हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 208 ☆ # “सुख और दुख…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सुख और दुख…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 209 ☆

☆ # “सुख और दुख…” # ☆

सुख और दुख की अलग ही माया है

इसे कोई समझ नहीं पाया है

कभी कुछ पल हंसाया

तो कभी कुछ पल रुलाया है

 

सुख कहां स्थाई रहता है

जल की धारा की तरह बहता है

फुहारों से सबको भिगोता  है

इसी भ्रम में व्यक्ति

जीवनभर सबकुछ सहता है

 

दुख का अलग ही मजा है

लगता है कि वह एक सजा है

पर वह जीने की कला सिखाता है

और हम परेशान बेवजां है

 

जीने के लिए दोनों जरूरी है

इनके बिना जिंदगी अधूरी है

दोनों साथ-साथ चलते हैं

इनमें बस क्षण भर की दूरी है

 

खुशी हो या गम जब बरसता है

हर चेहरे पर वह झलकता है

कभी मायूस होता है चेहरा

तो कभी फूलों सा महकाता है

 

मानव की कभी जीत तो कभी हार है

जीवन का बस यही सार है

सुख तो कुछ पल का साथी है

दुखों से भरा तो यह संसार है

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – पकड़े गए कृष्ण भगवान… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता पकड़े गए कृष्ण भगवान।)

☆ कविता – पकड़े गए कृष्ण भगवान… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

बनी यशोदा जिलाधीश,

 राधा पुलिस कप्तान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान,

*

एक ग्वालिन के घर जाकर,

माखन खाने लगे चुराकर,

जाग उठी वो चतुर सयानी,

पकड़ लिए हैं कान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

बीच कचहरी में ले जाकर,

मुलजिम पेश किया ले जाकर,

हाथ बंधे थे,आरोपी के,

अधरों पर मुस्कान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

जो जग के बंधन को खोले,

आज बंधा है,कुछ न बोले,

नजर झुका कर मां को देखे,

ममता का है ज्ञान

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

मैय्या मैं नहीं माखन खायो,

ग्वाल बाल बरबस लिपटायो,

मैं बालक हूं सीधा सादा,

ये सब हैं शैतान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

*

माता का भी दिल भर आया,

बंधन खोले,गले लगाया,

झर झर आंसू,बहे मात के,

लाल है मेरी जान,

पकड़े गए कृष्ण भगवान.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 278 ☆ कथा – पीढ़ियां ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम विचारणीय कथा – ‘पीढ़ियां‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 278 ☆

☆ कथा-कहानी ☆ पीढ़ियां

शंभुनाथ की सारी योजना मांजी और बाबूजी के हठ की वजह से अधर में लटकी है। लड़की वाले पढ़े-लिखे समझदार हैं। समझाने से मान गये। उतनी दूर तक लाव-लश्कर लेकर जाना सिर्फ पैसे का धुआं करना था। लड़की का फूफा इसी शहर में रहता है। उसी की मार्फत बात हुई थी। शंभुनाथ वरपक्ष को समझाने में सफल हो गये कि लड़की वाले चार छः रिश्तेदारों के साथ यहीं आ जाएं और सादगी से शादी संपन्न हो जाए। ज़्यादा तामझाम की ज़रूरत नहीं। दो-चार दिन में रिसेप्शन हो जाए, जिसमें दोनों पक्ष के लोग शामिल हो जाएं। इस तरह जो पैसा बचे, उसे लड़का-लड़की के खाते में जमा कर दिया जाए।

शंभुनाथ का तर्क था कि आजकल बारातों में तीन दिन बर्बाद करने की किसी को फुर्सत नहीं। आज आदमी घंटे घंटे के हिसाब से जीता है। इतना टाइम बर्बाद करना और कष्टदायक  यात्रा में उन्हें ले जाना रिश्तेदारों की प्रति ज़ुल्म है।

लेकिन मां और बाबूजी सहमत नहीं होते। उनकी नज़र में शादी-ब्याह समाज को जोड़ने का बहाना है। रिश्ते नये होते हैं, उन पर बैठी धूल छंटती है, उन्हें नया जीवन मिलता है। जिन रिश्तेदारों से मिलना दुष्कर होता है, उनसे इसी बहाने भेंट हो जाती है। एक रिश्तेदार आता है तो उसके माध्यम से दस और रिश्तेदारों की कुशलता की खबर मिल जाती है। कई बार गलतफहमियां दूर करने का मौका भी मिल जाता है। पहले लोग लंबे पत्र लिखकर हाल-चाल दे देते थे। अब टेलीफोन की वजह से जानकारी का छोटा सा छोर ही हाथ में आता है। जितनी मिलती है उससे दस गुना ज़्यादा जानने की ललक रह जाती है। ज़्यादा बात करो तो खर्च की बात सामने आ जाती है।

