सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “ख़लिश”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 69 ☆

☆ ख़लिश

ज़िंदगी ख़लिश का ही तो दूसरा नाम है, है ना?

 

कभी बेवजह बहते आंसुओं की खलिश,

कभी दिल-भेदती दर्द की ख़लिश,

कभी रातों को तनहाई की ख़लिश,

कभी सुबह किसी की नामौजूदगी की खलिश,

कभी आफताब के तेज़ से जलने की खलिश,

कभी मुकम्मल मुहब्बत की ख़लिश…

 

खलिश भी होती कुछ ऐसी चीज़ है

जो मिटाए नहीं मिटती,

कोई इरेज़र काम नहीं आता,

कोई वाइपर इसे नहीं हटा पाता,

किसी नेट में यह नहीं पकड़ आती,

बस यह घर बसाए रहती है

दिल में, जिगर में, आँखों में…

 

बस यह कभी-कभी निकल जाती अब्र बनकर;

कुछ पल को ज़हन शांत हो जाता है,

पर फिर जोर से थरथराता है,

एक बार फिर आकर वहाँ

खलिश घर बना ही लेती है-

और ज़िंदगी है कि

चलती ही जाती है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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