मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 79 – बाप्पा…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #79 ☆ 

☆ बाप्पा…! ☆ 

बाप्पा तुझा देवा घरचा पत्ता

मला तू ह्या वर्षी तरी

देऊन जायला हवा होतास..

कारण..,

आता खूप वर्षे झाली

बाबांशी बोलून

बाबांना भेटून…

ह्या वर्षी न चूकता

तुझ्याबरोबर बांबासाठी

आमच्या खुशालीची

चिठ्ठी तेवढी पाठवलीय

बाबा भेटलेच तर

त्यांना ही

त्याच्यां खुशालीची चिठ्ठी

माझ्यसाठी

पाठवायला सांग…

बाप्पा…,

त्यांना सांग त्याची चिमूकली

त्यांची खूप आठवण काढते म्हणून

आणि आजही त्यांना भेटण्यासाठी

आई जवळ नको इतका हट्ट

करते म्हणून…,

बाप्पा तू दरवर्षी येतोस ना तसच

बाबांनाही वर्षातून एकदातरी

मला भेटायला यायला सांग..,

तुझ्यासारखच…,त्यांना ही

पुढच्या वर्षी लवकर या..

अस म्हणण्याची संधी

मला तरी द्यायला सांग…,

बाप्पा.., पुढच्या वर्षी तू…

खूप खूप लवकर ये..

येताना माझ्या बाबांना

सोबत तेवढ घेऊन ये…!

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #100 – आदमी सूरजमुखी सा…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा रात  का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता  “आदमी सूरजमुखी सा….”। )

☆  तन्मय साहित्य  #100 ☆

☆ आदमी सूरजमुखी सा…. ☆

हवाओं के साथ, रुख बदला नया है

आदमी, सूरजमुखी  सा  हो  गया है।

 

दोष देने में लगे हैं,  खेत को ही

घुन खाए बीज, कोई  बो  गया है।

 

सोचना, नीति – अनीति व्यर्थ अब

संस्कृति संस्कार घर में खो गया है।

 

संयमित  हो कर, घरों  में  ही  रहें

खिड़कियों के काँच मौसम धो गया है।

 

सियासत के  चक्रव्यूह  की कैद से

फिर कभी छूटे नहीं, जो भी गया है।

 

फेन, फ्रिज, कूलर, सभी  चालु तो है

कौन सा भय फिर कमीज भिगो गया है।

 

अब  बचा  नहीं  पाएंगे, मन्तर  उसे

रात उसकी छत पे उल्लू रो गया है।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ #82 – शिक्षक दिवस एवं “स्मार्ट क्लास ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है।आज प्रस्तुत है श्री अरुण डनायक जी के  शिक्षक दिवस से सम्बंधित संस्मरण  शिक्षक दिवस एवं “स्मार्ट क्लास)

☆ जीवन यात्रा #82 – शिक्षक दिवस एवं “स्मार्ट क्लास” ☆ 

विगत 5 सितम्बर को ही में हम सब ने शिक्षक दिवस मनाया। भारत के यशस्वी राष्ट्रपति डा.सर्वपल्ली राधा कृषणन (5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) का जन्म दिन था।  वे शिक्षाविद थे और महात्मा गांधी के कहने पर भारतीय राजनीति में आए। सर्वपल्ली राधाकृष्णन की यह प्रतिभा थी कि अखिल भारतीय कांग्रेसजन भी  यह चाहते थे कि उन्हे गैर राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी संविधान सभा के सदस्य बनाये जायें। स्वतन्त्रता के बाद उन्हें  संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। वे 1947 से 1949 तक के समय कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किये गये। जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि राधाकृष्णन के संभाषण एवं वक्तृत्व प्रतिभा का उपयोग 14 – 15 अगस्त 1947 की रात्रि को उस समय किया जाये जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हो। राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वे अपना सम्बोधन रात्रि के ठीक 12 बजे समाप्त करें। क्योंकि उसके पश्चात ही नेहरू जी के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी।  वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे । उन्होंने महात्मा गांधी पर दो विषद ग्रंथों  का सम्पादन किया गांधी अभिनंदन ग्रंथ (वर्ष 1939 ) और गांधी श्रद्धांजलि ग्रंथ (वर्ष 1955 )। उनके इन्हीं अनेक गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। पंडित नेहरू ने उनको मान  सम्मान दिया,  पहले उपराष्ट्रपति और फिर  राष्ट्रपति निर्वाचित करवाने में अपने पद का  या अंग्रेजी में कहें तो गुड आफिसेस का उपयोग किया। उन्हे श्रद्धापूर्वक नमन।

