(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – हिन्दू राष्ट्र के पुर्नप्रवर्तक महान देश भक्त छत्रपति शिवाजी…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 206 ☆
आलेख – हिन्दू राष्ट्र के पुर्नप्रवर्तक महान देश भक्त छत्रपति शिवाजी…
पिन कोड ४६२०१६ मतलब, शिवाजी नगर भोपाल ! इसलिये विशेष रूप से भोपाल वासियों को तो छत्रपति शिवाजी के बारे में संज्ञान होना ही चाहिये. देश के अनेक नगरों में शिवाजी नगर हैं, कई चौराहों, पार्क आदि सार्वजनिक स्थलों पर छत्रपति शिवाजी की मूर्तियां स्थापित हैं. वर्तमान में गुजरात में बनी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा सरदार वल्लभ भाई पटेल की ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ है, जो 182 मीटर ऊंची है. मुम्बई में अरब सागर में शिवाजी स्मारक प्रस्तावित है, जहां इससे भी उंची १९० मीटर की सिवाजी महाराज की प्रतिमा प्रस्तावित है. अनेक योजनायें उनके नाम पर हैं, जबकि शिवाजी महाराज को गुजरे हुये लगभग ३४० वर्ष से अधिक हो चुके हैं. उनका देहान्त ३ अप्रैल १६८० को रायगढ़ में हुआ था. उनका जन्म १९ फरवरी १६३० में हुआ था. उनका शासनकाल ६ जून १६७४ से उनके देहान्त तक की स्वल्प अवधि ही रही, पर इतने छोटे समय में भी उन्होंने जो नीतियां अपनाईं उनने उन्हें छत्रपति बना कर भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय कर दिया. वे एक कुशल शासक, सैन्य रणनीतिकार, वीर योद्धा, मुगलों का सामना करने वाले, सभी धर्मों का सम्मान करने वाले और देश में हिन्दू राज्य के पुनर्संस्थापक थे. यही कारण है कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिवाजी का नाम प्रभावी है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा शिव सेना शिवाजी को प्रमुखता से आईकान के रूप में प्रस्तुत करती हैं.
जब मुगल शासको का हिन्दू दमन पराकाष्ठा पर था तब हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए ही उन्होंने 1674 ई. हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी. उनकी माता जीजाबाई के दिये संस्कार ने बचपन से ही उनके मन में हिन्दुत्व की प्रबल भावना भर दी थी. ऐसे में उनका उद्देश्य हिन्दुओं में आत्म सुरक्षा का भाव जागृत करना, सभी को भारत के सदाशयी मिलनसार हिन्दू चरित्र से परिचित कराना था. मुगल आक्रमणकारियों के शोषण, अन्याय, माताओं, बहनों पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार, प्राकृतिक संसाधनों को लूटने और हिंदू धार्मिक व सांस्कृतिक स्थलों को नष्ट करने के परिणामस्वरूप पूरा देश पीड़ित था. जनमानस मानसिक रूप से बेहद टूटा हुआ था. ऐसे समय में भक्तिकालीन साहित्य ने जहां भारत की सांस्कृतिक तथा धार्मिक चेतना में प्राण फूंका वहीं राजनैतिक प्रभुत्व की इच्छा शक्ति जगाने, बिखरते हुये हिन्दू राजाओ को एक जुट कर उनमें नई ताकत का संचार करने का कार्य श्रीमंत छत्रपति शिवाजी ने किया. उन्होंने ‘हिंदवी स्वराज्य अभियान’ नामक आंदोलन शुरू किया. शिवाजी की चतुराई पूर्ण रणनीतियों के अनेक किस्से लोक प्रिय और प्रेरक हैं, ऐसे हिन्दू राष्ट्र के पुर्नप्रवर्तक महान देश भक्त छत्रपति शिवाजी को कोटिशः नमन.
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक कहानी –“बाल कहानी – कुछ मीठा हो जाए”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 135 ☆
☆ “बाल कहानी – कुछ मीठा हो जाए” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
गोलू गधे को आज फिर मीठा खाने की इच्छा हुई। उसने गबरू गधे को ढूँढा। वह अपने घर पर नहीं था। कुछ दिन पहले उसी ने गोलू को मीठी चीज ला कर दी थी। वह उसे बहुत अच्छी लगी थी। मगर वह क्या चीज थी? उसका नाम क्या था? उसे मालूम नहीं था।
आज ज्यादा मिर्ची वाला खाना खाने से उसका मुँह जल रहा था। उसे अपने मुँह की जलन मिटानी थी। इसलिए वह पास के खेत पर गया। यहीं से गबरू गधा वह खाने की चीज लाया था। वहाँ जाकर उसने इधर-उधर देखा। खेत पर कोई नहीं था। तभी उसे मंकी बन्दर ने आवाज दी, “अरे गोलू भाई किसे ढूंढ रहे हो? इस पेड़ के ऊपर देखो।” “ज्यादा मिर्ची वाला खाना खाने से मेरा मुँह जल रहा है। मुझे कुछ मीठा खाना है।” गोलू ने कहा तो मंकी बन्दर कुछ फेंकते हुए बोला, “लो पकड़ो। इसे चूस कर खाओ। यह मीठा है।”
“मगर, इसका नाम क्या है?” गोलू ने पूछा तो मंकी बोला, “इसे आम कहते हैं।”
“जी अच्छा, ” कह कर गोलू ने आम चूसा। मगर, वह खट्टा-मीठा था। उसे आम अच्छा नहीं लगा।
“मुझे तो मीठी चीज़ खानी थी,” यह कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया।
कुछ दूर जाने पर उसे हीरू हिरण मिला।
“मुझे कुछ मीठी चीज खाने को मिलेगी ? मेरा मुंह जल रहा है,” गोलू ने उसका अभिवादन करने के बाद कहा तो हीरू ने उसे एक हरी चीज पकड़ा दी, “इसे खाओ। यह मीठा लगेगा।”
गोलू ने वह चीज खाई, “यह तो तुरतुरीऔर मीठी है। मगर मुझे तो केवल मीठा खाना था,” यह कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया। उसके दिमाग में गबरू की लाई हुई मीठी चीज़ खाने की इच्छा थी। मगर उसे उस चीज़ का नाम याद नहीं आ रहा था।
वह आगे बढ़ा। उसे चीकू खरगोश मिला। वह लाल-लाल चीज़ छील-छील कर उसके दाने निकाल कर खा रहा था। गोलू ने उससे अपनी मीठा खाने की इच्छा जाहिर की। चीकू ने वह लाल-लाल चीज उसे पकड़ा दी, “इसे खाओ। यह फल मीठा है। इसे अनार कहते हैं।”
गोलू ने अनार खाया, “यह उस जैसा मीठा नहीं है,” कहते हुए वह आगे बढ़ गया।
रास्ते में उसे बौबौ बकरी मिली। उसने बौबौ को भी अपनी इच्छा बताई, “आज मेरा मुँह जल रहा है। मुझे मीठा खाने की इच्छा हो रही है।”