शंभुनाथ का तर्क उल्टा है। उनके हिसाब से अब रिश्तों में कोई दम नहीं रहा। रिश्ते सिर्फ ढोये जाते हैं। अब किसी को किसी के पास दो मिनट बैठने की फुर्सत नहीं है। कोई दुनिया से उठ जाए तो रिश्तेदार रस्म-अदायगी के लिए दो-चार घंटे को आते हैं, फिर घूम कर अपनी दुनिया में गुम हो जाते हैं।

बाबूजी के गले के नीचे यह तर्क नहीं उतरता। उनका कहना है कि दुनिया के लोग अगर एक दूसरे से कटते जा रहे हैं तो ज़रूरी नहीं है कि हम उसी रंग में रंग जाएं। समझदार आदमियों का फर्ज़ है कि जितना  बन सके दुनिया को बिगड़ने से रोकें।

उधर मांजी का तर्क विचित्र है। उनके कानों में चौबीस घंटे ढोलक की थाप और बैंड की धुनें घूमती हैं। शादी-ब्याह के मौके चार लोगों को जोड़ने और दिल का गुबार निकालने के मौके होते हैं। उनके हिसाब से सब रिश्तेदारों को चार-छ: दिन पहले इकट्ठा हो जाना चाहिए और चार-छः दिन बाद तक रुकना चाहिए। फिर जो बहुत नज़दीक के लोग हैं वे एकाध महीने रहकर सुख-दुख की बातें करें। पन्द्रह-बीस दिन तक घर में गीत गूंजें। युवा लड़के लड़कियों के जवान चेहरे देखने का सुख मिले और चिड़ियों की तरह सारे वक्त बच्चों की किलकारियां गूंजती रहें। युवाओं की बढ़ती लंबाई और वृद्धों के चेहरे की बढ़ती झुर्रियों का हिसाब- किताब हो।

मांजी की लिस्ट में कुछ ऐसी महिलाएं हैं जिनका आना हर उत्सव में अनिवार्य है, यद्यपि  शंभुनाथ के हिसाब से वे गैरज़रूरी हैं। इनमें सबसे ऊपर कानपुर वाली बुआ हैं जिनसे रिश्ता निकट का नहीं है लेकिन जो नाचने और गाने में माहिर हैं। उनके आने से सारे वक्त उत्सव का माहौल बना रहता है। दूसरी सुल्तानपुर वाली चाची हैं जो भंडार संभालने में अपना सानी नहीं रखतीं। एक और मिर्जापुर वाली दीदी हैं जो पाक-कला में  निपुण हैं।वे आ गयीं तो समझो खाने पीने की फिक्र ख़त्म। मांजी  की नज़र में इन सबको बुलाये बिना काम नहीं चलेगा। शंभुनाथ का कहना है कि अब शहर में पैसा फेंकने पर मिनटों में हर काम होता है, इसलिए रिश्तेदारी ज़्यादा पसारने का कोई अर्थ नहीं है। रिश्तेदार दो दिन के काम के लिए आएगा तो बीस दिन टिका रहेगा।

बाबूजी की लिस्ट में भी कुछ नाम हैं। एक नाम चांद सिंह का है जो साफा बांधने में एक्सपर्ट है। अब बिलासपुर में नौकरी करता है लेकिन उसे नहीं बुलाएंगे तो बुरा मान जाएगा। अब तक परिवार की हर शादी में उसे ज़रूर बुलाया जाता रहा है। एक  रामजीलाल हैं जो मेहमाननवाज़ी की कला में दक्ष हैं। टेढ़े से टेढ़े मेहमान को संभालना उनके लिए चुटकियों का काम है। शंभुनाथ बाबूजी के सुझावों को सुनकर बाल नोंचने लगते हैं।

