मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 41 ☆ होळी पर्व विशेष – सज्ञान रंग ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “सज्ञान रंग ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 41 ☆

☆ होळी पर्व विशेष – सज्ञान रंग ☆

रंग पर्व होळीच्या सर्वांना हार्दिक शुभेच्छा ! 

 

होळीत राग रुसवे जावे जळून काही

उजळो प्रकाश आता येथे दिशांस दाही

 

रंगात कोरड्या मी भिजणार आज नाही

रंगात ओल ज्या ते गालास लाव दोन्ही

 

ठेवीन हात धरुनी हातात मीच क्षणभर

तो स्पर्श मग स्मृतींचा राहो सदैव देही

 

छळतील डाग काही सोसेल मी तयांना

हे रंग जीवनाचे नुसते नको प्रवाही

 

ते रंग कालचे तर बालीश फार होते

सज्ञान रंग झाला सज्ञान आज मीही

 

जातीत वाटलेले आहेत रंग जे जे

ते रंग टाळण्याची मज पाहिजेल ग्वाही

 

ते पावसात भिजले आकाश सप्तरंगी

त्यातील रंग मजवर उधळून टाक तूही

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – ☆ होळी पर्व विशेष – होळी रे होळी ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी  होळी पर्व  पर विशेष रचना “होळी रे होळी ”। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ होळी पर्व विशेष – होळी रे होळी ☆ 

 

गोमातेच्या शेण्यांची होळी

हो रचिली !

कुविचारांची तृणपाने

त्यातचि टाकिली !

नराधमांच्या दुष्कृत्यांचे

ढीग त्यात फेकले !

भारतभर पेटली अशी ही

धगधगती होळी !

त्या आगीत मस्म झाली हो

‘करोना ‘ ची ‘खेळी ‘! !१!!

 

होलिकामातेने केले

विकारांचे सेवन !

लोभ मोह मद मत्सर

षड्रिपु गेले जळून !

त्या अग्नीत ‘  करोना ‘ चे

झाले हो ज्वलन !

 

गोघृत कर्पूराने झाले शुद्ध

वातावरण !

बालगोपालांनी केली

सप्तरंगांची उधळण !

 

आसमंतात पसरले

सृजनाचे नाविन्य !

 

फुलले निसर्गात अभिनव

चैतन्य !!२!!

 

” धूलिवंदन ” दिनाच्या

सर्वांना मनापासून

शुभेच्छा !!”

 

©️®️ उर्मिला इंगळे

सतारा

दिनांक :-१०-२-२०

 

!! श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 40 – बाईपण ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “बाईपण।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 40 ☆

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – बाईपण ☆

सर्व महिलांना जगतिक महिला दिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा ! 

 

छान बाईपण माझे

नाही वाटत गं ओझे

सखा निर्मळ मनाचा

त्याला म्हणते मी राजे

 

दिली आईने शिदोरी

आले दुसऱ्या मी घरी

माता तिथेही भेटली

नाव असे सासू जरी

 

बीज पेरणारा धनी

जमीन मी त्याची ऋणी

दीप एक लावलेला

आम्ही दोघांनी मिळोनी

 

आज कन्या रत्न झाले

मन भरुनीया आले

झाले मीही उतराई

भाग्य मला हे लाभले

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆ ती स्त्री ☆ सौ. सुजाता काळे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष मराठी कविता  “ती स्त्री”।)

 ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – ती स्त्री ☆

ती राधा
ती माता
ती द्रौपदी
ती सीता।
ती ममता
ती भार्या
ती वसुधा
ती तनया।
ती रणरागिणी
ती रणचंडिका
ती भगिनी
ती बालिका।
ती अर्थ कामिनी
ती अर्ध नारीश्वर
ती वसंत पंचमी
ती मोक्ष गामिनी।
ती सृष्टी
ती सृजन
ती स्त्री
ती स्वपण

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

[email protected]

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष ☆ थांबव हा बाजार. . . . ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आधारित आपकी एक भावप्रवण कविता थांबव हा बाजार. . . . ! )

 ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – थांबव हा बाजार. . . . ! ☆

माता महती थोर तरीही

दर्जा दुय्यम का नारीला ?

