हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 142 ☆ उठा पटक के मुद्दे… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “उठा पटक के मुद्दे…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 142 ☆

☆ उठा पटक के मुद्दे ☆

बे सिर पैर की बातों में समय नष्ट नहीं करना चाहिए, ये तो बड़े- बूढ़ों द्वारा बचपन से ही सिखाया जाता रहा है। पर क्या किया जाए आजकल एकल परिवारों का चलन आम बात हो चुकी है। और खास बात ये है कि माता- पिता अब स्वयं कुछ न बता कर गूगल से सीखने और समझने के लिए बच्चों को शिशुकाल से ही छोड़ने लगे हैं। पहले बच्चा मनोरंजन हेतु फनी चित्र देखता फिर अपने आयु के स्तर से आगे बढ़कर जानकारी एकत्रित करता है। शनिवार की शाम को आउटिंग के नाम पर होटलों में बीतती है, रविवार मनोरंजन करते हुए कैसे गुजरता है पता नहीं चलता। बस ऐसा ही सालों तक होता जाता है और तकनीकी से समृद्ध पीढ़ी आगे आकर अपने विचारों को बिना समझे सबके सामने रखती जाती है। अरे भई नैतिक व सामाजिक नियमों से ये संसार चल रहा है। हम लोग रोबोट नहीं हैं कि भावनाओं को शून्य करते हुए अनर्गल बातचीत करते रहें।

बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव- कितना सटीक मुहावरा है। बच्चे को सबसे पहले बोलने की कला अवश्य सिखानी चाहिए। पढ़ने- लिखने के साथ यदि वैदिक ज्ञान भी हो जाए तो संस्कार की पूँजी अपने आप हमारे विचारों से झलकने लगती है। भारतीय परिवेश में रहने के लिए, वो भी सामाजिक मुद्दों पर अपने को श्रेष्ठ साबित करने हेतु आपको जमीनी स्तर पर जीना सीखना होगा। पाश्चात्य मानसिकता के साथ शासन करना तो ठीक वैसे ही होता है, जैसे ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 200 वर्षों तक हमें गुलामी में जकड़े रखा। अब लोग सचेत हो चुके हैं वो केवल राष्ट्रवादी विचारों के पोषक व संवाहक बन अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपना परचम पहराने की क्षमता रखते हैं।

अन्ततः यही कहा जा सकता है कि यथार्थ के धरातल पर प्रयोग करते रहिए। जल, जंगल, जमीन, जनजीवन, जनचेतना, जनांदोलनों के जरिए हमें वैचारिक दृष्टिकोण को सबके सामने रखना सीखना होगा।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #154 ☆ संत तुकाराम महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 154 ☆ संत तुकाराम महाराज… ☆ श्री सुजित कदम 

 माघ मासी पंचमीस

जन्मा आले तुकाराम

जन्मदिन शारदेचा

संयोगाचे निजधाम…! १

 

ऋतू वसंत पंचमी

तुकोबांचा जन्मदिन

जीभेवर ‌सरस्वती

नाचतसे प्रतिदिन…! २

 

साक्षात्कारी संत कवी

विश्व गुरू तुकाराम

संत तुकाराम गाथा

अभंगांचे निजधाम…! ३

 

सतराव्या शतकाचे

वारकरी संत कवी

अभंगात रूजविली

भावनांची गाथा नवी…! ४

 

जन रंजले गांजले

त्यांना आप्त मानियले

नरामधे नारायण

देवतत्व जाणियले…! ५

 

तुकोबांची विठुमाया 

कुणा कुणा ना भावली

एकनिष्ठ अर्धांगिनी

जणू अभंग आवली…! ६

 

सामाजिक प्रबोधन

सुधारक संतकवी

तुकोबांचे काव्य तेज

अभंगात रंगे रवी…! ७

 

विरक्तीचा महामेरू

सुख दुःख सीमापार

विश्व कल्याण साधले

अभंगाचे अर्थसार…! ८

 

केला अभंग चोरीचा

पाखंड्यांनी वृथा आळ 

मुखोद्गत अभंगांनी

दूर केले मायाजाल…! ९

 