मांजी के लिए नृत्य-गीत, शोर-शराबे, हंसी-ठहाकोंऔर और गहमा-गहमी के बिना शादी में रस नहीं आता। मेला न जुड़े तो शादी का मज़ा क्या? उनकी नज़र में शादी सिर्फ वर-वधू का निजी मामला नहीं है, वह एक सामाजिक कार्यक्रम है। वर-वधू के बहाने बहुत से लोगों को जुड़ने का अवसर मिलता है।

बाबूजी और मांजी बैठकर उन दिनों की याद करते हैं जब बारातें तीन-तीन दिन तक रूकती थीं और बारातों के आने से पूरे कस्बे में उत्सव का वातावरण बन जाता था। तब टेंट हाउस नहीं होते थे। दूसरे घरों से खाटें और बर्तन मांग लिये जाते थे और कस्बे के लोगों के सहयोग से सब काम निपट जाता था। अब दूसरे घरों से सामान मंगाने में हेठी मानी जाती है। अब लोग इस बात पर गर्व करने लगे हैं कि उन्हें किसी चीज़ के लिए दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता। बाबूजी कहते हैं कि समाज पर निर्भरता को पर-निर्भरता मान लेना सामाजिक विकृति का प्रमाण है।

मांजी और बाबूजी को समझाने में अपने को असफल पाकर शंभुनाथ ने अपने दोनों भाइयों को बुला लिया है।

पहले उन दोनों को समझा बुझाकर  तैयार किया, फिर तीनों भाई तैयारी के साथ पिता- माता के सामने पेश हुए। नयी तालीम और नयी तहज़ीब के लोगों के सशक्त, चतुर तर्क हैं जिनके सामने मांजी, बाबूजी कमज़ोर पड़ते जाते हैं। वैसे भी मां-बाप सन्तान से पराजित होते ही हैं। अन्त में मांजी और बाबूजी चुप्पी साध गये। मौनं सम्मति लक्षणं।

यह तय हो गया कि शादी बिना ज़्यादा टीम-टाम के होगी। सूचना सबको दी जाएगी। जो आ सके, आ जाए। सारा कार्यक्रम एक-दो दिन का होगा। उससे ज़्यादा ठहरने की किसी को ज़रूरत नहीं होगी। शंभुनाथ का छोटा बेटा तरुण इस चर्चा से उत्साहित होकर सुझाव दे डालता है— ‘जिसको न बुलाना हो उसको देर से कार्ड भेजो। आजकल यह खूब चलता है।’ उसके पापा और दोनों चाचा उसकी इस दुनियादारी पर खुश और गर्वित हो जाते हैं।

बाबूजी और मांजी अब चुप हैं। निर्णय की डोर उनके हाथों से खिसक कर बेटों के हाथ में चली गयी है। इस नयी व्यवस्था में कानपुर वाली बुआ, सुल्तानपुर वाली चाची, मिर्जापुर वाली दीदी, चांद सिंह और रामजीलाल के लिए जगह नहीं है। इन सब की जगह यंत्र-मानवों ने  ले ली है जो आते हैं, काम करते हैं और भुगतान लेकर ग़ायब हो जाते हैं।

बाबूजी चुप बैठे खिड़की से बाहर देखते हैं। उन्हें लगता है दुनिया तेज़ी से छोटी हो रही है। लगता है बहुत से चेहरे अब कभी देखने को नहीं मिलेंगे। उन्हें अचानक बेहद अकेलापन महसूस होने लगता है। माथे पर आये पसीने को पोंछते वे घबरा कर खड़े हो जाते हैं।

छोटा बेटा उन्हें अस्थिर देखकर पूछता है, ‘क्या हुआ बाबूजी? तबीयत खराब है क्या?’ बाबूजी संक्षिप्त उत्तर देते हैं, ‘हमारी तबीयत ठीक है बेटा, तुम अपनी फिक्र करो।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 279 – साक्षर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 279 ☆ साक्षर… ?

बालकनी से देख रहा हूँ कि सड़क पार खड़े,  हरी पत्तियों से लकदक  पेड़ पर कुछ पीली पत्तियाँ भी हैं। इस पीलेपन से हरे की आभा में उठाव आ गया है,  पेड़ की छवि में समग्रता का भाव आ गया है।

रंगसिद्धांत के अनुसार नीला और पीला मिलकर बनता है हरा..। वनस्पतिशास्त्र बताता है कि हरा रंग अमूनन युवा और युवतर पत्तियों का होता है। पकी हुई पत्तियों का रंग सामान्यत: पीला होता है। नवजात पत्तियों के हरेपन में पीले की मात्रा अधिक होती है।  

