श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “|| मिलीभगत ||।)

?अभी अभी # 325 ⇒ || मिलीभगत || ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

Connivance

कुछ शब्द बड़े मासूम नजर आते हैं। अब भगत शब्द को ही ले लीजिए। नरसिंह भगत से चेतन भगत तक की यात्रा कर चुका है यह शब्द। भगत के बस में हैं भगवान लेकिन जैसे ही इस शब्द का मेल मिलाप, मिली जैसे शब्द से होता है, हमें कोई सांठ गांठ अथवा साजिश नजर आने लगती है। शब्द, सत्संग से, क्या से क्या हो जाए।

मिलीभगत शब्द का प्रयोग भले ही अच्छे अर्थ में नहीं किया जाता हो, लेकिन फिर भी यह एक सामूहिक प्रयास का ही नतीजा है।

अकेला व्यक्ति तो सिर्फ भक्ति ही कर सकता है, मराठी में एक म्हण भी है, एकटा जीव सदाशिव।

एक अकेला जीव बगुला भी है, जो भक्ति नहीं ध्यान करता है। उसकी भी ख्याति बगुला भगत की तरह ही है। अर्जुन को मछली की सिर्फ आंख नजर आती थी, हमारे बगुला भगत के ध्यान में तो हमेशा पूरी मछली नजर आती है।।

अगर सभी बगुले एक ही जगह एकत्रित हो जाएं तो क्या यह उनकी मिलीभगत नहीं कहलाएगी। मिलीभगत के लिए व्यक्ति में बगुले के गुण कूट कूटकर भरे होना जरूरी है। मिलीभगत का परिणाम बड़ा कारगर होता है। अपराध और क़ानून की मिलीभगत आप अपराधी और पुलिस और वकील और अदालत के बीच आसानी से देख सकते हैं। तारीख पर तारीख और जमानत पर जमानत।

जीयो और जीने दो।

अफसर व्यापारी और नेता उद्योगपति के बीच का मधुर मेलजोल क्या मिलीभगत का परिणाम नहीं। संसार में सबसे अटूट रिश्ता स्वार्थ का होता है। पूरे देश को एक सूत्र में बांधने के लिए आपस में प्रेम और सौहार्द्र के अलावा एक बॉन्ड की भी आवश्यकता होती है।

भाषा की गरिमा को बनाए रखते हुए हमें सांठ गांठ, साज़िश अथवा मिलीभगत जैसे शब्दों से परहेज़ करना चाहिए। आज हमारे पास इसके विकल्प के रूप में इलेक्टोरल बॉन्ड हैं, जो देश को विकास की ओर ले जाते हुए सभी को आपस में जोड़ भी रहा है।।

हमें अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक और उदार बनाना होगा। हमारे रोजमर्रा के जीवन में एक और बड़ा प्यारा सा शब्द है, जो सनातन और शाश्वत है। मैं अतिथि देवो भव का जिक्र नहीं कर रहा, आवभगत शब्द का कर रहा हूं।

भक्ति भाव से किसी का स्वागत ही तो आवभगत है। शब्द वही है, लेकिन सब सत्संग का प्रभाव है। अच्छी आवभगत, आदर सत्कार और सम्मान भी आजकल व्यक्ति देखकर ही किया जाता है। जितने अच्छे तोहफे, उतनी ही शानदार आवभगत। और ऊपर से थैंक्यू थैंक्यू, इसकी क्या जरूरत थी। जामनगर जैसे आयोजन में तो आवभगत और मिलीभगत की सुंदर जुगलबंदी नजर आई। रिश्तों का मान रखते हुए खाना भी खाकर ही जाना पड़ेगा। आखिर बहुत पुराना याराना जो है।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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