बौबौ ने एक पेड़ से पीली- पोली दो लम्बी चीजें दीं, “इस फल को खा लो। यह मीठा है।”
गोलू ने वह फल खाया, “अरे वाह! इसका स्वाद बहुत बढ़िया है। मगर उस चीज जैसा नहीं है। मुझे वही मीठी चीज खानी है,” कहते हुए गोलू आगे बढ़ गया।
अप्पू हाथी अपने खेत की रखवाली कर रहा था। उसके पास जाकर गोलू ने अपनी इच्छा जाहिर की, “अप्पू भाई! आज मुझे मीठा खाने की इच्छा हो रही है।”
यह सुनकर अप्पू बोला, “तब तो तुम बहुत सही जगह आए हो।”
यह सुनकर गोलू खुश हो गया, “यानी मीठा खाने की मेरी इच्छा पूरी हो सकती है।”
“हाँ हाँ क्यों नहीं,” अप्पू ने कहा, “मीठी शक्कर जिस चीज से बनती है, वह चीज मेरे खेत में उगी है।” कहते हुए अप्पू ने एक गन्ना तोड़ कर गोलू को दे दिया, “इसे खाओ।” गोलू ने कभी गन्ना नहीं चूसा था। उसने झट से गन्ने पर दांत गड़ा दिए। गन्ना मजबूत था। उसके दांत हिल गए।
“अरे भाई अप्पू। तुमने मुझे यह क्या दे दिया। मैंने तुम से मीठा खाने के लिए माँगा था। तुमने मुझे बाँस पकड़ा दिया। कभी बाँस भी मीठा होता है।” यह कहते हुए गोलू ने बुरा-सा मुँह बनाया।
यह देखकर अप्पू हँसा, “अरे भाई गोलू! नाराज क्यों होते हो। इसे ऐसे खाते (चूसते) हैं, ” कहते हुए अप्पू ने पहले गन्ना छीला, फिर उसका थोड़ा-सा टुकड़ा तोड़ कर मुँह में डाला। उसे अच्छे से चबाकर चूसा। कचरे को मुँह से निकाल कर फेंक दिया।
“इसे इस तरह चूसा जाता है। तभी इसके अन्दर का रस मुँह में जाता है।”
यह सुनकर गोलू बोला, “मगर, मुझे तो लम्बी-लम्बी, लाल-लाल और पीछे से मोटी और आगे से पतली यानी मूली जैसी लाल व मीठी चीज़ खानी है। वह मुझे बहुत अच्छी लगती है।”
यह सुन कर अप्पू हँसा, “अरे भाई गोलू। यूँ क्यों नहीं कहते हो कि तुम्हें गाजर खाना है,” यह कहते हुए अप्पू ने अपने खेत में लगे दो चार पौधे जमीन से उखाड़कर उनको पानी से धो कर गोलू को दे दिए।
“यह लो। यह मीठी गाजर खाओ।”
बस! फिर क्या था? गोलू खुश हो गया। उसे उसकी पसन्द की मीठी चीज खाने को मिल गई थी। उसने जी भर कर मीठी गाजर खाई। उसका नाम याद किया और वापस लौट गया।
वह रास्ते भर गाजर, गाजर, गाजर, गाजर रटता जा रहा था। ताकि वह गाजर का नाम याद रख सके। इस तरह उसकी गाजर खाने की इच्छा पूरी हो गई।
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’(धनराशि ढाई लाख सहित)। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।
आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 155 ☆
☆ बाल कविता – मीन हैं प्यारी-प्यारी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’☆
साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत
(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
☆ अखिल भारतीय साहित्य परिषद् भोपाल इकाई का अमृत शक्ति सम्मान, व्याख्यान, पुस्तक समीक्षा एवं लोक भाषा रचना पाठ सम्पन्न ☆
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् भोपाल इकाई का अमृत शक्ति सम्मान व्याख्यान पुस्तक समीक्षा एवं लोक भाषा रचना पाठ कार्यक्रम नव संवत्सर 2080 की मांगलिक बेला में विश्व संवाद केंद्र शिवाजी नगर में संपन्न हुआ। उक्त कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सुश्री प्रियंका शक्ति ठाकुर सुविख्यात निर्देशिका अध्यक्ष डॉ नुसरत मेहदी निदेशक उर्दू अकादमी एवं अध्यक्ष अखिल भारतीय भोपाल इकाई विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ बिनय राजाराम एवं सारस्वत अतिथि के रूप में डॉ साधना बलवटे उपस्थित रहीं।
मातृशक्ति श्रीमती सर्वप्रथम मनोरमा पंत और डॉ राजिया हामिद जी को अमृत शक्ति सम्मान से व नेपथ्य की शक्ति सम्मान से डॉ विनीता चौबे को सम्मानित किया गया। डॉ साधना बलवटे को विश्व हिन्दी सम्मेलन फिजी में भारत का प्रतिनिधित्व करने पर भोपाल इकाई ने सम्मानित किया।
भोपाल इकाई के इन सदस्यों को भी सम्मानित किया गया। सुनीता यादव ,ममता वाजपेई, मांडवी सिंह ,राकेश सिंह तथा पुरु शर्मा। अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर नुसरत मेहदी ने कहा “जब – जब भाषा, संस्कारों व परम्पराओं की नब्ज कमजोर होती प्रतीत होती है अखिल भारतीय साहित्य परिषद् इनकी नब्ज को टटोलकर उसे पुनर्जीवित करने का कार्य करती है।”
मुख्य अतिथि प्रियंका शक्ति ठाकुर ने अपने विचार रखें। उन्होंने कहा कि “अखिल भारतीय साहित्य परिषद भोपाल इकाई अमृत सम्मान की परम्परा के निर्वहन का उत्कृष्ट कार्य कर रही है। साथ ही लोक भाषा पर आधारित कार्यक्रम का आयोजन भी सराहनीय है।”
विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ राजाराम ने कहा कि “हमारे भारत में ही छह उप ऋतुएँ आती हैं। शरीर को नवरात्रि में अनुकूलन करने के लिए तैयार किया जाता है। चौदह दिन का कोरोंटाईन भारतीय परम्परा में बहुत पहले से ही किया जाता है।”
सारस्वत अतिथि राष्ट्रीय डॉ साधना बलवटे ने अपने उद्बोधन में कहा कि “प्रकृति की पूजा हमारे संस्कारों में होनी चाहिए। जीवन के सारे तत्व प्रकृति के देवता सूर्य चंद्रमा, वायु, अग्नि आदि लोक में हमेशा पूजे जाते हैं।” परितप्त लंकेश्वरी पुस्तक की समीक्षा करते हुए उन्होंने मंदोदरी के मनोभावों को बहुत बारीकी से विश्लेषण किया।”
कार्यक्रम में लोक भाषाओं की रचनाओं का पाठ हुआ जिसमें बघेली में गीतकार संदीप शर्मा ने बुंदेली में अशोक गौतम घायल ने, श्रीमती श्यामा गुप्ता ने, मालवी लोकभाषा में श्रीमती शालिनी व्यास ने , निमाड़ी लोकभाषा में अशोक दुबे ‘अशोक’ ने रचना पढ़ी।
कार्यक्रम में संचालन नीता सक्सेना स्वागत वक्तव्य पुरूषोत्तम तिवारी आभार ममता बाजपेई ने व्यक्त किया।