एक एक शब्द त्यांचा

संजीवक आहे पान्हा

गाथा तरली तरली

पांडुरंग झाला तान्हा..! १०

 

नाना अग्निदिव्यातून

गाथा  प्रवाही जाहली

गावोगावी घरोघरी

विठू कीर्तनी नाहली…! ११

 

जातीधर्म उतरंड

केला अत्याचार दूर

स्वाभिमानी बहुजन

तुकाराम शब्द सूर…! १२

 

रूजविला हरिपाठ

गवळण रसवंती

छंद शास्त्र अभंगाचे

शब्द शैली गुणवंती..! १३

 

दुष्काळात तुकोबांनी

माफ केले कर्ज सारे

सावकारी पाशातून

मुक्त केले सातबारे….! १४

 

प्रपंचाचा भार सारा

पांडुरंग शिरावरी

तुकोबांची कर्मशक्ती

काळजाच्या घरावरी…! १५

 

कर्ज माफ करणारे

सावकारी संतकवी

अभंगात वेदवाणी

नवा धर्म भाषा नवी…! १६

 

प्रापंचिक जीवनात

भोगियले नाना भोग

हाल अपेष्टां सोसून

सिद्ध केला कर्मयोग…! १७

 

परखड भाषेतून

केली कान उघाडणी

पांडुरंग शब्द धन

उधळले सत्कारणी…! १८

 

अंदाधुंदी कारभार

बहुजन गांजलेला

धर्म सत्ता गुलामीला

जनलोक त्रासलेला…! १९

 

साधी सरळ नी सोपी

अभंगाची बोलगाणी

सतातनी जाचातून

मुक्त झाली जनवाणी…! २०

 

संत तुकाराम गाथा

वहुजन गीता सार

एका एका अभंगात

भक्ती शक्ती वेदाकार…! २१

 

सांस्कृतिक विद्यापीठ

इंद्रायणी साक्षीदार

प्रवचने संकीर्तनी

पांडुरंग दरबार…! २२

 

संत साहित्यांची गंगा

ओवी आणि अभंगात

राम जाणला शब्दांनी

तुकोबांच्या अंतरात. २३

 

साक्ष भंडारा डोंगर

कर्मभूमी देहू गाव 

ज्ञानकोश अध्यात्माचा

नावं त्याचे तुकाराम…! २४

 

सत्यधर्म शिकवला

पाखंड्यांना दिली मात

जगायचे कसे जगी 

वर्णियले अभंगात…! २५

 

युग प्रवर्तक संत

शिवराया आशीर्वाद

ज्ञानगंगा विवेकाची 

तुकोबांच्या साहित्यात…! २६

 

सांप्रदायी प्रवचनी 

नामघोष  ललकार

ज्ञानदेव तुकाराम

पांडुरंग जयकार…! २७

 

नाना दुःख सोसताना

मुखी सदा हरीनाम

झाले कळस अध्याय

संतश्रेष्ठ तुकाराम…! २८

 

तुकोबांच्या शब्दांमध्ये

सामावली दिव्य शक्ती

तुका म्हणे नाममुद्रा

निजरूप विठू भक्ती…! २९

 

नांदुरकी वृक्षाखाली

समाधीस्थ तुकाराम

देह झाला समर्पण

गेला वैकुंठीचे धाम…! ३०

 

फाल्गुनाच्या द्वितीयेला

पुण्यतिथी महोत्सव

संत तुकाराम बीज

अभंगांचा शब्दोत्सव..! ३१

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #175 – लय साधो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता लय साधो… )

☆  तन्मय साहित्य  #175 ☆

☆ लय साधो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

लय साधो

इस जीवन की

तन की, मन की

अपनों के सँग

अपने-पन की।

 

क्या है उलझन

सब साज सजे

सुर-ताल-राग

फिर क्यों है

अन्तस् में विचलन

 

 है भादो

 मेघ मल्हार बहे

 चिंता नहीं कर अगहन की

 लय साधो…..।

 

क्यों! है क्रंदन

लिपटे दुख के

अनगिन भुजंग

फिर भी निर्विष

रहता चन्दन,

 

