श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। आज प्रस्तुत है  आपके द्वारा श्री पवन कुमार वर्मा जी की पुस्तक “पवन कुमार वर्मा की श्रेष्ठ बाल कहानियांकी समीक्षा।

☆ पुस्तक समीक्षा ☆ पवन कुमार वर्मा की श्रेष्ठ बाल कहानियां ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆ 

पुस्तक- पवन कुमार वर्मा की श्रेष्ठ बाल कहानियां

प्रकाशक- निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर, 37-शिवराम कृपा, विष्णु कॉलोनी, शाहगंज, आगरा (उत्तर प्रदेश) 94588 009 531

पृष्ठ संख्या- 160 

मूल्य- ₹500

बच्चों की पुस्तक बच्चों के अनुरूप होना चाहिए। उनकी कहानी रोचक हो। आरंभ में जिज्ञासा का पुट हो। कहानी पढ़ते ही उसमें आगे क्या होगा? का भाव बना रहे। वाक्य छोटे हो। प्रवाह के साथ कथा आगे बढ़ती रहे। तब वे बच्चों को अच्छी लगती है।

इस हिसाब से पवन कुमार वर्मा की कहानियां उम्दा है। वे पेशे से अभियंता है। मगर मन से बाल साहित्यकार। आपने बालसाहित्य में अपनी कलम बखूबी चलाई है। इनकी समस्त कहानियां सोउद्देश्य होती है। बिना उद्देश्य इन्होंने कुछ नहीं लिखा है।

प्रस्तुत समीक्ष्य कहानी संग्रह आपकी कहानियों का चुनिंदा संग्रह है। इसमें संग्रहित कहानियां आप के विभिन्न संग्रह से ली गई है। इनका चयन कहानियों की श्रेष्ठता के आधार पर किया गया है। आपकी जो कहानियां ज्यादा चर्चित रही है उन्हीं कहानियों को इस संग्रह में लिया गया है।

इस मापदंड से देखें तो यह कहानी संग्रह अन्य कहानी संग्रह से उम्दा है। इसमें चयनित कहानियां बहुत चर्चित व पठनीय रही है। इस कारण से इन्हें पवन कुमार की श्रेष्ठ कहानियां के रूप में संकलित किया गया है।

भाषा शैली की दृष्टि से आपने मिश्रित भाषाशैली का उपयोग किया है। अधिकांश कहानियां वर्णन के साथ शुरू होती है। मगर वर्णन में रोचकता का समावेश हैं। संवाद चुटीले हैं। भाषा सरल और संयत है। कहानी में तीव्रता का समावेश है। इस कारण कथा में गति बनी रहती है।

मिट्ठू चाचा कहानी आपके मिट्ठू चाचा संग्रह से ली गई है। इस कहानी में शरारती बच्चों को मिट्ठू चाचा की सहृदयता का ज्ञान अचानक हो जाता है। वे अपनी शरारत छोड़ देते हैं। तीन-तीन राजा- कहानी पर्यावरण की स्वच्छता पर एक नई दृष्टि से बुनी गई है। इसका कथानक बहुत ही बढ़िया और रोचक है।

घमंड चूर हो गया- आपसी ईर्ष्या को दर्शाती एक अच्छी कहानी है। इसमें घमंड को दूर करने का अच्छा रास्ता अपनाया गया है। कहानी में अंत का पैरा अनावश्यक प्रतीत होता है। मोटा चूहा पकड़ा गया- घर के सामान की परेशानी और चूहे की समस्या का अच्छा समाधान प्रस्तुत करती है।

मोती की नाराजगी- में गौरैया और मोती के द्वारा कहानी का सुंदर ताना-बाना बुना गया है। कौन, किससे और कैसे नाराज हो सकता है? बच्चों को अच्छी तरह समझ में आ जाता है। वही पिंकू सुधर गया- कहानी में पिंकू की शरारत का अच्छा चित्रण किया गया है।

अनोखी दोस्ती- में दीपू के द्वारा तोते की आजादी को बेहतर ढंग से प्रदर्शित किया गया है। खुशी के आंसू- सृष्टि द्वारा गर्मी की छुट्टियों के सदुपयोग पर प्रकाश डालती है। दावत महंगी पड़ी- में कौए और कोयल द्वारा नारद विद्या पर अच्छा प्रकाश डाला गया है।

प्रणय ने राह दिखाई- बच्चों को स्कूल में श्रम सिखाने का प्रयास करती है। वही सुधर गया विनोद- में शरारत का अंत बेहतर ढंग से किया गया है। वहीं खेल-खेल में- बहुत बढ़िया सीख दे जाती है।

सच्चा दोस्त, समझदारी, असली जीत, दीपू की समझदारी, बात समझ में आई, अंधविश्वास, हम सबका साथ हैं, नई साइकिल, कहानी बच्चों को अपने शीर्षक अनुरूप बढ़िया कथा प्रस्तुत करती है। वही अच्छा सबक मिला, देश हमारा हमको प्यारा, दादाजी का मौनव्रत, गांव की सैर, आदत छूट गई, कल की बात पुरानी, नया साल, रामदेव काका, चोर के घर में चोर, मम्मी मान गई, कहानियां कथानक के हिसाब से रोचक व शीर्षक के हिसाब से उद्देशात्मक है। इनकी सकारात्मकता बच्चों को बहुत अच्छी लगेगी।

कुल मिलाकर पवन कुमार वर्मा की श्रेष्ठ कहानियां बच्चों के मन के अनुरूप व श्रेष्ठ है। इनमें रोचकता का समावेश है। वाक्य छोटे और प्रभावी हैं। कथा में प्रवाह हैं। अंत सकारात्मक है। यानी बालसाहित्य के रूप में कहानी संग्रह उम्दा बन पड़ा है।

त्रुटिरहित छपाई और आकर्षक मुख्य पृष्ठ ने पुस्तक का आकर्षण द्विगुणित हो गया है। हार्ड कवर में 160 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ₹500 ज्यादा लग सकता है। मगर साहित्य की उपयोगिता के हिसाब से यह मूल्य वाजिब है। आशा की जा सकती है कि बाल साहित्य के क्षेत्र में इस संग्रह का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाएगा।

समीक्षक –  ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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