समानतेचा पोकळ डंका

झळा आगीच्या स्री जातीला. . . . !

 

नाना क्षेत्री दिसते नारी

कुटुंब जपते जपते नाती

तरी अजूनी फुटे बांगडी

पणती साठी जळती वाती. . . . . !

 

साहित्य,कला,नी उद्यम जगती

नारीशक्ती सलाम तुजला

तरी  अजूनी आहे बुरखा

नारी जातीला म्हणती अबला. . . . !

 

आई, बाई, ताई, माई हाका केवळ

अजून वेशीवरती दिसते वेडी शालन

जातीपातीच्या अजून बेड्या पायी तुझीया

स्त्री मुक्तीचा स्वार्थी जागर की रामायण.

 

न्यायदेवता रूप नारीचे दृष्टिहीन का

भारतमाता प्रतिक शक्तीचे आभासी का

घरची लक्ष्मी अजून लंकेची पार्वती बनते

अजून पुरूषा बाई केवळ शोभा वाटे का?

 

रोज रकाने भरून वाहती होई अत्याचार

मुक्तीचा या  स्वैर चालतो घरीदारी बाजार

जाग माणसा माणूस होऊन नारी शक्ती नरा

स्त्री मुक्तीचा गाजावाजा थांबव हा बाजार.

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 38 – वाचन संस्कृती ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  मात्र विद्यार्थियों के लिए ही नहीं अपितु उनके पालकों के लिए भी आपकी एक अतिसुन्दर कविता   “वाचन संस्कृती”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 38 ☆ 

 ☆ वाचन संस्कृती 

 

वाचन संस्कृती । बाणा नित्य नेमे । आचरावी प्रेमे । जीवनात ।1।

 

संपन्न जीवना । ज्ञान एक धन । सुसंस्कृत मन । वाचनाने ।2।

 

शब्दांचे भांडार । समृद्धी अपार । चढतसे धार । बुद्धीलागी ।3।

 

मधुमक्षी परी । वेचा ज्ञान बिंदू । जीवनाचा सिंधू । होई पार ।4।

 

अज्ञान अंधारी । लावा ज्ञान ज्योती । वाचन संस्कृती । तरणोपाय ।5।

 

ज्ञानाची संपत्ती । लूटू वारेमाप । चातुर्य अमाप । गवसेल ।6।

 

वाचा आणि वाचा । ध्यानी ठेवा मंत्र । व्यासंगाचे तंत्र । फलदायी ।7।

 

जपा जिवापाड । वाचन संस्कृती । नुरेल विकृती । जीवनात ।8।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

 

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 1 – स्वप्नपाकळ्या ☆ ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है होली के अवसर पर उनकी कविता “होळीचा रंग “.) 

(दिनांक २३-०२-२०२०ला राज्यस्तरीय साहित्य व संस्कृती महोत्सव २०२०चे कवि कट्टा मंचाचे अध्यक्ष पद स्विकारतांना , कविंना प्रमाणपत्र व सन्मानचिन्ह प्रदान करतांना श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 1 ☆

☆ कविता – होळीचा रंग  ☆ 

रंग खेळू, रंग उधळू, उधळू गुलाल

रंगात रंगू या, निळ्या पिवळ्या लाल ।।

 

काही रंग ओले, काही सुकलेले रंग

जीवनाच्या अंतरंगी, वेगळे  तरंग

माणुसकीचे काही, काही चवचाल।।

रंगात रंगू या…….

 

होळीच्या निमित्ताने, खरे खरे बोलू

रंगलेल्या चेह-याची, आज पोल खोलू

मानू नका वाईट, ही होळीची धमाल।।

रंगात रंगू या…….

 

मित्रांनो धुता येईल, तन रंगलेले

कसे धुता येईल हो, मन मळलेले

होळीच्या गुलालात, आहे ही कमाल ।।

रंगात रंगू या…..

