हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ध्रुवीय समीकरण☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ध्रुवीय समीकरण ? ?

सेलेब्रिटी

नहीं कर पाते सेलेब्रेट

अपने लिए

नितांत अपने क्षण,

दूभर हो जाता है

24 बाय 7

कैमरे के आगे

सार्वजनिक होते

जन-नेता का

हर निजी पल,

अनुभव की सीख है,

दुनिया की रीत है,

हर अति

मांगती है

अपनी ऊँची कीमत,

पहाड़ की चोटी

जितनी संकरी

जितनी नुकीली,

उतना ही ढलवा होता है

उसका उतार भी,

फिर भी,

अनादि काल से

पहाड़ हैं,

चोटियाँ हैं,

चुनौतियाँ हैं,

आदमी है,

संकरेपन को

जीतने की

जिजीविषा है,

जीतकर

सार्वजनिक होने की

निजी आकांक्षा है,

निजता और

सार्वजनिकता का

अपना-अपना

आभास है,

ध्रुवीय समीकरण है,

दोनों में

आकंठ आकर्षण है,

दोनों में

कर्कश विरोधाभास है!

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 8 बजे, 13.11.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #197 ☆ संतोष के दोहे – सब मिल गाओ गीत प्रेम के ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – ऊँचे हिमगिरि के शिखरआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 197 ☆

☆ संतोष के दोहे  – सब मिल गाओ गीत प्रेम के ☆ श्री संतोष नेमा ☆

आज  अवध  में धूम  मची है

सरयू -सलिला  सजी-धजी है

आएंगे    प्रभु    राम    हमारे

ढोलक  घंटी  झाँझ  बजी  है

बरसों  से  थी  आस   हमारी

आज मिली हैँ  खुशियां सारी

सब मिल गाओ  गीत प्रेम  के

प्रभु मिलन की  आई  घड़ी है

प्रभु  का मन्दिर भव्य बना है

बिराजे  जिसमें राम लला  हैँ

केंद्र  बना  सबकी  आशा का

सबको अब आने  की पड़ी है

हर   घर  में  उत्सव   दीवाली

खूब  सजीं   पूजा  की  थाली

दिल की बातें कर लो  प्रभु से

आज  कृपा की   हवा चली है

सारे   जग  से   न्यारा   मंदिर

हम  सबका   है  प्यारा  मंदिर

आस   दरश “संतोष” लिए  है

बढ़ी   हृदय  में   उतावली   है

आज  अवध  में  धूम मची है

सरयू सलिला  सजी-धजी  है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मौन संवाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मौन संवाद ? ?

चाहते दोनों नहीं थे

फिर भी खींच दी

या शायद खिंच गई

मौन की रेखा

उनके बीच,

उनके व्यक्तित्वों को

साझा होने से

रोकने के लिए

यह ज़रूरी था,

खुश हैं

मौन के दोनों पात्र,

यह देखकर कि

उनका मौन संवाद

गहरा छन रहा है,

गढ़िया रहा है,

कथित समझदार श्रोता

इस मौन के भले

निकालते हों अर्थ

अपनी-अपनी सुविधा

और अपने-अपने तरीके से,

बेचारे हैं, विचित्र हैं,

कागज़ी ज्ञान तक सीमित हैं,

प्रेम की भाषा, बिम्ब,

प्रतीक और भावार्थ से

नितांत अपरिचित हैं!

© संजय भारद्वाज 

(अपराह्न 4 बजे, दीपावली,11.11.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #30 ☆ कविता – “वसीयत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 30 ☆

☆ कविता ☆ “वसीयत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

कभी सोचता हूँ

पीछे क्या छोड़ जाऊँ

 

सोना, जमीं और जागीर

इनका सदियों से जागीरदार

असल मालिक वो इनका

मैं तो कुछ पल का किरायेदार

 

मगर मेरे दर्या-ए-दिल का

मैं इकलौता वारिसदार

इसकी गहराई और ओछाई का

मैं अकेला पहरेदार

 

तो सोचा इसी दर्या के

मोतियों को पीछे छोड़ जाऊँ

किसी के बुरे वक्त में

उनके काम आ जाऊँ

 

अपने दर्द से निकली रोशनी

उन मोतियों में भर दूँ

अंधेरे में उलझाए किसी को

प्यार की राह दिखा दूँ

 