वर्ण व्यवस्था की माने तो हमारे परिवार का पेशा  होना चाहिए था अध्ययन अध्यापन, पठन पाठन। पर विगत दस-बारह  पीढ़ियों में हमारे परिवार का पेशा  शिक्षण कार्य तो नहीं रहा। हमारे पुरखे जो गुजरात से पन्ना आए वे पहले तो सामाजिक व्यवस्था में निर्यायक  या दंडनायक की भूमिका निभाते रहे और इसीलिए हमारा उपनाम डनायक  हुआ।  फिर तीन पीढ़ियों ने हीरा और अनाज विक्रय  आदि का व्यवसाय किया और अब भूत-वर्तमान चार पीढ़िया नौकरी कर जीवन यापन कर रही हैं। उनमें से कुछ शिक्षक भी हैं ।

मेरी, माँ स्व श्रीमती कमला डनायक, विवाह के पूर्व जैन प्राथमिक शाला दमोह में पढ़ाती थी, बाबूजी के दो चचेरे भाई स्व श्री भगवान शंकर डनायक उनकी भार्या स्व श्रीमती तारा  व श्री केशव राम एवं  उनकी अर्धागनी  श्रीमती उषा डनायक सेवानिवृति तक हमारे पैतृक नगर पन्ना में शिक्षक रहे।  बाबूजी के एक अन्य चचेरे भाई श्री श्याम शंकर डनायक, हमारे परिवार में प्रथम स्नातकोत्तर तक शिक्षित,  ने भी अपनी आजीविका  की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में तो की  पर बाद को वे रेलवे में नौकरी करने लगे । लेकिन सेवानिवृति के बाद कुछ साल तक वे सतना में अर्थ-शास्त्र पढ़ाते रहे ।  मेरी, एक बहन रीता पण्ड्या,  केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षिका रही तो अनुज, अतुल कुमार डनायक भी उच्चतर माध्यमिक शाला में प्राचार्य बना और वर्तमान में राज्य शिक्षा केंद्र में संयुक्त निदेशक के रूप में शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अपनी भूमिका निभा रहा है ।  मेरे एक चचेरे भी रवि शंकर केशव राम डनायक  भी शिक्षक हैं। मेरी पुत्र वधू श्रुति सेलट डनायक ने पहले मुंबई और फिर अमेरिका और कनाडा में शिक्षक के दायित्व को सफलतापूर्वक निभाया है।  मेरे चचेरी बहनें भावना मेहता (पुत्री श्री  केशव राम डनायक ) व सोनाली ठाकर  (आत्मजा स्व श्री  भगवान शंकर डनायक ) भी शिक्षक हैं और भौतिक विज्ञान व गणित  जैसे कठिन विषयों को पढ़ाने में पारंगत हैं। 

इन्ही भाइयों और काका–काकी की प्रेरणा से मैं भी सेवानिवृति के बाद स्कूली शिक्षा से  जुड़ा । और जन सहयोग, जिसका अधिकांश हिस्सा मेरे साथियों, स्टेट बैंक  से सेवानिवृत अधिकारियों व अन्य सेवनिवृत मित्रों  ने आर्थिक सहयोग के रूप में दिया था के द्वारा 27 विद्यालयों में स्मार्ट क्लास शुरू करवाने में सफलता पाई । कोरोना संक्रमण ने हमारे इस अभियान को अल्प विराम दिया है।  आशा की किरणे  धूमिल नहीं हुई हैं, कभी फिर यह सपना आकार लेगा। अमरकंटक के माँ सारदा  कन्या विद्या  पीठ की बैगा आदिवासी बालिकाओं को तो कभी कभार मैंने पढ़ाने का असफल प्रयत्न भी किया।  जब इन बच्चियों को मैं पढ़ाता हूँ तो मुझे मेरी माँ की याद आती है।  हम भाई बहनों ने अपने चरवाहे के पुत्र सबलू को शिक्षित करने की ठानी।  एक सप्ताह तक प्रयास करने पर भी हम उसे अ लिखना भी नहीं सिखा  सके।  और तब मेरी माँ ने स्लैट पेंसिल उठाई और दो दिनों में उस अबोध आदिवासी बालक को ‘सबलू ‘ लिखना सिखा दिया।

