English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 139 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 139 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 139) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 139 ?

☆☆☆☆☆

☆ Language of Silence 

☆☆☆

खामोशियों की भी एक

अपनी ज़ुबान होती है

मगर बातें भी सबसे ज्यादा

दो चुप लोगों में होती हैं।

☆ ☆

 Even the silence has its

own expressive language

Most intent talks happen

between two silent people.

☆☆☆☆☆

बिखर गये सब ख्वाब मेरे

बन  के  चुनिंदा अलफ़ाज़…

एहसास तेरा वो हकीक़त बन

मन में यूंही सिमट कर रह गया…

☆ ☆

By turning into few words,

all my dreams got scattered…

Yet your feelings remained

confined in mind, as a reality

 ☆☆☆☆☆

तुमसे  जुड़े  हुए  एहसास

मेरे लिए बहुत खास होते हैं,

क्योंकि उन अहसासो में

हम बिल्कुल तेरे पास होते हैं…

☆ ☆

Feelings linked with you

are very special to me,

Because in those feelings

I’m totally with you only…

☆☆☆☆☆

मैं  तेरे  बाद  कोई

तेरे  जैसा  ढूँढता हूँ,

जो बेवफ़ाई तो  करे

मगर  बेवफ़ा न लगे…

☆ ☆

After you, I look for

someone like you only

Who is unfaithful but

doesn’t look disloyal

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 190 ☆ जानना और मानना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 190  जानना और मानना ?

मनुष्य अन्वेषी प्रवृत्ति का है। इसी प्रवृत्ति के चलते कोलंबस ने अमेरिका ढूँढ़ा, वास्को-डी-गामा भारत तक आया। शून्य का आविष्कार हुआ। मनुष्य ने दैनिक उपयोग के अनेक छोटे-बड़े उपकरण बनाए। खेती के औज़ार बनाए, कुआँ खोदने के लिए, कुदाल, फावड़ा बनाए। स्वयं को पंख नहीं लगा सका तो उड़ने के अनुभव के लिए हवाई जहाज और अन्यान्य साधन बनाए। समय के साथ वर्णमाला विकसित हुई, संवाद के लिए पत्र का चलन हुआ। शनै:- शनै: यह तार, टेलीफोन, मोबाइल, ई-मेल तक पहुँचा। कोरोनावायरस में ऑनलाइन मीटिंग एप बने। आँखों दिखते भौतिक को जानना चाहता है मनुष्य और जानने के बाद मानने लगता है मनुष्य।

विसंगति देखिए कि विचार या दर्शन के स्तर पर, बहुत सारी बातें जानता है मनुष्य पर मानता नहीं मनुष्य। कुछ-कुछ हैं जो मानने लगते हैं पर इस प्रक्रिया में लगभग सारा जीवन ही बीत जाता है। अधिकांश तो वे हैं जिनकी देह की अवधि समाप्त हो जाती है पर भीतर की जड़ता सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होती। झूठ बोलने वाला जीवन भर अपने असत्य को स्वीकार नहीं करता। आलसी अपने आलस को अलग-अलग कारणों का जामा पहनाता है लेकिन खुद को आलसी ठहराता नहीं। अहंकारी अपनी सारी साँसें अहंकार को समर्पित कर देता है पर जताता यों है, मानो उस जैसा विनम्र धरती पर दूसरा ना हो। अटल मृत्यु का सच प्रत्येक को पता है। हरेक जानता है कि एक दिन मरना होगा लेकिन इस शाश्वत सत्य को जानते हुए भी व्यक्ति इतने पाखंडों में जीता है, जैसे कभी मरेगा ही नहीं…और जब मरता है तो जीवन का हासिल शून्य होता है। अर्थात मरा भी तो ऐसे जैसे कभी जिया ही न हो। सच तो यह है कि जानने से मानने तक का प्रवास मनुष्य को मनुष्यता प्रदान करता है। मनुष्यता ही आगे संतत्व का द्वार खोलती है।

