हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #222 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – बलिदानी वीरों की याद… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – बलिदानी वीरों की याद…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 222

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – बलिदानी वीरों की याद…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

वतन पर मिटने वालों की लगन जब याद आती है

तो मन हो जाता भारी, साँस दुख में डूब जाती है।

*

मिटाकर अपनी हस्ती देश को जिनने दिया हमें जीवन

उन्हें सब याद करते, माँ सिसक आँसू बहाती है।

*

हमेशा आँधी-तूफानों से जो लड़ते रहे भरसक

उन्हें श्रद्धा सुमन की भेंट हर बस्ती चढ़ाती है।

*

लड़े बेखौफ आगे बढ़ सहे सौ वार दुश्मन के

समर की यही गाथाएँ अमर उनको बनाती हैं।

*

सुरक्षित स्वर्ण पृष्ठों पर उन्हें इतिहास रखता है

जिन्हें निस्वार्थ जीवन औ’ मरण की रीति आती है।

*

जिन्होंने जान दी अपनी विजय की भोर लाने को

सदा जनता उन्हीं की वीरता के गीत गाती है।

*

दिवस, मेले और प्रतिमाएँ सजायी जाती उनकी ही

जिन्हें आदर से मन मंदिर में जनता नित बिठाती है।

*

उन्हीं के त्याग ने हमको बनाया आज जो हम हैं

 ‘विदग्ध’ उनकी विमल स्मृति हमें जीना सिखाती है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ खोज ☆ श्रीमति जस्मिन शेख ☆

श्रीमति जस्मिन शेख

? कविता ?

 ☆ खोज ☆ श्रीमति जस्मिन शेख  

विघटित विचारों की अनुभूति से

घबराहट भरी अराजकता से

स्वप्नीश बना अध्यापक

खोज रहा है आज

कल का सभ्य नागरिक।

 

झूठे भविष्य की आस में

बच्चों पर सपने लांध कर

बिखरे हुए माता-पिता

खोज रहे हैं आज

अपने ही बच्चों के रक्षक

 

कागज़ के पहाड़ी बोझ उठाकर

गहरे आंतरिक दर्द से पीड़ित

कालसूत्र से बंधा बच्चा

खोज रहा है आज

उसके ही भविष्य का भक्षक

 

व्यर्थ संकल्प के साँप छोड़कर

समाज में भ्रम फैलाकर

गैरजिम्मेदार शासक

खोज रहा  आज

एक और मासूम शावक…

    ☆

साभार – सौ. उज्ज्वला केळकर, सम्पादिका ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

© श्रीमति जस्मिन शेख

मिरज जि. सांगली

9881584475

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनुभूति ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अनुभूति ? ?

अनुभूति प्यासी है

अभिव्यक्ति की,

रचनात्मकता

बंधन कैसे पाले?

मेरी भावनाएँ तो हैं

अग्नि ज्वालामुखी की,

उफनते लावे पर

बाँध कैसे डालें..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #46 – नवगीत – सोने की चिड़िया… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतसोने की चिड़िया

? रचना संसार # 46 – गीत – सोने की चिड़िया…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

सोने की चिड़िया के घर में

डेरा डाले हैं फाँकें,

संकट की बेला में कैसे,

जीवन की गाड़ी हाँकें।

 

साथ नहीं कोई देता है,

बस ताने ही कसते हैं,

कच्चे धागों के ये रिश्ते,

नित नागिन सा डसते हैं,

पश्चिम की इस चकाचौंध में,

कैसे तन को अब ढाँकें।

 

मँहगाई सिर चढ़ कर बोली,

लोग ठहाके हैं मारे,

घोर गरीबी की क्रंदन से,

अधर मौन हैं बेचारे,

कौड़ी-कौड़ी को तरसे हैं,

किसकी अब कीमत आँकें।

 

तृष्णाओं की सरिता बहती,

छलिया करते हैं घातें।

विपदाओं की बाढें आतीं,

काल अमावश की रातें।।

चले कुल्हाड़ी वन -उपवन पर,

अंग-भंग सब क्या टाँकें।

 

आशाओं की बंद खिड़कियाँ,

आश्वासन भी बौराते।

चली हवाएँ हैं अभिमानी,

कुटिल कुहासे चौंकाते।।

सच्चाई की राह अकेली,

टूटा दर्पण क्या झाँकें।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #273 ☆ भावना के दोहे – आतंक ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – आतंक)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 273 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के मुक्तक – आतंक ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

साथ चले जो मार्ग में, उन पर किया प्रहार।

मानवता के वेश में, राक्षस छिपे हजार।।

*

पहलगाम की घाटियाँ,  क्यों मरते निर्दोष।

उत्तर उनसे पूछ लो, उनका क्या था दोष।।

*

आँसू बहे शहीद के, कौन सा था गुनाह।

नहीं तिरंगा अब झुके, सैनिक आए राह।।

*

घाटी पूछे गगन से, क्यों गूँजे आवाज।

क्यों चलती हैं गोलियाँ, सभी काँपते आज।।

*

पूछ रहे हैं धर्म वह, पूछ रहे पहचान।

ढूँढ-ढूँढकर हिन्द को, लेते उनकी जान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #255 ☆ आतंक पर दोहे… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपके आतंक पर दोहे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 255 ☆