तो आज शिक्षक दिवस पर मेरी प्रथम गुरु हमारी मां  कमला डनायक , परमेश्वर रूपी गुरु पिता रेवाशांकर डनायक, परिवार के शिक्षक व्यवसाय से जुड़े काकाजी, काकी, को सादर नमन।  मेरे सभी शिक्षकों , परिवार के शिक्षक व्यवसाय से जुड़े, भाइयों और बहनों जिनका उल्लेख मैंने ऊपर किया है, 27 विद्यालयों के शिक्षकों जहां जन सहयोग से  स्मार्ट क्लास शुरू की गई, मेरे शिक्षक मित्र डाक्टर मनीष दुबे, स्मार्ट क्लास के प्रणेता दिव्य दम्पत्ति ( दिव्य प्रकाश और मीनाक्षी सिंह ) तथा इन शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों को शुभकामनाएं।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 103 ☆ प्रार्थना ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

? साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 103 ?

☆ गझल ☆

चंद्र परका चांदणेही पाहवेना

आजची कोजागरी का पेलवेना 

 

सोनचाफा आवडीचा फार माझ्या

मात्र आता गंध त्याचा साहवेना

 

वेढते वैराग्य की वय बोलते हे

वाट आहे तीच आता चालवेना

 

फोन माझा, चार वेळा टाळला तू

या मनाला काय सांगू सांगवेना

 

खूप झाला त्या  तिथेही  बोलबाला

मूक अश्रू ढाळलेले ऐकवेना

 

पूर्वजांचे मानले आभार मी ही

कंठ दाटे या क्षणाला बोलवेना

 

कावळा आलाय दारी घास खाण्या

आप्त आहे पण मला हे मानवेना

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – मीप्रवासीनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक- १२ – भाग ५ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

✈️ मी प्रवासीनी ✈️

☆ मी प्रवासिनी  क्रमांक- १२ – भाग ५ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ऐश्वर्यसंपन्न पीटर्सबर्ग✈️

संध्याकाळी रिव्हर क्रूजमधून फेरफटका मारला. फोंटांका नदीच्या एका कॅनॉल मधून सुरू झालेली क्रूज, मोइका नदीतून, विंटर कॅनॉलमधून नीवा नदीमध्ये गेली आणि पुन्हा फोंटांकाच्या एका कालव्यात शिरून आम्ही किनार्‍याला उतरलो. क्रूज सहलीमध्ये दुतर्फा दिसलेल्या इमारती आता ओळखीच्या झाल्या होत्या. क्रूजमधील प्रवासाने सुंदर पीटर्सबर्गचा निरोप घेतला.

जिंकलेल्या प्रदेशातील उत्तमोत्तम गोष्टींचा विध्वंस करण्याची जेत्यांची प्रवृत्ती जगभर आढळते. पीटर्सबर्गमधील अनेकानेक कला प्रकार, प्रासाद शत्रूंनी नष्ट केले. पण आज ते ऐश्वर्य पुन्हा जसेच्या तसे दिमाखात उभे आहे. याची कारणे अनेक आहेत. पीटर दी ग्रेटपासून अशी पद्धत होती की, जी जी कलाकृती, पेंटिंग निर्माण होईल त्याचा छोटा नमुना व त्याची साद्यंत माहिती म्हणजे वापरलेले मटेरियल, त्याची रचना, मोजमाप वगैरे आर्काइव्हज मध्ये जतन करून ठेवण्यात येत असे. सर्वात महत्त्वाचे म्हणजे पीटर्सबर्गमध्ये जशा अनेक नामांकित शैक्षणिक संस्था, सायन्स इंस्टिट्यूशन्स आहेत तशीच एक रिस्टोरेशन युनिव्हर्सिटी आहे. वेळेअभावी आम्ही ती पाहू शकलो नाही. पण नष्ट झालेल्या कलाकृतींचे पुनर्निर्माण आणि असलेल्या वस्तू आणि वास्तू सुस्थितीत ठेवण्यासाठी तिथे खास शिक्षण दिले जाते. याशिवाय राज्यकर्त्यांचा दृष्टिकोण आणि आर्थिक पाठबळ हेही महत्त्वाचे!

