हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 56 ☆ लघुकथा – लॉकडाउन तोड़ने वाला बूढ़ा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है  एक समसामयिक विषय पर आधारित कहानी  ‘लॉकडाउन तोड़ने वाला बूढ़ा ।  जहाँ एक ओर लॉक डाउन एक आवश्यकता है वहीँ दूसरी ओर उसके दुष्परिणाम भी सामने आये हैं। इस विचारणीय कहानी  के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 56 ☆

☆ कहानी – लॉकडाउन तोड़ने वाला बूढ़ा
———————————————

पुरुषोत्तम जी उम्र के पचहत्तर पार कर गये। हाथ-पाँव ,आँख-कान अब भी दुरुस्त हैं। दिमाग़, याददाश्त भी ठीक-ठाक हैं। कोई बड़ा रोग नहीं है। आराम से स्कूटर चला लेते हैं, रात को भी दिक्कत नहीं होती।

लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के बाद पुरुषोत्तम जी के पाँव बँध गये हैं। पैंसठ से ऊपर के बुज़ुर्गों के लिए घर से बाहर निकलना मना हो गया है। अब पुरुषोत्तम जी पर घरवालों की नज़र रहती है। चारदीवारी का गेट खुलने की आवाज़ होते ही कोई न कोई झाँकने आ जाता है। कपड़े बदलते हैं तो सवाल आ जाता है, ‘कहाँ जा रहे हैं?’
पुरुषोत्तम जी चिढ़ जाते हैं, कहते हैं, ‘कपड़े भी न बदलूँ क्या?’

दो बेटियाँ शहर से बाहर हैं। भाई भाभी के पास उनकी रोज़ हिदायत आती है—‘उन्हें कहीं जाने नहीं देना है। आप लोग तो हैं, फिर उन्हें बाहर निकलने की क्या ज़रूरत है?’ उनको सीधी हिदायत भी मिलती है—-‘प्लीज़, आप कहीं नहीं जाएंगे। भैया भाभी हैं न। वे आपके सब काम करेंगे। बिलकुल रिस्क नहीं लेना है। प्लीज़ स्टे एट होम। ‘
लाचार पुरुषोत्तम जी गेट के बाहर नहीं जाते। लॉकडाउन के कारण कोई आता भी नहीं। सब तरफ सन्नाटा पसरा रहता है। घरों के सामने कारें खड़ी दिखायी देती हैं, लेकिन चलती हुई कम दिखायी पड़ती हैं। पहले शाम को सामने की सड़क पर बच्चों की भागदौड़ शुरू हो जाती थी, अब वे भी घरों में कैद हो गये हैं। पुरुषोत्तम जी चिन्तित हो जाते हैं कि कहीं यह परिवर्तन स्थायी न हो जाए।

वक्त काटने के लिए पुरुषोत्तम जी घर में ही मंडराते रहते हैं। पुरानी चिट्ठियाँ, पुराने एलबम उलटते पलटते रहते हैं। कभी अपनी छोटी सी लाइब्रेरी से कोई किताब निकाल लेते हैं। पुराने संगीत का शौक है। सबेरे दूसरे लोगों के उठने से पहले सुन लेते हैं। लता मंगेशकर, बेगम अख्तर, तलत महमूद प्रिय हैं। लेकिन बाहर निकलने के लिए मन छटपटाता है।

एक शाम घरवालों को बताये बिना टहलने निकल गये थे। बहुत अच्छा लगा था। तभी एक पुलिस की गाड़ी बगल में आकर रुक गयी थी। उसमें बैठा अफसर सिर निकालकर बोला, ‘क्यों, घर के लिए फालतू हो गये हो क्या दादा? भगवान ने जितने दिन दिये हैं उतने दिन जी लो। जाने की बहुत जल्दी है क्या?’ पुरुषोत्तम जी कुछ नहीं बोले, लेकिन उस दिन के बाद गेट से बाहर नहीं निकले।

