हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 139 ☆ जन जागरूकता बढ़ती रहे… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “जन जागरूकता बढ़ती रहे…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 139 ☆

☆ जन जागरूकता बढ़ती रहे  ☆

न नुकुर करते पूरा समय बीतता जा रहा है किन्तु वे टस से मस न हुए, ऐसा किसी व्यक्ति के साथ नहीं बल्कि पूरी उस सामाजिक सोच  के साथ है, जो समय के साथ बदलना ही नहीं चाहती। बस एक जैसा जीवन व्यतीत करते हुए पूरी उम्र बीती जा रही है। जिन मुद्दों को स्वतंत्रता के पूर्व उठाया गया था वही आज भी चले आ रहे हैं। जनता नए विचारों को आत्मसात करती जा रही है, किन्तु कुछ दल आज भी वही पुराना घोषणा पत्र, वही घिसे पिटे तर्क। अब कौन उन्हें समझाए कि  आज हम लोग डिजिटल हो चुके हैं सब कुछ गूगल से सर्च करके ही प्रत्याशी का चयन करते हैं। विभिन्न दलों के प्रवक्ता अपने दलों के समर्थन में जो तर्क देते हैं उन्हें सत्यता की कसौटी में परख कर ही चयन करते हैं। पहले कहा जाता था कि नेता पाँच साल में एक बार मुँह दिखाते हैं किन्तु अब ऐसा नहीं रहा, आगामी चुनावों की तैयारी में पूरा शीर्ष नेतृत्व 24×7, 365 दिन लगा रहता है। अब सबको समझ में आ गया है कि एक- एक पल का हिसाब  जनता  रखती है।

सच्चे मायनों में यही श्रेष्ठ लोकतंत्र का लक्षण है। लोक का ध्यान रखने वाली सरकार ही चुनी जाएगी। लोगों के मन से भय चला जाए, वे निर्भीक होकर  अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकें। सबको समान मौलिक अधिकार मिलें, सभी शिक्षित हों।

अब हम लोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अपनी वैचारिक सोच को रख कर निर्णय लेने लगें हैं। वैसे भी सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुंबकम, तमसो मा ज्योतिर्गमय हमारी परंपरा का हिस्सा रहे हैं और रहेंगे भी। तो आइए सद्विचारों के पोषक बनें और सही निर्णय लेने की ओर सदैव अग्रसर रहें।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 199 ☆ व्यंग्य – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन — ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   व्यंग्य  – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 199 ☆  

? व्यंग्य – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन – ?

विश्व पुस्तक मेले का हाल नंबर 2 हिंदी प्रकाशकों के स्टॉल्स से भरा हुआ है। प्रत्येक प्रकाशक के पास कविता के बाद संभवतः व्यंग्य की ही सर्वाधिक पुस्तकें हों, संकलन या व्यक्तिगत किताबें खूब छप रही हैं। आई एस बी एन सहित और बिना इसके भी। अनेक ओहदों वाले जिनके पास समय ही नहीं, वे भी रातों रात बड़े लेखक बने दिखते हैं।

मेरे पास एक प्रकाशक का प्रस्ताव आया था की मैं कोई सौ पृष्ठ व्यंग्य भेज दूं और राशि ले लूं, घोस्ट राइटर के रूप में। अर्थात व्यंग्यकार के रूप में खुद को स्थापित करने की चाहत रखने वाले हैं, जो बडी राशि देकर घोस्ट राईटिंग खरीद रहे हैं।  ठीक हो सकता है कि ऐसा लेखन जो महज रुपयों या नाम हेतु हो साहित्य  की शास्त्रीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।

अन्यथा किसी भी विधा की लोकप्रियता उसे बढ़ाती ही है नुकसान नहीं पहुंचाती।

क्रिकेट का उदाहरण सर्वाधिक सरल है उसकी बढ़ती लोकप्रियता ने नए फार्मेट लाए, खिलाड़ियों को शोहरत और रुपए दिलवाए, किंतु क्रिकेट तो क्रिकेट ही है उसे नुकसान नहीं पहुंचा। टेस्ट मैच की शास्त्रीयता अपनी जगह है ही। इसी तरह साहित्य यदि मौलिक है तो जितना अधिक लिखा जाए, बेहतर ही  होगा।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 150 ☆ बाल कविता – गुड़िया रानी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 150 ☆

☆ बाल कविता – गुड़िया रानी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

गुड़िया रानी समझदार हैं

     भोली- भाली पर हैं छोटी।

 