भय त्यागो

सुखमय सैर करो

सुरभित वन-उपवन की

लय साधो…..।

 

साँसों का क्रम

अविरल गति से

चल रहा अथक

संचालक हम

मन में यह भ्रम,

 

पहरा दो

बहके ना पथ में

धारा पुनीत चिंतन की

लय साधो…।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 61 ☆ नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्र पर्व पर आपकी एक कविता – कुष्मांडा देवी”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 61 ✒️

?  नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

नवरात्रि के चौथे दिन ,

कूष्मांडा की उपासना ।

विधि, मंत्र, भोग, पूजा से ,

दूर होती सभी यातना ।।

 

देवी की आठ भुजाएं ,

अष्ठभुजी कहलाती ,

धनुष, बाण ,कमल, कलश ,

चक्र – गदा – सुहाती ,

आठवें हाथ जपमाला ,

जिससे करें उपासना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

वाहन सिंह और निवास ,

सूर्य मंडल माना जाता ,

देवी को सूर्य देव की ,

ऊर्जा जाना जाता ,

यश,बल,आयु में वृद्धि हो,

करो मां की साधना ।

नवरात्रि ————————– ।।

 

करें स्मरण सांचे मन से ,

परिवार रहे खुशहाल ,

सुख – समृद्धि और निरोगता ,

रहे हज़ारों साल ,

मालपुए का भोग लगा ,

कपूर – गुलाब चढ़ावना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

बेल मूल पे चतुर्थी को ,

इत्र – मिट्टी – दही चढ़ाऐं ,

फल स्वरुप मनवांछित फल ,

“सलमा “भक्त जन पाऐं ,

जय कुष्मांडा मां कर दो,

पूर्ण सब की कामना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 01 ☆ बेबस पड़े हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी का हार्दिक स्वागत है। आज से आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बेबस पड़े हैं…।) 

जीवन परिचय 

जन्म : 09 मई 1951 ई0। नरसिंहपुर मध्यप्रदेश।

शिक्षा : हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर

प्रकाशित कृतियाँ : (1) ‘मन का साकेत’ गीत नवगीत संग्रह 2012 (2) ‘परिन्दे संवेदना के’ गीत नवगीत संग्रह 2015 (3) “शब्द वर्तमान” नवगीत संग्रह 2018 (4) ”रेत हुआ दिन” नवगीत संग्रह 2020 (5)”बीच बहस में” समकालीन कविताएँ 2021 (6) महाकौशल प्रान्तर की 100 प्रतिनिधि रचनाएँ संपादन ‘श्यामनारायण मिश्र’ समवेत संकलन (7) समकालीन गीतकोश-संपादन- नचिकेता (8)नवगीत का मानवतावाद-संपादन-राधेश्याम बंधु

अन्य प्रकाशन : देश के स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में गीत, नवगीत, अनुगीत कविताओं का सतत् प्रकाशन।

सम्मान : (1) कला मंदिर भोपाल पवैया पुरस्कार (2) कादंबरी संस्था जबलपुर से सम्मानित

संप्रति : स्नातक शिक्षक केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा निवृत, स्वतंत्र लेखन।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 01 ☆ बेबस पड़े हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

भीड़ से हटकर खड़े हैं

तभी तो आँखों में उनकी

किरकिरी बनकर गड़े हैं।

 

वक़्त की दीवार पर चढ़

रेत में नैया डुबाते

मिल न पाया कोई मोती

दाँव पर जीवन लगाते

 

बस नदी के घाव धोते

घाट पर बेबस पड़े हैं ।

 

हो गई संवेदनाएँ

जहर में डूबी ज़ुबान

मुखर हैं अख़बार में

लड़खड़ाते से बयान

 

 आस्थाएँ हुईं मैली

 सच के मुँह ताले जड़े हैं।

 

खेत  माटी और चिड़िया

भुखमरी झूठे सवाल

सिसकियों के घर अँधेरा

रोशनी पर है बवाल

 

रोज सूरज के भरोसे

रात से हरदम लड़े हैं।

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विरून गेला पट सतरंगी… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆

श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ विरून गेला पट सतरंगी… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆ 

(वृत्त : पादाकुलक)

विरून गेला पट सतरंगी

सरले गारुड ऋतुगंधांचे

कळले नाही कधी आटले

कढ व्याकुळही घनांतरीचे !

