डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

 

(डॉ. ज्योत्सना सिंह रजावत जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आप जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं । आज प्रस्तुत है श्रावण माह के पवित्र अवसर पर आपका  आलेख “देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है”

 

संक्षिप्त साहित्यिक परिचय

  • दो काव्य संग्रह प्रकाशित हाइकू छटा एवं अन्तहीन पथ (मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद हिन्दी अकादमी के सहयोग से …)
  • कहानीं संग्रह प्रकाशाधीन
  • स्थानीय विभिन्न समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन,आकाशवाणी एवं दूरदर्शन एवं अन्य चैनल पर प्रस्तुति एवं साक्षात्कार।
  • 15 राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय शोध आलेख

 

☆ देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है

 

या सृष्टिः स्त्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री,
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति  यया प्राणिनः प्राणवन्तः,
प्रत्यक्षाभिः प्रपत्रस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः1

कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् के मंगलाचरण में शिव की आराधना इस प्रकार की है’ जो विधाता की प्रथम सृष्टि जल स्वरूपा है एवं विधिपूर्वक हवन की गई सामग्री को वहन करने वाली अग्निरूपाा मूर्ति है, जो हवन करने वाली अर्थात् यजमानरूपा मूर्ति है, दो कालों का विधान करने वाली अर्थात् सूर्य एवं चन्द्र रूपा मूर्ति है, श्रवणेन्द्रिय का विषय अर्थात् शब्द ही है गुण जिसका, ऐसी जो संसार को व्याप्त करके स्थित है अर्थात् आकाश रूपा मूर्ति, जिसे सम्पूर्ण बीजों की प्रकृति कहा गया है अर्थात् पृथ्वी रूपा मूर्ति तथा जिससे सभी प्राणी प्राणों से युक्त होते हैं अर्थात् वायुरूपा मूर्ति-इन प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगत होने वाली मूर्तियों से युक्त ‘शिव’ आप इन आठों मूर्तियों को धारण करने वाले शिव एक हैं और शिव के इस स्वरूप का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि इनका प्रत्येक रूप प्रत्यक्ष का विषय है। कालिदास ने स्वयं माना है कि हम जो कुछ देख सकते हैं, जो कुछ जान सकते हैं वह सब शिवस्वरूप ही हैं। अर्थात एक मात्र शिव की ही सत्ता है, शिव से अतिरिक्त  कुछ भी नहीं है। समस्त सृष्टि शिवमयहै। सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं।

शिव स्त्रोत में शिव की प्रार्थना के साथ शिव के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार किया गया है

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय।।

संसार का कल्याण करने वाले शिव नागराज वासुकि का हार धारण किये हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, भस्म की राख को सारे शरीर में लगाये हुए हैं, इस प्रकार महान् ऐश्वर्य सम्पन्न वे शिव नित्य अविनाशी तथा शुभ हैं। दिशायें जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती हैं, ऐसे नकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

वेद वेदांग ब्राह्मण ग्रंथ,तैत्तरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता वाजसनेयी संहिता इन संहिताओं में शिव के विराट स्वरूप का शिव शक्ति का, मंत्रों में वर्णन पढ़ने को आज भी सर्वसुलभ है..

नमः शिवाय च शिवतराय च (वाजसनेयी सं. १६/४१,
यो वः शिवतमो रसः, तस्य भाजयतेह नः। (वाजसनेयी सं. ११/५१)

शिव की महत्ता सृष्टि रचना से पूर्व भी रही होगी शिव ही संसार के नियन्ता है पोषक हैं संघारक है शिव यानि कल्याण, मंगल, शुभ, के देवता। संसार के कण-कण में शिव है। ऐसे निराकारी  शिव की साधना के लिए शिव रात्रि में व्रत पूजापाठ का बहुत विधान है निम्न मंत्र में व्रत की महिमा का वर्णन प्रत्यक्ष है…

देवदेव महादेव नीलकंठ नमोस्तु ते।
कुर्तमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रभावाद्धेवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।

देव को देव महादेव नीलकंठ आपको नमस्कार है। हे देव  मैं आपके शिवरात्रि-व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूं। देव आपके प्रभाव से मेरा यह व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें। इस भांति पूजन करने से आदिदेव शिव प्रसन्न होते हैं।