बहुत देर में भोजन करतीं

      थोड़ा खातीं फल औ’ रोटी।।

 

स्वयं कभी ना भोजन खाएँ।

      बाबा, दादी उन्हें खिलाएँ।

 

जॉब करें मम्मी औ’ पापा।

     लेकिन जल्दी खोएँ आपा।।

 

अक्सर होती है तकरार।

     गुड़िया का दोनों से प्यार।।

 

गुड़िया माँ- पापा से बोली।

     बातों में मिसरी – सी घोली।।

 

नहीं सुहाए मुझको झगड़ा।

   मैं डर जाती जब हो तगड़ा।।

 

कोमल मन है मेरा समझो।

     खुशियों को बाँटों ना गम दो।।

 

 समझ गए गुड़िया की बात।

      कटें प्रेम से दिन औ’ रात।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #151 ☆ नरहरी दास…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 151 ☆ नरहरी दास…! ☆ श्री सुजित कदम

विश्व कर्मा ब्राह्मणात

जन्मा आले नरहरी

वंश परंपरा थोर

श्रद्धा भक्ती परोपरी..! १

 

कर्ते मुरारी अच्युत    

आणि कृष्णदास हरी

पणजोबा आजोबांची

कृपादृष्टी सर्वांवरी…..! २

 

सोनाराच्या व्ववसायी

पारंगत नरहरी

मुळ नाव महामुनी

शैव उपासना करी….! ३

 

संत नरहरी यांसी

जाहलासे साक्षात्कार

शिव विठ्ठल एकच

ईशकृपा चमत्कार….! ४

 

पांडुरंग परमात्मा

तोच शिव भगवान

नरहरी सोनारांस

प्राप्त झाले दिव्य ज्ञान. ५

 

शैव वैष्णवांचा  त्यांनी

दूर केला विसंवाद

अध्यात्मिक अभंगाने

नित्य साधला संवाद .. !  ६

 

शतकात  चौदाव्या त्या

शिवभक्ती आचरीली

संसारीक कार्य सिद्धी

सदाचारे स्विकारीली…! ७

 

उदावंत कुलातील 

शिवभक्त चराचरी

संकीर्तनी असे दंग

अहोरात्र नरहरी…! ८

 

असे कुशल सोनार        

 निर्मीतसे अलंकार

हरी आणि हर दोघे

परब्रम्ह अवतार….! ९

 

शिव पिंडीमध्ये पाही

विठ्ठलाचे निजरुप

वैष्णवांचा दास सांगे

हरीहर एकरुप…! १०

 

एका सोनसाखळीने

घडविला चमत्कार

पाही रूप नरहरी

शिव पांडुरंगा कार…! ११

 

समरसतेचा पंथ

नाही मनी कामक्रोध

केला प्रचार प्रसार

भक्ती मार्ग नितीबोध…! १२

 

केली प्रपंचात भक्ती

अक्षरांत विठू माया

अभंगात गुंफीयली

दैवी हरीहर छाया…! १३

 

ज्ञानयोगी कर्मयोगी

नऊ दशके प्रवास

सुवर्णाचे अलंकार

अनुभवी शब्द खास…! १४

 

माघ कृष्ण तृतीयेला

पुण्यतिथी महोत्सव

हरिऐक्य दिन जगी

सौख्य शांतीचा उत्सव…! १५

 

पंढरीत महाद्वारी

समाधिस्थ नरहरी

नोंद भक्ती भावनांची

अभंगात दिगंतरी…! १६

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #172 – होली पर्व विशेष – कहाँ आज प्रह्लाद… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता  “कहाँ आज प्रह्लाद…”)

☆  तन्मय साहित्य  #172 ☆

☆ होली पर्व विशेष – कहाँ आज प्रह्लाद… 

रंगभरी इस दुनियाँ  में

अनगिन बदरंगी चेहरे भी हैं

नहीं सुहाता अच्छा उनको

कानों से वे बहरे भी हैं।

 

नीला, हरा, गुलाबी, पीला,

नहीं रंग केशरिया भाए

खूनी रंगों से रिश्ते,

कब धवल रंग में ठहरे भी हैं।

 

कहाँ आज प्रह्लाद,

चतुर्दिश हैं हिरण्यकश्यप ही सारे

नरसिंहों के शौर्य पराक्रम,

पर शैतानी पहरे भी हैं।

 

