श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।

इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ।।60।।

 

यत्न किये भी इंद्रियां,मथतीं मन बरजोर

ज्ञानी को भी खींचती अर्जुन अपनी ओर।।60।।

 

भावार्थ : हे अर्जुन! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रमथन स्वभाव वाली इन्द्रियाँ यत्न करते हुए बुद्धिमान पुरुष के मन को भी बलात्‌हर लेती हैं।।60।।

 

The turbulent senses, O Arjuna, do violently carry away the mind of a wise man though he be striving (to control them) ।।60।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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