डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-१०  ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(षोडशी शिलॉन्ग)

प्रिय पाठकगण,

आपको हर बार की तरह आज भी विनम्र होकर कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

आपकी प्रतिक्रियाओं ने मुझे सचमुच बहुत कुछ दिया है! मित्रों, हमने जो थोड़ा बहुत मेघालय देखा, उसकी महिमा पिछले नौ भागों में मैंने बखान की है, परन्तु हमारी यह यात्रा ११ दिनों की थी, इसलिए हम फिर मेघालय यात्रा करेंगे यह तो निश्चित है ही! मेघालय की  नयनाभिराम स्मृतियाँ संजोकर लिखा हुआ यह दसवाँ और आगे के भाग मैंने खास करके षोडश वर्षीय, नवयौवना के सामान यौवन से लहराते और महकते शिलॉन्ग यानि, इस मेघालय की राजधानी के लिए आरक्षित कर रखे थे| हमने मुंबई से आसामकी राजधानी गुवाहाटी का सफर हवाई जहाज से किया। उज्ज्वलने (मेरा जमाई) मेघालय के संपूर्ण प्रवास हेतु कॅब बुक की थी| हवाई अड्डेपर आसामका एक ड्राइवर अजय हमारे स्वागत के लिए हाज़िर था| उसके साथ हमने अगले ११ दिन अत्यंत आनंद से प्रवास किया| कभी घमासान बारिश का आक्रमण, कभी कोहरे का गहरा गलीचा, कभी तंग गलियारे, कभी घुमावदार मोड़, तो कभी हमारी देरी, इन सब को धैर्यपूर्वक सहते हुए अजय अविरत गाडी चला रहा था, यातायात के सभी नियमों का सख्ती से पालन करते हुए! वह बड़े ही प्रेमपूर्वक हमारे साथ संवाद कर रहा था और कहाँ क्या देखने लायक है, इस बारे में सूचना और मार्गदर्शन भी कर रहा था| किसी भी पर्यटन स्थल के निकट पहुँचते ही मुझे तो वह “नानी आप ये कर सकता है/ नहीं कर सकता” यह प्यार भरी चेतावनी देता था। हम समूचे सफर में मधुर गीत (बंगाली या आसामी) सुनते गए| उन्हींमें से एक गाना था भूपेन हजारिका का बहुत ही मीठा तथा श्रवणीय ऐसा “ओ गंगा”! हम सबको वह बहुत ही भाया! हमारे पसंदीदा इस गाने का वीडियो आखरी में जोड़ा है| हमने गुवाहाटी से शिलॉन्ग को जाते जाते भूपेन हजारिका के सुंदर स्मारक को देखा|

शिलॉन्ग भारत के मेघालय राज्य की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है| इसके अलावा शिलॉन्ग पूर्व खासी हिल्स जिले का प्रशासकीय केंद्र है| १९६९ तक यह शहर संयुक्त आसाम प्रांत की राजधानी था| १९७२ साल में मेघालय स्वतंत्र राज्य के रूप में प्रस्थापित होने के बाद यहीं शहर मेघालय की राजधानी बना और आसाम की राजधानी गुवाहाटी के एक उपनगर दिसपूर में स्थानांतरित की गई| आज शिलॉन्ग मेघालय की आर्थिक, सांस्कृतिक तथा वाणिज्य राजधानी है| २०२४ में इस  शहर की लोकसंख्या है अंदाजन ५०८०००, यहीं लोकसंख्या २०११ में अंदाजन १४३००० इतनी थी| यहाँ के लगभग ४७ प्रतिशत निवासी ख्रिश्चन धर्मीय तथा ४२ प्रतिशत निवासी हिंदू हैं| यहाँ की अधिकृत भाषा अंग्रेजी है और खासी, जैंतिया तथा गारो इन स्थानिक भाषाओँ को राजकीय दर्जा दिया गया है|