सामने वाले घर के बुज़ुर्ग शर्मा जी कभी कभी नाक मुँह पर ढक्कन लगाये दिख जाते हैं। मास्क में से ही हाथ उठाकर कहते हैं, ‘कहीं निकलना नहीं है, पुरुषोत्तम जी। हम स्पेशल कैटेगरी वाले हैं। हैंडिल विथ केयर वाले। ‘

उस दिन पुरुषोत्तम जी मन बहलाने के लिए गेट पर बाँहें धरे खड़े थे। उन्होंने देखा कि इस बीच बहू तीन बार दरवाज़े से झाँककर गयी। समझ गये कि उन पर नज़र रखी जा रही है। दिमाग़ गरम हो गया। भीतर आकर गुस्से में बोले, ‘मैं बच्चा नहीं हूँ। मुझे पता है कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना है। आप लोग क्यों बेमतलब परेशान होते हैं?’

बहू ‘ऐसा कुछ नहीं है, पापाजी, मैं तो सब्ज़ीवाले को देख रही थी’, कह कर दूसरे कमरे में चली गयी। लेकिन पुरुषोत्तम जी का दिमाग गरम ही बना रहा। एक तो घर में बँध कर रह गये हैं, दूसरे यह चौकीदारी।

बैठे बैठे बेचैनी होने लगी। बहू को आवाज़ देकर एक गिलास पानी लाने को कहा। बहू के आने तक उनकी गर्दन कंधे पर लटक गयी थी। बहू ने घबराकर पति को पुकारा और पति ने अपने दोस्त डॉक्टर को फोन लगाया। डॉक्टर ने आकर जाँच-पड़ताल की और बता दिया कि पुरुषोत्तम जी दुनिया को छोड़कर निकल गये।

तत्काल बेटियों को सूचित किया गया। उधर रोना-पीटना मच गया। लॉकडाउन में निकल पाना संभव नहीं। कहा कि बीच बीच में मोबाइल पर दिखाते रहें। झटपट विदाई की तैयारी हुई। बहुत नज़दीक के रिश्तेदार और दोस्त ही आये। बाकी को सूचित तो किया लेकिन समझा दिया कि सरकारी निर्देशों के अनुसार संख्या बीस से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।

तीन चार घंटे में सब तैयारी हो गयी और पुरुषोत्तम जी अन्ततः घर से बाहर हो गये। जब उनकी सवारी बाहर निकली तो अपने गेट पर खड़े शर्मा जी नमस्कार करके बोले, ‘रोक तो बहुत लगी, लेकिन लॉकडाउन तोड़ कर निकल ही गये पुरुषोत्तम जी।’

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #53 ☆ मन्त्र ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच – मंत्र ☆

‘सुबह हुई’ या ‘एक और सुबह हुई?’…’शाम हुई’ या ‘एक और शाम हुई?’…कितनी सुबहें आ चुकीं जीवन में…. कितनी शामें बीत चुकीं जीवन की ?…सुबह- शाम करते कितने जीवन रीत चुके?

रीतने की रीति से मुक्त होने का एक सरल उपाय कहता हूँ। ‘सुबह हुई, शाम हुई’ के स्थान पर  ‘एक और सुबह हुई, एक और शाम हुई’ कहना शुरू करो। ‘एक और’ का मंत्र भौतिक तत्व को परमसत्य की ओर मोड़ देगा।

प्रयोग करके देखो। यात्रा की दिशा और दशा बदल जाएगी।

© संजय भारद्वाज

(रात्रि 2.10 बजे, 4 जून 2019)

# परमसत्य की यात्रा मंगलमय हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 12 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 11/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 12 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

तकलीफ खुद ही

कम हो गई…

जब अपनों से…

उम्मीद कम हो गई..

 

The suffering itself got

conclusively reduced,

When expectations from

the loved ones minimized…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 पत्तों सी होती है कई रिश्तों

की उम्र, आज हरे कल सूखे….