या पार्श्‍वभूमीवर आपल्याकडे काय परिस्थिती आहे? आपल्याकडेही अनेक नामवंत, उत्तमोत्तम चित्रकार, शिल्पकार, काष्ठ कलाकार आहेत. सर्वश्री बाबुराव सडवेलकर,व्ही. एस. गुर्जर,ज. द. गोंधळेकर, जाधव, शिंदे, शिल्पकार करमरकर,स.ल.हळदणकर,राजा रविवर्मा, रावबहादूर धुरंधर,एम.आर.आचरेकर, गोपाळराव देऊसकर, विश्वनाथ नागेशकर, भैय्यासाहेब ओंकार, डी. जी. कुलकर्णी, संभाजी कदम अशी असंख्य नावे आहेत. काही वर्षांपूर्वी नामवंत चित्रकार सुहास बहुलकर यांचा  लेख एका दिवाळी अंकात वाचला होता. दिवंगत नामवंत कलाकारांच्या कलाकृती मिळवून, त्याचे पुनर्लेपन,वॉर्निशिंग, माउंटिंग करून त्यांचे प्रदर्शन भरविणे व त्यायोगे कलाकाराच्या कुटुंबाला आर्थिक सहाय्य मिळवून देणे अशा उद्देशाने त्यांनी अनेक कलाकारांच्या,  माळ्यावर धूळ खात पडलेल्या कलाकृती मोठ्या कष्टाने मिळविल्या. त्यावेळी त्यांना आलेले अनुभव मन विषण्ण करणारे, निराशाजनक होते. वर्तमानपत्रातून जे.जे. महाविद्यालयातील चित्रांची, पुतळ्यांची हेळसांड, बेपर्वा वृत्ती, राजकारण हे सारे वाचून वाईट वाटते. हा आपला राष्ट्रीय ठेवा आहे. कलाकारांना आर्थिक काळजीतून मुक्त ठेवणे हे समाजाचे, सरकारचे काम आहे. या चित्रांचा, कलाकृतींचा सांभाळ, डागडुजी,पुनर्लेपन, वॉर्निशिंग,जपणूक, यासाठी शास्त्रोक्त शिक्षण आवश्यक आहे. हे एकट्या-दुकट्याचे काम नाही. राजकारण विरहीत राजकीय इच्छाशक्ती, आर्थिक पाठिंबा व सामान्य नागरिकांचा सहभाग असेल तरच हे सांस्कृतिक वैभव सांभाळले जाईल. आपला भारत हा सुद्धा ‘ऐश्वर्यसंपन्न’ देश आहे. प्रत्येकाने हे ऐश्वर्य सांभाळण्याचा आटोकाट प्रयत्न केला पाहिजे.

पीटर्सबर्ग समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 89 ☆ मीनारें ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “मीनारें । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 89 ☆

☆ मीनारें ☆

जब अपने कमरे के अन्दर चुपचाप बैठी होती हूँ

अक्सर “धडाक” और “चटक” की आवाजें आती हैं;

और मैं बाहर दौड़ पड़ती हूँ देखने कि यह कैसी आवाजें हैं?

जानना चाहती हूँ कि कहाँ से निकलीं यह आवाजें?

 

ज़िंदगी यूँ तो बड़ी छोटी है,

पर आदमी अक्सर अपने अहम की मीनारें बना लेता है,

जो कि बहुत ही ऊंची होती हैं!

