हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – सावन ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सावन पर अप्रतिम दोहे। )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – सावन  ✍

 

सावन की ऋतु आ गई ,आंखों में परदेश।

मन का वैसा हाल है, जैसे बिखरे केश।।

 

सावन आया गांव में, भूला घर की गैल।

इच्छा विधवा हो गई ,आंखें हुई रखैल।।

 

महक महक मेहंदी कहे ,मत पालो संत्रास ।

अहम समर्पित तो करो, प्रिय पद करो निवास।।

 

सावन में सन्यास लें, औचक उठा विचार ।

पर मेहंदी महक गई ,संयम के सब द्वार।।

 

सावन के संदेश का, ग्रहण करें यह अर्थ ।

गंध हीन जीवन अगर, वह जीवन  है व्यर्थ ।।

 

जलन भरे से दिवस हैं ,उमस भरी है रात ।

अंजुरी भर सावन लिए ,आ जाए बरसात ।।

 

मेहंदी, राखी ,आलता, संजो रहा त्यौहार।

सावन की संदूक में, महमह करता प्यार।।

 

डॉ राजकुमार सुमित्र

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

मो 9300121702

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 10 – चेहरे के समाज से  ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “चेहरे के समाज से”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 10 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ चेहरे के समाज से  ☆

 

चित्र :: आमुख

 

बिखर गईं मुस्काने

होंठों की दराज से

माँगा जिनको सबने

चेहरे के समाज से

 

चित्र :: एक

 

मौसम डरा -डरा सा

बाहर को झाँका है,

मौका परदे के विचार

से भी बाँका है

 

चुपके पूछ रहा-

कपड़े क्या सस्ते हैं कुछ?

“तो खरीद लूँगा मैं”

कस्बे के बजाज से

 

चित्र :: दो

 

पेड़ों के पत्तों में

हलचल बढ़ने  वाली

शाख -शाख पर फैली

केसर उड़ने वाली

 

फैल रही खुशबू अब

चारों ओर सुहानी

हवा लुटाती है अपनापन

इस लिहाज से

 

चित्र :: तीन

 

वहीं ज्योति सी प्रखर

धूप की बेटी के मुख

अंग -अंग पर, छाया

रंग से बदल गया रुख

 

दोनों हाथों से घर में

वह सगुन स्वरूपा

डाल रही सगनौती है

छत पर अनाज से

 

© राघवेन्द्र तिवारी

27-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-16 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ-16

 

उच्चरित शब्द

अभिदा है,

शब्द की

सीमाएँ हैं

संज्ञाएँ हैं

आशंकाएँ हैं,

चुप्पी

व्यंजना है,

चुप्पी की

दृष्टि है

सृष्टि है

संभावनाएँ हैं!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 10:44 बजे, 2.9.18

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 

 

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी का साहित्य # 51 – ये मेरी धरती माँ ☆ ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है आपकी प्रथम हिंदी रचना   ” ये मेरी धरती माँ ”। आपका इस अभिनव प्रयास के लिए अभिनन्दन ।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी का साहित्य # 51 ☆

☆ ये मेरी धरती माँ ☆

 

ये मेरी धरती माँ सबसे पावन है।

सितारा दुनियाँ का सबको मनभावन है।।धृ।।

 

चरण रज माँ तेरी जलधि नित धोता है।

उन्नत माथे पे हिमालय रहता है।

नदियों  की धाराओं से हर गली उपवन है।।१।।

 

घनेरे जंगल ये घटाये लाते हैं।

सुनहरे झरने तो तराने गाते हैं।

खेत खलिहानो में मचलता सावन है।।२।।

 

मर्यादा पुरुषोत्तम कही रघुनंदन है।

नटखट राधा के देवकीनंदन है।

रुप इन दोनों के सभी घर आंगण है।।३।।

 

वेद उपनिषदों  की अमृत गाथा है

कुरान और धम्मदीप सबको मन भाता है।

सहिष्णु भूमि  के चरणों में वंदन है।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #5 ☆  सावन का मौसम ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक रचना  “ सावन का मौसम”।  कुछ अधूरी कहानियां  कल्पनालोक में ही अच्छी लगती हैं। संभवतः इसे ही फेंटसी  कहते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #5 ☆ 