 

मंद जाहले गगनदीपही

दंतकथा जणु टिपुर चांदणे

वठली झाडे , पसार पक्षी

सुने सुने वन उदासवाणे !

 

गवतावरले थेंब दवाचे

अता न हळवे पूर्वीइतुके

पूर ओसरे गडद धुक्याचा

पुनश्च डोंगर होत बोडके !

 

कधीकाळच्या निळ्या नभाची

थंड तिह्राइत साद दादही

फडफड थोडी व्याकुळ पंखी

सरता सरता सरेल तीही !

© श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 175 ☆ झाडे… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 175 ?

💥 झाडे… 💥 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

झाडे दिसतात सर्वदूर

जाऊ तिथे जिकडे तिकडे,

माहेरच्या वाड्याभोवती,

पिंपर्णीची पाच झाडे,

त्यांच्या फांदी फांदीवर

आपसुकच जीव जडे !

 

आजोळच्या बंगल्याजवळ

 गुलमोहराचे लाल सडे

दारापुढच्याआंब्याखाली,

माझे बालपण झुले !

 

शाळेसमोर शिरीषवृक्ष,

त्याच्या आठवणी लक्ष लक्ष !

 

सासरच्या इमारतीपाशी

 पांगारा आणि सोनमोहर

खिडकीतून देत असतात,

मूक पहारा अष्टौप्रहर!

 

कितीतरी झाडे अशी

आयुष्याशी नाते जोडतात,

प्रवासात, वळणावर,

झाडे पुन्हा पुन्हा भेटतात,

निश्चल असली तरीही,

आठवणींचा झिम्मा खेळतात!

 

झाडे कधीच भांडत नाहीत

ती फक्त माया करतात,

आयुष्यभर माणसांवर

आपली गर्द छाया धरतात!

© प्रभा सोनवणे

१६ मार्च २०२३

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆  ॥श्री विंध्येश्वरी स्तोत्रम्॥ ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

 ॥श्री विंध्येश्वरी स्तोत्रम्॥ ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद : 

निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डिनीम्।

वने  रणे  प्रकाशिनीं   भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।१॥

निशुम्भशुम्भ हारिणी मुंडचंड नाशिनी

पराक्रमी रणी वनी भजितो विंध्यवासिनी ॥१॥

त्रिशूलरत्नधारिणीं  धराविघातहारिणीम्।

गृहे  गृहे  निवासिनीं  भजामि  विन्ध्यवासिनीम।।२।।

रत्नत्रिशूल धारिणी अवनी संकट हारिणी

घराघरात वासिनी भजितो विंध्यवासिनी  ॥२॥

दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।

वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥३॥

दीन दुःखहारिणी साधूसुखकारिणी

विरहशोकनिवारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥३॥

लसत्सुलोलचनां  लतां  सदावरप्रदाम्।

कपालशूलधारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।४।।

चंचलसुनेत्र सुकुमारी सदैव शुभवरदायिनी

कपालशूल धारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥४॥

करे    मुदा    गदाधरां    शिवां    शिवप्रदायिनीम्।

वरावराननां   शुभां    भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।५।।

गदाहस्त शोभिणी सर्वमंगल दायिनी

सर्वरूप धारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥५॥

ऋषीन्द्रजामिनप्रदां त्रिधास्यरूपधारिणिम्।

जले स्थले निवासिनीं  भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।६।।

ऋषीश्रेष्ठ कन्यका त्रिस्वरूपधारिणी

भूजले निवासिनी भजितो विंध्यवासिनी ॥६॥

विशिष्टसृष्टिकारिणीं   विशालरूपधारिणीम्।

महोदरां  विशालिनीं   भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।७।।

विशेष सृष्टी निर्माती प्रचंड रूपधारिणी

विशाल उदर धारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥७॥

प्रन्दरादिसेवितां मुरादिवंशखण्डिनीम्।

विशुद्धबुद्धिकारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।८।।

इंद्रादि सुर सेविती मुरादि दैत्य विनाशिनी

सुबुद्ध बुद्धीदायिनी भजितो विंध्यवासिनी ॥८॥

॥ इति श्रीविन्ध्येश्वरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

॥ इति  निशिकान्त भावानुवादित श्री विंध्येश्वरीस्तोत्र संपूर्ण ॥

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 33 – भाग-3 – सुंदर, शालीन आणि अभिमानी जपान ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 33 – भाग- 3 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ सुंदर, शालीन आणि अभिमानी जपान ✈️

रात्री अकराच्या बसने टोकियोला जायचे होते. आमचा जपान रेल्वे पास या बससाठी चालत होता. तीस जणांची झोपायची सोय असलेली डबल डेकर मोठी बस होती. बसण्याच्या जागेचे आरामदायी झोपण्याच्या जागेत रूपांतर केले आणि छान झोपून गेलो. पहाटे साडेपाच-सहाला जाग आली. सहज बाहेर पाहिले. अरे व्वा! बसमधून दूरवर फुजियामा पर्वत दिसत होता. निळसर राखाडी रंगाच्या त्या भव्य पर्वताच्या माथ्यावर बर्फाचा मुकुट चकाकत होता. सारे खूश झाले. ट्रॅफिक जॅममुळे टोक्यो स्टेशनला पोहोचायला नऊ वाजले. स्टेशनवरच सारे आवरले. आज आम्ही फुजियामाला जाणार होतो व उद्याची टोक्यो दर्शनची तिकीटं काढली होती. आजची रात्र आम्ही टोक्योचे एक उपनगर असलेल्या कावासकी इथे सीमा आणि संदीप लेले यांच्याकडे राहणार होतो. त्यामुळे जवळ थोडे सामान होते.

फुजियामाला जाताना हे सामान नाचवायला नको म्हणून आम्ही ते टोक्यो स्टेशनवरील लॉकरमध्ये ठेवायचे ठरविले. जपानमध्ये सर्व रेल्वे स्टेशन्सवर लॉकर्सची व्यवस्था आहे. आपल्या सामानाच्या साइजप्रमाणे लॉकर निवडून त्यात सामान ठेवायचे. किती तासांचे किती भाडे हे त्यावर लिहिलेले असते. सामान ठेवून लॉकरला असलेली किल्ली लावून ती किल्ली आपल्याजवळच ठेवायची. मात्र सामान परत घेताना योग्य ते भाडे त्या लॉकरला असलेल्या होलमधून टाकल्याशिवाय लॉकर उघडत नाही. तिथल्या एका लॉकरमध्ये सामान ठेवून आम्ही फुजियामाला जाण्यासाठी निघालो. तीन-चार गाड्या बदलून, अनेकांना विचारत शेवटी माथेरानसारख्या छोट्या गाडीने कावागुचिकोला पोहोचलो.फुजियामा  इथे असलेल्या पाच लेक्सपैकी हा एक लेक आहे. तिथून फुजियामाचे सुंदर दर्शन होत होते. हळूहळू थंडी, बोचरे वारे वाढू लागले. तेव्हा परतीचा तसाच प्रवास करून टोक्यो स्टेशनवर आलो.

जगातले सर्वात वर्दळीचे स्टेशन म्हणून टोक्यो ओळखले जाते. जमिनीखाली आणि जमिनीवर  पाच-सहा मजले अवाढव्य रेल्वे स्टेशन्सचे जाळे पसरले आहे. दररोज लक्षावधी लोक या स्टेशन मधून जा- ये करत असतात. त्या प्रचंड वाहत्या गर्दीत आम्ही हरवल्यासारखे झालो. आम्ही ज्या प्लॅटफॉर्मवर उतरलो तिथून सकाळी आम्ही ज्या दिशेच्या गेटजवळ सामान ठेवले होते, तो लॉकर काही सापडेना. त्यात भाषेची मोठीच पंचाईत. सगळेजण त्या गर्दीत लॉकर शोधत बसायला नको म्हणून आम्ही तिघे- चौघे एका ठिकाणी बसून राहिलो. लॉकर शोधायला गेलेल्या दोघा जणांना लॉकर सापडून परत आम्ही सर्व एकमेकांना सापडण्यात चांगले दोन तास गेले.