अमराई की मोहक गंध

न है फगुनाहट अब फागुन में

प्रतिबंधित हैं छंद ,

गीत पर वार हुए वे गहरे भी हैं।

 

प्रेम-प्यार, सद्भाव प्रीत की रीत,

अतीत की बात पुरानी

सूख रही सरिताएँ तो

स्वाभाविक विचलित लहरें भी हैं।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 58 ☆ गीत – गीत तुम्हें याद आयेंगे… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत – “गीत तुम्हें याद आयेंगे ”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 58 ✒️

?  गीत – गीत तुम्हें याद आयेंगे … ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

तुम्हें याद आयेगी, होली पर हमारी

वो प्यार की पैगें, हमारी तुम्हारी।

 

बहेंगी फागुन की मुअत्तर  हवाएँ

आमों में बौर, महकती फिज़ायें 

तब आखों से बरसेंगी काई घटायें

न देगी चैन मन को अश्क बारी…

 

जंगल में टेसू के, दहकते अंगारे

सरसों के खेल, वो दिलकश नज़ारे

हँसेगी जब कोयल, खिलेंगी बहारें

निगाहों में हसरत, दमे बेकरारी…

 

तन्हाई में जब कसम खायेंगी बाहें

गुलाल से भरपूर होगी रंगीन राहें

होठों पे आयेगी, बेताब आहें

कभी मैं थी राधा तुम कृष्ण मुरारी…

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 172 ☆ होली पर्व विशेष – रंग… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 172 ?

💥 होली पर्व विशेष – रंग… 💥 सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

आजकाल रंग बोलतात माझ्याशी,

गुलाबाचा केशरी मला

खूप आवडतो

खुडताना तीच ती,

काट्याची गोष्ट सांगतो!

मोग-याला माळून होताच

गंधधुंद,

शुभ्र रंग सात्विकतेची

आठवण करून देतो !

प्रत्येक झाड नेहमीच

प्रेमाने साद घालते,

सावलीतली हिरवाई

खूप काही बोलत रहाते !

सृष्टीतील सप्तरंग,

चमकतात तनामनातून…

रंग पंचमी साजरी होतच असते

शब्दा शब्दातून!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 32 – भाग-4 – साद उत्तराखंडाची ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 32 – भाग-4 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ साद उत्तराखंडाची  ✈️

केदारनाथहून जोशीमठ या ( त्या वेळेच्या )रम्य ठिकाणी मुक्काम केला. इथे श्री लक्ष्मी नृसिंहाचे सुंदर देऊळ आहे. आम्हाला नेमका नृसिंह जयंतीच्या दिवशी दर्शनाचा लाभ झाला या योगायोगाचे  आश्चर्य वाटले व आनंद झाला. जोशीमठहून एक रस्ता व्हॅली ऑफ फ्लॉवर्सला जातो. गढवाल हिमालयातील ही विविध फुलांची जादूई दुनिया ऑगस्ट महिन्यात बघायला मिळते. लक्ष्मणप्रयाग किंवा गोविंदघाट या नावाने ओळखल्या जाणाऱ्या मार्गावरून गेलं की घांगरिया इथे मुक्काम करावा लागतो. नंतर खड्या चढणीचा रस्ता आहे. वाटेत पोपटी कुरणं आहेत. हिमधवल शिखरांच्या पार्श्वभूमीवर निळी, पिवळी, गुलाबी, जांभळी, पांढरी अशा असंख्य रंगांची, नाना आकारांची अगणित फुलं मुक्तपणे फुलत असतात. घांगरीयाहून हेमकुंड इथे जाता येते. इथे गुरुद्वारा आहे. मोठा तलाव आहे. आणि अनेकानेक  रंगांची, आकारांची फुले आहेत. लक्षावधी शिख यात्रेकरू व इतर अनेक हौशी साहसी प्रवासी, फोटोग्राफर ,निसर्गप्रेमी ,वनस्पती शास्त्रज्ञ या दोन्ही ठिकाणांना आवर्जून भेट देतात.