खासी और जैंतिया हिल्स यह भूभाग पारंपारिक काल से खासी जनजाति के आधिपत्य में था| यहाँ की राजधानी सोहरा (चेरापुंजी) हुआ करती थी| परंतु सिल्हेट से आसाम तक रास्ता निर्माण करने हेतु ईस्ट इंडिया कंपनी को यहाँ की जमीन की आवश्यकता महसूस हुई| इसके कारण युद्ध हुआ और ब्रिटिशों का पलड़ा भारी रहा| १८३३ साल में यह भूभाग ब्रिटिशों ने जीत लिया। परंतु चेरापुंजी यह स्थान सुविधाजनक न होने से ब्रिटिशों ने १८६० के दशक में शिलॉन्ग शहर की स्थापना की| १८७४ में ब्रिटिश सरकार ने नवनिर्वाचित आसाम प्रांत की स्थापना की तथा शिलॉन्ग आसाम की राजधानी का शहर बन गया| यहाँ के पहाड़ी प्रदेश व् सौम्य मौसम के कारण ब्रिटिशों को यह शहर पूर्व के स्कॉटलँड जैसा प्रकृतिसंपन्न और सुंदर लगता था| मात्र एक लोकप्रिय पर्यटनस्थल होने के बावजूद यहाँ मार्गिकाओं और रेल्वेमार्गों का विकास नहीं हो पाया, इसलिए शिलॉन्ग की प्रगति मंदगति से होती रही|

यहाँ आए ख्रिश्चन मिशनरियों ने इस भाग में ख्रिश्चन धर्म का प्रसार किया| साथ ही बच्चों की शिक्षा हेतु स्कूल शुरू किये| इस भाग को प्रकृति की अनमोल विरासत का वरदान है। ब्रिटीश उपनिवेशवाद की विरासत का संदेश देनेवाले घरों की रचना तथा कॅफे में बजाया जाने वाला संगीत यह इस शहर की अलग विशेषता है| यहाँ पर्यटन के दृष्टिकोण से हर जगह प्रकृति की सम्पन्नता दृष्टिगोचर होती है| यह प्रदेश सुन्दर तो है ही, साथ ही प्रदूषणमुक्त भी है| शिलॉन्ग पहाड़ी के उतरन पर बसा हुआ है| यहाँ के शिलॉन्ग व्यू पॉइंट से आप समूचा शहर देख सकते हैं| आसमान में फैला हुआ घना कोहरा और उसमें खोया हुआ  शिलॉन्ग शहर अलग ही अनुभूती देकर जाता है| (हम यह पॉईंट देख नहीं पाए, क्यों कि उस वक्त वह बंद किया गया था)

शिलॉन्ग हवाईअड्डा शहर से ३० किलोमीटर उत्तर में स्थित है| यहाँ से दिल्ली, कोलकाता, साथ ही ईशान्य के दिमापूर, गुवाहाटी, सिलचर, इम्फाल, अगरतला इत्यादि प्रमुख शहरों के लिए सीधी विमान यात्रा उपलब्ध है| राष्ट्रीय महामार्ग क्रमांक ६ शिलॉन्ग को गुवाहाटी और अन्य महत्वपूर्ण शहरों के साथ जोड़ता है | दुर्भाग्य से आज भी शिलॉन्ग भारतीय रेल के नक़्शे पर नहीं है| परन्तु भविष्य में गुवाहाटी से मेघालय रेलमार्ग का निर्माण होगा यह आशा की जा रही है| आज की तारीख में गुवाहाटी रेल्वे स्टेशन शिलॉन्ग से १०५ किलोमीटर दूर है|

           मित्रों, अब हम शिल्लोन्ग के(अर्थात हमने देखे हुए) सुन्दर स्थलों का सफर करेंगे!

उमियम सरोवर (Umiyam Lake)