☆ प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय का परिसंंवाद आयोजित ☆
विषय था हिंदी भाषा शिक्षण की चुनौतियाँ और समाधान : वैश्विक संदर्भ“. कार्यक्रम की अध्यक्षता की श्री संतोष चौबे, कुलाधिपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय ने। विशिष्ट अतिथि थे डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, भाषा प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, (पूर्व निदेशक, रेल मंत्रालय) तथा विशिष्ट वक्ता थे एल्मार जोसेफ रेनर, एसोसिएट प्रोफेसर, कोपनहेगन विश्वविद्यालय, डेनमार्क। कार्यक्रम संयोजन डॉ. मौसमी परिहार द्वारा किया गया।
☆ श्री संतोष चौबे के उपन्यास “सपनों की दुनिया में ब्लैक होल” का लोकार्पण ☆
कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वैक्शन सेंटर, भोपाल में श्री संतोष चौबे जी के उपन्यास “सपनों की दुनिया में ब्लैक होल” का लोकार्पण हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री विनोद तिवारी जी ने की स्वागत वक्तव्य मुकेश वर्मा जी ने किया। उपन्यास के अंश का पाठ श्री संतोष चौबे जी ने किया ।आमंत्रित वक्ता थे हरि भटनागर, प्रकाश कांत, राकेश बिहारी, पंकज सुबीर आशुतोष, प्रज्ञा रोहिणी। संचालन श्री अरुण शुक्ला ने और आभार प्रदर्शन श्री बलराम कुमार ने किया। संयोजन किया सुश्री ज्योति रघुवंशी ने।
☆ भोपाल के फ़ौजी इतिहास पर एक अनोखी किताब “निज़ाम ए भोपाल” लोकार्पित ☆
किताब में लिखी फ़ौजी दास्तान भोपाल रियासत से जुड़ी है। जी हाँ, अवसरवादी दोस्त मुहम्मद ख़ान द्वारा स्थापित भोपाल रियासत की अपनी एक फ़ौज थी। उस फ़ौज का 1710 से 1949 तक का एक इतिहास है। उसी फ़ौजी इतिहास को आज़ाद भारत के एक फ़ौजी लेफ़्टिनेंट जनरल (सेवा निवृत्त) मिलन नायडू ने अंग्रेज़ी में कलमबद्ध किया है- और उसका हिंदी अनुवाद किया है भोपाल में फ़ौजी से साहित्यकार बने कर्नल डॉक्टर गिरिजेश सक्सेना ने।
हिंदी भवन के मंत्री-संचालक कैलाश चंद पंत की अध्यक्षता, लेफ़्टिनेंट जनरल विपुल शिंघल , एस एम के मुख्य आतिथ्य और वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार महेश श्रीवास्तव के विशिष्ठ आतिथ्य में आयोजित गरिमामय कार्यक्रम में “निज़ाम ए भोपाल” पुस्तक का लोकार्पण हुआ। वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार घनश्याम सक्सेना सारस्वत अतिथि और क़लीम अख़्तर एवं प्रोफ़ेसर सीमा रायजादा विशेष अतिथि के रूप में मंचासीन रहे। कार्यक्रम का कुशल संचालन वरिष्ठ साहित्यकार गोकुल सोनी ने किया। लेफ़्टिनेंट जनरल (सेवा निवृत्त) मिलन नायडू ने स्वागत उद्बोधन में पुस्तक लेखन और अनुवाद से जुड़ी मुश्किलों को रेखांकित किया।
पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए कैलाश चंद पंत ने लेखक द्वारा भोपाल रेजिमेंट के विकास की कहानी इस पुस्तक में पिरोई गई है। पुस्तक का हिन्दी अनुवाद सरल, सुबोध और पठनीय बन पड़ा है।
मुख्य अतिथि महेश श्रीवास्तव ने बताया कि यह शोधपूर्ण किताब प्रामाणिक रूप से ऐतिहासिक है। भोपाल रियासत का अधिकांश समय बेगमों द्वारा शासित रहा। बेगमों ने पौने दो सौ सालों में रियासत को बुद्धिमत्ता पूर्ण शासन से संचालित करके लोक कल्याण कार्यों को अंजाम दिया था। उन्होंने शिक्षा और चिकित्सा का कार्य प्राथमिकता से करवाया। उन्होंने भोपाल की फ़ौज को आधुनिक बनाया था।
लेफ़्टिनेंट जनरल विपुल शिंघल ने कहा कि सैनिक और साहित्य का बहुत पुराना संबंध है। भगवतगीता का दार्शनिक साहित्य युद्ध भूमि में ही भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश स्वरूप अस्तित्व में आई थी।
वरिष्ठ कलमकार घनश्याम सक्सेना ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि जब मैंने पुस्तक को पढ़ने के लिए उठाया और दो-तीन पृष्ठ पढ़े तो पुस्तक इतनी रोचक लगी कि इसे समाप्त करके ही दम लिया।
भोपाल के फ़ौजी इतिहास के अधिकृत विद्वान क़लीम अख़्तर ने बताया कि इस पुस्तक के लेखन में मिलन नायडू जी ने सटीक प्रमाणों को समावेश किया गया है। इसलिए यह पुस्तक एक प्रामाणिक दस्तावेज है।
लोकार्पण कार्यक्रम में फ़ौजी मुहकमे के आला अफ़सरों के अलावा हिंदी और उर्दू के गणमान्य साहित्यकार डॉक्टर गौरी शंकर शर्मा गौरीश, राम वल्लभ आचार्य, सुरेश पटवा, राजकुमार शर्मा, विनोद जैन, मुज़फ़्फ़र सिद्दीक़ी, कांता रॉय, घनश्याम मैथिल, चरण जीत सिंह की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। लेफ़्टिनेंट जनरल मिलन नायडू ने स्वागत उद्बोधन दिया और आभार प्रदर्शन करते हुए कर्नल डॉक्टर गिरिजेश सक्सेना ने उन मुश्किल हालातों का ज़िक्र किया जब उन्होंने कोरोना ग्रस्त अवस्था में अस्पताल के बिस्तर पर इस किताब के अंतिम दो अध्याय अनुवादित किए थे।
☆ मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा मीर तकी मीर की 300 वीं जयंती का आयोजन सम्पन्न ☆
“मीर के शेरों में जिंदगी के हर रंग मौजूद हैं ” मीर एक ऐसे शायर हैं जिनकी महानता को हर शायर और हर दौर में सराहा गया है यह बात कनाडा से आए उर्दू के प्रसिद्ध विद्वान डॉ तकी आबिदी ने कही। राज्य संग्रहालय सभागार में मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा मीर तकी मीर की 300 वीं जयंती समारोह पर “मुस्तनद है मेरा फरमाया हुआ” कार्यक्रम संपन्न हुआ । उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत मेहंदी ने कहा कि संगोष्ठी में नए रचनाकार विशेष रुप से रिसर्चर्स जान सकेंगे कि उर्दू शायरी में मीर को खुदा ए सुखन क्यों कहा जाता है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजीज इरफान ने कहा कि मेल की कल्पनाशीलता जमीनी है और उन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी को शायरी की जुबां बनाया है।
