श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गरीब की जोरू।)

?अभी अभी # 243 ⇒ गरीब की जोरू… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ना तो गरीब कोई गाली है, और ना ही जोरू कोई गाली, लेकिन यह भी एक सर्वमान्य, सनातन सत्य है कि एक गरीब का इस दुनिया में सिर्फ अपनी जोरू पर ही अधिकार होता है। होगा पति पत्नी का रिश्ता, प्रेम और बराबरी का आपके सम्पन्न और शालीन समाज के लिए, गरीब की जोरू तो बनी ही, जोर जबरदस्ती के लिए है।

हमारे समाज ने पत्नी को अगर धर्मपत्नी और अर्धांगिनी का दर्जा दिया है तो एक आदर्श पत्नी भी अपने पति को परमेश्वर से कम नहीं मानती। सात फेरों और सात जन्मों का रिश्ता होता है पति पत्नी का। लेकिन एक गरीब और उसकी जोरू समाज के इन आदर्श दायरों में नहीं आते।।

हम भी अजीब हैं। बचपन में कॉमिक्स की जगह हमने चंदामामा में ऐसी ऐसी कहानियां पढ़ी हैं, जिनका आरंभ ही इस वाक्य से होता था। एक गरीब ब्राह्मण था। समय के साथ थोड़ा अगर सुधार भी हुआ तो शिक्षकों को गुरु जी की जगह मास्टर जी कहा जाने लगा और उनके कल्याण के लिए एक गृह निर्माण संस्था ने सुदामा नगर ही बसा डाला।

लेकिन वह तब की बात थी, जब लोग सुदामा को भी गरीब समझते थे और एक मास्टर को भी। जिसकी आंखों पर अज्ञान की पट्टी पड़ी हो, उसे कौन समझाए। सुदामा एक विद्वान ब्राह्मण थे, श्रीकृष्ण के बाल सखा थे, और हमेशा पूरी तरह कृष्ण भक्ति में डूबे रहते थे। आज सुदामा नगर जाकर देखिए, आपको एक भी शिक्षक नजर नहीं आएगा। सभी सुदामा नगर के वासी आज उतने ही संपन्न और भाग्यशाली हैं, जितने सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने के बाद हो गए थे।।

बात गरीब की जोरू की हो रही थी। आप अगर एक गरीब की पत्नी को जोरू कहकर संबोधित करते हैं, तो उसे बुरा नहीं लगता, क्योंकि उसका पति भले ही गरीब है, पर वह उसका मरद है। हमने अच्छे अच्छे मर्दों को घर में घुसते ही चूहा बनते देखा है। लेकिन गरीब की जोरू का मरद तो और ही मिट्टी का बना होता है। वहां मरद को दर्द नहीं होता, लेकिन जब वह अपनी जोरू को मारता है, तब जोरू को दर्द होता है। आखिर एक मरद और जोरू का रिश्ता, दर्द का ही रिश्ता ही तो होता है। गरीबी और मजबूरी वैसे भी दोनों अभिशाप ही तो हैं।

हमारे लिए तो मजबूरी का नाम भी महात्मा गांधी है। जब कि गरीब का दुख दर्द, अभाव और मजबूरी अपने आप में एक मजाक है। जो किसी की गरीबी का मजाक उड़ाता है, उसके लिए किसी गरीब और जोरू के लिए दर्द कहां से उपजेगा।।

जब रिश्तों में मूल्य नहीं होते तो रिश्ते भी मजाक बन जाते हैं। मजाक और हंसी मजाक में जमीन आसमान का अंतर होता है। क्या गरीबों के लिए हमारा दर्द, मुफ्त राशन की तरह एक मजाक बनकर नहीं रह गया है।

जी हां, यही है हमारे मजाक का स्तर। गरीब की जोरू सबकी भाभी। यहां हम गरीब का ही नहीं, उसकी गरीबी का ही नहीं, उसकी पत्नी का भी मजाक उड़ा रहे हैं। हें, हें ! कैसी बात करते हैं। देवर भाभी में तो मजाक चलता रहता है, और वास्तविकता में भी चल ही रहा है। गरीबी आज मजाक का विषय ही है। गरीब की जोरू सबकी भाभी।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  3

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