श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय १७

(आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद)

(ॐ तत्सत्‌के प्रयोग की व्याख्या)

तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः।

प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्‌।।24।।

ब्रह्मवादी इससे ही सब ‘ओम‘ का कर उच्चार

यज्ञ, दान, तप, कर्म का करते हैं व्यवहार ।।24।।

 

भावार्थ :  इसलिए वेद-मन्त्रों का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएँ सदा ‘ॐ’ इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरम्भ होती हैं।।24।।

Therefore, with the utterance of “Om” are the acts of gift, sacrifice and austerity as enjoined in the scriptures always begun by the students of Brahman.।।24।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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