☆ दुष्यंत संग्रहालय के संस्थापक स्व राजूरकर राज की स्मृति में “स्मृतियों में राज” कार्यक्रम संपन्न ☆
दुष्यंत संग्रहालय में संग्रहालय के संस्थापक स्व राजूरकर राज की स्मृति में “स्मृतियों में राज” नामक कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे आदरणीय संतोष चौबे जी, कुलपति रविंद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय, विशेष अतिथि के रूप में श्री शशांक, पूर्व उपनिदेशक दूरदर्शन भोपाल तथा अध्यक्ष श्री मनोज श्रीवास्तव आईएएस सेवानिवृत्त मध्यप्रदेश शासन थे। इस कार्यक्रम में संग्रहालय से जुड़े सभी सदस्यों ने उन्हें याद किया ।इस कार्यक्रम में निदेशक साहित्य अकादमी श्री विकास दवे जी ने भी राजूरकर जी कोई याद किया। इस अवसर पर राजूरकर राज के ऊपर एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
☆ हिंदी लेखिका संघ की मासिक व्यंग्य गोष्ठी आयोजित ☆
हिंदी लेखिका संघ की मासिक व्यंग्य गोष्ठी आयोजित हुई ।आयोजन की मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंगकार एवं राष्ट्रीय मंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद, डॉक्टर साधना बलवटे ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यंग का उद्गम करुणा से होता है जब हास्य व्यंग एक संतुलित मात्रा में मिलकर आते हैं तब एक सार्थक संतुलित व्यंग रचना तैयार होती है lव्यंग का उद्देश्य समाज की विसंगतियों को दूर करना हैl सारस्वती अतिथि सुमन ओबेरॉय ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यंग की क्षमता बहुत अधिक होती है। यह नैतिक और सामाजिक मूल्यों का प्रहरी होता है । लेखिका संघ के अध्यक्ष डॉ कुमकुम गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत किया और पुष्प की अभिलाषा कविता का पाठ किया इस अवसर पर लेखिकाओं ने हास्य व्यंग रचनाओं का पाठ किया गोष्ठी का संचालन डॉक्टर विनीता राहुरिकर ने किया । तथा आभार सुनीता मिश्रा ने व्यक्त किया।
☆ अ. भा .कला मँदिर भोपाल द्वारा होली पर काव्य गोष्टी संपन्न ☆
आकाशवाणी भोपाल के नमस्कार एम पी कार्यक्रम के अंतर्गत मध्यप्रदेश लेखिका संघ की अध्यक्ष कुमकुम गुप्ता का साक्षात्कार वृंदा प्रधान द्वारा लिया गया जिसमें उनसे नारी प्रकृति और बेटी संबंधित चर्चा की गई ।
☆ आर्य समाज मंदिर, भोपाल का 38 माह वार्षिक उत्सव संपन्न ☆
भोपाल में आर्य समाज मंदिर का 38 माह वार्षिक उत्सव मनाया गया। सवेरे प्रभात रैली के साथ ही विभिन्न प्रकार के आयोजन 3 दिन तक चले जिसमें मुख्य रुप से धर्म संसद, युवा संसद, मातृशक्ति सम्मेलन थे।
धर्म और ईश्वर दोनों मानव जीवन से जुड़े हुए बहुत महत्वपूर्ण विषय हैं ।दोनों ही समस्त विश्व के मानवों को संगठित सुखी और अभय कर सकते हैं किंतु उस समय जब इनमें विरोधाभास ना हो । इसी भावना से मनुष्य जीवन में धर्म की आवश्यकता क्यों उसका महत्व और स्वरूप क्या है विषय पर विभिन्न विचारधाराओं के विद्वानों ने अपने विचार रखे।
युवा सम्मेलन में विषय था “एक भारत श्रेष्ठ भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका चुनौतियां और समाधान” यह आयोजन स्कूल और कॉलेज के छात्र छात्राओं के लिए था जिसमें उन्होंने इस विषय पर अपने विचार प्रकट किए, नारी सशक्तिकरण के लिए क्या उचित कदम उठाए जाएं इस विषय पर श्रीमती प्रज्ञा, रिचा श्रीवास्तव अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक महिला सुरक्षा पुलिस मुख्यालय पर ने विशिष्ट अतिथि के रूप में सारगर्भित भाषण दिया, सुश्री मनोरमा पंत के साथ विभिन्न क्षेत्रों की विदुषी महिलाओं ने भी महिला सशक्तिकरण पर अपने विचार प्रकट किए।
☆ अ. भा .कला मँदिर भोपाल द्वारा होली पर काव्य गोष्टी संपन्न ☆
स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी में हिंदी चिल्ड्रंस बुक्स समर कलेक्शन का आरंभ हुआ यहां पर पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियां,चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री ,भारत की अद्भुत लोक कथाएं ,अमर चित्र कथा की किताबें, वेद पुराण उपनिषद की किताबें पढ़ने को मिलेंगी।
अखिल भारतीय कलामन्दिर संस्था, भोपाल द्वारा नव संवत्सर पर नवरंग काव्य ग़ोष्ठी का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता – डॉ. गौरीशंकर शर्मा ‘गौरीश’ राष्ट्रीय अध्यक्ष अ.भा. कलामन्दिर संस्था भोपाल ने की ।मुख्य अतिथि थे श्री राजेन्द्र शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार एवं विशिष्ट अतिथि थे डॉ जवाहर सिंह कर्णावत।
☆ मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच द्वारा भोपाल की वरिष्ठ साहित्यकार उषा सक्सेना को मातो श्री सम्मान ☆
मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच द्वारा भोपाल की वरिष्ठ साहित्यकार उषा सक्सेना को मातो श्री सम्मान और चाणक्य सम्मान स्मृति चिन्ह के साथ प्राप्त हुआ ।
साभार – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
कोणतीही स्पर्धा आपण त्या स्पर्धेसाठी वेळ काढून बघत असतो आणि काही फ्रॅक्शन ऑफ सेकंदाच्या फरकाने कोणीतरी विजेता होतो. तेव्हा आपल्यालाही वेळेचे महत्व पटते .पण ती जिंकणार्याची जिंकण्याची वेळ असते तीच वेळ हरणार्याची हरण्याची वेळ असते. मग लक्षात येते की वेळ एकच असली तरी प्रत्येकाची वेळ वेगळी वेगळी असते.
मग वेळ लावून केलेल्या कामाला वेळ लागला म्हणायचं का वेळेत केले म्हणायचंअसं वेळेच्या बाबतीत वेळोवेळी काहीतरी वेगळेच मनात आले आणि मन वेळे बाबत विचार करू लागले.