पीले और हरे से बना दृश्य मोहक है। परिवार में युवा और बुजुर्ग की रंगछटा भी इसी भूमिका की वाहक होती है। एक के बिना दूसरे की आभा फीकी पड़ने लगती है। अतीत के बिना वर्तमान शोभता नहीं और भविष्य तो होता ही नहीं। नवजात हरे में अधिक पीलापन बचपन और बुढ़ापा के बीच अनन्य सूत्र दर्शाता है। इस सूत्र पर अपनी कविता स्मरण हो आती है-

पुराने पत्तों पर नयी ओस उतरती है,

अतीत का चक्र वर्तमान में ढलता है,

सृष्टि यौवन का स्वागत करती है,

अनुभव की लाठी लिए बुढ़ापा साथ चलता है।

प्रकृति पग-पग पर जीवन के सूत्र पढ़ाती है। हम  देखते तो हैं पर बाँचते नहीं। जो प्रकृति के सूत्र  बाँच सका, विश्वास करना वही अपने समय का सबसे बड़ा साक्षर और साधक भी हुआ।

© संजय भारद्वाज 

अपराह्न 3:26 बजे, 12.9.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 बुधवार 26 फरवरी को श्री शिव महापुराण का पारायण कल सम्पन्न हुआ। अगले कुछ समय पटल पर छुट्टी रहेगी। जिन साधकों का पारायण पूरा नहीं हो सका है, उन्हें छुट्टी की अवधि में इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। 💥 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 225 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 225 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 225) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 225 ?

☆☆☆☆☆

लब तो खामोश रहेंगे…

ये वादा है मेरा  तुमसे…

अगर कह बैठी कुछ निगाहें…

तो  बस खफा मत होना…

☆☆

Lips shall always remain silent…

This is my promise to you …

Please don’t  get upset

If eyes just utter something…

☆☆☆☆☆

माना कि इश्क़

ज़बरदस्ती नहीं होता

मगर कमबख़्त

होता जबरदस्त है…

☆☆

Agreed  that  the  love

Never happens  by coercing

But then, this wretched thing

Happens to be awesome…

☆☆☆☆☆

जो ज़ाहिर हो जाए,

वो दर्द कैसा, और…

जो ख़ामोशी ना पढ़ पाए,

वो हमदर्द ही कैसा….

☆☆

What  kind of  pain is that,

That  gets  expressed, and

What kind of soul mate is that

Who cannot read the silence…

☆☆☆☆☆

और कोई नहीं है जो

मुझको तसल्ली देता हो,

बस तेरी यादें  ही हैं जो

दिल पर हाथ रख देती है…

☆☆

There is no one else who can 

Give me comforting solace,

It is just your memories that 

give consolation to the heart…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 224 – गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 224 ☆

☆ गीत – यार शिरीष! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

अब भी खड़े हुए एकाकी

रहे सोच क्यों साथ न बाकी?

तुमको भाते घर, माँ, बहिनें

हम चाहें मधुशाला-साकी।

तुम तुलसी को पूज रहे हो

सदा सुहागन निष्ठा पाले।

हम महुआ की मादकता के

हुए दीवाने ठर्रा ढाले।

चढ़े गिरीश

पर नहीं बिगड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

राजनीति तुमको बेगानी

लोकनीति ही लगी सयानी।

देश हितों के तुम रखवाले

दुश्मन पर निज भ्रकुटी तानी।  

हम अवसर को नहीं चूकते 

लोभ नीति के हम हैं गाहक।

चाट सकें इसलिए थूकते 

भोग नीति के चाहक-पालक।

जोड़ रहे

जो सपने बिछुड़े

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम जंगल में धूनि रमाते

हम नगरों में मौज मनाते।

तुम खेतों में मेहनत करते 

हम रिश्वत परदेश-छिपाते।

ताप-शीत-बारिश हँस झेली

जड़-जमीन तुम नहीं छोड़ते।

निज हित खातिर झोपड़ तो क्या

हम मन-मंदिर बेच-तोड़ते।

स्वार्थ पखेरू के

पर कतरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

*

तुम धनिया-गोबर के संगी

रीति-नीति हम हैं दोरंगी।

तुम मँहगाई से पीड़ित हो

हमें न प्याज-दाल की तंगी।  

अंकुर पल्लव पात फूल फल

औरों पर निर्मूल्य लुटाते।

काट रहे जो उठा कुल्हाड़ी

हाय! तरस उन पर तुम खाते। 

तुम सिकुड़े

हम फैले-पसरे।

यार शिरीष!