☆  सावन का मौसम ☆ 

ये सावन का मौसम

ये ठंडी-ठंडी हवायें

चलो आज हम तुम

कहीं दूर घूम आयें

ये गुपचुप का ठेला

ये लोगों का मेला

ये गरमागरम चाट

खायें, एक दूसरे को खिलायें

गार्डन में देखो बच्चों की टोली

ऊधम मचाती बिंदास बोली

कूद कूदकर खेलें हैं होली

छींटो  से खुदको कोई कैसे बचायें

ये दिलकश नज़ारा

ये जल की बहती धारा

ये बिखरी हुई बूंदें

ये धुंध  में लिपटा किनारा

ये दृश्य तो आंखों से

दिल में उतर जायें

हरी भरी वसुंधरा

प्रणय गीत गायें

अंबर के मेघों को

मिलने बुलायें

प्रकृति का ये खेल देखो

दौड़कर घिर आई

काली घटाएं

चलो रिमझिम फुहारों में

हम तुम भी भींगें

हृदय पटल पर

प्रेम गीत लिखें

भीगा – भीगा  तन-मन हों

भीगी  हों सांसें

ऐसे सावन को भला

कोई कैसे भूल पाएं ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – सस्वर दोहे ☆ डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के दोहे ☆ स्वरांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय

डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर  डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी ने चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त साहित्यिक सेवाओं में विशिष्ट योगदान दिया है। अब तक आपकी नौ काव्य  कृतियां  प्रकाशित हो चुकी हैं एवं तीन  प्रकाशनाधीन हैं। चिकित्सा एवं साहित्य के क्षेत्र में कई विशिष्ट पदों पर सुशोभित तथा  शताधिक पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी  से हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए उनके साहित्य की अपेक्षा करते हैं। अग्रज श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के  दोहों का स्वरांकन प्रेषित किया है, जिसे हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं।

☆ डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के दोहे ☆  

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  
सागर, मध्यप्रदेश से ख्यातिलब्ध वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी का चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त कवि एवं गीतकार के रूप में हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान है। हमारे अनुरोध पर डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी ने अपने दोहे ई – अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा करने का सुअवसर हमें दिया है।
आप परम आदरणीय डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के दोहे उनके चित्र अथवा यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं।

आपसे अनुरोध है कि आप यह कालजयी रचना सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें। ई- अभिव्यक्ति इस प्रकार के नवीन प्रयोगों को क्रियान्वित करने हेतु कटिबद्ध है।

 

© डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

“श्री रघु गंगा” सदन,  जिया माँ पुरम फेस 2,  मेडिकल कालेज रोड सागर (म. प्र.)470002

मोबाईल:  9425635686,  8319605362

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 16 ☆ समय न उगता खेत में  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी रचना समय न उगता खेत में  )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 16 ☆ 

☆ समय न उगता खेत में  ☆ 

 

समय न उगता खेत में

समय न बिके बजार

कद्र न जिनको समय की

वही हुए लाचार

 

नाथ समय के नमन लें

दें मुझको वरदान

असमय करूँ न काम मैं

बनूँ नहीं अनजान

खाली हाथ न फिरे जो

याचक आए द्वार

 

सीमित घड़ियाँ करी हैं

हर प्राणी के नाम

उसने जो सकता बना

सबके बिगड़े काम

सौ सुनार पर रहा है

भारी एक लुहार

 

श्वास खेत में बोइए

कर्म फसल बिन देर

ईश्वर के दरबार में

हो न कभी अंधेर

सौदा करिए नगद पर

रखिए नहीं उधार

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

११-३-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 15 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 15/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 15 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

कर्ज़ होता तो

उतार  भी देते

कमबख्त इश्क़ था

बस चढ़ा ही रहा…!