जोशीमठ इथून रुद्रप्रयागवरून बद्रीनाथचा रस्ता आहे. रुद्रप्रयागला धवलशुभ्र खळाळती अलकनंदा आणि संथ निळसर प्रवाहाची मंदाकिनी यांचा सुंदर संगम आहे. बद्रीनाथचा रस्ता डोंगर कडेने वळणे घेत जाणारा, दऱ्याखोऱ्यांचा आणि हिमशिखरांचाच आहे. आत्तापर्यंत अशा प्रवासाची डोळ्यांना, मनाला सवय झाली असली तरी बद्रीनाथचा प्रवास अवघड, छाती दडपून टाकणारा आहे. अलकनंदा नदीच्या काठावरील बद्रीनाथाचे म्हणजे श्रीविष्णूचे मंदिर जवळ जवळ अकरा हजार फुटांवर आहे. आदि शंकराचार्यांनी नवव्या शतकात या मंदिराची स्थापना केली असे  सांगितले जाते. धो धो वाहणाऱ्या अलकनंदेच्या प्रवाहाजवळच अतिशय गरम वाफाळलेल्या पाण्याचा स्रोत एका कुंडात पडत असतो. मंदिरात काळ्या पाषाणाची श्रीविष्णूंची सुबक मूर्ती आहे. तसेच कुबेर, गणेश, लक्ष्मी, नरनारायण अशा मूर्ती आहेत. मंदिराचे शिखर पॅगोडा पद्धतीचे आहे व ते सोन्याच्या पत्र्यांनी मढविलेले आहे. मूर्तीच्या दोन हातात शंखचक्र आहे व दोन हात जोडलेल्या स्थितीत आहेत. मूर्तीला सुवर्णाचा मुखवटा आहे. डोक्यावर रत्नजडित मुकुट आहे. या मंदिराचे एक वैशिष्ट्य म्हणजे हे मंदिर लाकडी असून दरवर्षी मे महिन्यात त्याला रंगरंगोटी करतात. नवव्या शतकात आदि शंकराचार्यांनी बांधलेल्या या मंदिराचे तेराव्या शतकात गढवालच्या महाराजांनी पुनर्निर्माण केले. या मंदिराच्या शिखरावरचे सोन्याचे पत्रे इंदूरच्या राणी अहिल्याबाई होळकर यांनी चढविले असे सांगितले जाते.

आम्ही पहाटे उठून लॉजवर आणून दिलेल्या बदलीभर वाफाळत्या पाण्याने स्नान करून मंदिराकडे निघालो. बाहेर कडाक्याची थंडी होती. थोडे अंतर चाललो आणि अवाक् होऊन उभे राहिलो. निरभ्र आकाशाचा घुमट असंख्य चांदण्यांनी झळाळत होता. पर्वतांचे कडे तपश्चर्या करणाऱ्या सनातन ऋषींसारखे भासत होते. त्यांच्या हिमशिखरांवरून चांदणे ओघळत होते. अवकाशाच्या गाभाऱ्यात असीम शांतता होती. नकळत हात जोडले गेले. डोळ्यातून पाणी वाहू लागले. आत्तापर्यंतच्या प्रवासाची दगदग,श्रम साऱ्याचे सार्थक झाल्यासारखे वाटले. मनात आलं की देव खरंच मंदिरात आहे की निसर्गाच्या या अनाघ्रात, अवर्णनीय, अद्भुत सौंदर्यामध्ये आहे?

मंदिरात गुरुजींनी हातावर लावलेल्या चंदनाचा गंध अंतर्यामी सुखावून गेला. शेषावर शयन करणाऱ्या, शांताकार आणि विश्वाचा आधार असणाऱ्या पद्मनाभ श्री विष्णूंना हात जोडताना असं वाटलं की,

           या अमूर्ताची संगत सोबत

          जीवनगाण्याला लाभू दे

          गंगाप्रवाहात उजळलेली श्रद्धेची ज्योत

          आमच्या मनात अखंड तेवू दे

हा आमचा प्रवास जवळजवळ वीस बावीस वर्षांपूर्वीचा! त्यानंतर दहा वर्षांनी हे व माझे एक मेहुणे पुन्हा चारधाम यात्रेला गेले. माझा योग नव्हता. परत आल्यावर यांचे पहिले वाक्य होते, ‘आपण जो चारधामचा पहिला प्रवास केला तोच तुझ्या डोळ्यापुढे ठेव. आता सारे फार बदलले आहे. बाजारू झाले आहे. प्लास्टिकचा भयानक कचरा, वाढती अस्वच्छता, कर्णकटू संगीत, व्हिडिओ फिल्म, वेड्यावाकड्या, कुठेही, कशाही उगवलेल्या इमारती यांनी हे सारे वैभव विद्रूप केले आहे’. त्यावेळी कल्पना आली नाही की ही तर साऱ्या विनाशाची नांदी आहे.

