श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “किस्म किस्म के ढक्कन”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 49 – किस्म किस्म के ढक्कन ☆

भावनाओं में बह कर व्यक्ति अक्सर गलतियाँ कर जाता है। परंतु जो पूर्वाग्रह से मुक्त होकर केवल सकारात्मक ही सोचता है, वो अंधकार में भी प्रकाश की किरण ढूँढ़ ही लेता है। ऐसे लोग न केवल दूरदर्शी होते हैं वरन अपनी उन्नति के मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। उम्मीद का दामन थामें उम्मीदवार बस भगवान को मनाते रहते हैं कि सब कुछ उनके पक्ष में हो पर होगा कैसे ?  ये तो आपका पक्षकार ही बता सकता है।

इसी तरह तत्काल जो निर्णय किए जाते हैं, वे भावनाओं से प्रभावित होते हैं किंतु कुछ समय के बाद जब हम कोई फैसला करते हैं तो वो दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर किया जाता है। ये सही है कि उपेक्षा और अपेक्षा दोनों ही हमारे लिए घातक साबित होते हैं किंतु हम सब इनके प्रभाव से अछूते नहीं रह पाते हैं। सच कहूँ तो इनके बिना तरक्क़ी ही नहीं हो सकती है। जब तक लोभ मोह की छाया हमारे चारों ओर नहीं होगी तब तक कोई कार्य किए ही नहीं जायेंगे। लोग हाथों में हाथ धरे बैठे हुए जीवन व्यतीत कर देंगे।

अब बात आती है ऐसे अजूबों की जो समझाने पर भी कुछ नहीं समझते ,समझ में नहीं आता या अनजान बनने का ढोंग करते हैं, या वास्तव में ही नासमझ होते हैं, भगवान ही जाने। खैर ये सब तो चलता  रहेगा।  दुनिया ऐसे ही भेड़चाल चलते हुए अपना विकास करती जा रही है। मजे की बात ये है कि बोतल कोई भी हो ढक्कन तो बस एक ही कार्य करते हैं। अपना बचाव करते हुए उल्लू सीधा करना। हद तो तब हो जाती है जब चमचों की बड़ी फौज बस सिर हिलाकर अपनी सहमति  देने में ही अपना सौभाग्य समझती है।

बिना ढक्कनों के डिब्बों की पूछ परख भी नहीं होती है। उन्हीं में समान रखा जा सकता है जो इनके साथ हों। सफाई करते समय डिब्बों को भले ही बाहर से साफ कर दिया जाए किन्तु ढक्कनों को धो पोंछ कर ही इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यही तो हैं जो वस्तुओं के असली रक्षक होते हैं। डिब्बे का समान तभी सही रह सकता है जब एयरटाइट डिब्बा हो और इस एयर को टाइट करने का कार्य ये ढक्कन ही करते हैं सो ऐसे लोगों को नमन जो इसको आदर्श बना कर जीवन एक गति से जिए जा रहे हैं।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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