 

यह मीनारें धीरे-धीरे झुकने लगती हैं,

और आदमी को पता भी नहीं चलता!

ऐसा भी नहीं है कि इनका कोण

लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा कि तरह तय हो

और उतना ही रहे यह कोण-

झुकाव बढ़ता ही जाता है!

पता भी नहीं चलता

और यह मीनारें झुकते-झुकते गिर ही जाती हैं

“धडाक” और “चटक” की आवाज़ के साथ! 

 

सुनो,

इस अहम को छोटा ही रहने दो-

इसे मीनार की तरह न बनने दो-

फिर तो

न यह गिरेगा,

न तुम चोट से तिलमिलाओगे!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 98 – साक्षात्कार (बाल साहित्य विशेषांक) ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका  पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  म प्र साहित्य अकादमी के मासिक प्रकाशन  “साक्षात्कार (बाल साहित्य विशेषांक)” – की समीक्षा।

 पुस्तक चर्चा

साक्षात्कार (बाल साहित्य विशेषांक)

अंक ४८५..४८६ संयुक्तांक नवम्बर दिसम्बर

म प्र साहित्य अकादमी का मासिक प्रकाशन

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 98 – साक्षात्कार (बाल साहित्य विशेषांक) ☆ 

साक्षात्कार का संभवतः पहला प्रयास है , अंक ४८५..४८६ संयुक्तांक नवम्बर दिसम्बर २०२० जो बाल साहित्य पर केंद्रित है, तथा इतनी महत्वपूर्ण शोध सामग्री बाल साहित्य की उपयोगिता, लेखन, बच्चों के लिये साहित्य लेखन में नवाचार, वैज्ञानिक दृष्टि, सकारात्मकभावनाओ का विकास जैसे बहुविध विषय समेटे हुये है.

३०० पृष्ठो से ज्यादा की विशद सामग्री निश्चित ही शोधार्थियो हेतु  संग्रहणीय है. यह निर्विवाद है कि बच्चो के कोरे मन पर बाल साहित्य वह पटकथा लिखता है, जो भविष्य में उनका व्यक्तित्व व चरित्र गढ़ता ह . बच्चो को विशेष रूप से गीत तथा कहानियां व नाटिकायें अधिक पसंद आती हैं. बाल साहित्य रचने के लिये बड़े से बड़े लेखक को बाल मनोविज्ञान को समझते हुये बच्चे के मानसिक स्तर पर उतर कर ही लिखना पड़ता है तभी वह रचना बाल उपयोगी बन पाती है.

हिन्दी में जितना कार्य बाल साहित्य पर आवश्यक है उससे बहुत कम मौलिक नया कार्य हो रहा है, पीढ़ीयो से वे ही बाल गीत पाठ्य पुस्तको में चले आ रहे हैं, जबकि वैज्ञानिक सामाजिक परिवर्तनो के साथ नई पीढ़ी का परिवेश बदलता जा रहा है.  

बाल कवितायें जहां जीवन पर्यंत स्मरण में रहती हैं व किंकर्तव्यविमूढ़ स्थोति में पथ प्रदर्शन करती हैं वहीं बचपन में पढ़ी गई कहानियां अवचेतन में ही व्यक्तित्व बनाती हैं. बाल कथा के नायक बच्चे के संस्कार गढ़ते हैं.

मैं इस अंक के साठ से अधिक लेखको को और उन सब को साक्षात्कार के एकल मंच पर सारगर्भित तरीके से प्रस्तुत करने के लिये संपादक डा विकास दवे जी को हृदय से शुभकामनायें देता हूँ व इस महती कार्य के लिये आभार व्यक्त करता हूँ.

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 96 – लघुकथा – बूंदी के लड्डू ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भाईचारे का सन्देश देती अतिसुन्दर लघुकथा  “बूंदी के लड्डू। इस विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 96 ☆

 ? लघुकथा – बूंदी के लड्डू?