तुम नहीं सुधरे

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 मार्च से 9 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 मार्च से 9 मार्च 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

 साप्ताहिक राशिफल आपको एक सप्ताह में बरतने योग्य सावधानियों एवं लाभ के बारे में बताता है। जिससे आप सप्ताह को लाभदायक ढंग से व्यतीत कर सकें। इसी श्रृंखला में आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपको 3 मार्च से 9 मार्च 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा।

इस सप्ताह सूर्य और शनि कुंभ राशि में, मंगल मिथुन राशि में, बुध, वक्री शुक्र और बक्री राहु मीन राशि में और गुरु वृष राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का माता-पिता का और बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 11 में भाव में बैठे सूर्य के कारण थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। 11 में भाव का सूर्य और तीसरे भाव का मंगल आपके भाई बहनों के बीच में तनाव पैदा कर सकता है। आपको अपनी संतान का सहयोग प्राप्त हो सकता है कचहरी के कार्यों में बिल्कुल रिस्क ना लें। इस सप्ताह आपके लिए तीन चार और पांच की दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। वक्री शुक्र तथा वक्री राहु के कारण गलत रास्ते से धन आने का योग है। नीच भंग राजयोग बना रहा बुध आपके आपके व्यापार में लाभ दिलाएगा। कार्यालय में आपको थोड़ी बहुत परेशानी हो सकती है। आपको भी संतान से सहयोग प्राप्त होगा। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु उनके गर्दन और कमर में दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से 6 और 7 के दोपहर तक का समय विभिन्न कार्यों को करने के लिए उचित है। तीन, चार और पांच के दोपहर तक आपको सतर्क होकर के कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मंदिर पर जाकर बाहर बैठे हुए भिखारियों के बीच में चावल का दान करें और शुक्रवार को सफेद वस्त्र का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाग्य से आपको थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। वक्री शुक्र और नीच के बुध के कारण कार्यालय के कार्यों में आपको थोड़ी परेशानी आ सकती है। आपको अपने कार्यालय में सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। आपका स्वास्थ्य भी थोड़ा खराब हो सकता है। कृपया उसका ध्यान रखें। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 मार्च किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक हैं। 5, 6 और 7 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का दूध और जल से प्रतिदिन अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का माता जी और पिताजी का तथा आपके सन्तान का सभी का स्वास्थ्य ठीक रहने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके पास अल्प मात्रा में धन आएगा। कचहरी के कार्यों में सावधान रहें अन्यथा आपको नुकसान हो सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रु को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए तीन-चार और 5 तारीख के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए फल दायक है। 7 मार्च को दोपहर के बाद से तथा 8 और 9 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। गरदन या कमर में दर्द हो सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। इस सप्ताह आपको दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक है। आपको चाहिए कि आप अपने सभी पेंडिंग कार्यों को इस अवधि में करने का प्रयास करें। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य से मदद प्राप्त हो सकता है। अविवाहित जातकों के लिए विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। कार्यालय में भी आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 7 मार्च के दोपहर के बाद से लेकर 8 और 9 मार्च कार्यों को करने के लिए उचित है। तीन, चार और पांच मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परंतु आपकी संतान को थोड़ा कष्ट हो सकता है। भाग्य से इस सप्ताह आपको मदद नहीं मिलेगी। इस सप्ताह आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। व्यापारिक कार्यों में आपको सावधानी से कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए तीन चार और पांच मार्च के दोपहर तक का समय लाभदायक है। 5 के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की तीन माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवन साथी और माता जी के स्वास्थ्य में कुछ समस्या आ सकती है। इस सप्ताह आपको दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। संतान के सहयोग में कमी आएगी। बुध द्वारा बनाए जा रहे नीच भंग राजयोग के कारण संतान के व्यवसाय के उन्नति की संभावना है। इस सप्ताह आपके लिए 5 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 तारीख के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। बाकी समय आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माता जी और जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य से अच्छी रहेगी। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 8 और 9 मार्च कार्यों को करने के लिए उचित है। पांच के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 मार्च को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का, आपके माता-पिता जी का तथा संतान का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अल्प मात्रा में धन आने का योग है। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। आपका अपने भाई बहनों के साथ तनाव संभव है। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए तीन, चार और 5 मार्च के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए शुभ है। 7 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 8 और 9 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके चतुर्थ भाव में गजकेसरी योग बन रहा है। यह अत्यंत शुभ योग होता है। इसके कारण आपको प्रतिष्ठा आदि प्राप्त हो सकती है। आपको इस सप्ताह मानसिक कष्ट संभव है। व्यापार में थोड़ी परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग नहीं मिल पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 5 मार्च के दोपहर के बाद से लेकर 6 और 7 मार्च कार्यों को करने के लिए फलदायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