यानंतर दहा वर्षांनी म्हणजे २०१३ मध्ये केदारनाथला महाप्रलय झाला. झुळझुळणाऱ्या अवखळ मंदाकिनीने उग्ररूप धारण केले. हजारो माणसे मृत्युमुखी पडली. शेकडो माणसे, जनावरे वाहून गेली. नियमांना धुडकावून बांधलेल्या मोठमोठ्या इमारती पत्त्याच्या बंगल्याप्रमाणे कोसळल्या, जमीनदोस्त झाल्या. मंदाकिनीच्या प्रकोपात सोनप्रयाग, गौरीकुंड, रामबाडा इत्यादी अनेक ठिकाणांचे नामोनिशाण उरले नाही. अनेकांनी, विशेषतः लष्करातील जवानांनी प्राणांची बाजी लावून अनेकांना या महाप्रलयातून सुखरूप बाहेर काढले.

मंदाकिनी अशी का कोपली? या प्रश्नाच्या उत्तरासाठी स्वतःकडेच बोट दाखवावे लागेल. मानवाचा हव्यास संपत नाही. निसर्गाला ओरबाडणे थांबत नाही. शेकडो वर्षे उभे असलेले, जमिनीची धूप थांबविणारे ताठ वृक्ष निर्दयपणे तोडताना हात कचरत नाहीत .निसर्गनियमांना धाब्यावर बसून नदीकाठांवर इमारतींचे आक्रमण झाले. त्यात प्लास्टिकचा कचरा, कर्णकर्कश आवाज, अस्वच्छता यांची भर पडली. किती सोसावे निसर्गाने?

उत्तराखंडाला उत्तरांचल असंही म्हणतात. निसर्गाने आपल्याला बहाल केलेले हे अनमोल दैवी उत्तरीय आहे. या पदराने भारताचे परकीय आक्रमणांपासून संरक्षण केले आहे. तीव्र थंडीपासून बचाव केला आहे. नैसर्गिक साधनसंपत्तीचा खजिना आपल्याला बहाल केला आहे. उत्तरांचलचे प्राणपणाने संरक्षण करणे हे आपले उत्तरदायित्व आहे.

जलप्रलयानंतर असे वाचले होते की, एक प्रचंड मोठी शिळा गडगडत येऊन केदारनाथ मंदिराच्या पाठीशी अशी टेकून उभी राहिली की केदारनाथ मंदिराचा चिरासुद्धा हलला नाही. मंदिर आहे तिथेच तसेच आहे. फक्त तिथे आपल्याला पोहोचवणारी वाट, तो मार्ग हरवला आहे. नव्हे, नव्हे. आपल्या करंटेपणाने आपणच तो मार्ग हरवून बसलो आहोत .सर्वसाक्षी ‘तो’ म्हणतो आहे,’ तुम्हा मानवांच्या कल्याणासाठी ‘मी’ इथे जागा आहे. तुम्ही कधी जागृत होणार?

 – भाग ४ व उत्तराखंड समाप्त –

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ खरी धुळवड !… ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

☆ ? खरी धुळवड !… ? ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक 

नाते तुटले जन्माचे

साऱ्या खऱ्या रंगांशी,

डोळ्यांसमोर कायम

काळी पोकळी नकोशी !

काया दिली धडधाकट

पण नयनांपुढे अंधार,

समान सारे सप्तरंग

मनांत रंगवतो विचार !

तरी खेळतो धुळवड

चेहरा हसरा ठेवुनी,

दोष न देता नजरेला

लपवून आतले पाणी !

छायाचित्र – शिरीष कुलकर्णी, कुर्ला.

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

०७-०३-२०२३

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086

ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 72 – मनोज के दोहे – ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 72 – मनोज के दोहे – ☆

1 सुकुमार

लखन राम सुकुमार सिय, चले कौशलाधीश।

मात-पिता आशीष ले, बढ़े नवा कर शीश।।

2 राधिका

प्रेम राधिका का अमर, जग करता नित याद।

भक्त सभी जपते सदा, जब आता अवसाद।।

3 उपवास

तन-मन को निर्मल करे, जो करता उपवास।

रोग शोक व्यापे नहीं, जीवन भर मधुमास।।

4 लोचन

लोचन हैं राजीव के, श्याम वर्ण अभिराम।

द्वापर में फिर आ गए, अवतारी घन-श्याम।।

5 मिठास

वाणी सिक्त मिठास की, होती है अनमोल।

जीवन भर जो स्वाद ले, बोले मिश्री घोल।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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