 

 If it was a loan

Would’ve paid it off

But this wretched love

Just kept piling up…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 चुपचाप चल रहे थे

ज़िन्दगी के सफ़र में

तुम पर नज़र क्या पड़ी

बस गुमराह हो गये…

 

Was walking quietly

In the journey of life

Just a glance at you 

Misguided me forever…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

हुस्न के कसीदे तो 

पढ़ती रहेंगी महफिलें

अगर झुर्रियाँ भी लगें 

हसीं तो समझो इश्क़ है…

 

Citations for the beauty 

Congregations will keep writing…

If wrinkles still find you smitten

Then it’s undying love for sure…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

कोई रूठे अगर तुमसे तो

उसे फौरन मना लो क्योंकि

जिद्द की जंग में अक्सर

जुदाई  जीत जाती  है…

 

If someone is upset with you

Conciliate with him immediately

Coz in the war of stubborness

Often separation only wins…! 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – सावन ☆ डॉ नीलम खरे

डॉ नीलम खरे

(ई-अभिव्यक्ति में डॉ नीलम खरे जी का हार्दिक स्वागत है। पूर्व सहायक प्राध्यापक। हिन्दी साहित्य की गद्य एवं पद्य विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर। तीन पुस्तकें प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक पत्र पत्रिकाओं में चार हजार से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। दूरदर्शन/राष्ट्रीय/स्थानीय टी वी चेनल्स/आकाशवाणी से रचनाओं का नियमित प्रकाशन। कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत। कई सामाजिक/सांस्कृतिक/साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक गीत – “सावन”.)

☆ गीत  – सावन  ☆

बरखा, बादल, बिजली, पानी, पावस के आयाम ।

शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।

कभी रूठ जाते हैं बादल,

कभी झड़ी लग जाती

सावन में तो बरखा रानी,

नित नव ढंग दिखाती

पर्व-तीज, त्यौहार अनेकों, सब ही हैं अभिराम।

शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।

मोर नाचता है कानन में,

भीतर भी इक मोर

मिलन-विरह के मारे सब ही,

भीतर पलता चोर

गरज रहे घन, चपल दामिनी, कौन करे आराम ।

शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।

बचपन के लम्हों में खोई,

राह देखती बाबुल की,

हर नारी को पीहर भाता,

यादें आतीं पल-पल की

 

रक्षाबंधन पर्व सुहाना, लगता तीरथधाम ।

शीतल-मंद समीर, फुहारें, सब सावन के नाम ।।

© डॉ.नीलम खरे

संपर्क  – व्दारा- प्रो.शरद नारायण खरे, आज़ाद वार्ड- चौक, मंडला,मप्र-  481661 मोबाइल-9425484382

ईमेल  – [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ इक कदम और बढ़ाएँ ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी  मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। एच आर में कई प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त एच. आर.  प्रोफेशनल लीडर ऑफ द ईयर-2017 से सम्मानित । आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं  में  भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह  “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है।  आज प्रस्तुत है उनकी एक सार्थक एवं प्रेरक कविता  – इक कदम और बढ़ाएँ )

? इक कदम और बढ़ाएँ ?

चल उठ इक कदम और बढ़ाएँ,

नए सवेरे फिर से ढूंढ़ लाएँ,

बीत गयी जो वो बात पुरानी,

अब नये आयाम संजोएँ,

रह गयी जो योजनाएँ अधूरी,

उनको फिर नये सिरे से पिरोएँ,

अफ़सोस है जो वक़्त हो गया ज़ाँया,

मिली सीख से क्यों ना दर्द की सी लाएँ,

वक़्त जो अपनों के साथ है गुज़ारा,

क्यूँ ना उसको अनमोल धरोहर बनाएँ,

साथ रहकर भी बाहर जाने की इच्छा,

इस तृष्णा की वास्तविकता ज़रा टटोली जाए,

जो महत्वत्ता पता चली है जीवन की,

उसको जीवन भर का आधार क्यूँ ना बनाएँ,

जीवन में किस की है असल जरुरत,

उसका आंकलन फिर से किया जाएँ,

वक़्त होकर भी वक़्त को कोसना,

असली उद्देश्य को फिर से जाँचा  जाएँ,

मन तो है चंचल तितली की तरह,

स्थिर मन से नए दृष्टिकोण समझे जाएँ,

वक़्त है नए सिरे से प्रारम्भ करने का,

अबकी बार त्रुटिरहित संसार संजोया जाएँ,

कर लो खुद से इक वादा आज,

कि नयी भोर को उमंगो से भरा जाएँ,

चल उठ इक कदम और बढ़ाएँ,

नए सवेरे फिर से ढूंढ़ लाएँ.

 

© सुश्री दीपिका गहलोत  “मुस्कान ”  

पुणे, महाराष्ट्र

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