श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है  एक विचारणीय  व्यंग्य उल्लू बनाओ मूर्ख दिवस मनाओ

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 150 ☆

? व्यंग्य – उल्लू बनाओ मूर्ख दिवस मनाओ  ?

किशमिश, काजू, बादाम सब महज 300रु किलो,  फेसबुक पर विज्ञापन की दुकानें भरी पड़ी हैं। सस्ते के लालच में रोज नए नए लोग ग्राहक बन जाते हैं।  जैसे ही आपने पेमेंट किया दुकान बंद हो जाती है। मेवे नहीं आते, जब समझ आता है की आप मूर्ख बन चुके हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इस डिजिटल दुकानदारी के युग की विशेषता है कि मूर्ख बनाने वाले को कहीं भागना तक नहीं पड़ता, हो सकता है की वह आपके बाजू में ही किसी कंप्यूटर से आपको उल्लू बना रहा हो।

सीधे सादे, सहज ही सब पर भरोसा कर लेने वालों को कभी ओ टी पी लेकर, तो कभी किसी दूसरे तरीके से जालसाज मूर्ख बनाते रहते हैं।

राजनैतिक दल और सरकारें, नेता और रुपहले परदे पर अपने किरदारों में अभिनेता,  सरे आम जनता से बड़े बड़े झूठे सच्चे वादे करते हुए लोगों को मूर्ख बनाकर भी अखबारों के फ्रंट पेज पर बने रहते हैं।

कभी पेड़ लगाकर अकूत धन वृद्धि का लालच, तो कभी आर्गेनिक फार्मिंग के नाम पर खुली लूट, कभी बिल्डर तो कभी प्लाट के नाम पर जनता को मूर्ख बनाने में सफल चार सौ बीस, बंटी बबली, नटवर लाल बहुत हैं। पोलिस, प्रशासन को बराबर धोखा देते हुए लकड़ी की हांडी भी बारम्बार चढ़ा कर अपनी खिचड़ी पकाने में निपुण इन स्पाइल्ड जीनियस का मैं लोहा मानता हूं।

अप्रैल का महीना नए बजट के साथ नए मूर्ख दिवस से प्रारंभ होता है, मेरा सोचना है की इस मौके पर पोलिस को मूर्ख बनाने वालों को मिस्टर नटवर, मिस्टर बंटी, मिस बबली जैसी उपाधियों से नवाजने की पहल प्रारंभ करनी चाहिए। इसी तरह बड़े बड़े धोखाधड़ी के शिकार लोगों को उल्लू श्रेष्ठ, मूर्ख श्रेष्ठ, लल्लू लाल जैसी उपाधियों से विभूषित किया जा सकता है।

इस तरह के नवाचारी कैंपेन से धूर्त अपराधियों को, सरल सीधे लोगों को मूर्ख बनाने से किसी हद तक रोका जा सकेगा।

बहरहाल ठगी, धोखाधड़ी, जालसाजी से बचते हुए हास परिहास में मूर्ख बनाने  और बनने में अपना अलग ही मजा है,  इसलिए उल्लू बनाओ, मूर्ख दिवस मनाओ।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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