डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी  की कविता  “अनुत्तरित प्रश्न” जिसके उत्तर शायद किसी के भी पास नहीं है।  बस इसका उत्तर नियति पर छोड़ने के अतिरिक्त और कोई उपाय हो तो बताइये। ) 

 

☆ अनुत्तरित प्रश्न ☆

 

कांधे पर बैग लटकाए

बच्चों को स्कूल की बस में सवार हो

माता-पिता को बॉय-बॉय करते देख

मज़दूरिन का बेटा

उसे कटघरे में खड़ा कर देता

 

‘तू मुझे स्कूल क्यों नहीं भेजती?’

क्यों भोर होते हाथ में

कटोरा थमा भेज देती है

अनजान राहों पर

जहां लोग मुझे दुत्कारते

प्रताड़ित और तिरस्कृत करते

विचित्र-सी दृष्टि से

निहारते व बुद्बुदाते

जाने क्यों पैदा करके छोड़ देते हैं

सड़कों पर भीख मांगने के निमित

इन मवालियों को

उनकी अनुगूंज हरदम

मेरे अंतर्मन को सालती

 

मां! भगवान ने तो

सबको एक-सा बनाया

फिर यह भेदभाव कहां से आया?

कोई महलों में रहता

कोई आकाश की

खुली छत के नीचे ज़िन्दगी ढोता

किसी को सब सुख-सुविधाएं उपलब्ध

तो कोई दो जून की

रोटी के लिए भटकता निशि-बासर

और दर-ब-दर की ठोकरें खाता

 

बेटा! यह हमारे

पूर्व-जन्मों का फल है

और नियति है हमारी

यही लिखा है

हमारे भाग्य में विधाता ने

 

सच-सच बतलाना,मां!

किसने हमारी ज़िन्दगी में

ज़हर घोला

अमीर गरीब की खाई को

इतना विकराल बना डाला

 

बेटा! स्वयं पर नियंत्रण रख

हम हैं सत्ताधीशों के सम्मुख

नगण्य है हमारा अस्तित्व

उनकी करुणा-कृपा पर आश्रित

यदि हमने से सर उठाया

तो वे मसल देंगे हमें

कीट-पतंगों की मानिंद

और किसी को खबर भी ना होगी

 

परन्तु वह अबोध बालक

इस तथ्य को न समझा

न ही स्वीकार कर पाया

उसने समाज में क्रांति की

अलख जगाने का मन बनाया

ताकि टूट जायें

ऊंच-नीच की दीवारें

भस्म हो जाए

विषमता का साम्राज्य

और मिल पायें

सबको समानाधिकार

बरसें खुशियां अपरम्पार

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

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