वेळ शब्दाचा अर्थ २४ तासातील काही भाग असे म्हणता येईल. पण किती गंमत आहे पहा या वेळेची••••
वेळेच्या आधी क्रियापद लागून त्याची वेळ म्हटले तर अर्थ एक पण तेच क्रियापद नंतर लावले तर अर्थ वेगळा••••
बघा••• भरतीची वेळ,ओहोटीची वेळ,झोपेची वेळ, खायची वेळ, घ्यायची वेळ, द्यायची वेळ पण हेच उलटे केले तर?
वेळ भरली, वेळ ओसरली, वेळ झोपली, वेळ दिली/दिला ,वेळ घेतली/घेतला••••
मग विचार करताना असे लक्षात आले वेळेचा अभ्यास करण्यासाठी वेळ दिला तर डॉक्टरेट तर मिळेलच पण तरी सगळ्या प्रकारचा सगळ्या विषयाचा वेळ , यासाठी वेळच पुरणार नाही.
आपल्या मराठी भाषेत अनेक गमतीशीर शब्द आहेत त्यापैकी सगळ्यात मजेदार शब्द मला वेळ वाटतो.
कारण तुम्ही जसे फिराल तसा वेळ फिरत राहील तुम्हाला फिरवत ठेवील आणि तुम्ही त्याला शेकडो क्रियापदे जोडू शकता असा सर्वव्यापी सर्वसमावेशक असा शब्द आहे वेळ.
या वेळेला कितीही क्रियापदे लावून वाक्प्रचार केले ना तरी सगळे वाक्प्रचार वापरले असे म्हणताच येणार नाही. थोडे शब्द फिरवून त्या वेळेची छटा बदलता येऊ शकते.
वेळ••••• असते,नसते,पळते,पाळते,देते,घेते,येत,जाते,बघते,ओळखते,बदलते,घालवते,टळते,गाजवते,रेंगाळते,झोपते,साधते,बाधते काहीही करू शकते.
उठायची, बसायची, नाष्त्याची, चहाची, विधी करण्याची, जेवायची, फिरायची, विश्रांतीची ऑफिसला जायची, झोपायची अशी कोणतीही असू शकते.
वेळापूरच्या वृद्धाश्रमात रहायची वेळ आलेले वेळापुरे आजी आजोबा बोलत होते, आपले लग्न वेळेवर झाले म्हणून लेकरं बाळं वेळेत झाली. तेव्हा वेळेची तमा न बाळगता काम केले. वेळात वेळ काढून मजा केली वेळेवर उठण्यापासून ते वेळेवर झोपण्यापर्यंत वेळेचे वेळापत्रक आखून वेळेचे नियोजन केले. म्हणूनच वेळेचे गणित बसून आपण सगळीकडे वेळेवर हजर होत होतो. वेळेची चालढकल केलेली तुम्हाला चालायचीच नाही.वेळेचे पक्के होतात. तुमच्या हुषारीने कामाने तुम्ही कितीतरी वेळा ऑफिसची वेळ गाजवली होती.
आजोबा पण म्हटले हो ना तू पण मी रागवायची वेळ येऊ नये म्हणून जीवाचा आटापिटा करून वेळेचे भान ठेवत माझी एकही वेळ चुकवू द्यायची नाहीस. वेळ महत्वाची असते आणि वेळेचे महत्व तुला होते त्यामुळे सगळे सहज सोपे वाटत होते.
वेळ वाया न घालवता तू सतत कामात वेळ घालवायचीस.खूप कष्टातही हसून तू म्हणायचीस अहो वेळ सांगून येत नसते. ही पण वेळ निघून जाईलच आणि वेळ बदलून चांगली वेळ येईल. या तुझ्या सकारात्मकतेने संसाराचा वेळ कापरासारखा उडून गेला.
खरचं वेळीच मुलांना शिक्षण दिले वेळेची कदर करीत मुलांनाही वेळेचा वेळेवर तुकडा पाडायचे भान दिले. वेळेचा अपव्यय न करता वेळेचा सदुपयोग करायला शिकवले. त्यामुळे आपल्या सुखी संसाराची वेळ जमून आली होती.
तसेच वेळ आल्यावर बघू अशा बेफिकिर वृत्तीत न रहाता वेळेची मर्यादा पाळून वेळकाढूपणा न करता वेळ कोणासाठी थांबत नसते हे जाणून वेळेनुसार दिलेली वेळ पाळत वेळेच्या बंधनात राहून एकमेकांना सांभाळलं म्हणून या साथीत ५० वर्षाचा वेळ कसा गेला हे कळलच नाही.
वेळ वखत पाहून वागलं म्हणजे वेळ गेल्यावर हळहळावे नाही लागत. पण बाई वैर्यावर पण अशी वेळ येऊ नये. पण वेळ सांगून येत नाही.
अगदी खरे आहे हो. आता बघा ना एवढा वेळ मेहेरबान असताना आपल्यावर अशी वृद्धाश्रमात रहायची वेळ येईल असे वाटले तरी होते का?
आपली दोन्ही पोरं मोठ्या कंपनीत मोठ्या हुद्द्यावर आहेत म्हणून आपण भारावलो होतो. अचानक थोरल्याच्या मनात फॉरेनला जायचं खूळ आलं. नुकतीच तुमची रिटायरमेंट झाली होती. सुदैवाने मुबलक पैसा हाती होता. पण थोरल्याला लगेच फॉरेनला जायचे होते म्हणून त्याने वेळ साधून पैशाची मागणी केली. वेळ न दवडता त्याला मदत करणे वेळेत जमवायला पाहिजे होते. म्हणून वेळोवेळी केलेली गुंतवणूक , मिळालेले पैसे हे सगळे वेळेचा अभाव असल्याने हातची संधी जाउ नये वेळ गेला असे होउ नये म्हणून मी वेळीच घातलेल्या लगामाकडे दुर्लक्ष करून तुम्ही त्याला दिली.
ते बघून धाकट्याला झोंबलं. त्यानेही तोच मार्ग धरला आणि यावेळी थोडी वेळ निराळी आहे कारण वेगळ आहे पण पैशाची नड असल्याने तुम्ही दादाला दिले तर मलाही पाहिजेत म्हणून हट्टच धरला. त्याने वेळ पाहून खेळ मांडलेला मला कळत होतं . मी काही कारणे सांगून वेळ मारून न्यायचा प्रयत्न केला पण त्यावेळी तुम्ही वेळ वखत पाहून नाही वागला. थोरल्याला दिले म्हणून राहिलेले धाकल्याला देऊन मोकळे झालात. तुम्ही वेळ बदलेल या विश्वासाने यावेळी आपण मदत केली तर पुढच्यावेळी ते आपली मदत करतील या भ्रमात होता.
ते किती चुकीचे होते हे उशीरा कळले पण तो पर्यंत वेळ निघून गेली होती. आपले होणारे हाल पाहून एका सद्गृहस्थाने आपल्याला या वृद्धाश्रमात आणले आणि आपल्याला डोक्याला हात लावून बसायची वेळ आली.