गुजरात के भूकंप के समय की घटना किसी परिचित ने सुनाई थी। सेवानिवृत्त एक उच्च पदाधिकारी अपनी हाईक्लास हाऊसिंग सोसायटी के पीछे स्थित झोपड़पट्टी से बहुत ख़फ़ा थे। उच्चवर्गीय क्षेत्र में यह झोपड़पट्टी उन जैसे संभ्रांतों के लिए धब्बा थी। नगरनिगम को बीच-बीच में इसके अनधिकृत होने और हटाने के लिए पत्र लिखते रहते थे। भूकम्प में उनका भी घर ध्वस्त हुआ। बेहोश होकर वे एक झोपड़ी पर जाकर गिरे। सरकारी सहायता पहुँचने तक झोपड़ी में रहनेवाले परिवार ने चावल का माँड़ पिलाकर उन्हें जीवित रखा। बाद में अस्पताल में उनका इलाज हुआ।

मनुष्य कुल के अद्वैत को जानते तो वे भी होंगे पर मानने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। दैनिक जीवन में यह और इस जैसे अनेक उदाहरण हमारे सामने आते हैं।

हमारे पूर्वज विषय के विभिन्न आयामों को समझने के लिए शास्त्रार्थ करते थे। सामनेवाले विद्वान से शास्त्रार्थ में यदि पराजित हो जाते तो उसके तत्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेते थे। यह जानने से मानने की ही यात्रा थी।

बहुत कुछ है, जो हम जानते हैं, बस जिस दिन मानना आरंभ कर देंगे, जीवन की दिशा बदल जाएगी। जानना सामान्य बात है, मानना असामान्य। स्मरण रहे, मनुष्य जीवन सामान्य के लिए नहीं अपितु असामान्य होने के लिए मिला है। निर्णय हरेक को स्वयं करना है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

💥 अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक 💥

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 39 ⇒ कृत्रिम बुद्धिमत्ता… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कृत्रिम बुद्धिमत्ता।)  

? अभी अभी # 39 ⇒ कृत्रिम बुद्धिमत्ता? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हमने साधारण और असाधारण बुद्धि के लोग तो देखे थे, सामान्य और विशिष्ट की भी हमें पहचान थी, लेकिन असली और नकली की पहचान कहां इतनी आसान थी। जिसे आज आर्टिफिशियल कहा जाता है, हम कभी उसे बनावटी और कृत्रिम ही तो कहा करते थे। प्राकृतिक और सामान्य जीवन में तब कहां कृत्रिमता का स्थान होता था। गुरुदत्त ने कागज़ के फूल में यह भोगा है। असली फूल और शुद्ध जल का आज भी इंसाफ के मंदिर में कोई विकल्प नहीं है।

बनावटी हंसी, इमिटेशन के नाम पर आर्टिफिशियल ज्वेलरी, बनावटी चेहरे और बनावटी मुस्कान वैसे भी हमें एक कृत्रिम जीवन जीने को मजबूर कर रही है। ।

हमारी पीढ़ी किताबों से पढ़ी, पाठ्य पुस्तकों से पढ़ी, कुंजी, गैस पेपर, गाइड और नकल से नहीं। मेरे एक मित्र ने कॉलेज में अंग्रेजी विषय तो ले लिया, लेकिन अंग्रेजी में उसका हाथ तंग था। अच्छे खासे पहलवान थे, एक दिन हमें घेर लिया, आप कब फ्री हो, अंग्रेजी की इस किताब की गाइड नहीं छपी है, किसी दिन बैठकर इसे शुद्ध हिंदी में समझा दें। वे सबको शुद्ध हिंदी में ही समझाते थे, हमने भी उन्हें शुद्ध हिंदी में समझा दिया, वे परीक्षा की वैतरिणी अन्य कृत्रिम संसाधनों की सहायता से आखिर पार कर ही गए। वे आगे जाकर वकील बने और हम बैंक के बाबू ! इसे कहते हैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल।

