किस तरह हम सताये हुयें हैं।

 

अपनों को खुशियाँ देने को हमने जिंदगी भर लड़ीं है लड़ाई

पर बतायें क्या हम दूसरों को, अपनों से भी भुलायें हुयें हैं।

 

जिस तरफ भी नजरें घुमाई, कहीं भी कोई मिला न सहारा

राह चलता रहा आँख  खोले, फिर की कई चोट खाये हुये हैं।

 

गर्दिशों में भी लब पै तबसुम्म लिये हम आगे बढ़ते रहे हैं

अन कहें सैंकड़ो दर्द लेकिन अपने दिल में छुपाये हुये हैं।

 

काट दी उम्र सब झंझटों में, पर कभी उफ न मुह से निकाली

अपनी दम पै तूफानों से लड़के इस किनारे पै आये हुये हैं।

 

शायद दुनियां  का ये ही चलन है कोई शिकवा गिला क्या किसी से

हमको लगता है हम शायद अपने दर्द के ही बनायें हुये है।

 

जो गुजारी न उसका गिला है, खुश  हैं उससे ही जो कुछ मिला है

बन सका जितना सबकों किया है, चोट पर सबसे खाये हुये हैं।

 

है भरोसा ’विदग्ध’ हमें अपनी टांगों पर जिनसे चलते रहे हैं

आगे भी राह चल लेगें पूरी, इन्हीं से चलते आये हुये हैं।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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