आजोबा म्हटले खरं आहे तुझं. वेळेमुळे कशाचे काय होईल काही सांगता येत नाही. पण अजूनही वेळ गेलेली नाही. आता तर आपल्याकडे वेळच वेळ आहे. अशी वेळ कोणावर येऊ नये म्हणून आपण रिटायर्ड होणार्यांना सतर्क करण्याचे काम करू. त्यामुळे आपला वेळही सत्कारणी लागेल शिवाय कालची वेळ आज नसते हे शहाणपण आपणही घेऊन याच वृद्धाश्रमातील गरजूंची आपण मदत करूया. आता तर फक्त आपल्या दोघांसाठीच आपण जगणार असल्याने एकमेकांना भरपूर वेळ देऊ या. वेळ न वखत बसली खोकत अशी गत करून तेच तेच दु:ख उगाळत बसू नको. चल दोघांनी मिळून नवी सुरूवात करू. मागच्या वेळेची अनुभूती नकोच . वेळेचे गुलाम होणेही नको. आपण आपल्या वेळेनुसार वेळेला आपल्यापुढे वाकायला शिकवू. शेवटी वेळच आपला गुरू असल्याने त्याची विद्या त्यालाच देऊ. आणि हो , आता परत उदास सूर लावण्याची वेळ नको म्हणून वेळेची एक गंमत सांगतो.
तुला सांगतो हा वेळ आहे ना एक जादूगार आहे. केव्हा काय कोणत्याक्षणी बदलेल हे सांगता येत नाही.
आता हेच बघ ना पूर्वी क्रिकेट ५- ५ दिवस टेस्ट मॅचेस मधे खेळायचे. तेवढा वेळ बघणार्याकडे असायचा. मग नंतर ३ दिवसीय मॅचवर आला कारण लोकांचा वेळ कमी झाला. तो वेळ अजून कमी झाला आणि वन डे मॅच आली. आता २०-२० म्हणजे फक्त काही तासच.
पण मजा तेवढीच उत्सुकता तेवढीच आणि कौतूकही तेवढेच. वेळ कमी आहे म्हणून माणसाने आपली करमणूक नाही कमी केली.
अगं आता आपल्या जीवनातील ५० गेली अन ५ राहिली अशी गत असताना चल आपण वेळेशीच २०- २० खेळू.
आमच्यावेळी ५ दिवसाची होती तरी आमच्यावेळीच २०-२० पण आहे. यावेळी आपण जरा वेगळी मजा घेऊ. वेळेचे चेंडू वेळेवर फ़टकावू, वेळेवर अडवू, वेळेवर झेलू . वेळेवर विकेट जाणारच आहे हे ध्यानात ठेऊन प्रत्येक वेळी मागच्या वेळपेक्षा वेगळ्या खेळाचे प्रदर्शन करू. वेळेला केळ आणि न्याहारीला सिताफळ खात
कोणत्याही वेळी टपकणारा वेळेचा चेंडू अवेळी विकेट न जाऊ देता चौकार षट्कार यांनी टोलवत राहू. वेळ बदलून क्षेत्ररक्षण करायचे तेव्हा दरवेळी चेंडू न आडवता फलंदाजालाच खेळते ठेऊ. वाटले तर तेथे थोडा वेळखाऊपणा पण करू. आपले मस्त वेळ घालवणे पाहून वेळेला रेंगाळायला लावू. आपल्याकडे थोडा वेळ आहे पण मॅच जिंकायचीच आहे म्हणून वेळेचे भान ठेवत ही वेळ पुन्हा येणार नाही म्हणून एक उनाडवेळ पुन्हा जगू या. वेळेचे भान हरपून आपण वेळेला चकवू या. वाढवेळ खेळात नसतो कधीतरी वेळ संपल्याचे वेळ सांगेलच पण त्यावेळी वेळेलाच नो बॉल म्हणून परत बॉल टाकायला लावू आणि मग त्या वेळेच्या चेंडूला फ्री हिट समजून सीमापार करू आणि नॉट आऊट राहून सामना जिंकू.
खरच वेळ एक फ्री हिट आहे त्याचा लाभ घेऊ.
हे पचवायला जरा वेळ लागेल पण वेळ बदलणे वेळेच्या हातात नाही तर तुमच्या हातात आहे हे पटवून देऊ. चल आपण वेळीच हा पायंडा पाडू.
सिंहगड एक्स्प्रेसने छत्रपती शिवाजी महाराज टर्मिनस स्टेशनला प्रवास करत होतो. बहुधा रामनवमीची सार्वजनिक सुट्टी असल्याने, आज दादरनंतर गाडीला बऱ्यापैकी कमी गर्दी होती. दादर स्टेशनलाच समोरच्या सीटवर एक चाळीस पंचेचाळीस वर्षांचा माणूस येऊन बसला. त्याने माझ्याकडे बघून एक general स्मितहास्य केलं, मीही प्रत्युत्तर दिलं.
सर्वसाधारण दिसणारा माणूस, पण थोडासा खंगल्यासारखा दिसणारा. पण त्याच्या चेहऱ्यावर आनंद थुईथुई नाचत होता. प्रचंड खुश दिसत होता तो. अर्थात संपूर्ण अनोळखी माणसाला आपण कसं विचारणार, “का हो, एवढे खुश का आहात ?”
तो, डोळे मिटून, स्वतःशीच गाणं गुणगुणत होता. आणि हळूहळू तो स्वतःच्याच भावविश्वात एवढा रममाण झाला की, त्याच्या नकळत, तो ते गाणे मोठ्याने म्हणू लागला. गाणं होतं – “होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब.”
आजूबाजूचे सगळे आधी आश्चर्याने – कुतूहलाने त्याच्याकडे पाहू लागले. मग कोणीतरी त्याच्या सुरात सूर मिसळला, मग आणखी एकाने, आणखी एकाने. आम्ही सगळे “होंगे कामयाब” म्हणत होतो. अंगावर शहारा येत होता. प्रत्येकालाच सगळ्या ओळी ठाऊक होत्या असं नाही. पण त्याला ते गाणं पूर्ण पाठ होतं. जणू अनेक वर्षे तो हे गाणं म्हणत होता. त्याने ओळ म्हणायला सुरुवात केली, की बाकीचेही त्याला साथ देत होते. वातावरण नुसतं भारावून गेलं होतं.
गाडीची गती हळू हळू कमी होऊ लागली. स्टेशन येत होतं. गाणं संपलं. त्याने डोळे उघडले. आम्ही सगळे उभे राहून गाणं म्हणत होतो. गाणं संपल्यावर उत्स्फूर्तपणे टाळ्या वाजवत होतो.
तो अवघडला, संकोचला. मग तोही उठून उभा राहिला. रंगमंचावर, कलाकार अथवा जादूगार, प्रयोगानंतर जसा कुर्निसात करतात तसा त्याने सगळ्यांकडे बघत लवून कुर्निसात केला आणि म्हणाला, ” मी आज खूप खूश आहे. आत्ताच टाटा हॉस्पिटलमधून येत आहे. Today is my first cancer free day. आज माझा कॅन्सर पूर्णपणे निघून गेल्याचं, मी कॅन्सरवर मात केल्याचं डॉक्टरांनी मला सांगितलं आहे. आज मी माझ्या मुलाबाळांकडे, बायकोकडे गावाला परत जाणार आहे. Thank you all for joining in.”