शिलॉन्गकी ओर जाने वाले हमारे रास्ते पर एक अति लावण्यमय, जैसे किसी चित्रप्रतिमा को बड़े प्रयास और प्रेम से चित्रित किया हो, ऐसा उमियम सरोवर दिखाई दिया| मानवनिर्मित होकर भी उसका प्राकृतिक नैसर्गिक सरोवर समान भासमान होने वाला सौंदर्य बिलकुल अनायास ही सिनेमास्कोपिक और  फोटोजेनिक था! कहीं भी कैमरा फिक्स कीजिये और क्लिक करिये, उस चित्र की मोहिनी मन मोहने लगेगी ही! दीवाना बनाने वाले इस सरोवर को घेरा है, वृक्षलताओं की हरितिमा और विशाल पूर्व खासी पर्वत श्रृंखलाओंने! शिलॉन्ग के मध्यबिंदु से यह स्थल १६ किलोमीटर दूर है| उमियम नदीको पाट कर बनाया हुआ यह विशाल और विलक्षण मानवनिर्मित आरस्पानी (आईने की तरह दमकता) सरोवर देखते ही हम उस पर लुब्ध हो बैठे! स्थानीय लोग इसे “बडापानी” कहते हैं| अगर आप सैरसपाटे के लिए गाँव से बाहर जाना चाहते हैं, तो यह जगह उसके लिए एकदम सही है! इसीलिये यहाँ पर्यटकों का कभी खत्म न होने वाला जमघट लगा रहता है, खास कर छुट्टियों के दिनों में! यहाँ का सूर्यास्त नयनाभिराम नारंगी, गुलाबी और लाल रंगों की आभा बिखेरते हुए रंगावली अंकित करने के पश्चात ही ही रात्रि के आगोश में विराम लेता है! बारिश के बाद के विहंगम इंद्रधनुषी रंग देखना है तो यहीं रुकिए, क्योंकि, ये सारे रंग इस सरोवर में अपना राजसी रुप निहारते रहते हैं!

हम यहाँ पहुंचे तो देखा कि हरित पन्नों की माला में जैसे नीलम गूंथा हो, वैसे ही सदाहरित वनश्री में यह सरोवर चमक रहा था| आकाश के बदलते रंग इस जलाशय के जल के रंगों को भी बदल रहे थे। कभी धवल, कभी नीलकांती, तो कभी मेघवर्णम शुभांगम! मैं तो इस परिसर में जैसे खो गई| मित्रों, आप भी यहाँ ऐसे ही खो जाएंगे! यहाँ का नौकानयन यानि इस जल की नीलिमा को निकट से देखने का स्वर्णिम अवसर ही समझिये, अर्थात यह अपरिहार्य ही है! नौकानयन करते हुए हमारी नौका (मोटरबोट) छोटे से शंकू के आकार के पन्नों जैसे प्रतीत होने वाले द्वीपों को घेरा डालते हुए विहार कर रही थी| हमारा भाग्य अच्छा था, क्योंकि, हमें ले जाने वाली नौका का ईंधन बीच में ही ख़त्म हो गया और उसके आने तक हम आसपास के सौंदर्य का आनंद लेते रहे, जैसे कोई बोनस मिला हो! वह आये ही नहीं यह आशा कर रहे थे, कि वह आ ही गया! इस सरोवर में वॉटर स्पोर्ट्स की सुविधा भी उपलब्ध है (kayaking, boating, water cycling, scooting, canoeing इत्यादि)| अर्थात इसके लिए आसमान और सरोवर का शांत और सौम्य रहना आवश्यक है! आप को अगर ऐसा कुछ भी नहीं करना है, तो मजे से चहलकदमी करें और बस इस खूबसूरत क्षेत्र को देखने का आनंद लें! अगर हो सके तो इस झील के पास किसी होटल में ठहरें और प्रकृति की सुंदरता का जी भर कर आनंद अनुभव करें|

मित्रों, अगले भाग में शिलाँग में और उसके आसपास चहल कदमी करेंगे! तब तक थोड़ा इन्तजार करना होगा!

आज की मुलाकात बस इतनी!

तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)

  टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें व्यक्तिगत हैं!

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ| (लिंक अगर न खुले तो, गाना/ विडिओ के शब्द यू ट्यूब पर डालने पर वे देखे जा सकते हैं|)

“ओ गंगा तुमी” अल्बम-“गंगोत्सव”

गायक और संगीतकार: भूपेन हजारिका

(इसी गाने का हिन्दी संस्करण भी यू ट्यूब पर उपलब्ध है|)

 

The Sounds of Meghalaya – #GOLDEN by MEBA OFILIA | Meghalaya Tourism Official

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

८ जून २०२२     

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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