हम कितने ओरिजनल थे कभी, औलाद नहीं हुई, नीम हकीम, मंदिर, मन्नत, ताबीज, गंडे, टोटके और व्रत उपवास क्या नहीं किए और अगर ईश्वर को मंजूर नहीं था, तो किसी बच्चे को गोद ले लिया, उसे अपने बच्चे जैसा प्यार दिया, लेकिन कभी कृत्रिम गर्भाधान और टेस्ट ट्यूब बेबी की ओर रुख नहीं किया। पहले यशोदा भी मां होती थी, आजकल सरोगेट मदर भी होने लग गई। ।

पहले बच्चे ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरुकुल जाते थे, गुरु सेवा करते थे, उनकी सेवा ही गुरु दक्षिणा होती थी, गुरु का गुण देखिए, गुरु गुड़ और सत्शिष्य शक्कर निकल आता था। कितने खुश होते हैं हमारे जीवन को संवारने वाले पुराने शिक्षक, जिनके ज्ञान के झरने में स्नान कर आज की पीढ़ी विश्व में उनका नाम रोशन कर रही है।

अंग्रेजी एक ऐसी भाषा है जो आपको आसानी से प्रभावित कर देती है। आर्टिफिशियल शब्द डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप और शाइनिंग इंडिया की तरह इतना प्रचलित हो गया है, कि इसके आगे सामान्य, नैसर्गिक, और असली शब्द बौने नजर आने लगे हैं। चार्ल्स शोभराज और नटवरलाल से लगाकर किंगफिशर तक, शुरू से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ही तो राज रहा है। जब घी सीधी उंगली से नहीं निकलता, तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है। साइबर क्राइम का जमाना है, आर्डिनरी इंटेलिजेंस इनका कोई इलाज नहीं। ।

हमारे टीवी, मोबाइल, लैपटॉप और गूगल सर्च सब आर्टिफिकल इंटेलिजेंस ही तो है। संसार को आगे बढ़ना है, तो रोबोट को चौराहे पर खड़ा होना ही है। अ, आ, इ, ई और abcde सब आजकल a और i पर आकर रुक गए हैं। आज की दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया है, इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहकर जलील ना करें। कभी a कहीं का असिस्टेंट होता था, वह भी आजकल आर्टिफिशियल हो गया है। ।

बहुत ही जल्द विश्व का कोई विश्वविद्यालय जब मास्टर ऑफ एंटायर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की डिग्री प्रदान करेगा, तब विपक्ष के कलेजे में ठंडक पहुंचेगी। अगर हिम्मत है तो जाओ और चैलेंज करो एंटायर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की डिग्री को, यू आर्टिफिशियल देशभक्त और असली देशद्रोही विपक्ष। ।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 138 ☆ गीत: कोई अपना यहाँ… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत: कोई अपना यहाँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 138 ☆ 

गीत: कोई अपना यहाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

मन विहग उड़ रहा,

खोजता फिर रहा.

काश! पाये कभी-

कोई अपना यहाँ??

*

साँस राधा हुई, आस मीरां हुई,

श्याम चाहा मगर, किसने पाया कहाँ?

चैन के पल चुके, नैन थककर झुके-

भोगता दिल रहा

सिर्फ तपना यहाँ…

*

जब उजाला मिला, साथ परछाईं थी.

जब अँधेरा घिरा, सँग तनहाई थी.

जो थे अपने जलाया, भुलाया तुरत-

बच न पाया कभी

कोई सपना यहाँ…

*

जिंदगी का सफर, ख़त्म-आरंभ हो.

दैव! करना दया, शेष ना दंभ हो.