क्यों  न  हम जड़ों  से  ही

उम्र भर रिश्ते निभाना सीखें…

  

 Age of many relationships is like

leaves; today green, tomorrow dried… 

Why don’t we learn from roots

To maintain the relationship … 

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

चलो अब जाने भी दो

क्या करोगे दास्तां सुनकर

खामोशी तुम समझोगे नहीं

और हमसे बयाँ होगा नहीं…

 Let’s leave it at that now….

What’ll you do by hearing my story

You won’t understand the silence

And I’ll not be able to explain…!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मेरी तमन्ना न थी कभी

तेरे बगैर रहने की मगर

मजबूर को मजबूर की

मजबूरीयां मजबूर कर देती हैं!

 Never did I desire to

Live without you but…

The helplessness compels 

the helpless to live without!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 14 ☆ दोहे सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपके दोहे सलिला . )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 14 ☆ 

☆ दोहे सलिला ☆ 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मन में अब भी रह रहे, पल-पल मैया-तात।

जाने क्यों जग कह रहा, नहीं रहे बेबात।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

रचूँ कौन विधि छंद मैं,मन रहता बेचैन।

प्रीतम की छवि देखकर, निशि दिन बरसें नैन।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कल की फिर-फिर कल्पना, कर न कलपना व्यर्थ।

मन में छवि साकार कर, अर्पित कर कुछ अर्ध्य।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जब तक जीवन-श्वास है, तब तक कर्म सुवास।

आस धर्म का मर्म है, करें; न तजें प्रयास।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मोह दुखों का हेतु है, काम करें निष्काम।

रहें नहीं बेकाम हम, चाहें रहें अ-काम।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

खुद न करें निज कद्र गर, कद्र करेगा कौन?

खुद को कभी सराहिए, व्यर्थ न रहिए मौन.

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

प्रभु ने जैसा भी गढ़ा, वही श्रेष्ठ लें मान।

जो न सराहे; वही है, खुद अपूर्ण-नादान।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

लता कल्पना की बढ़े, खिलें सुमन अनमोल।

तूफां आ झकझोर दे, समझ न पाए मोल।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

क्रोध न छूटे अंत तक, रखें काम से काम।

गीता में कहते किशन, मत होना बेकाम।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जिस पर बीते जानता, वही; बात है सत्य।

देख समझ लेता मनुज, यह भी नहीं असत्य।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

भिन्न न सत्य-असत्य हैं, कॉइन के दो फेस।

घोडा और सवार हो, अलग न जीतें रेस।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – यही बाकी निशां होगा ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है महान स्वतंत्रता सेनानी स्व मंगल पांडे एवं उनकी वर्तमान पीढ़ी की जानकारी देता एक देशभक्ति से ओतप्रोत  ओजस्वी आलेख  –yahi बाकी निशान होगा। भारत सरकार ने स्व मंगल पण्डे जी के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था।  

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  यही बाकी निशां होगा ☆

स्व जगदम्बा प्रसाद मिश्रा जी द्वारा 1916 में रचित कालजयी रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है – –

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का‌ यही बाकी निशां होगा ।।

इस कथन को सत्य साबित होते देखना वास्तव में हृदय को सुखद अनुभूति कराता है। घाघरा और गंगा की पावन गोद में बसे बलिया जिले के माटी की तासीर ही ऐसी है, जहां की मातायें सिंह शावकों को जन्म देती है जिनकी घनगर्जना से दुश्मनों की छाती फटती है। वतन की आन बान शान के लिए अपनी आत्माहुति देना यहां के रणबांकुरों का शौक तो है ही, यहां की मिट्टी के इतिहास में हमारी सांस्कृतिक सभ्यताओं के ध्वजवाहक ऋषि मुनियों की गौरवगाथा भी समाहित है।

