मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 44 – आज्ञाताच्या हाका☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  इस सदी के लिया आह्वान  “आज्ञाताच्या हाका  ।  हमारे समवयस्कों का सारा जीवन निकल गया और आज हम एक ऐसे दोराहे पर खड़े हैं  जो हमें अनजान राहों पर ले जाते हैं।  अक्सर तीसरी अदृश्य राह  भी है जो हमें दिखाई नहीं पड़ती जो हमें  अनजान और जोखिम भरी राह  पर ले जाती है। ऐसे क्षणों में हम जीवन के बीते हुए अनमोल क्षणों की स्मृतियों में खो जाते हैं और भविष्य दिखाई ही नहीं देता। आज की परिस्थितियों में सुश्री प्रभा जी ने मुझे निःशब्द कर दिया है । यदि आप कुछ टिपण्णी कर सकते हैं तो आपका स्वागत है। इस भावप्रवण अप्रतिम  रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 44☆

☆ आज्ञाताच्या हाका ☆ 

  या जगण्याला

आता कोणती आस?

हे वैश्विक विघ्न टळावे,

हाच एक ध्यास!

☆ आज्ञाताच्या हाका ☆ 

(एक मुक्त चिंतन )

 आयुष्य अवघे आता नजरेसमोर येते,

बालपण, किशोरावस्था, तारुण्य,

मनी घमघमते,

 

सूरपारंब्या, विटी दांडू, लगोरी ,सागरगोटे,

मनसोक्त खेळ…. ते हुंदडणे…

सारेच हृदयी दाटे…

 

ते दिवस छानसे होते,

शाळेची हिरवी वाट…

ती रम्य सख्यांची साथ….

दाटते धुके घनदाट

 

काॅलेज एक काहूर

काळजात कशी हूरहूर

उमटली दिनांची त्या ही

जगण्यावरी एक मोहर

 

संसार तसाही झाला,

जशी जगरहाटी असते…

प्राक्तनात होते ते ते ,घडले….

अन तोल असेही सावरले.

 

या जगण्यात रमले खूप

वय या वळणावर आले …..

मन उगाच गहिवरले…

बदलले रंग अन रूप….

 

अतर्क्य, अनाकलनीय आहे

इथला हा भव्य पसारा…

जाहले पुरे हे इतुके,

सारेच भरभरून येथे वाहे….

 

हे असेच राहिल येथे…

धरित्री, आकाश, हवा अन पाणी …

या आज्ञाताच्या हाका….पडतात आताशा कानी

 

मी खुप साजरे केले

जगण्याचे सौख्य सोहळे

कोणत्या दिशेला  आता..

आयुष्य – सांज मावळे…..

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆ कोरोना, नकोच तुझे सरकार ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक समसामायिक भावप्रवण कविता  “कोरोना, नकोच तुझे सरकार।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆

☆ कोरोना, नकोच तुझे सरकार☆

(अजब तुझे सरकार या गीताची समछंदी रचना)

 

कोरोना, नकोच तुझे सरकार

शतकामध्ये कधी न पाहिला, हा असला आजार

 

भेटीतून हा पसरे जगभर, चला ठेवुया थोडे अंतर

दुसरे नाही औषाध यावर, हाच एक उपचार

 

प्रत्येकाला मिळे कोठडी, महल असो वा असो झोपडी

प्राण्यांहूनही माणूस झाला, आज इथे लाचार

 

रस्त्यांवरचे दृष्य वेगळे, रस्ते सारे इथे मोकळे

प्रदूषण आणि अपघाताने, नाही कुणी मरणार

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – कविता ☆ सलोखा ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को  उनके साप्ताहिक स्तम्भ रंजना जी यांचे साहित्य के अंतर्गत पढ़ सकते हैं । आज  प्रस्तुत है  आपकी  एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता ” सलोखा”।)

☆ सलोखा ☆

अगणित जाती धर्म

देश संपन्न  अनोखा।

घडी सत्वपरीक्षेची

परि जपतो सलोखा।

 

जगी तांडव मृत्यूचे।

मती खुंटली जगाची।

पुत्र चाणाक्ष निर्धारी

पाठीराखे शतकोटी।

 

