English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 146 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 146 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 146) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 146 ?

☆☆☆☆☆

☆ Self Assessment… ☆

बाजार जाके खुद का

दाम भी कभी पूछना,

तुम्हारे जैसे समान हर

दुकानों में भरे पड़े हैं…!

☆☆ 

Sometime go to the market and

inquire about your own price,

Every shop is abundantly

filled with goods like you…!

☆☆☆☆☆ 

 ☆ Loyalty Bond… ☆

 अंदाजे इश्क़ तो देखा है तुमने

पर फितरत-ए-वफा नहीं देखी,

पिंजरे खोल दो मगर, फिर भी

कुछ परिंदे उड़ा नहीं करते…

☆☆

You’ve seen the love, but not

the  true  nature  of   loyalty,

Even  if  you  open  the  cage, 

still some birds do not fly off…

☆☆☆☆☆

 ☆ Zestful Rains… 

Zestfully humming drops

keep falling from the sky,

As if an ecstatic cloud has

bumped into your anklet…

☆☆

 गुनगुनाती हुई आती हैं

फ़लक से मदमस्त बूंदें,

लगता है कोई बदली तेरी

पाजेब से टकराई है…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 144 ☆ नवगीत – जीवन तन-मन-धन का स्वामी… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण नवगीत जीवन तन-मन-धन का स्वामी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 144 ☆

☆ नवगीत – जीवन तन-मन-धन का स्वामी ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

मन की

मत ढीली लगाम कर

.

मन मछली है फिसल जायेगा

मन घोड़ा है मचल जायेगा

मन नादां है भटक जाएगा

मन नाज़ुक है चटक जायेगा

मन के

संयम को सलाम कर

.

तन माटी है लोहा भी है

तन ने तन को मोहा भी है

तन ने पाया – खोया भी है

तन विराग का दोहा भी है

तन की

सीमा को गुलाम कर

.

धन है मैल हाथ का कहते

धन को फिर क्यों गहते रहते?

धनाभाव में जीवन दहते

धनाधिक्य में भी तो ढहते

धन को

जीते जी अनाम कर

.

जीवन तन-मन-धन का स्वामी

रखे समन्वय तो हो नामी

जो साधारण वह ही दामी

का करे पर मत हो कामी

जीवन

जी ले, सुबह-शाम कर

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९-२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #196 – 82 – “ग़ाफ़िल हुआ सैर करना…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “ग़ाफ़िल हुआ सैर करना…”)

? ग़ज़ल # 82 – “ग़ाफ़िल हुआ सैर करना…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

कैसे कहें मुक्त यह जीवन हमारा है,

सबने बंदी जीवन यहाँ पर गुज़ारा है।

आत्मा यहाँ बंधी इंद्रियों के मोह में,

यह देह ही तो तुम्हारी सुंदर कारा है।

उड़ना चाहते नहीं आकाश में परिंदों सा,

हमको सोने चाँदी का पलना गवारा है।

ग़ाफ़िल हुआ सैर करना मैंने सीखा नहीं,

घर द्वार ही तो सम्पूर्ण संसार हमारा है।

प्यार फटकार दुलार इनकार जायज़ है,

इसके सिवा पास उसके कोई चारा है ?

प्यास किसी की ना बुझा सकेगा सागर भी,

नदिया ही प्यासी दुनिया का एक सहारा है।

यह मुनासिब नहीं कि तू आतिश जीतेगा ही, 

जीता वह दुनिया में जीत कर भी जो हारा है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 74 ☆ कविता – ।। सम्मान अपने कर्मों संस्कारों से कमाना पड़ता है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ कविता ☆ ।। सम्मान अपने कर्मों संस्कारों से कमाना पड़ता है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

।।विधा।।  मुक्तक।।

[1]

तू  जिंदगी  में  शुकराने  को  जारी  रख।

गमों में भी मुस्कराने  को   जारी  रख।।

बहुत  छोटी  जिंदगी  सुख दुःख से भरी।

तू मत किसी दिल दुखाने को जारी रख।।

[2]

सुन लो तो    सुलझ     जातें हैं यह रिश्ते।

सुना लो तो उलझ   जातें हैं  यह  रिश्ते।।

रिश्तों में बस कोरी दुनियादारी ठीक नहीं।

कोशिश से संवर समझ जातें हैं यह रिश्ते।।

[3]

अपने परिश्रम से ही भाग्य बनाना पड़ता है।

क्रिया कलापों से जीवन उठाना पड़ता है।।

तारीफ  और सम्मान मांगने से मिलते नहीं।

अपने कर्मों संस्कारों    से कमाना पड़ता है।।

 

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 138 ☆ बाल गीतिका से – “सदा स्वार्थ-व्यवहार…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “सदा स्वार्थ-व्यवहार…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “सदा स्वार्थ-व्यवहार…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

आजादी के पहले भारत में था अंग्रेजों का राज।

लूट रहे थे वे हम सबको दीन दुखी था यहाँ समाज ॥

 

तिलक और गाँधी ने देखे सपने, चाहा देशी राज।

कष्ट सहे, समझाया सबको, लाई चेतना और स्वराज ॥

 

उनके उस निस्वार्थ त्याग का सुख हम भोग रहे हैं आज ।

किन्तु खेद है उन्हें भुला कर स्वार्थमुखी हो चला समाज

 

सदा स्वार्थ-व्यवहार जगत् में होता है दुख का आधार ।

धन सुख का आधार नहीं है, वह तो है ममता औ’ प्यार ॥

 