बिंदु आगे बढ़े, सिंधु में जा मिले-

कैद कर ना सके,

कोई नपना यहाँ…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२-५-२०१२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – मुरली-धर… – ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? मुरली-धर ? ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

अप्रतिम कल्पना आहे बासरीच्या जन्माची. चित्रही तितकेच सुरेख.निवडलेले रंगही अचूक आणि प्रभावी. बासरीच्या जन्माची कल्पना वाचून सुचलेले  काव्य :

लहरत लहरत येता अलगद

झुळुक शिरतसे ‘बासां’मधूनी 

अधरावरती ना धरताही

सूर उमटती वेणू वनातूनी

त्याच सूरांना धारण करता

श्रीकृष्णाने अपुल्या अधरी

सूर उमटले ‘बासां’मधूनी

आणि जन्मली अशी बासरी.

बांस,वेणू =बांबू

© सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #189 – 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…”)

? ग़ज़ल # 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

बेचारगी में ग़म रहा बेहिसाब,

मुसलसल आता रहा बेहिसाब।

गरम ठंडा तूफ़ान खूब गुज़रा,

इनका भी रखना पड़ा हिसाब।  

अदब की महफ़िलें आबाद रहीं,

मेहरून्निसा संग आया महताब।

दुश्मन हर चाल सोचकर रखता,

दाव दोस्तों का खासा लाजवाब।  

फलक से डोली में आएगी हसीना,

‘आतिश’ यही नियति का इंतख़ाब।  

* इंतख़ाब – चुनाव

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 67 ☆ ।।जो जीवन शेष है कि वही जीवन विशेष है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक  ☆ ।।जो जीवन शेष है कि वही जीवन विशेष है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ढल रही शाम बस चलने  की तैयारी है।

मत यूं सोचो किअभी करने की बारी है।।

आखिरी श्वास तक चलती साथ जिंदगी।

अभी तो भीतर बाकी क्षमता खूब सारी है।।

[2]

करते रहो मत सोचो कि  उम्र बची नहीं है।

कि शुभ मुहूर्त की डोली अभी सजी नहीं है।।

आज करो अभी करो अरमानों को पूरे तुम।

जान लो ये बात कि कल आता कभी नहीं है।।

[3]

जिंदगी को अवसाद नहीं आसान बना लो।

समस्या नहीं समाधान का फरमान बना लो।।

जो जीवन शेष है वह जीवन  ही विशेष है।

जाने से पहले पहले खुद को इंसान बना लो।।

[4]

साठ सालआयु पर जिम्मेदारी नई आती है।

वरिष्ठनागरिक की भूमिका भी निभाती है।।

आपकीअनुभवी उम्र बहुत मायने है रखती।

नई पीढ़ी समाज को ये राह दिखा जाती है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 131 ☆ “काम होना चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #131 ☆ ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सिर्फ बाते व्यर्थ है, कुछ काम होना चाहिये

हर हृदय को शांति-सुख-आराम होना चाहिये।

 

बातें तो होती बहुत पर काम हो पाते हैं कम

बातों में विश्वास का पैगाम होना चाहिये।

 

उड़ती बातों औ’ दिखाओं से भला क्या फायदा ?

काम हो जिनके सुखद परिणाम होना चाहिये।

 

हवा के झोंको से उनके विचार यदि जाते बिखर

तो सजाने का उन्हें व्यायाम होना चाहिये।

 

लोगों की नजरों में बसते स्वप्न है समृद्धि के

पाने नई उपलब्धि नित संग्राम होना चाहिये।

 

पारदर्शी यत्न ऐसे हों जिन्हें सब देख लें

सफलता जो मिले उसका नाम होना चाहिये।

 

सकारात्मक भावना भरती है हर मन में खुशी

सबके मन आनन्द का विश्राम होना चाहिये।

 

आसुरी दुशवृत्तियों  के सामयिक उच्छेद को

साथ शाश्वत सजग तत्पर ’राम’ होना चाहिये।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 152 – तुझे रूप दाता ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 152 – तुझे रूप दाता ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