यह सप्ताह अविवाहित जातकों के लिए ठीक-ठाक है। उनके विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। व्यापार ठीक चलेगा। कचहरी के कार्यों में सतर्क रहें। कर्ज लेने से बचें। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 7 , 8 और 9 मार्च शुभ फलदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – अनकहा सा कुछ ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – अनकहा सा कुछ ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

-सुनो!

-कहो !

-मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ ।

-कहो न फिर !

-समझ नहीं आता कैसे कहूं, किन शब्दों में कहूं?

-अरे! तुम्हें भी सोचना पड़ेगा?

-हां ! कभी कभी हो जाता है ऐसा !

-कैसा ?

-दिल की बात कहना चाहता हूँ पर शब्द साथ नहीं देते !

-समझ गयी मैं !

-क्या.. क्या… समझ गयी तुम ?

-अरे रहने भी दो ! कब कहा जाता है सब कुछ !

-बताओ तो क्या समझी ?

-कुछ अनकहा ही रहने दो ।

-क्यों ?

-ऐसी बातें बिना कहे, दिल तक पहुंच जाती हैं !

-फिर तो क्या कहूं‌ ?

-अनकहा ही रहने दो !

-क्यों?

-तुमने कह दिया और दिल ने सुन लिया! अब जाओ !

-क्यों ?

-शर्म आ रही है बाबा! अब जाओ !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१५ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१५ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

विट्ठल मंदिर

हम्पी का विशाल फैलाव तुंगभद्रा के घेरदार आग़ोश और गोलाकार चट्टानों की पहाड़ियों की गोद में आकृष्ट करता है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष… आदि असंख्य स्मारक हैं। एक लाख की आबादी को समेटे बहुत खूबसूरत नगर नदी किनारे बसा था। एक दिन में सभी को देखना कहाँ संभव है। हम्पी में ऐसे अनेक आश्चर्य हैं, जैसे यहाँ के राजाओं को अनाज, सोने और रुपयों से तौला जाता था और उसे निर्धनों में बाँट दिया जाता था। रानियों के लिए बने स्नानागार, मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित थे।

हम्पी परिसर में विट्ठल मंदिर एक बहुत प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। विट्ठल मंदिर और बाजार परिसर तुंगभद्रा नदी के तट के पास विरुपाक्ष मंदिर के उत्तर-पूर्व में 3 किलोमीटर से थोड़ा अधिक  दूर है। यह हम्पी में सबसे कलात्मक रूप से परिष्कृत हिंदू मंदिर अवशेष विजयनगर के केंद्र का हिस्सा रहा है। यह स्पष्ट नहीं है कि मंदिर परिसर कब बनाया गया था, और इसे किसने बनवाया था। अधिकांश विद्वान इसका निर्माण काल 16वीं शताब्दी के आरंभ से मध्य तक बताते हैं। कुछ पुस्तकों में उल्लेख है कि इसका निर्माण देवराय द्वितीय के समय शुरू हुआ, जो कृष्णदेवराय, अच्युतराय और संभवतः सदाशिवराय के शासनकाल के दौरान जारी रहा। संभवतः 1565 में शहर के विनाश के कारण निर्माण  बंद हो गया। शिलालेखों में पुरुष और महिला के नाम शामिल हैं, जिससे पता चलता है कि परिसर का निर्माण कई प्रायोजकों द्वारा किया गया था।