यहीं की मिट्टी से जन्म लेता है, मंगल पाण्डेय नामक रणबांकुरा फौजी  जिसका जन्म  १९ जुलाई सन १८२७ में बलिया जिले के नगवां में हुआ था।  जिन्होंने अपने युवा काल में ३४वी बटालियन नेटिव इन्फैंट्री बैरकपुर बंगाल की पैदल सेना में सैनिक नं १४४६ के रूप में नौकरी की।  अंग्रेज गोरों के खिलाफ  स्वतंत्रता आंदोलन के बगावत  का इतिहास रचने का श्रेय इनके हिस्से जाता है।  जिन्होंने बगावत का इतिहास लिखते हुए अंग्रेज अफसरों पर धावा बोल दिया।  जिसके चलते सारे भारत में  स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी धधक कर जल उठी।

अंग्रेज सरकार घबरा गई औरउन्हें आनन फानन में ८अप्रैल १८५७ को फांसी दे दी गई , लेकिन वह जवान मरते मरते अपनी शहादत के  बल पर अपने पदचिन्हों के बाकी निशान छोड़ गया तथा अपने कर्मों से स्वतंत्रता आंदोलन का प्रथम अध्याय स्वर्ण अक्षरों में लिख गया।  उसी कुल में स्व० पदुमदेव पाण्डेय जी का जन्म  हुआ , जिन्हें अदम्य शौर्य साहस कर्मनिष्ठा  वंशानुगत विरासत में मिली थी।  अपने कुल की उसी अक्षुण्ण परंपराको कायम रखते हुए  उन्होंने  सन् १९६४ स्पोर्ट्स कोटे से फौज की नौकरी की  और सन् १९६५ में पाकिस्तान भारत के युद्ध में अद्म्य शौर्य  साहस तथा विपरित परिस्थितियों में  युद्ध लड़ कर  शत्रु का संहार ही नहीं किया, बारूद खत्म होने पर भी रण नहीं छोड़ा, बल्कि अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन की निगाहें बचा अपने अनेक घायल साथियों को पीठ पर लाद उन्हेंअस्पताल तक ला उनकी प्राण रक्षा की।  जिसके बदले उन्हें भारत सरकार द्वारा  स्वर्ण पदक दे सम्मानित किया गया।

उसके ठीक  छह साल बाद सन् १९७१ में फिर एक बार शत्रुओं ने युद्ध थोपा ।  इस बार फिर उस वीर जवान  ने अपनी टुकड़ी के साथ अदम्य साहस का परिचय देते हुए रण में दुश्मन का मानमर्दन करते हुए  विजय श्री का वरण कर विजेता बन रण से लौटे। सन् १९७३ में उन्हें एक बार फिर ‌उत्कृष्ट  सेवा के बदले कांस्य पदक हेतु चुना गया,जो उनके समर्पण कर्तव्यपरायणता  का सम्मान है और अंत में अपना सेवा काल  सकुशल  पूरा कर  सन् १९८० में सेवा  निवृत्त हो गये । सकुशल जीवन यापन करते हुए २६ अगस्त सन् २०१७ को परलोक गमन करते हुए  अपने त्याग तपस्या  मानव सेवा की उत्कृष्ट मिसाल पेश कर अपने पदचिन्हों का निशान बाकी छोड़ गये जो सदियों सदियों तक लोगों की ज़ेहन में बसा रहेगा, अपनी लेखनी के माध्यम से हम मां भारती के उस लाल को भावभीनी विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 17 ☆ यामिनी ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है उनकी एक  श्रृंगारिक कविता “यामिनी“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 17 ☆

☆ यामिनी

 

यामिनी गं कामिनी,तू गं माझी साजणी

ये जरा,जवळी अशी ये जरा

ये गं मिठीत राहू, स्वप्नगीत गाऊ

ये जरा,जवळी अशी ये जरा!!

 

रात्र जशी झाली ,तसा चंद्रही निघाला

तारीके तू दूर नको,जवळी ये म्हणाला

इश्यऽऽ म्हणुनी,लाजुनिया चूर चूर झाली

ये जरा जवळी अशी………!!

