हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 107 ☆ # गरीबी की रेखा … # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#गरीबी की रेखा…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 107 ☆

☆ # गरीबी की रेखा… # ☆ 

एक पत्रकार ने

गरीबी रेखा से नीचे

रहने वाले व्यक्ति से पूछा,

आप लोगों की तो

मौज ही मौज है

होली या दिवाली रोज है

वो गरीब व्यक्ति

उसका मुंह ताकने लगा

उसकी आंखों में झांकने लगा

और पूछा कैसे ?

पत्रकार बोला ऐसे –

आपको मुफ्त में –

चावल

दाल

चना

तेल

शक्कर (गुड़)

सहायता राशि

मिल रही है

इसलिए आप की शक्ल

पके हुए टमाटर की तरह

लाल-लाल सी खिल रही है

सरकार जबरदस्ती

चिल्ला-चिल्ला कर

गरीबी की रेखा को पीट रही हैं

असलियत में तो

गरीबी कब से मिट गई है

 

वो गरीब व्यक्ति

हतप्रभ होकर

पत्रकार से बोला –

साहेब कभी हमारी

गरीब बस्ती मे आइए

साथ में कैमरा भी लाइए

देखिए हम कैसा

कीड़ों सा नारकीय जीवन जीते हैं

कितना गन्दा पानी पीते हैं

कहने को ऊपर छत

नीचे गंदी नाली है

यह जिंदगी तो

लगती एक गाली है

असाध्य बीमारियों ने

यहां डाला डेरा है

क्या इससे पहले कभी आपने

लगाया यहाँ फेरा है?

आप हम गरीबों का

मज़ाक मत उड़ाइए

कल जरा अपने चैनल पर

इस स्टोरी को प्राइम टाइम में दिखाइए

गर आप में दम है तो

कल के अखबार की

हेडलाइन बनाइए

उसके बाद जीवन संघर्ष के लिए

आप तैयार हो जाइए

हमारे जख्मों को कुरेदकर

हरा मत कीजिए

धीरे धीरे भर रहे है

इन्हें भरने दीजिए

साहेब,

हम गरीब लोग

इसकी शिकायत

किसी से नहीं करते हैं

गरीबी में जन्म लेते हैं

गरीबी में जीते हैं और

गरीबी में मरते हैं  /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 118 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 118 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 118) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 118 ?

☆☆☆☆☆

मुस्कुराहट तक भी हमारी

तुम पढ़ नहीं पाए…

और हम तुम्हारे अश्कों की

भी ख़बर रखते हैं…!

☆☆

You could not even

read my smile, and…

Here I am, keeping a track

of your tears, too..!

☆☆☆☆☆ 

 कुछ रिश्ते किराए के

मकान की तरह होते हैं

कितना भी सजा लो,

कभी अपने नहीं होते हैं…!

☆☆

Some relationships are like

rented house, no matter…

How much you decorate them,

they never become yours…!

☆☆☆☆☆ 

छुआ था मुद्दतों पहले

तुम्हारी साँस ने इक दिन,

एहसास तेरी छुअन का

रूह में आज तलक है क़ायम …

☆☆

A long time ago, one day, your

Breath had touched me once,

Feeling of your fragrant touch

is still alive in the soul…!

☆☆☆☆☆

 अगर तुम नींद में मुस्कुराओगी

तो फरिश्तों को रश्क होगा,

वे तलाशी लेंगे तुम्हारे सपनों की

और पकड़ा जाऊंगा मैं…!

☆☆

If you smile in the sleep

the angels will be envious,

They will check your dreams

And, I will get caught…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 118 ☆ भजन – “प्रभु हैं तेरे पास में…२…” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भजन – “प्रभु हैं तेरे पास में…”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 118 ☆ 

☆ भजन – प्रभु हैं तेरे पास में…२ ☆

*

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

निराकार काया में स्थित,

हो कायस्थ कहाते हैं.

रख नाना आकार दिखाते,

झलक तुरत छिप जाते हैं..

प्रभु दर्शन बिन मन हो उन्मन,

प्रभु दर्शन कर परम शांत मन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

कोई न अपना सभी पराये,

कोई न गैर सभी अपने हैं.

धूप-छाँव, जागरण-निद्रा,

दिवस-निशा प्रभु के नपने हैं..

पंचतत्व प्रभु माटी-कंचन,

कर मद-मोह-गर्व का भंजन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

नभ पर्वत भू सलिल लहर प्रभु,

पवन अग्नि रवि शशि तारे हैं.

कोई न प्रभु का, हर जन प्रभु का,

जो आये द्वारे तारे हैं..

नेह नर्मदा में कर मज्जन,

प्रभु-अर्पण करदे निज जीवन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #167 – 53 – “सारी रात गुज़ार देते बातों में ही…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “सारी रात गुज़ार देते बातों में ही…”)

? ग़ज़ल # 53 – “सारी रात गुज़ार देते बातों में ही…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जो दोस्त करते नहीं सगा करते,

सगे दोस्त कभी नहीं दगा करते।

मिल गए तो सँभाल कर रखिए,

दोस्त पेड़ों पर नहीं लगा करते।

आँसुओं से सींचना पड़ता इन्हें,

दोस्त खेत में नहीं ऊगा करते।

हमेशा साथ रहते वक़्ते मुसीबत,

छोड़ कर तुम्हें नहीं भगा करते।

सारी रात गुज़ार देते बातों में ही,

कोई इस तरह नहीं जगा करते।

दोस्ती को धर्म की तरह निभाओ,

आस्था में रस यूँ नहीं पगा करते।

दोस्त भी इश्क़ की नाईं है आतिश,

मन हर किसी से नहीं लगा करते।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 44 ☆ मुक्तक ।।हर दिन इक़ नया संग्राम है यह जिन्दगी।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।हर दिन इक़ नया  संग्राम है यह जिन्दगी।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 44 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।हर दिन इक़ नया  संग्राम है यह जिन्दगी।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