ट्रीपचा शेवटचा दिवस टोक्योदर्शनचा होता. हवामानाच्या अंदाजाप्रमाणे पाऊस पडतच होता .आयफेलटॉवरसारख्या असणाऱ्या टोक्यो टॉवरवरून शहराचे दर्शन घडले. जपानचा पारंपारिक चहा समारंभ पाहिला. तो हिरव्या रंगाचा, भातुकलीच्या कपांमधून दिलेला कोमट चहा आपल्याला आवडत नाही पण सुंदर किमोनोमधल्या त्या बाहुल्यांसारख्या स्त्रिया, चहा बनविण्याचे हळुवार सोपस्कार वगैरे पाहायला गंमत वाटत होती. नंतर एम्परर गार्डनमध्ये थोडे फिरून जेवायला गेलो. एका मोठ्या हॉटेलात सर्वांसाठी बार्बेक्यू पद्धतीचे जेवण होते. टेबलावर प्रत्येकाजवळ छोटीशी शेगडी ठेवलेली होती. त्यावर कांदा, बटाटा, वांगी, रताळे, मशरूम, लाल भोपळा, लाल मिरची असे सारे गरम गरम भाजून दिलेले होते. जोडीला भात, हिरवा चहा, रताळ्याचा गोड पदार्थ असे आमचे शाकाहारी जेवण होते. परंतु काड्यांनी जेवायची कसरत काही जमली नाही. मग काटे- चमचेच वापरले. त्या दिवशी त्या हॉटेलात बरीच लग्नं होती. ती पाहायला मिळाली. लग्नाच्या वऱ्हाडात उंची किमोनो घालून जपानी गजगामिनी मिरवत होत्या.

आता पाऊस थांबला होता. सुमिडा नदीतून क्रूझने सहल करायची होती. बसमधून तिथे जाताना टोक्योचा आपल्या फोर्टसारखा विभाग दिसला. तेरा ब्रिजच्या खालून आमची क्रूज गेली. ब्रिजवरून कुठे रेल्वे तर कुठे रस्ते होते. इकडून तिकडे सतत वाहतूक चालू होती. बोटीतून उतरल्यावर दोन्ही बाजूंच्या खरेदीच्या दुकानांवर एक नजर टाकून नंतर पॅगोडा पाहिला. टोक्योदर्शनच्या बसमधून उतरण्यापूर्वी गाइडला “आरीगाटो गोसाईमास” म्हटले. म्हणजे जपानी भाषेत त्याचे आभार मानले.

जपानी लोक हे अत्यंत मेहनती, शिस्तप्रिय आणि शांत वृत्तीचे आहेत. आपला देश, आपली संस्कृती, आपली भाषा याचा त्यांना विलक्षण अभिमान आहे. हा देश सतत भूकंपाच्या छायेत वावरत असला तरी कुठेही भीतीचा लवलेश नसतो. सर्व नवीन बांधकामे भूकंपाला तोंड देण्यास योग्य अशीच बांधलेली आहेत. नियमाप्रमाणे प्रत्येक घरामध्ये दरवाज्याजवळ पिण्याच्या पाण्याच्या दोन बाटल्या, बॅटरी, मेणबत्त्या, काड्यापेटी, एका वेळचे घरातील सर्वांचे कपडे व थोडी बिस्किट्स, चॉकलेट्स अशी जय्यत तयारी एका बॅगमध्ये करून ठेवलेली असते. जपानमधील राहणीमान खूपच खर्चिक आहे. इथे सगळीकडे झाडे, फुले आहेत पण सारी झाडे, फुले अगदी सैनिकी शिस्तीत वाढल्याप्रमाणे आहेत. नैसर्गिकरित्या वाढलेले, फळाफुलांनी डवरलेले असे एकही झाड आढळत नाही. जपानी लोक ठरवतील तसेच झाडांनी वाढायचे, फुलांनी फुलायचे, बोन्सायरुपाने  दिवाणखाने सजवायचे! तरुण पिढीवर अमेरिकन जीवनशैलीचा फार मोठा प्रभाव आहे. व्यक्तिस्वातंत्र्याचं वेड व प्रचंड महागाई यामुळे लग्न, मुलंबाळं, एकत्र कुटुंबपद्धती हळूहळू कमी होत आहे. जपानमध्ये अतिवृद्धांची संख्या वाढते आहे तर लहान मुलांची संख्या कमी होत आहे. कोणी सांगावे, उद्या जपानी शास्त्रज्ञ यावरही काही उपाय शोधून काढतील.