 

मध्यरात्र झाली,काम जागृत ही झाला

रती मदन तृप्तीचा, क्षण जवळी आला

एक होऊ एक राहू, एक वेळ एकदा

ये जरा जवळी अशी………!!

 

पहाटेस थंडगार,झुळुक जशी आली

तृप्तीच्या सागरात, डुंबुनिया गेली

देहातुनी गोड अशी शिरशिरी निघाली

ये जरा जवळी अशी …….!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 10 – अर्देशिर ईरानी : पहली बोलती फ़िल्म आलमआरा ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के कलाकार  : अर्देशिर ईरानी : पहली बोलती फ़िल्म आलमआरा पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 10 ☆ 

☆ अर्देशिर ईरानी : पहली बोलती फ़िल्म आलमआरा ☆

खान बहादुर अर्देशिर ईरानी (5 दिसंबर 1886 – 14 अक्टूबर 1969) शुरुआती भारतीय सिनेमा के मूक और ध्वनि युग में एक लेखक, निर्देशक, निर्माता, अभिनेता, फिल्म वितरक, फिल्म शोमैन और छायाकार थे। वे हिंदी, तेलुगु, अंग्रेजी, जर्मन, इंडोनेशियाई, फारसी, उर्दू और तमिल में फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध थे। सफल उद्यमी होने के नाते उनके पास फिल्म थियेटर, एक ग्रामोफोन एजेंसी और एक कार सेल्स एजेंसी थी।

अर्देशिर ईरानी का जन्म बॉम्बे प्रेसीडेंसी के पूना नगर में 5 दिसंबर 1886 को एक पारसी परिवार में हुआ था। वे 1905 में ईरानी यूनिवर्सल स्टूडियोज के भारतीय प्रतिनिधि बन गए और उन्होंने बंबई में “अलेक्जेंडर सिनेमा” को अब्दुल एस्सोल्ली के साथ चालीस साल तक चलाया। अर्देशिर ईरानी ने अलेक्जेंडर सिनेमा में फिल्म निर्माण की कला के नियमों को सीखा और फ़िल्म माध्यम पर मोहित होकर पूरे जीवन फ़िल्म व्यवसाय को समर्पित रहे।  ईरानी ने 1917 में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में प्रवेश करके 1920 में अपनी पहली मूक फीचर फिल्म, नल-दमयंती का निर्माण किया।

उन्होंने 1922 में दादासाहेब फाल्के के “हिंदुस्तान फिल्म्स” के पूर्व प्रबंधक भोगीलाल दवे से जुड़कर “स्टार फिल्म्स” की स्थापना की। उनकी दूसरी मूक फीचर फिल्म “वीर अभिमन्यु” 1922 में रिलीज़ हुई न्यूयॉर्क स्कूल ऑफ फोटोग्राफी के स्नातक दवे ने फिल्मों की शूटिंग की, जबकि ईरानी ने उन्हें निर्देशित और निर्मित किया। ईरानी और दवे की साझेदारी में स्टार फिल्म्स ने सत्रह फिल्मों का निर्माण किया।

ईरानी ने 1924 में दो प्रतिभाशाली युवा बी.पी. मिश्रा और नवल गांधी को साथ लेकर “राजसी फ़िल्मस” की स्थापना की।  “राजसी फ़िल्मस” ने पंद्रह फिल्मों का निर्माण किया। इतनी सफलता के बावजूद राजसी फ़िल्मस बंद हो गईं।  उन्होंने “रॉयल आर्ट स्टूडियो” स्थापित किया हालांकि, वह एक निश्चित प्रकार की रोमांटिक फिल्मों के लिए प्रसिद्ध हो गया। ईरानी ने नई प्रतिभाओं का उपयोग करके फ़िल्म निर्माण तकनीक में सुधार किया।