जो चरित्र का पतन दिख रहा यह है बड़ी हमारी हार ।

बहुत जरूरी जन हित में फिर सुधरे हम सबका व्यवहार ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “दोहा मुक्तक प्रेम के…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

 

दोहा मुक्तक प्रेम के…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

(१)

प्रेम मधुर इक भावना, प्रेम प्रखर विश्वास।

प्रेम मधुर इक कामना, प्रेम लबों पर हास।

प्रेम सुहाना है समां, है सुखमय परिवेश। 

पियो प्रेमरस डूबकर , रहे संग नित आस।। 

(२)

प्रेम ह्रदय की चेतना, प्रेम लगे आलोक।

प्रेम रचे नित हर्ष को, बना प्रेम से लोक।।

प्रेम एक आनंद है, जो जीवन का सार,  

प्रेम राधिका-कृष्ण है, दूर करे हर शोक।। 

(३)

राँझा है, अरु हीर है, प्रेम मिलन है, गीत।

प्रेम सुखद अहसास है, प्रेम मनुज की जीत।

प्रेम रीति है, नीति है, पावनता का भाव,

प्रेम जहाँ है, है वहाँ चंदा की मृदु शीत।।

(४)

प्रेम गीत, लय, ताल है, प्रेम सदा अनुराग।

प्रेम नहीं हो एक का, प्रेम सदा सहभाग।

पीकर मानव प्रेमरस, जग से रखे लगाव,

प्रेम मिले तो सुप्तता, निश्चित जाती भाग।। 

(५)

खिली धूप है प्रेम तो, प्रेम सुहानी छाँव।

पावन करता प्रेम नित,  नगर,  बस्तियाँ, गाँव।

पीता है जो प्रेमरस, वह पीता उपहार,  

प्रेम भटकते को सदा, देता है नित ठाँव।। 

(६)

प्रेम सदा अमरत्व है, प्रेम सदा गतिमान। 

प्रेम पियो, फिर नित जियो, पूर्ण करो अरमान। 

प्रेम बिना अवसान है, प्रेम बिना सब सून,  

प्रेमपान करके मनुज, पाता है नव शान।। 

(७)

प्रेम मिले तो ज़िन्दगी, पाती है उत्थान। 

प्रेम मिले तो ज़िन्दगी, पाती सकल जहान। 

प्रेम एक है चेतना, प्रेम ईश का रूप,

जो पीते हैं प्रेमरस, पाते नवल विहान।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सदाफूली ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सदाफूली ??

वे खोदते रहे

जड़, ज़मीन, धरातल,

महामार्ग बनाने के लिए,

नवजात पादप रौंदे गए,

वानप्रस्थी वृक्ष धराशायी हुए,

वह निपट बावरा

अथक चलता रहा

पगडंडी गढ़ता रहा,

पगडंडी के दोनों ओर

आशीर्वाद बरसाते

अनुभवी वृक्ष खड़े रहे,

चहुँ ओर बिखरी हरी घास के

पगडंडी को आशीष मिले,

महामार्ग और सरपट टायर

के समीकरण विशेष हैं,

पग और पगडंडी

शाश्वत हैं, अशेष हैं,

हे विधाता!

परिवर्तन के नियम से

अमरबेलों को बचाए रखना,

पग और पगडंडी के रिश्ते को

यूँ ही सदाफूली बनाए रखना..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #188 ☆ भावना के चित्राधारित दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 188 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के चित्राधारित दोहे ☆

देख रही है वह मुझे, दरवाजे की ओट।

मंद मधुर मुस्कान है, नहीं दिख रही खोट।।

कजरारी आँखें लिए, काले -काले बाल।

लुक छिपकर वह देखती, कुंडल झूमें गाल।।

देख उसे मन खिंच रहा, उभरा यौवन आज।

बिंदिया मुझे बुला रही, हूँ सजनी का साज।।

नयन अभी कुछ कह रहे, भरा हुआ है जाम।

आ जाओ अब तुम सजन, लिखा तेरा ही नाम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #174 ☆ एक पूर्णिका – “कई चाहतें खड़ी हुई हैं…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “एक पूर्णिका – “कई चाहतें खड़ी हुई हैं…”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 174 ☆

 ☆ एक पूर्णिका – “कई चाहतें खड़ी हुई हैं☆ श्री संतोष नेमा ☆

खींचा-तानी   मची   हुई    हैं

आकांक्षाएँ     बढ़ी   हुई    हैं

 

जिस थाली  में करते  भोजन

वही  छेद   से  भरी   हुई  हैं

 

कौन  किसे समझाये  अब तो

समझ  सभी  की  बढ़ी हुई  हैं

 

उलझाते   आपस  में   सबको

फितरत  उनकी  सड़ी  हुई   हैं

 

हमी   रहें   बस   सबसे   आगे

यही   हसरतें   पली    हुई    हैं

 

अंधे   हो  गये  इश्क  में वह तो

आँख   में  पट्टी   चढ़ी   हुई   हैं

 

कैसे   अब    संतोष     मिलेगा

कई    चाहतें   खड़ी    हुई    हैं

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संतृप्त ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – संतृप्त ??

दुनिया को जितना देखोगे,

दुनिया को जितना समझोगे,

दुनिया को जितना जानोगे,

दुनिया को उतना पाओगे..,

अशेष लिप्सा है दुनिया,

जितना कंठ तर करेगी,

तृष्णा उतनी ही बढ़ेगी..,

मैं अपवाद रहा

या शायद असफल,

दुनिया को जितना देखा,

दुनिया को जितना समझा,

दुनिया में जितना उतरा,

तृष्णा का कद घटता गया,

भीतर ही भीतर एक

संतृप्त जगत बनता गया

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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