तुझे रूप दाता स्मरावे किती रे ।

नव्यानेच आता भजावे  किती रे।

 

अहंकार माझा मला साद घाली ।

सदाचार त्याला जपावे  किती रे।

 

नवी रोज स्पर्धा  इथे जन्म घेते।

कशाला उगा मी पळावे किती रे ।

 

नवी रोज दुःखे  नव्या रोज  व्याधी।

मनालाच माझ्या छळावे किती रे।

 

कधी हात देई कुणी सावराया।

बहाणेच सारे कळावे किती रे ।

 

पहा  सापळे हे जनी पेरलेले ।

कुणाला कसे पारखावे किती रे।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकावर बोलू काही ☆ सागरात हिमशिखरे… सुश्री मेधा आलकरी ☆ परिचय – सौ. माधुरी समाधान पोरे ☆

सौ. माधुरी समाधान पोरे

(सौ. माधुरी समाधान पोरे आपलं ई-अभिव्यक्तीवर हार्दिक स्वागत)

अल्प परिचय

शिक्षण- बी. ए. आवड- वाचन, लेखन छंद- वारली पेंटिंग,  शिवणकाम.

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ सागरात हिमशिखरे… सुश्री मेधा आलकरी ☆ परिचय – सौ. माधुरी समाधान पोरे ☆

पुस्तक परिचय

पुस्तकाचे नाव – सागरात हिमशिखरे (अकरा देशांचा सफरनामा)

लेखिका – मेधा आलकरी

जगण्याची ओढ अशी उडण्याचे वेड असे

घरट्याच्या लोभातही गगनाचे भव्य पिसे

अशी मनःस्थिती झाली नाही अशी व्यक्ती सापडणं अशक्यच. घर हवं नि भटकणंही, हेच जीवन जगण्याचं मर्म असतं. मेधा अलकरींच्या कुंडलीत भटकण्याचे ग्रह उच्चस्थानी, आणि जोडीदारही साजेसा मग कायं सोने पे सुहागा….

उपजत आवड आणि फोटोंची योग्य निवड यामुळे पुस्तकाला जिवंतपणा आला.पुस्तकातील फोटोंचं पूर्ण श्रेय त्यांच्या पतींचे.

मेधाताईंनी देशविदेशात, सप्तखंडांत मनापासून भटकंती केली. किती वैविध्यपूर्ण प्रदेशातून त्या वाचकांना हिंडवून आणतात ते नुसतं लेखांची शीर्षक वाचलं तरी ध्यानात येतं.अनेक खंडात फिरण्याचे अनुभव, समुद्राचे नाना रंग, ज्वालामुखीचे ढंग, पुरातन संस्कृतीचे अवशेष आणि वैभव, तर दुसरीकडे जंगलजीवनाचा थरार, यामधे फुलांचे सोहळे असे चितारले आहेत की जणू वाचक शब्दातून त्यांच सौंदर्य जाणवू शकतो. हे सामर्थ्य आहे लेखनाचं.