गाण्यामागचं कारण समजल्यावर गाण्याची अर्थपूर्णता आणखीनच वाढली, त्यानं हेच गाणं का म्हटलं तेही कळलं. आमच्या टाळ्यांचा जोर वाढला, आणि कॅन्सरवर मात करणारा तो योध्दा ताठ मानेने गाडीतून उतरून निघून गेला.
☆ पाण्याचे भांडे आणि दिवा… डाॅ. गौरी कैवल्य गायकवाड ☆ प्रस्तुती – सौ अंजली दिलीप गोखले ☆
पिण्याच्या पाण्याच्या भांड्यांजवळ देखील एक दिवा लावावा आणि ज्या दिवशी शक्य असेल, त्या दिवशी एक फुल देखील तेथे वाहवे आणि मनोभावे पाण्याच्या सर्व भांड्यांना हात जोडून कृतज्ञता व्यक्त करणे
वाचताना काही जणींना हे विचित्र वाटू शकेल, कोणाला हास्यास्पद वाटेल..पण मी स्वतः एक डॉक्टर आहे. विज्ञानाच्या परीक्षेतून तावून सुलाखून बघितल्या शिवाय सहसा कोणत्या गोष्टीवर विश्वास ठेवत नाही. पण सहा महिन्यांपूर्वी ” पाणी” या विषयावर अत्यंत अभ्यासपूर्ण असे संशोधन माझ्या हाती लागले, आणि त्या नंतर चक्क काही धार्मिक पुस्तकांमध्ये त्याचे जसेच्या तसे संदर्भ देखील मिळाले..
ते सोप्यात सोप्पे करून खाली देत आहे.. नक्की वाचा..
१) पाणी…म्हणजे जीवन..पाण्याला स्वतःची विशिष्ट अशी एक स्मरणशक्ती असते.
२) पाणी पिताना ज्या प्रकारचे आपले विचार असतात, किंवा ज्या मानसिक स्थिती मध्ये आपण पाणी पितो,त्याचा प्रचंड परिणाम पाण्यावर आणि पर्यायाने आपल्यावर होतो..
३) पाण्यामध्ये बाहेरून येणाऱ्या प्रत्येक प्रकारच्या उर्जे प्रमाणे बदल होत असतात, आणि त्या बदला प्रमाणे ते तुमच्या शरीरावर परिणाम करत असते .
४) पाणी हे प्रत्येक व्यक्तीच्या शरीरावर वेगवेगळ्या प्रकारे कार्य करते. आपल्या शरीराचा जवळपास ७०-७५% भाग हा पाण्याने बनलेला आहे.म्हणजेच, शरीराचे कार्य कसे चालावे हे मुख्यत्वे आपण जे पाणी ग्रहण करतो, तेच ठरवत असते.
५) पाणी पितानाचे तुमचे विचार, पाण्याकडे बघण्याची तुमची दृष्टी किंवा नजर, पाणी पिताना आजूबाजूला येणारे आवाज, पाणी पिताना तुमच्या मनातील भावना किंवा तुमच्या तोंडातून निघणारे उच्चार या सर्वांचा पाण्यावर प्रचंड परिणाम होतो.. आणि जे प्रत्यक्षात मायक्रो स्कोप खाली बघता सुध्धा येते.
६) तुमची मानसिक स्थिती जर प्रचंड सकारात्मक असेल, आणि हातातील पाण्या विषयी जर तुम्ही प्रचंड कृतज्ञ असाल, तर गढूळ किंवा दूषित पाणी देखील तुम्हाला काहीही अपाय करू शकत नाही; आणि तुमची मानसिक स्थिती नकारात्मक असेल, आणि पाणी पिताना जर तुम्ही पाण्या विषयी बेफिकीर असाल तर अतिशय शुध्द पाणी देखील प्रचंड अपायकारक. ठरू शकते.
७) पाणी हे “जिवंत” असून, मानवाची मज्जासंस्था ज्या प्रमाणे कार्य करते, त्याप्रमाणे पाणी आणि त्याची “पेशिसंस्था” करू करते.
८) जे पाणी हातात धरून किंवा जवळ ठेवून प्रेमाच्या भावना मना मध्ये आणल्या जातात, त्या पाण्याच्या पेशींचा किंवा कणांचा (molecule) आकार खूपच सुंदर असतो, आणि जे पाणी हातात धरून किंवा जवळ ठेवून राग किंवा द्वेष अशा भावना मनात आणल्या जातात, त्या पाण्याच्या कणांचा आकार खूपच विचित्र आणि ओबड धोबड असतो.
९) ज्याप्रकारे पाणी पिताना तुम्ही पाण्याला “ट्रीट” करता, पाणी ते खूप जास्त काळापर्यंत ” लक्षात ठेवते” आणि त्याप्रमाणे तुमच्या शरीरावर चांगले किंवा वाईट परिणाम करते.
१०) पाण्याचा विचार सध्या ” liquid computer” म्हणून देखील केला जात असून त्यामध्ये पाण्याचा ” लक्षात ठेवणे(memory)” हा गुणधर्म वापरला जात आहे.
११) तुम्हाला जो काही चांगला उद्देश साध्य करायचा आहे, ” तो उद्देश एका हातात पाण्याचा ग्लास घेऊन मग मनामध्ये बोलून मग ते पाणी पिणे” या सारख्या विविध “Water Therapy सध्या पाण्याच्या याच गुणधर्मांचा वापर करून उदयास येत आहेत.
१२) ही सगळी वैज्ञानिक माहिती असून, ज्यांना अजून डिटेल माहिती पाहिजे असेल, त्यांनी नेट वरून डॉ. मासारू इमोटो यांचे पाण्यावरील संशोधन शोधून वाचावे.
तर आता..या पाण्याच्या दिव्य आणि शक्तिशाली क्षमतांची सांगड आपल्या संस्कृती आणि चालिरितींशी घालण्याचा प्रयत्न केल्यावर जे काही हाती लागले, त्यावरून मी खालील गोष्टी. गेली सहा महिने करीत आहे.
१) पिण्याचे पाणी तांब्याच्या भांड्यात ठेवूनच साठवावे..आणि शक्यतो तांब्याच्या ग्लास ने च प्यावे. कारण तांबे हा धातू ऊर्जेचा “सुवाहक” आहे.
२) रोज रात्री ते तांब्याचे भांडे चिंच आणि हळद वापरून धुवावे.
३) त्यानंतर त्यामध्ये स्वच्छ पाणी सुती कपड्यामधून गळून भरावे.
४) यानंतर या पाण्याच्या भांड्याच्या बाजूला एक दिवा लावून भांड्यावर एक फुल ठेवावे, आणि पाण्या विषयी मनामध्ये अत्यंत कृतज्ञतेचे भाव आणून हात जोडावेत. (आम्हाला आयुष्य, आरोग्य आणि जीवन प्रदान केल्याबद्दल आभारी आहोत असे किंवा या प्रकारचे कोणतेही चांगले विचार मनात आणून कृतज्ञता व्यक्त करू शकता.)
