श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “जागरूक लोग”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 47 – जागरूक लोग ☆

कथनी और करनी का भेद किसी को भी आगे बढ़ने से रोकता ही  है। इससे आप की विश्वसनीयता कम होने लगती है। न चाहते हुए भी शोभाराम जी अपनी इस आदत से बाज नहीं आ रहे हैं। बस किसी तरह कोई उनकी बात में आया तो झट से उसे एक साथ इतने दायित्व सौंप देते हैं कि वो राह ही बदल लेता है। कार्य कोई और करे, श्रेय अपनी झोली में करना तो उनकी पुरानी आदत है। खैर आदतों का क्या है ये तो मौसम से भी तेज होती हैं , जब जी चाहा अपने अनुसार बदल लिया।

बदलने की बात हो और वक्त अपना तकाज़ा करने न पहुँचे ऐसा कभी नहीं हुआ। आरोह-अवरोह के साथ कार्य करते हुए बहुत से अवरोधों का सामना करना ही पड़ता है। अपनी विद्वता दिखाने का इससे अच्छा मौका कोई हो ही नहीं सकता। अब तो शोभाराम जी ने तय कर ही लिया कि सारे कार्यकर्ताओं को कोई न कोई पद देना है। बस उनके घोषणा करने की देर थी कि सारे लोग जी हजूरी में जुट गए। बहुत दिनों तक ये नाटक चलता रहा और अंत में उन्होंने सारे पद भाई-भतीजा बाद से प्रेरित होकर अपने रक्त सम्बन्धियों में बाँट दिए।

अब पूर्वाग्रही लोगों ने ये कहते हुए हल्ला बोल दिया कि उनके साथ दुराग्रह हुआ है। जबकि यथार्थवादी लोग पहले से ही इस परिस्थिति से निपटने की रणनीति बना चुके थे। दो खेमों में बटी हुई पार्टी अपना- अपना राग अलापने लगी। जो बात किसी को पसंद न आती उसे उस विशेष व्यक्ति की व्यक्तिगत राय कह कर पार्टी के अन्य लोग पल्ला झाड़ लेते। ऐसा तो सदियों से हो रहा है और होता रहेगा क्योंकि ऐसी ही नीतियों से ही लोकतंत्र का पोषण हो रहा है। लोक और तंत्र को अभिमंत्रित करने वाले गुरु लगातार इस कार्य में जुटे रहते हैं। लगभग पूरे साल कहीं न कहीं चुनाव होता ही रहता है। जब कुछ नहीं समझ में आता है तो दलबदलू लोग ही अपना पाँसा फेक देते हैं। और सत्ता पाने की चाहत पुनः जाग्रत हो जाती है। पार्षदों से लेकर सांसदों तक सभी सक्रिय राजनीति का हिस्सा होते हैं। आखिर जनता के सेवक जो ठहरे। नौकरशाहों पर लगाम कसने की जिम्मेदारी ये सभी हर स्तर पर बखूबी निभाते हैं। अब आवश्यकता है तो लोक के जागरूक होने की क्योंकि बिना माँगे कोई अधिकार किसी को नहीं मिलते तो भला सीधे – साधे लोक अर्थात जनमानस को कैसे मिलेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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