गणेश उत्सव का माहौल। घर और पास पड़ोस मोहल्ले में बहुत ही धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जा रहा था। पंडाल पर गणपति जी विराजे थे। राजू अपने दादा- दादी से रोज कुछ ना कुछ गणपति जी के बारे में सुनता था।

दादा जी आज उसे बूंदी के लड्डू की महिमा बता रहे थे कि क्यों पसंद है गणेश जी को लड्डू? बेसन से अलग-अलग मोती जैसे तलकर शक्कर की चाशनी में सब एक साथ पकड़कर लड्डू बनता है। गणेश जी भी सभी को मिला कर रखना चाहते हैं। उनकी पूजन का अर्थ भी यही है कि सभी मनुष्य आपस में प्रेम से रहें और बूंदी के लड्डू की तरह मीठे और मिलकर रहे।

राजू कुछ देर सुनता रहा फिर दौड़कर पड़ोस के अंकल- आंटी देशमुख के घर गया और छोटे से हाथ से निकालकर बूंदी का लड्डू उनके हाथ पर दे दिया। और कहा-” गणपति जी ने कहा है बूंदी के लड्डू की तरह रहना सीखें” और दौड़ कर फिर अपने घर के ऊपर के कमरे में बैठे अपने पापा को भी लड्डू दिया। और कहा कि – “गणपति ने कहा है कि हमें लड्डू जैसा रहना चाहिए।

थोड़ी देर पापा और देशमुख अंकल सोचते रहे। तब तक मोहल्ले में पंडाल से गणपति की आरती की आवाज आने लगी। दोनों अपने-अपने घर से डिब्बों में लड्डू लेकर पहुंचे और फिर क्या था। ‘साॅरी, मुझे माफ करना’, ‘नहीं सॉरी मैं बोलता हूँ मुझे माफ करना’, एक दूसरे को कहने लगे।

कुछ दिनों से जो मनमुटाव चल रहा था। अचानक सब मिलजुल कर ठहाका लगाने लगे।

दादा जी को समझ नहीं आया कि कल तक जो देशमुख के नाम से चिढ़ता था। आज अपने हाथ में हाथ पकड़े खड़े हैं। उन्हें क्या पता था कि बूंदी के लड्डू कितने मीठे हैं जिन्हें किसी ने अपने छोटे – छोटे हाथों से सब जगह बांट दिया है।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 104 ☆ पावलांचे ठसे ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 104 ☆

☆ पावलांचे ठसे ☆

कालच तर

आपल्या सुखी पावलांचे ठसे

विस्तीर्ण सागरी किनाऱ्यावर

मखमली वाळूत

एकमेकांना मिठ्या मारत होते

 

सागरातून चार लाटा काय येतात

मिटवू पाहतात सारं अस्तित्व

पण त्यांना माहीत नाही

ते ठसे आम्ही डोळ्यांत जतन केलेत

आयुष्यभरासाठी

 

ते शोधण्यासाठी

आता समुद्र किनारी यायची गरज नाही

कोरलेत ते काळजाच्या आत

समुद्रा पेक्षा मोठा तळ आहे त्याचा

आमच्या दोघांखेरीज

तो तळ कुणालाच दिसणार नाही

 

तुम्ही आत उतरायचा प्रयत्न करू नका

बरमूडा ट्रायंगल सारखी परिस्थिती होईल

म्हणूनच सांगतो

तुम्ही तुमच्या जगात रहा

आम्हाला आमच्या जगात राहुद्या

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की#56 – दोहे – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #56 –  दोहे 

 

पागल कैसा हो गया, रहा सोचता काश।

नदी कहां रुकती भला, तोड़ गई भुजपाश।।

 

संयम की सीमा कहां, जहां तुम्हारा रूप।

रूप तुम्हारा लग रहा ,संयम के अनुरूप।।

 

मृत्युवरण की साधना, जीवन का विनियोग।

पुण्यवान को प्राप्त हो, दुर्लभतम संयोग।।

 

मृत्यु वरण क्यों किसलिए, वापस क्यों अनुदान।

हमने तो चाहा नहीं, मिला अयाचित दान।।

 

तुम्हें देखकर याचना, हो जाती उध्दाम।

अपनी यौवन सुरभि को, कर दें किसके नाम।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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