यह मंदिर कृष्ण के एक रूप विट्ठल को समर्पित है, जिन्हें  विठोबा भी कहा जाता था। मंदिर पूर्व की ओर खुलता है, इसकी योजना चौकोर है और इसमें दो तरफ के गोपुरम के साथ एक प्रवेश गोपुरम है। मुख्य मंदिर एक पक्के प्रांगण और कई सहायक मंदिरों के बीच में स्थित है, जो सभी पूर्व की ओर संरेखित हैं। मंदिर 500 गुणा 300 फीट के प्रांगण में एक एकीकृत संरचना है जो स्तंभों की तिहरी पंक्ति से घिरा हुआ है। यह एक मंजिल की नीची संरचना है जिसकी औसत ऊंचाई 25 मीटर है। मंदिर में तीन अलग-अलग हिस्से हैं: एक गर्भगृह, एक अर्धमंडप और एक महामंडप या सभा मंडप है।

विट्ठल मंदिर के प्रांगण में पत्थर के रथ के रूप में एक गरुड़ मंदिर है; यह हम्पी का अक्सर चित्रित प्रतीक है। पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला-रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहियों से चलता था। इतिहासकार डॉ.एस.शेट्टर के अनुसार रथ के ऊपर एक टावर था। जिसे 1940 के दशक में हटा दिया गया था। पत्थर रथ भगवान विष्णु के आधिकारिक वाहन गरुड़ को समर्पित है। जिसकी फोटो 50 के नोट के पृष्ठ भाग पर अंकित है। पर्यटक 50 का नोट हाथ में रख दिखाते हुए फोटो ले रहे थे। हमारे साथियों ने भी सेल्फ़ी फोटो खींच मोबाइल में क़ैद कर लिए।

पत्थर के रथ के सामने एक बड़ा, चौकोर, खुले स्तंभ वाला, अक्षीय सभा मंडप या सामुदायिक हॉल है। मंडप में चार खंड हैं, जिनमें से दो मंदिर के गर्भगृह के साथ संरेखित हैं। मंडप में अलग-अलग व्यास, आकार, लंबाई और सतह की फिनिश के 56 नक्काशीदार पत्थर के बीम से जुड़े स्तंभ हैं जो टकराने पर संगीतमय ध्वनि उत्पन्न करते हैं। स्थानीय पारंपरिक मान्यता के अनुसार, इस हॉल का उपयोग संगीत और नृत्य के सार्वजनिक समारोहों के लिए किया जाता था। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है।

मंदिर परिसर के बाहर, इसके दक्षिण-पूर्व में, लगभग एक किलोमीटर (0.62 मील) लंबी एक स्तंभयुक्त बाज़ार सड़क है। सभी कतारबद्ध दुकान परिसर अब खंडहर हो चुके हैं। अब बिना छत वाले पत्थरों के खंभे खड़े हैं। उत्तर में एक बाज़ार और एक दक्षिणमुखी मंदिर है जिसमें रामायण-महाभारत के दृश्यों और वैष्णव संतों की नक्काशी है। उत्तरी सड़क हिंदू दार्शनिक रामानुज के सम्मान में एक मंदिर में समाप्त होती है।  विट्ठल मंदिर के आसपास के क्षेत्र को विट्ठलपुरा कहा जाता था। इसने एक वैष्णव मठ की मेजबानी की, जिसे अलवर परंपरा पर केंद्रित एक तीर्थस्थल के रूप में डिजाइन किया गया था। शिलालेखों के अनुसार यह शिल्प उत्पादन का भी केंद्र था।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #215 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – एक ही भगवान की संतान… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – एक ही भगवान की संतान। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 215 ☆

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – एक ही भगवान की संतान…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

सिक्ख पारसी ईसाई ज्यूँ हिन्दू या मुसलमान

हम सब हैं उसी एक ही भगवान की संतान

*

कहते जो धर्म अलग हैं वे सचमुच हैं ना समझ

कुदरत ने तो पैदा किये सब एक से इन्सान ।

*

सब चाहते हैं जिंदगी में सुख से रह सकें

सुख-दुख की बातें अपनों से हिलमिल के कह सकें

*

खुशियों को उनकी लग न पाये कोई बुरी नजर

इसके लिये ही करते हैं सब धर्म के विधान ।

*

सब धर्मों के आधार हैं आराधना विश्वास

स्थल भी कई एक ही हैं या हैं पास-पास

*

करते जहाँ चढ़ौतियाँ मनोतियाँ सब साथ

ऐसे भी हैं इस देश में ही सैकड़ों स्थान ।

*

मंदिर हो या दरगाह हो मढ़िया या हो या मजार

हर रोज दुआ माँगने जाते वहाँ हजार

*

संतो औ’ सूफियों की दर पै भेद नहीं कुछ

इन्सान कोई भी हो वे सब पे है मेहरबान ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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