हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सिद्ध प्रमेय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सिद्ध प्रमेय ☆

 

बेहाल वृत्त खीझता है

कभी केंद्रबिंदु पर,

त्रिज्या पर कभी,

कुढ़ जाता है, थककर

स्थितियों के गोलार्ध में

धम्म से धँस जाता है,

केंद्रबिंदु और त्रिज्या

दृष्टि झुकाए

चुपचाप पी लेते हैं

वृत्त का पूरा रोष,

नि:शब्द सह लेते हैं

सारा आक्रोश,

लज्जित वृत्त

त्रिज्या के सहारे

फिर साधता है संवाद

केंद्रबिंदु से..,

सच्चाई जानते हैं, सो

थोड़ा बनने,

थोड़ा ठनने और

कुछ ऐंठने के बाद

तीनों ठठाकर

हँसने लगते हैं,

यकायक वे

बाप, बेटी

और माँ में

बदलने लगते हैं!

 

©  संजय भारद्वाज 

14 अगस्त 2020, रात्रि 3:25 बजे।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 38 ☆ कविता – क्यों  तुम्हें आजमाऊँ ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर सजल  क्यों  तुम्हें आजमाऊँ। श्रीमती कृष्णा जी की लेखनी को  इस अतिसुन्दर रचना के लिए  नमन ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 38 ☆

☆ सजल – क्यों  तुम्हें आजमाऊँ ☆

 

शान से उस पर जाऊँ

माँग सेंन्दुर से सजाऊँ

 

 

जी लिया भरपूर  जीवन

इस जहां से  जब जाऊँ

 

कांधे  तेरे हो सवार

मैं  खुशी से इतराऊँ

 

सातों जन्मों का बंधन

इस जन्म  पूरा कर जाऊँ

 

है सारी खुशीआज तक

कल को फिर क्यों  सजाऊँ

 

हे राघव  ! विनती मेरी

क्यों  तुम्हें आजमाऊँ

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 9 – जिंदगी अचानक अनजान हो गयी ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जिंदगी अचानक अनजान हो गयी

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 9 – जिंदगी अचानक अनजान हो गयी 

 

जिंदगी आज अचानक अनजान सी हो गयी,

कल तक मेरी परछाई जो मेरे साथ थी,

ना जाने क्यों आज वह भी अब परायी लगने लगी ||

 

हर कोई आज यहां उदास दिख रहा है,

कल तक सब के चेहरो पर खुशियां झलक रही थी,

ना जाने क्यों आज रंगत सबके चेहरों की उड़ने लगी ||

 

कल जो मैंने आज के लिए सुनहरे सपने बुने थे,

आज आते ही वे सब ना जाने कहां गुम हो गए,

ना जाने क्यों जिसे चाहा वहीं चीज जिंदगी से दूर हो गयी ||

 

सुकून भरी जिंदगी जीने की एक ख्वाहिश थी,

ना जाने ख्वाहिश को किसकी  नजर लगी,

ना जाने क्यों चंद खुशियां जमा थी वे भी मुझसे दूर हो गयी ||

 

आज से अच्छा तो कल था जहां में बच्चा था,

चारों और हंसी-ख़ुशी और अपनेपन का आलम था,

ना जाने क्यों बचपन छिन जिंदगी खुद एक पहेली हो गयी||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 46 ☆ आंधी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “आंधी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 46 ☆

☆ आंधी ☆

 

जब पता होता है ना

कि हम सही पथ पर हैं

और सच्चाई हमारी साथी है,

तो ज़हन के भीतर

एक आंधी सी चलने लगती है

जो हर अंग को जोश और उत्साह से

रंगीन गुब्बारे की तरह भर देती है,

खोल देती है सारे दरवाज़े

जो वक़्त ने बंद कर दिए होते हैं,

लॉक डाउन कर देती है

सभी नकारात्मक विचारों का

और दिमाग के सारे तालों की

चाबी ढूँढ़ लाती है!

 

‘गर तुम्हें अपने पर

पूरा भरोसा है

तो चल जाने दो आंधी,

बिना किसी डर के और भय के!

पहले बड़ी उथल-पुथल होगी,

पर फिर धीरे-धीरे

जैसे-जैसे आंधी थमेगी

सब हो जाएगा साफ़!

 

हो सकता है

तब तुम झूलने लगो

धनक के सात रंगों के झूलों पर!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 59 – डोल रही है सारी धरती ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  एक  अतिसुन्दर एवं सार्थक कविता  “डोल रही है सारी धरती ।  एक विचारणीय कविता। इस सार्थक कविता के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 59 ☆

☆ डोल रही है सारी धरती

 

आज यशोदा के कान्हा को

फिर से बहुत पुकारा है

डोल रही है सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा है

 

मचा हुआ जीवन कोलाहल

छलकता विष का प्याला है

धू-धू करती आग उगलती

हर रिश्तो में ज्वाला है

 

डोल रहीं हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा हैं

 

झर-झर बहते अश्रु धार

नैनो के बीच समाया है

थिरक थिरक मधुमास लिए

गुलशन बना मधुशाला है

 

डोल रहीं हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा हैं

 

कौन श्रृंगार करे दर्पण से

हर चेहरा मुखौटा है

जीवन में उन्माद समाया

सांझ यौवन नशीला है

 

डोल रही हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा है

 

न दिया की बाती कोई

अब ना भेंट भलाई है

बना हुआ कैसा उलझन

शोर मचाती तरुणाई है

 

डोल रही हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा हैं

 

कटुता समाए मन में

दिखाता छल छलावा है

लगाए बातों की मक्खन

पीठ में खंजर चुभाता है

 

डोल रही है सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा है

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे। )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