५) सकाळी उठल्या नंतर याच भांड्यातील पाणी पिऊन दिवसाची सुरुवात करावी.
६) पाणी पिण्याचा सर्वात योग्य मार्ग म्हणजे दोन हातांच्या ओंजळीत घेऊन पिणे.. परंतु ते आपल्याला शक्य नसते. त्यामुळे पाणी पिताना, ज्या भांड्यामध्ये, किंवा पेल्यामध्ये प्याल, तो दोन्ही हातांनी पकडून पाणी पिणे.
७) पाणी पिताना जाणीवपूर्वक काही सेकंद पाण्याचा ग्लास दोन्ही हातात धरून मनामध्ये चांगले विचार, चांगल्या भावना आहेत याची खात्री करूनच पाणी प्यावे.
८) हीच गोष्ट कोणाच्या घरी गेल्यावर किंवा बाहेर गेल्यावर कुठले पाणी पिण्याची वेळ आली तर जाणीव पूर्वक थोडी जास्त वेळ करावी.
९) केवळ तहान लागल्यावरच पाणी प्यावे. सारखे सारखे विनाकारण पिऊ नये.
१०) आहारामध्ये पाणी जास्त प्रमाणात (८०-९०%) असलेल्या घटकांचा म्हणजेच फळांचा.. जास्तीत जास्त समावेश करावा..
या प्रकारे पाणी पिण्यामुळे आणि वर दिलेल्या सर्व गोष्टी गेले सहा महिने सलग केल्यामुळे “पहिल्या दिवसा पासून” झालेले फायदे.:
१) माझी लहान मुलगी, जी दर महिन्याला आजारी पडत होती, आणि तिला अँटिबायोटिक्स दर महिन्याला द्यावे लागत होते, ते पूर्ण बंद झाले.
२) माझे मानसिक आणि शारीरिक स्वास्थ्य खूप चांगले झाले, जे काही महिन्यांपूर्वी प्रचंड बिघडलेले होते.
३) माझ्या घरातील लोकांचा acidity चा त्रास जवळपास बंद झाला आहे.
४)रोज सकाळी घरातील वातावरण खूपच छान, हसते खेळते आणि ऊर्जेने भरलेले असते .
५) माझा पाण्याकडे, आणि एकूणच स्वयंपाक घराकडे बघण्याचा दृष्टीकोन प्रचंड बदलला आहे.
६) एखादे दिवशी दिवा लावायचा विसरला, तर पाण्याच्या चवीमध्ये जाणवण्या इतका फरक आहे.
लेखिका – डॉ.गौरी कैवल्य गायकवाड
संग्रहिका : अंजली दिलीप गोखले
मोबाईल नंबर 8482939011
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
☆ संत एकनाथ महाराज षष्ठी… ☆ प्रस्तुती – सुश्री वीणा छापखाने ☆
सर्वसाधारणपणे नाथ म्हणून ओळखले जाणारे संत एकनाथ (१५३३-१५९९) हे महाराष्ट्रातील वारकरी संप्रदायातील एक संत होते… त्यांचा जन्म इ.स. १५३३ मध्ये पैठण येथे झाला. संत भानुदास हे एकनाथांचे पणजोबा. ते सूर्याची उपासना करीत. श्री संत एकनाथांच्या वडिलांचे नाव सूर्यनारायण होते. आईचे नाव रुक्मिणी होते. आई-वडिलांचा सहवास त्यांना फार काळ लाभला नाही. त्यांचे पालनपोषण आजोबांनी केले. चक्रपाणी आणि सरस्वती हे त्यांचे आजोबा व आजी होत…..
एकनाथांचे गुरू सद्गुरू जनार्दनस्वामी हे देवगड (देवगिरी) येथे यवन दरबारी अधिपती होते… हे मुळचे चाळीसगावचे रहिवासी; त्यांचे आडनाव देशपांडे होते. ते दत्तोपासक होते. गुरू म्हणून संत एकनाथांनी त्यांना मनोमन वरले होते. नाथांनी परिश्रम करून गुरुसेवा केली आणि साक्षात दत्तात्रेयांनी त्यांना दर्शन दिले; द्वारपाल म्हणून दत्तात्रेय नाथांच्या द्वारी उभे असत असे म्हणतात. नाथांनी अनेक तीर्थयात्राही केल्या…..
नाथांनी पैठणजवळच्या वैजापूर येथील एका मुलीशी विवाह केला… एकनाथ आणि गिरिजाबाई यांना गोदावरी व गंगा या दोन मुली व हरी नावाचा मुलगा झाला. त्यांचा हा मुलगा हरिपंडित झाला. त्याने नाथांचे शिष्यत्व पत्करले. एकनाथांनी समाधी घेतल्यानंतर हरि पंडितांनी नाथांच्या पादुका दरवर्षी आषाढी वारीसाठी पंढरपुरास नेण्यास सुरुवात केली. कवी मुक्तेश्वर हे नाथांचे मुलीकडून नातू होत…..
संत ज्ञानेश्वरांच्या नंतर सुमारे २५० वर्षांनी एकनाथांचा जन्म झाला… ‘बये दार उघड’ असे म्हणत नाथांनी अभंगरचना, भारूड, जोगवा, गवळणी, गोंधळ यांच्या साहाय्याने जनजागृती केली. एकनाथ हे संतकवी, पंतकवी व तंतकवी होते. त्यांनी आपल्या साहित्याद्वारे जनतेचे रंजन व प्रबोधन केले. ते ’एका जनार्दन’ म्हणून स्वतःचा उल्लेख करतात, एका जनार्दनी ही त्यांची नाममुद्रा आहे…..
’एकनाथी भागवत’ हा त्यांचा लोकप्रिय ग्रंथ आहे… ही एकादश स्कंदावरील टीका आहे. मुळात एकूण १३६७ श्लोक आहेत. परंतु त्यावर भाष्य म्हणून १८,८१० ओव्या संत एकनाथांनी लिहिलेल्या आहेत. व्यासांनी रचलेले मूळ भागवत १२ स्कंदांचे आहे. नाथांनी लिहिलेल्या भावार्थ रामायणाच्या सुमारे ४० हजार ओव्या आहेत. रुक्मिणीस्वयंवर हेही काव्य त्यांनीच लिहिले आहे. दत्ताची आरतीही (त्रिगुणात्मक त्रयमूर्ति दत्त हा जाण) त्यांची आरती गणपतीसमोर गायच्या आरत्यांपैकी एक आहे. सर्वांत महत्त्वाचे म्हणजे एकनाथांनी ज्ञानेश्वरीची प्रत शुद्ध केली. नाथ हे महावैष्णव होते. दत्तभक्त होते, देवीभक्त पण होते. जातिभेद दूर करण्यासाठी यांनी आयुष्यभर प्रयत्न केले…..
फाल्गुन वद्य षष्ठी, शके १५२१ (२६ फेब्रुवारी इ.स. १५९९) या दिवशी संत एकनाथांनी देह ठेवला… फाल्गुन वद्य षष्ठी हा दिवस ‘ एकनाथ षष्ठी ‘ म्हणून ओळखला जातो.
संग्राहिका : वीणा छापखाने
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