पाँव के नीचे

फिसलती जमीं किसी की

मेरे जिंदगी की रेत

उसके पैरों तले जमा दूँ

 

कोई खाता गोते

दर्या-ए-दर्द में

दे कर साहिल-ए-लफ्ज़

डूबने से बचा दूँ

 

दिल किसी का गर पड़े सूखा

उसे मेरे दर्या से भर दूँ

मै रहूँ  या ना रहूँ

यह दिल वसीयत में छोड़ दूँ

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 190 ☆ बाल गीत – मर्यादा पुरुषोत्तम राम ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 190 ☆

☆ बाल गीत – मर्यादा पुरुषोत्तम राम ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।

तीर्थ अयोध्या – भूमि सुपावन

जन्म लिए मुस्काए।।

 

दशरथ जी के पुत्र विलक्षण

देवी माँ कौशल्या थीं।

लक्ष्मण जी , शत्रुघ्न , भरत की

लेतीं नित्य बलैयाँ थीं।

 

बाल्मीकि ऋषि रामायण लिख

जीवन चरित सुनाए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

गुरु वशिष्ठ से शिक्षा पाई

विश्वामित्र सँग भ्रमण किया।

राक्षस मारे धनुष – बाण से

कुछ असुरों का दमन किया।

 

सीताजी का हुआ स्वयंवर,

जनकपुरी हरषाए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

माँ कैकई के वर के कारण

चौदह वर्ष वनवास मिला।

साथ में सीता , लक्ष्मण भाई

संग – संत के पुष्प खिला।

 

ऋषि , मुनियों की रक्षा करके

अद्भुत शक्ति दिखाए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

सीताहरण किया रावण ने

लंका लेकर पहुँच गया।

सीताजी को रखा वाटिका

खोई उसने शर्म हया।।

 

राम , लखन जंगल में ढूँढें

सीता जी की खोज करी।

सुग्रीव भेजे हनुमत जी को

वानर सेना बढ़ी चली ।

 

लंका पहुँचे मारुति- नंदन

सीता से आशीष लिया।

फल खाए छककर लंका में

रिपुओं का संहार किया।

 

शक्ति , भक्ति के बल पर ही

फिर लंका दिए जलाए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

वानर सेना चली साथ में

राम , लक्ष्मण , हनुमत जी।

जामवंत , सुग्रीव , नील , नल

संग भक्त विभीषण जी।

 

दस दिन चला युद्ध लंका में

सब राक्षस चुन – चुन मारे।

रावण मरा राम के हाथों

सभी राक्षस ही हारे।।

 

विजय हुई फिर लंका जीती

मिलकर दीप जलाए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

लंका सौंप विभीषण जी को

पुष्पक बैठ विमान चले।

राम , लक्ष्मण , सीता जी संग

सब भक्तों के बने भले।

 

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रियवर

लौट अयोध्या आए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

रात अमावस की अँधियारी

दिखे नहीं चंदा प्यारे।

घर – घर दीप जलाए सबने

स्वागत में कितने सारे।

 

सत्य सनातन पुण्य भूमि का

मान सदा से पाए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

दीवाली त्योहार तभी से

भारतवर्ष मनाता है ।

ज्योतिर्मय इस धरा गगन में

घर पावन हो जाता है।

 

ज्ञान ज्योति घर – घर में फैले

तम सारा मिट जाए।

राम हमारे इष्ट देव हैं

भारत मंगल गाए।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 37 ☆ पतंगों से दिन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “पतंगों से दिन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 37 ☆ पतंगों से दिन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

खो गये हैं

नभ में उड़ते

पतंगों से दिन।

*

हाथों से

छूटी अचानक

डोर कच्ची सी

कब बड़ी

हो गई जाने

पीर बच्ची सी

*

भर रहे हैं

मन में दहशत

लफंगों से दिन।

*

रिश्ते-नाते

जैसे कोई

राह पथरीली

हो गये

संबंध थोथे

हवा जहरीली

*

भागते हैं

अपनेपन से

दबंगों से दिन।

*

आईनों से

पूछते हैं

अतीतों के रूप

चुभ रही है

आजकल की

चिलचिलाती धूप

*

चलो खोजें

जंगलों में

कुरंगों से दिन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कृतघ्न ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कृतघ्न ? ?