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 25 ☆ माझा कृष्ण ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी एक अभंग रचना  “माझा कृष्ण”उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 25 ☆

☆ माझा कृष्ण ☆ 

(काव्य प्रकार:-अभंग )

कृष्ण माझी माता

कृष्ण माझा पिता

कृष्णची कविता

होय माझी!!१!!

 

यशोदेचा नंद

वाढे गोकुळात

उचली पर्वत

गोवर्धन !!२!!

 

कृष्ण नटखट

सोन्यासम कान्ती

ईश्र्वराची शक्ती

त्याच्या अंगी !!३!!

 

मुरली हातात

कधी तो धरितो

लोणीही तो खातो

पेंद्यासंगे !!४!!

 

गुरे राखायाला

जाईं मित्रांसवे

सोडा हेवेदावे

हेचि सांगे !!५!!

 

एकत्र बसोनी

सोडूनि शिदोरी

खातसे दुपारी

कृष्ण काला !!६!!

 

द्रौपदी बहीण

कृष्णाने मानिली

अब्रू राखियेली

तिची त्याने !!७!!

 

संत कवी यांना

प्रेरणा कृष्णाची

दाविली भक्तीची

वाट त्यांना !!८!!

 

सांगे कृष्णदेव

आम्हा सामान्यांस

ठेवा हो विश्र्वास

माझ्यावरी !!९!!

 

सांगे आम्हा कृष्ण

नका मानू जात

गरीब श्रीमंत

असे काही !!१०!!

 

©®उर्मिला इंगळे

सतारा

!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ संत गाडगे महाराज जयंती विशेष ☆ देवदूत ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है संत गाडगे महाराज  की जयंती के अवसर पर आधारित आपकी एक भावप्रवण कविता देवदूत )

 ☆  देवदूत ☆

(फेब्रुवारी २३, १८७६ – २० डिसेंबर इ.स. १९५६)

चिंध्या पांघरोनी बाबा

धरी मस्तकी गाडगे

डेबुजी या बालकाने

दिले स्वच्छतेचे धडे. . . . !

 

विदर्भात कोते गावी

जन्मा आली ही विभूती.

हाती खराटा घेऊन

स्वच्छ केली रे विकृती. . . !

 

वसा लोकजागृतीचा

केला समाज साक्षर

श्रमदान करूनीया

केला ज्ञानाचा जागर.

 

झाडूनीया माणसाला

स्वच्छ केले  अंतर्मन.

धर्मशाळा गावोगावी

दिले तन, मन, धन. . . . !

 

देहश्रम पराकाष्ठा

समतेची दिली जोड

संत अभंगाने केली

बोली माणसाची गोड.. . !

 

धर्म, वर्ण, नाही भेद

सदा साधला संवाद

घरी दारी, मनोमनी

गोपालाचा केला नाद. . . !

 

स्वतः कष्ट करूनीया

सोपी केली पायवाट

संत गाडगे बाबांचा

वर्णीयेला कर्मघाट .. . . !

 

असा देवदूत जनी

मन ठेवतो निर्मळ

त्यांच्या आठवात आहे

प्रबोधन परीमल.. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 36 – आठवण ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक भावप्रवण  एवं संवेदनशील  कविता “आठवण ”। अक्सर जीवन के भागदौड़ में  कई बार हम किसी  कथन के पीछे छिपे एहसास को समझ नहीं पाते । किन्तु, यह कविता पढ़ कर आप निश्चित ही विचार करेंगे, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है ।) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #36☆ 

☆ आठवण ☆ 

माझी माय मला नेहमी

म्हणते की..

तू ना तुझ्या बा सारखाच दिसतोस

तोंड नाक डोळे सगळ कस …

बा सारखंच..,

बोलणं सुध्दा

मला प्रश्न पडतो…

मी खरच बा सारखा दिसतो

का मायेला बा ची आठवण येते..,

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

Please share your Post !

Shares