ईरानी ने 1925 में “इम्पीरियल फिल्म्स” की स्थापना करके बासठ फिल्में बनाईं। ईरानी चालीस साल की उम्र तक भारतीय सिनेमा के एक स्थापित फिल्म निर्माता थे। अर्देशिर ईरानी 14 मार्च 1931 को अपनी सवाक् याने साउंड फीचर फिल्म “आलम आरा” की रिलीज के साथ टॉकी फिल्मों के जनक बन गए। उनके द्वारा निर्मित कई फिल्में बाद में उन्ही कलाकारों और दल के साथ टॉकी फिल्मों में बनाई गईं। उन्हें पहली भारतीय अंग्रेजी फीचर फिल्म नूरजहाँ (1931) बनाने के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने भारत की पहली रंगीन फीचर फिल्म किसान कन्या (1937) बनाई। उनका योगदान सिर्फ़ मूक सिनेमा को आवाज़ देने और श्वेत-श्याम फ़िल्मों को रंग देने से नहीं ख़त्म होता। उन्होंने भारत में फिल्म निर्माण के लिए एक नया साहसी दृष्टिकोण अपनाया और फिल्मों में कहानियों के लिए इस तरह की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान की जिन पर आज तक फिल्में बनाई जा रही हैं।

ईरानी ने 1933 में पहली फारसी टॉकी, “दोख्तर-ए-लोर” का निर्माण और निर्देशन किया। पटकथा अब्दोलहोसिन सेपांता ने लिखी थी, जिन्होंने स्थानीय पारसी समुदाय के सदस्यों के साथ फिल्म में अभिनय भी किया था।

ईरानी की इंपीरियल फिल्म्स ने भारतीय सिनेमा में कई नए कलाकारों को पेश किया, जिनमें पृथ्वीराज कपूर और महबूब खान उल्लेखनीय थे। उन्होंने तेलुगु में गाने के साथ आलम आरा के सेट पर तमिल में कालिदास का निर्माण किया। इसके अलावा ईरानी ने साउंड रिकॉर्डिंग का अध्ययन करने के लिए पंद्रह दिनों के लिए लंदन, इंग्लैंड का दौरा किया और इस ज्ञान के आधार पर आलम आरा की आवाज़ को रिकॉर्ड किया। इस प्रक्रिया में उन्होंने अनजाने में एक नया चलन बनाया। उन दिनों रिफ्लेक्टर की मदद से सूरज की रोशनी में आउटडोर शूटिंग की जाती थी। जिसमें बाहरी अवांछनीय आवाज़ें उन्हें बहुत परेशान कर रही थीं। उन्होंने स्टूडियो में भारी रोशनी करके पूरे सीक्वेंस को शूट किया। इस प्रकार उन्होंने कृत्रिम प्रकाश के तहत शूटिंग की प्रवृत्ति शुरू की।

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच ईरानी ने पच्चीस वर्षों के लंबे और शानदार कैरियर में एक सौ अट्ठाईस फिल्में बनाईं। उन्होंने 1945 में अपनी आखिरी फिल्म पुजारी बनाई। ईरानी को दादासाहेब फाल्के की तरह जीविका ने मजबूर नहीं किया था इसलिए उन्होंने महसूस किया कि युद्धकाल पश्चात फिल्म व्यवसाय के लिए उपयुक्त नहीं था और इसलिए उन्होंने उस दौरान अपने फिल्म व्यवसाय को निलंबित कर दिया। 14 अक्टूबर 1969 को मुंबई, में तिरासी साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 41 ☆ पत्थर में एक किरदार ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “पत्थर में एक किरदार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 41 ☆

☆ पत्थर में एक किरदार ☆

 

हर पत्थर में एक चेहरा दिखता है

कोई हरा, कोई नीला

और कोई लाल दिखता है।

कोई श्वेत, कोई श्याम

और कोई पीला दिखता है।

हर पत्थर में एक चेहरा दिखता है।

 