☆ आतंक पर दोहे☆ श्री संतोष नेमा ☆

मानवता मरती गई, जिंदा बस आतंक

जिनके मन की क्रूरता, खूब मारती डंक

*

बच्चे, बूढ़े, नौजवां, महिला बनीं  शिकार

नफ़रत की इस जंग में, प्रेम बड़ा लाचार

*

नफ़रत, हिंसा ईर्ष्या, नहीं सिखाता धर्म

जिनके मन आतंक हो, उनके खोटे कर्म

*

जिनके मन बस विकृति हो, वे आतंकी लोग

निर्दोषों को मारते, लगा खून का रोग

*

मानवता की लास पर, करते जो नित नृत्य

उनको क्या जन्नत मिले, जिनके हिंसक कृत्य

*

अपने खोटे करम पर, करते वही गुरुर

जिनके हिय न दीन-धरम, रहें अहम में चूर

*

हेती या अल्कायदा, हिजबुल्लाह हमास

सब आतंकी संगठन, करते सभी बिनास

*

अपने अपने अहम के, होते सभी शिकार

इनको कब संतोष हो, मन में रखें विकार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रश्नोत्तर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्रश्नोत्तर  ? ?

शब्दों में आकार लिए

तुम्हारे अनगिनत प्रश्न

और मेरा अकेला

पर निराकार मौन,

क्या और अधिक

विस्तृत उत्तर

अपेक्षित है तुम्हें?

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 248 ☆ बाल गीत – मम्मा इत्ते  छोटे दिन … ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 248 ☆ 

☆ बाल गीत – मम्मा इत्ते  छोटे दिन  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सूरज लगता बाल सुमन।

जगकर प्रातः करें नमन।।

नरम धूप सूरज की भइया

ता – ता – ता – ता थप्पक – थइया।।

बैठ धूप में मम्मा सुन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

 *

शाम गुलाबी , सुबह ठिठुरती।

रात की रानी खूब महकती।

हरसिंगार महक गुनगुन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

शीत सताए हवा ठुमकती।

बदरा बिजली कभी चमकती।

गाल गुलाबी , शीतल तन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

 *

कभी कुहासा, कभी उजाला।

धूप विटामिन डी का प्याला।

ओढ़ रजाई भरता मन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

 *

महक मोगरा मन है हरती।

चाँद चाँदनी खूब दमकती।

मम्मा इत्ते छोटे दिन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #277 – कविता – ☆ कलरव… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता कलरव…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #277 ☆

☆ कलरव… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

सुबह शाम वृक्षों के झुरमुट में

बैठती पंचायतें

दिनभर की हलचल का, करें सब बखान

पंछियों का होता नित, मृदु कलरव गान।

 

सूर्योदय भोर के, प्रकाश में विभोर हो

गाते नित मिले-जुले, स्वरों में प्रभाती

गौरैया, तोते, तीतर, बटेर कोयल सँग

जुड़ जाते काग भी, कबूतर,मैना साथी,

मिला-जुला मोहक कलरव प्रवाह

मधुरिम सी तान,

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

 

दाना-पानी तलासते, दिन भर यहाँ-वहाँ

पेट की जुगाड़ में, न देखते नदी पहाड़

मीलों की दूरियाँ, खग नापते इधर-उधर,

चुगना देते शिशुओं को, करते नेह लाड़,

गोधूलि बेला संध्या पूजन सँग

आरती-अजान

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

 

कलरव जल-जंगल का, मन का संताप हरे

नदियों की हँसती, इठलाती हर्षित लहरें

प्रणव गान प्रकृति में,  गुंजित है  निश्छल सा

पोषित करती फसलें, जल अमृतमय नहरें

खग,मृग,जल-जंगल को, सुनें-गुनें

प्रकृति विधान

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

 

दायित्वों को समझें, जो हमें निभाना है

गर भौरों की गुंजन, कलरव सुख पाना है

हरे-भरे वन, पर्यावरण शुद्ध स्वच्छ रखें

प्राणिमात्र के प्रति, सद्भाव शुभ दिखाना है

भूखे-प्यासे न रहे, ये निरीह पशु-पक्षी

रखें सदा ध्यान,

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 101 ☆ राजा जी की ड्योढ़ी ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “राजा जी की ड्योढ़ी” ।)       

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 101 ☆ राजा जी की ड्योढ़ी ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

राजा जी की ड्योढ़ी चढ़-चढ़

अब तो पाँव पिराने

दिन बदले न रातें बदलीं

बदले सभी ठिकाने।

 

कहाँ लगाएँगे अर्जी

कुछ तो बतलाओ भाई

कौन करेगा ईमानों की

अपनी अब सुनवाई ।

 

तारीख़ें बदली हैं केवल

सदा लगे जुर्माने ।

 

पोंछ पसीना अगुवाई में

खड़े लगाए आशा

उम्मीदों में झूल रही है

आशा और निराशा

 

विश्वासों की बागुड़ टूटी

दर्द लगे चिल्लाने ।

 

दुख के घर में रहते

हरदम बस अभाव ही काटे

अनुदानों में बँटी रेवड़ी

अपने हिस्से घाटे

 

यद्यपि हक़ में लिखी गईं सब

कविताएँ,अफ़साने।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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