अनगिनत जुगनुओं को

चाँद ने मुहैया कराया

चमकने का अवसर,

पिद्दी रोशनी के इतराये

लांघ गए लक्ष्मणरेखा,

अब तपती धूप है,

सम्राट सूर्य

चक्रवती राज्य कर रहे हैं

और जुगनुओं के जीवाश्म

भूसा भरकर

संग्रहालय में रख दिये गए हैं!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ रूबरू आ गए और चल भी दिए… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “रूबरू आ गए और चल भी दिए“)

✍ रूबरू आ गए और चल भी दिए… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

दर्द के गांव में आना जाना रहा

नाता अश्कों से अपना पुराना रहा

भूख और प्यास ख़ामोश सहते रहे

ऐ गरीबी तेरा मू छिपाना रहा

रूबरू आ गए और चल भी दिए

पल में आना हुआ पल में जाना रहा

मीठी बातों से जज़्बों में गर्मी भरी

इस तरह अपना मकसद भुनाना रहा

एक दिन रो लिए एक दिन हँस लिए

ज़िंदगी का बस इतना फ़साना रहा

इक वफादार की बेवफ़ा कह दिया

बात कुछ भी न थी बस सताना रहा

सारी दुनिया है खानाबदोशों का घर

हर घड़ी इक बदलता ठिकाना रहा

अरुणिमा हर घड़ी दर्द सहती रही

एक नादाँ को रस्ते पे लाना रहा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘ब्लैक होल…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Blackhole…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of n

ational and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “तुम लिखो कविता! .  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि –  ब्लैक होल ? ?

तुम फिर खींच दोगे

हमारे बीच के धागे को,

तुम फिर लौट जाओगे

पिछली या उससे पिछली

या उससे पिछली

या उससे भी पिछली,

अनगिनत पिछली बार की तरह..,

तुम्हारे लौट आने पर

मैं फिर मिलूँगा तुमसे

वैसे ही जैसे

कभी कुछ हुआ ही ना हो,

कभी सोचा,

हर बार का तुम्हारा पलायन

मेरे भीतर के ब्रह्मांड में

पैदा कर देता है एक शून्य,

अब,

ये सारे शून्य मिलाकर

भयावह ब्लैक होल बन चुका है,

जानते हो ना,

ब्लैक होल गड़प जाता है

ब्रह्मांड सारा का सारा,

सुनो,

हाँफ रहा हूँ, थक गया हूँ,

बार-बार गड़पे जाने से

कैसे उबरूँ मैं..?

तुम्हीं बताओ

और कितने ब्रह्मांड सिरजूँ मैं..?

© संजय भारद्वाज

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? – Blackhole… ??

You will again draw.

the line between us,

You will again go away

like countless previous occasions,

When you return, I always

meet & greet you again as if

nothing has ever happened…

 

But, have you ever thought,

Every time you leave, it creates

a vacuum in my consciousness,

Now, all these voids have combined

to form a petrifying blackhole

Do you know. that the blackhole

swallows the entire universe..?

 

Now. Listen!

I am gaspingly asphyxiated

How do I recover from being

exhausted again and again?

You only tell me how many

more universes can I create..?

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 36 – यह कसक पुरानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – यह कसक पुरानी है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 36 – यह कसक पुरानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

पीड़ाओं पर और अधिक, छा रही जवानी है 

सदा टीसती रहती है, यह कसक पुरानी है

गम मेरा सच्चा साथी है साथ नहीं छोड़ा 

मुझसे हर पल, खुशियों ने की, आना-कानी है

तेरी यादों की बगिया है अब तक हरी-भरी 

इसमें सींचा गया सदा, आँखों का पानी है

साथ तुम्हारे ही, बहार ने भी मुँह मोड़ लिया 

तुम रहते हो जहाँ, वहाँ की फिजा सुहानी है

जहर पचाना सीख गया मैं, धन्यवाद उनको 

मुझे मिटा देने की जिनने मन में ठानी है

कहीं प्रीति तो कहीं घृणा-नफरत ही पलती है 

यमुना की जलधार कहीं रावी का पानी है

केवल तुम ही नहीं दुखी आचार्य, और भी हैं 

झोपड़ियों की नहीं, ‘खुशी’ महलों की रानी है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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