 

दोहों के दरबार में, हाजिर दोहा कार ।

सिंधु समाता सीप में, दोनों में संसार दोहा ।।

 

दोहा, दूहा, दोहरा, संबोधन के नाम।

वामन काया में छिपा, याद रंग अभिराम ।।

 

खुसरो ने दोहे कहे, कहे कबीर कमाल ।

फिर तुलसी ने खोल दी, दोहों की टकसाल।।

 

गंग, वृंद, दादू वली, या रहीम मतिराम ।।

दोहों के रस लीन से, कितने हुए इमाम ।।

 

दोहे हम भी रच रहे, कविवर हुए अनेक।

किंतु बिहारी की छटा, घटा न पाया एक।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 11 – ओ सुहागिन झील ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “ओ सुहागिन झील”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 11 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ ओ सुहागिन झील  ☆

 

लक्ष्य को संधान करते

देखता है नील

धनुष की डोरी चढ़ाते

काँपता है भील

 

कथन :: एक

 

बस अँगूठा, तर्जनी की

पकड़ का यह संतुलन भर

आदमी की हिंस्र लोलुप

वृत्ति का उपयुक्त स्वर

 

या प्रतीक्षित परीक्षण का

मौन यह उपक्रम अनूठा

या कदाचित अनुभवों

की पुस्तिका अश्लील

 

कथन :: दो

 

पुण्य पापों की समीक्षा

के लिये उद्यत व्यवस्था

याक जंगल के नियम को

जाँचने कोई अवस्था

 

या प्रमाणों में कहीं

बचता बचाता झूठ कोई

दी गई जिसको यहाँ पर

फिर सुरक्षित ढील

 

कथन:: तीन

 

गहन हैं निश्चित यहाँ की

राजपोषित सब प्रथायें

फिर कहाँवन के प्रवर्तित

रूप पर कर लें सभायें

 

पैरव फैलाये थके हैं

सभी पाखी अकारण ही

जाँच लेतू भी स्वयं को

ओ! सुहागिन झील

 

© राघवेन्द्र तिवारी

27-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 16 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 16/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 16 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

क्या करेगा रौशन उसे आफ़ताब बेचारा

लबरेज़ हो जो खुद अपने ही रूहानी नूर से

जब चाँद ही हो आफ़ताब से ज़्यादा नूरानी 

तो उसे क्या ताल्लुक़ात अंधेरे या उजाले से

 

How can poor sun illumine him 

Who is self-effulgent with spiritual light

When moon itself is brighter than sun

Then what’s its concern with darkness or light

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

गुफ़्तुगू करे हैं अक्सर

उंगलियां ही अब तो..

ज़बां तरसती है

कुछ कहने के लिए..

 

Fingers only chat 

these days now ..

The tongue  longs

To say something…

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

तेरी बात को यूँही…

 खामोशी से मान लेना

 ये भी एक अंदाज़ है,

मेरी  नाराज़गी  का…

 

Just simply accepting

your  words  quietly…

Is  also  my  way  of

expressing resentment…

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

रूबरू  होने   की  तो  छोड़िये,

गुफ़्तगू से  भी  क़तराने  लगे हैं,

ग़ुरूर ओढ़ते  हैं  रिश्ते  अब तो,

हैसियत पर अपनी इतराने लगे हैं…

 

Leave apart being face to face,

They’ve begun  to avoid talking,

Relations are so conceited now,

Proudly unmask their haughtiness

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अटल स्मृति विशेष – चलते चलते ☆ सुश्री स्वप्ना अमृतकर

सुश्री स्वप्ना अमृतकर 

(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं।  आप कविता की विभिन्न विधाओं में  दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज प्रस्तुत है पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करती हुई उनकी एक कविता “ चलते  चलते ”। )

चलते चलते  ☆ 

कर्तव्य पथ पर

चलते चलते,

यादों का बसेरा

संभालते संभालते,

जिंदगी की कश्ती

सँवारते सँवारते,

किनारों से दोस्ती

निभाते निभाते,

आपकी कविताऐं

पढ़ते पढ़ते,

आपको दिल मे

बसाये बसाये,

बढ रहें है हम

हँसते हँसते,

कर्तव्य पथ पर

चलते चलते….

© स्वप्ना अमृतकर , पुणे

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ व्यंग्य – परिवर्तन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए।  आज प्रस्तुत है एक प्रासंगिक व्यंग्य कविता   “परिवर्तन”।  ) 

☆  व्यंग्य कविता – परिवर्तन ☆ 

 

स्वाधीनता के पावन पर्व पर

अपनी संपन्नता पर गर्व कर

कुर्ता धारी नेता ने

कार में बैठते हुए

शान से अपनी

गर्दन ऐंठते हुए

कार चालक से कहा-

क्यों भाई ?

हमने इस देश को

कितना आगे बढ़ाया है

गरीबों का जीवन स्तर

कितना ऊपर उठाया है

अपना खून पानी की

तरह बहाकर

इस देश में,

कितना परिवर्तन लाया है

कार चालक ने

अल्प बुद्धि से

कुछ सोचते हुए

फटी कमीज़ से माथे का

पसीना पोंछते हुए कहा-

नेताजी,हम तो बस

इसी सत्य को मानते हैं

हम तो बस

इसी परिवर्तन को जानते है

कि-

आज से साठ साल पहले

आप के पूज्यनीय पिताजी

आज ही के दिन

तिरंगा झंडा फहराया

करते थे

और हमारे पिताजी

उन्हें वहां पहुंचाया करते थे

और आज साठ साल बाद

आप झंडा फहराने जा रहें है

और हम आपको

वहां तक पहुंचा रहे हैं

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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