सावन में शिव पूजा का विशेष महत्व है शिव मंदिरों में सोमवार के दिन बड़ी भक्ति भाव के साथ कांवड़िए दूर दराज से गंगाजल लाकर भगवान भोले का अभिषेक करते हैं। वेदों में शिवलिंग पर चढ़ने वाले बिल्वपत्र के वृक्ष की महिमा असाधारण मानी गई है । प्रार्थना करते हैं कि बिल्वपत्र अपने तपो-फल से आध्यात्मिक शक्ति से  दरिद्रता को मिटाए और शिव उपासक को ‘श्री’कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे। इस वृक्ष की डालियाँ फल और पत्ते सभी की महिमा वर्णित है।

…पतरैर्वेदस्वरूपिण स्कंधे वेदांतरुपया तरुराजया ते नमः।

आदित्यवर्णे तपसोऽध्जिातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाहया अलक्ष्मीः।।

महाशिवरात्रि पूजा में शिवलिंग पर चढाने के लिए धतूरे का फल, बेलपत्र, भांग, बेल, आंक का फूल, धतूरे का फूल, गंगा जल, दूध शहद, बेर, सिंदूर फल, धूप, दीप को आवश्यक माना गया है।

परम कल्याणकारी शिव की महिमा अनंत है। शिव अनन्त, शिव कृपा अनन्ता ….भगवान शिव की स्तुति रामचरित मानस के अयोध्याकांड में तुलसीदास ने इस प्रकार की है…

सुमिरि महेसहि कहई निहोरी,

बिनती सुनहु सदाशिव मोरी’।

‘आशुतोष तुम औघड़ दानी,

आरति हरहु दीन जनु जानी।।’

भारत के कोने-कोने में आज भी प्राचीन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में शिव मंदिरों की भव्यता को एवं उस मन्दिर की मान्यता को शिव रात्रि के पर्व पर बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों के द्वारा श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ शिव का पूजन करते हुए देखा जाता है। ग्रामीण इलाकों में छोटे छोटे पत्थरों को शिव का प्रतीक मान कर महिलाएं  बच्चे बच्चियां शिव रात्रि पर व्रत करते, पूजन करते हैं जल चढ़ाते शिव के भजन कीर्तन करते हुए शिवमय हो जाते हैं। हिमालय गाथा के उत्सव पर्व में लेखक सुदर्शन जी ने लिखा है कि महाशिवरात्रि का उत्सव कृष्ण चतुर्दशी के फागुन माह में मनाया जाता है यह पर्व महाशिवरात्रि से आरंभ होकर 1 सप्ताह तक चलता है। यह उत्सव पर्व कुल्लू, के रघुनाथ जी मंडी के माधवराव जी की शोभायात्रा निकाली जाती है।

महाशिवरात्रि के पर्व पर राजा चित्रभानु की कथा का प्रसंग पुराणों में पढ़ने को मिलता है, भले ही आज के लोग इस कथा को कपोल कल्पित कल्पना माने पर यह हमारे ऋषि-मुनियों के आत्मज्ञान और साधना का निचोड़ है। जिन्होंने कथाओं के माध्यम से सृष्टि की प्रत्येक रचना की महत्ता को किसी न किसी रूप में प्रकट की है।
पौराणिक कथाओं में नीलकंठ की कहानी सबसे ज्यादा चर्चित है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था। भगवान शिव ने संपूर्ण ब्राह्मांड की रक्षा के लिए स्वंय ही सारा विष पी लिया और नीलकंठ महादेव कहलाये।

शिव ही हैं, जो बंधन, मोक्ष और सुख-दुख के नियामक हैं। समस्त चराचर के स्वामी संसार के कारण स्वरूप रूद्र रूप में संसार के सृजनकर्ता, पालक और संहारक सबका कल्याण करें। श्रीशिवमहापुराण रुद्र संहिता के दशमें अध्याय में ब्रह्मा विष्णु संवाद में विष्णु कहते है कि हे ब्रह्मन वेदों में वर्णित शिव ही समस्त सृष्टि के कर्ता-धर्ता भर्ता, हर्ता,  परात्पर परम ब्रम्ह परेश निर्गुण नित्य, निर्विकार परमात्मा अद्वैत अच्युत अनंत सब का अंत करने वाले स्वामी व्यापक परमेश्वर सृष्टि पालक सत रज तम तीनों गुणों से युक्त सर्वव्यापी माया रचने में प्रवीण,ब्रह्मा विष्णु महेश्वर नाम धारण करने वाले, अपने में रमण करने वाले, द्वन्द्व से रहित, उत्तम शरीर वाले, योगी,गर्व को दूर करने वाले दीनों पर दया करने वाले, सामान्य देव नहीं, देवों के देव हैं, महायोगी हैं।

 

© डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत
असिस्टेंट प्रोफेसर, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
9425339116

 

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