आमचा परतीचा प्रवास सुरू झाला. पहाटेच्या थोड्याशा पावसाळी धुक्यातून उगवत्या सूर्यदेवाचे लांबलचक किरणांचे हात आम्हाला निरोप देत होते. डोळ्यांपुढे दिसत होते–

  प्रशांत महासागराच्या हिंदोळ्यावर झुलणारे,

  पाचूच्या कंठ्यामधल्या रत्नासारखे शोभणारे,

   आकाराने लहान, कर्तृत्वाने महान,

   फिनिक्स पक्षाप्रमाणे राखेतून उभे राहिलेले,

   अत्याधुनिक तंत्रज्ञानाच्या गरुडझेपेने,

   आकाशाला कवेत घेणारे,

    एक स्वच्छ, सुंदर ,शालीन राष्ट्र, जपान!

भाग ३ व जपान समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 71 – गीत – भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  गीत “भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 71 – गीत – भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू… ☆

 भगतसिंह सुखदेव जी, राजगुरू हैं शान ।

फाँसी में हँसते चढ़े, प्राण किया बलिदान ।।

 

            भारत माँ के लाड़लों, को हम करें प्रणाम ।

            बलिदानों से देश ने, पाया आज मुकाम ।।

 

ब्रिटिश जजों ने लिख दिया, फॉंसी का आदेश ।

तब तीनों थे हँस रहे, माथे शिकन न क्लेश ।।

 

            कह कर वंदे मातरम, नाच उठे थे लाल ।

            इक दूजे के गले लग, झूमे थे दे ताल ।।

 

कलम तोड़कर जज उन्हें, देख रहे थे घूर ।

सजा मौत की सुन सभी, नाचे थे भरपूर ।।

 

            कोर्ट देखता रह गया, उत्सव जैसा हाल ।

            कैदी तो सुन कर सजा, हो जाते बेहाल ।।

 

हतप्रभ न्यायाधीघ थे, देख मौत नजदीक ।

किस माटी के तुम बने, जो दिखते निर्भीक ।।

 

            हँस कर तीनों ने कहा, हमें देश से प्यार ।

            मातृ भूमि के वास्ते, लाखों हैं तैयार ।।

 

सुनकर उनकी बात को, सहमा जज दरबार ।

लगे देखने द्वार में, कम हैं पहरेदार ।।

 

            देश प्रेम की वह छटा, तनमन भरी उमंग ।

            मस्ती में वे झूमकर, बजा रहे थे चंग ।।

 

उनको निर्भय देखकर, जनता हुयी निहाल।

बच्चे बूढ़े जग गये, तब आया भूचाल ।।

 

            फंदे को फिर चूमकर, डाल गले में हार ।

            जिन्दा आँखें रो पड़ीं, दुश्मन भी बेजार ।।

 

सत्ता भय से ग्रस्त थी, मुलजिम बना वजीर ।

अंधकार की आड़ में, खाक हुई तस्वीर ।।

 

क्रांति मशालें जल उठीं, उपजा था आक्रोश।

            अंग्रेजों के कृत्य से, जन-मन में था रोष ।।

 

काँप उठी सत्ता तभी, देखा जन सैलाब ।

सारी जनता जग उठी, गिन-गिन लिया हिसाब ।।

 

            सतलज की माटी कहे, नव पीढ़ी से आज ।

            याद रखो बलिदान को, कैसे मिला सुराज ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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