बस सुख और   आराम ,नहीं है जिंदगी।

ना होना दुख का निशान, नहीं है जिंदगी।।

संघर्षों से दाम वसूलती, वह  जिंदगी है।

गमों पर  लगे   विराम,  नहीं है जिंदगी।।

[2]

ऐशो आराम  तामझाम,  नहीं है  जिंदगी।

बस खुशियों का ही पैगाम,नहीं है जिंदगी।।

कभी खुशी कभी  गम,   का ही नाम यह।

कोशिशों से पाना मुकाम ,है यह   जिंदगी।।

[3]

हर सुख का मिला जाम, नहीं है जिंदगी।

बस  यूँ ही गुमनाम,    नहीं  है जिंदगी।।

संघर्ष अग्नि पर ,तपकर बनता है सोना।

अपने स्वार्थ से ही,काम नहीं है जिंदगी।।

[4]

सुख दुःख का छाया, घाम है यह जिंदगी।

हरदिन इक़ नया संग्राम,है यह   जिंदगी।।

अपने लिए नहीं दूजों के,लिये जीना यहाँ।

सरोकारों के  चारों  धाम, है यह जिंदगी।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – है और था ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻

अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी  

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  है और था ??

वर्तमान इक रोज़

अतीत हो जाएगा,

अतीत रूप बदल कर

इक रोज़ लौट आएगा,

बहुरूपिया समय

नाना स्वांग रचता है,

‘है’ और ‘था’ बन कर

मनुष्य को ठगता है. !

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 4:05 बजे, 22.5.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 109 ☆ ग़ज़ल – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #110 ☆  ग़ज़ल  – “हैरान हो रहे हैं सब देखने वाले हैं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सच आज की दुनियॉं के अन्दाज निराले हैं

हैरान हो रहे है सब देखने वाले हैं।

 

धोखा, दगा, रिश्वत  का यों बढ़ गया चलन है

देखों जहॉं भी दिखते बस घपले-घोटाले हैं।

 

पद ज्ञान प्रतिष्ठा ने तज दी सभी मर्यादा

धन कमाने के सबने नये ढंग निकाले हैं।

 

शोहरत औ’ दिखावों की यों होड़ लग गई है

नज़रों में सबकी, होटल, पब, सुरा के प्याले हैं।

 

महिलायें तंग ओछे कपड़े पहिन के खुश है

आँखें  झुका लेते वे जो देखने वाले हैं।

 

शालीनता सदा से श्रृंगार थी नारी की

उसके नयी फैशन ने दीवाले निकाले हैं।

 

व्यवहार में बेइमानी का रंग चढ़ा ऐसा

रहे मन के साफ थोड़े, मन के अधिक काले हैं।

 

अच्छे-भलों का सहसा चलना बड़ा मुश्किल है

हर राह भीड़ बेढ़ब, बढ़े पॉंव में छाले हैं।

 

जो हो रहा उससे तो न जाने क्या हो जाता

पर पुण्य पुराने हैं, जो सबको सम्हाले हैं।

 

आतंकवाद नाहक जग को सता रहा है

कहीं आग की लपटें, कहीं खून के नाले है।

 

हर दिन ये सारी दुनियॉं हिचकोले खा रही है

पर सब ’विदग्ध’ डरकर ईश्वर के हवाले हैं।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘नामकरण’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Naming…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~नामकरण~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – नामकरण ??

हार्ट अटैक…, ब्रेन डेड..,

मृत्यु के

नये-नये नाम गढ़ रहे हम…

सोचता हूँ,

संवेदनशून्यता को

मृत्यु कब घोषित करेंगे हम ?

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Naming ~ ??

Heart attack…, brain dead..,

We’ve been crafting

new names for the death…

I wonder

When will we declare

insensitivity as death…!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चमत्कार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीर्ष साधना कल सम्पन्न हो गई है🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  चमत्कार ??

कल जो बीत गया,

उसका पछतावा व्यर्थ,

संप्रति जो रीत रहा

उसे दो कोई अर्थ,

 

बीज में उर्वरापन

वटवृक्ष प्रस्फुटित करने का,

हर क्षण में अवसर,

चमत्कार उद्घाटित करने का,

 

सौ चोटों के बाद एक वार

प्रस्तर को खंडित कर देता है,

अनवरत प्रयासों से उपजा

एक चमत्कार कायापलट कर देता है,

 

संभावनाओं के बीजों को

कृषक हाथों की प्रतीक्षा निर्निमेष है,

चमत्कारों के अगणित अवसर

सुनो मनुज, अब भी शेष हैं..!

 

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 5:43 बजे 21 जून 2021)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #159 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से \प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 160 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

मोहन राधा से कहे,क्यों बैठी हो मौन।

सोच में किसके डूबती ,बतला दो है कौन।।

🌹

प्यारे तेरे केश हैं,  प्यारे तेरे बोल।

मन मोहन की राधिका,तू तो है अनमोल।।

❤️

मोहन तुझको देखकर, कटते है दिन रात।

तुझ बिन ब्रज सूना लगे, कौन करे अब बात।।

🌹

मोर मुकुट धारण करें, न्यारी छबि के लाल।

तुझे निहारु दरपण से,राधा के गोपाल।।

❤️

सुंदर छबि है आपकी, मन – मोहन का राग।

ओ प्यारे ओ साँवरे, राधा का अनुराग।।

🌹

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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