हर चेहरा ओढ़े हैं एक मुखौटा

मुझे हर पत्थर में एक किरदार दिखता है।

कुछ अजीब सा नशा है रंगीन पत्थरों में

‘सांज’ हर किरदार मुझे अपना सा लगता है।

हर पत्थर में एक चेहरा दिखता है।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 49 – अंतिम ज्ञान ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण  एवं  ज्ञानवर्धक आलेख  “अंतिम ज्ञान। )

Amazon Link – Purn Vinashak

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 49 ☆

☆ अंतिम ज्ञान 

मनुष्यों में, उम्र का बढ़ना मानव शरीर में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व होता है, जिसमें शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिवर्तन शामिल होता है । लेकिन अभी भी उम्र बढ़ने का कारण वैज्ञानिकों के लिए अज्ञात है । उम्र बढ़ने का सबसे करीबी सिद्धांत बाहरी रूप से DNA विभाजन या ऑक्सीकरण होता है, जो जैविक प्रणाली को विफल कर सकता है या आंतरिक प्रक्रिया जैसे DNA टेलीमीटर के छोटे होने का कारण बन सकता है । कुछ प्रजातियों को अमर माना जा सकता है, उदाहरण बैक्टीरिया जो पुत्री कोशिकाओं के उत्पादन करने के लिए जिम्मेदार है या जानवरों में जीनस हाइड्रा, जिनकी पुनर्जागरण क्षमता होती है जिससे वे बुढ़ापे से बचते हैं ।

संक्षेप में, बस इतना समझें ले कि सामान्य मानव कोशिका लगभग 50 कोशिका विभाजन के बाद मर जाती है । अगर किसी भी तरह से हम इसे अनंत बना सके या क्षतिग्रस्त कोशिका की मरम्मत करके इसे जैसी थी वैसी ही बना सके, तो व्यक्ति की उम्र रुक जाएगी ।

 

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे # 39 – बारा मोटांची विहीर ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की  भावप्रवण रचना  “बारा मोटांची विहीर”।  उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 39 ☆

☆ बारा मोटांची विहीर ☆ 
 (चाल :- रुणुझुणुत्या पाखरा या सिनेगीताच्या चालीवर..) 

 

लिंब गावच्या वेशीत !

बारा मोटांची विहीर !

साडे तीनशे वर्षांची !

शिल्प कलेत माहीर !!१!!

 

मुख्य विहीर देखणी !

अष्टकोनी आकाराची !

खोल शंभर फुटांची !

चोरवाट भुयाराची. !!२!!

 

मुख्य विहीरी नंतर !

एक पूल बांधलेला !

जाण्यासाठी तिच्याकडे !

अदभूत वास्तुकला !!३!

 

राज महाल चौखांबी !

दरवाजा भक्कमसा !

भुयारात राजवाडा !

नमुनाच अजबसा !!४!!

 

अठराशें कालखंड !

शाहूपत्नी विरुबाई !

खास निर्मिती करुनी !

फुलविली आमराई !!५!!

 

विरुबाई साताऱ्याच्या  !

बायको शाहूराजांची !

आवडती बागायती !

बाग करावी आंब्यांची !!६!!

 

विरुबाईंच्या मनात !

आहे जमीन सुपीक !

झाडे लावावी आंब्यांची !

लिंब गाव ते नजिक !!७!!

 

स्वत:झाडे लावुनिया !

झाडे लावा जगवाना !

असा संदेश दिधला !

विरुबाईंनी सर्वांना !!८!!

 

भुयारात राजवाडा !

पुढे दोन चोर वाटा !

नंतर उपविहीर !

गोड्या पाण्याचा हो साठा !!९!!

 

उन्हाळ्यात हो गारवा!

हिवाळ्यात उबदार !

आजीवन पाणीझरा !

अजबच कारभार !!१०!!

 

येथे खाजगी बैठका !

होत होत्या पेशव्यांच्या !

शाहूराजां बरोबर!

साक्षी निवांत क्षणांच्या !!११!!

 

©️®️उर्मिला इंगळे

सातारा

दिनांक: २७-६-२०.

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

Please share your Post !

Shares