सागरात हिमशिखरे हा लेख समुद्राचे बहुविध मूड दाखवतो. अंटार्क्टिका हे पृथ्वीचं दक्षिण टोक. तिथे निसर्गाचे अनेक चमत्कार पाहायला,अनुभवायला मिळतात. या प्रवासाची आखणी खूप आधीपासून करावी लागते.  इथला अंदाज वर्तवणं अशक्य. इथले रहिवासी पेंग्विन. आर्क्टिकचा राजा हा मान आहे पेंग्विनचा, मानवसदृश हावभाव न्याहाळणं हा अद्वितीय अनुभव आहे. त्यांची परेड म्हणजे  पर्यटकांच्या नयनांना मेजवानीच. सील माशाचं जगणं, अल्ब्राट्रास ह्या मोठया पक्ष्याचं विहरणं हे वाचताना देहभान हरपतं. हिमनगाच्या जन्माची कहाणी त्याचा जन्म रोमांचकारी अनुभव आहे. निसर्गमातेची ही किमयाचं! चिंचोळया समुद्रमार्गातून जाताना बसणारे हेलकावे, हिमनदी, उंच बर्फाचे कडे, शांत समुद्र, त्यात पडलेले पर्वताचे प्रतिबिंब, कयाकमधून हिमनदयांच्या पोकळयातून वल्हवणं यामुळे सर्वांच जवळून दर्शन होतं. इथे अनेक पथक संशोधनासाठी येतात. आपल्या भारताचंही पथक इथं आहे ही अभिमानाची बाब आहे. खरंच शुभ्र शिल्पांनी नटलेल्या या महासागराची, द्वीपकल्प ची सफर एकमेवाद्वितीय!

यातील पेरूची फोड तर फारच गोड पेरू  हा प्राचीन संस्कृतीचा, भव्यतेचा आणि अनोख्या सौंदर्याचा देश. शाकाहारी मंडळींना विदेशात फिरताना येणारा शाकाहाराचा अर्थ किती वेगळा भेटतो हे जाणवतं. बर्‍याचदा ब्रेड-बटरवरच गुजराण करावी लागते. तेथील सण, समारंभ, यात्रा, जत्रा, रंगबेरंगी पोषाखातील स्री-पुरूष, असे अनेक सोहळे पाहायला मिळतात.  अनेक भूमितीय आकृत्या, प्राणी, पक्ष्यांच्या आकृत्या, नाझका लाइन्सची चित्रं पाहून कोकणातील कातळशिल्प आठवतात.  ही कुणी व का काढली असतील हे वैज्ञानिकांनाही गूढच आहे. माचूपिचू हे प्रगत संस्कृतीची देखणी स्थानं. म्युझियम, सूर्योपासकांचं सूर्यमंदिर, दगडी बांधकामाच्या जुन्या भक्कम वास्तू असा सारा समृद्ध इतिहास कवेत घेऊन हे शहर वसलं आहे. खरंच हा दीर्घ लेख वाचावा- आनंद घ्यावा असाच आहे.

समुद्रज्वाला हा बिग आयलंडमधील जागृत ज्वालामुखी या लाव्हांचे वर्णन या लेखात आहे. 1983 पासून किलुआ ज्वालामुखी जागृत आहे. 2013 मधे त्याचा उद्रेक होऊन पाचशेएकर जमीन निर्माण झाली. आजही तो खदखदतोय. हे रौद्र रूप, गडद केसरी लाव्हा हे दृश्य खूपच विलोभनीय.  हा नेत्रदीपक, अनुपम निसर्गसोहळा डोळयांनी पाहताना खूप छान वाटते. या लव्हांचा कधी चर्र, कधी सापाच्या फुत्कारासारखा, तर कधी लाह्या फुटल्यासारखा आवाज असतो.

लेखिकेला मोहात टाकणारा फुलांचा बहर त्यांनी मनभरून वर्णन केलाय फूल खिले है गुलशन गुलशन!  या लेखात. बत्तीस हेक्टरचा प्रचंड मोठा परिसर, वेगवेगळया आकाराची रंग आणि गंध यांची उधळण करणारी असंख्य फुलं! खरंखुरं नंदनवन! एप्रिल आणि मे महिन्यात आठ लाख पर्यटक हजेरी लावून जातात. हाॅलंडची आन-बान-शान असलेला ट्युलिप हे हाॅलंडचं राष्ट्रीय पुष्प! या  बागेत फिरताना मनात मात्र एक गाणे सतत  रूंजी घालत होते…..’दूर तक निगाहमे हैं गुल खिले हुए’.

लाजवाब लिस्बन या लेखात लिस्बन या शहराचे वर्णन केले आहे. हे सात टेकड्यांवर वसलेले शहर आहे. सेंट जॉर्ज किल्ला उभा आहे. या किल्ल्यांचे अठरा बुरूज प्राचीन ऐश्वर्याची साक्ष देतात. तटबंदीवरून शहराचा मनोरम देखावा दिसतो.  गौरवशाली इतिहास, निसर्गसौंदर्य, स्वप्ननगरीतल्या राजवाड्यांचा तसेच भरभक्कम गडकिल्ल्यांचा आणि खवय्यांचा हा लिस्बन खरोखरच लाजवाब!

हाऊस ऑफ बांबूज या लेखात गोरिलाभेटीचा छान अनुभव मांडला आहे. हा मर्कटजातीतील अनोखा प्राणी,  याचे अस्तित्व पूर्व अफ्रिकेतील उत्तर रंवाडा, युगांडा व कांगो या तीन सीमा प्रदेशात आहे.   हा कुटुंबवत्सल प्राणी आहे. पण त्याच्या परिवाराच्या सुरक्षिततेला धोका आहे अशी शंका आली तर तो काहीही करू शकतो. त्याच्यासमोर शिंकायचे नाही, मनुष्याच्या शिंकेतू न त्याला जंतूसंसर्ग होण्याची शक्यता असते. घनदाट जंगल,  नयनमनोहर सरोवर आणि वन्यजीवांना मुक्त संचार करता यावा अशी अभयारण्यं, एक निसर्ग श्रीमंत देश! रवांडाच्या हस्तकलेचा एक वेगळाच बाज आहे.

आलो सिंहाच्या घरी या मसाई माराच्या जंगलसफारीवर लिहलेला लेख वाचताना लक्षात येत की, प्राणी दिसण्याची अनिश्चितता नेहमीच असते. प्राणी दिसले तरी शिकारीचा थरार दिसेल याचा नेम नाही. पण विविधतेनं नटलेलं जंगल पाहण्याचा, तेथील सुर्योदय-सूर्यास्त अनुभवण्याचा, तंबूत राहण्याचा आणि मसाई या अदिवासी जमातीची संस्कृती जवळून पाहण्याचा अनुभव आपल्या कक्षा रुंदावतो.

भव्य मंदिराच्या रंजक आख्यायिका या लेखात जपानमधील पर्यटनात मंदिराचा वाटा  मोठा आहे. तिथला परिसर, स्वच्छता, शांतता सारचं अलौकिक.  परंपरा जपणारे भाविक नवीन वर्षाच स्वागत सकाळी लवकर उठून मंदिरात जातात. खरंच  ‘उगवत्या सूर्याचा देश’  हे जपानचं नाव अगदी सार्थक आहे असे वाटते.

चीन देशाच्या रापुन्झेल ह्या लेखात लांब केसांच्या एका तरुणीच्या जर्मन परीकथेचा  उल्लेख येतो. पायापर्यंत लांब केसांच्या  असलेल्या ‘रेड याओ’ जमातीतील स्त्रीयांच्या  लांब केसाच्या मजेदार कथा आहेत.  केस हा स्त्रीयांचा आवडता श्रृंगार. तिथल्या केसांबद्दल काय रूढी आहेत याच्या गमतीदार कहाण्या वाचायला मिळतात.

प्रवास माणसाला,  आयुष्याला अनुभवसमृद्ध करतो. आपण गेलो नसलो तरी त्यांच वर्णन वाचून आपलं निसर्गाबद्दलचं आणि संस्कृतीच ज्ञान वाढतं. मेधाताईंच हे पुस्तक वाचकाला निखळ आनंद देईल अशा ऐवजाने भरलेले आहे.

सागरात हिमशिखरे हा अकरा देशांचा सफरनामा वाचत असताना खरोखरं सफर करून आल्यासारखं वाटंल!!

संवादिनी – सौ. माधुरी समाधान पोरे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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