अभावात दावी प्रभा

स्वयंसिद्ध वैद्यराज।

फास रोखती मृत्यूचे

थक्क होई यमराज।

 

व्रत निस्पृह सेवेचे

असे परीचारिकेचे।

सेवा सुश्रृषा करून

बंध बांधी एकतेचे।

 

खाक्या खाकीचा दावितो

अहर्निश सेवादारी ।

दीन दुःखीतांचे अश्रू

पुसतसे शस्त्रधारी।

 

असा अनोखा सलोखा

उभ्या जगी ना मिळेल ।

कोरोनाचा विळखाही

प्रेमा पाहून गळेल।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 42 – कसे जगावे तिने ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  आपकी अत्यंत प्रेरक कविता ” कैसे जगावे  तिने ” . वास्तव में यह यक्ष प्रश्न है कि झाँसी की रानी और जीजा माता जैसी उन महान वीरांगनाओं को  आज की परिस्थितयों के लिए कैसे जगाया जाये। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 42 ☆

☆ कसे जगावे तिने ☆

 

देश असे हा झाशीवाली आणि माय जिजाऊ मातेचा।

कसे जगावे तिने नसे हा प्रश्न तिच्या त्या कुवतीचा।।धृ।।

 

कुसूमाहुनी भासे  कोमल …अंगी कणखर बाणा रे।

अखंड जपते परंपरांना,  संस्कृतीचा ती कणा रे

स्वराज्याचे स्वप्न घडविले , हा ध्यास तिच्या त्या हिंमतीचा।।१।।

 

तळहातावरी प्राण घेऊनी प्राणपणाने लढली रे।

स्त्री हक्काची नांदी गर्जत,..  ती साऊ रुपाने घडली रे।

शेण उष्टावणे पुष्प मानले धैर्य  तुझ्या त्या हिंमतीचे।।२।।

 

तमा तुजला ना लाख संकटे उंच भरारी घेताना।

कवेत घेशी अंबरास तू   स्वर्ग जगाचा करताना ।

तरी भूवरी पाय सदोदीत  भान तुला या संस्कृतीचे।।3।।

 

जरी बायकी पशू  माताले भ्याड हल्ल्याने छळती ग।

रणचंडी तव रूपं दावता  भूई मिळेना पळती ग।

दाणवास या दंड  देऊनी … ताडण कर या विकृतीचे।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 5 ☆ विषाणू ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक एवं शिक्षाप्रद कविता “विषाणू“.) 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 4 ☆

☆ कविता – विषाणू

एक विषाणू जगास अवघ्या देतोय धोखा

कोरोनाला रोखा आता कोरोनाला रोखा!!

 

चायना इटली स्पेन फ्रान्स आले कचाट्यात

दुर्लक्षित केले म्हणुनी ,मेले हजारांत

बाधितांना वेगळ्या कक्षात नेऊनी रोखा!!

 

सांगितलेल्या सर्व सुचना पाळाव्या निक्षुनी

प्रत्येकाने घरात अपुल्या रहावे दक्षतेनी

अत्यावश्यक कार्ये देखील जमे तोवरी रोखा !!

 

वारंवार हात धुवा, चेह-याला लावू नका

विषाणूसाखळी तुटेपावेतो कुठेही जावू नका

प्रत्येकाने संकल्प हा मनी धरावा सोपा !!

 

प्रशासनाने शक्य तेवढे सर्व काही केले

कोरोनाला रोखण्या जनतेला अपील केले

भारतियांनो कोरोनाला मिळेल तेथे ठेचा!!

 

 

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मराठी साहित्य – कविता ☆ तिला खात्री आहे…! ☆ श्री सुजित कदम

मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक अत्यंत भावुक कविता  “तिला खात्री आहे…!” द्वारा  कोरोना  पीड़ितों की सेवा में सेवारत  निःस्वार्थ सेवाकर्मी का अंतर्द्वंदद्व।) 

मैंने इस कविता का हिंदी भावानुवाद करने का प्रयास किया है। इस लिंक पर क्लिक कर आत्मसात करें>> हिन्दी कविता ☆ उसे विश्वास है ….! ☆ हेमन्त बावनकर 

 

☆ कविता  – तिला खात्री आहे…!  ☆ 

 

आज आणखी चार

करोना ग्रस्त रुग्ण

हाँस्पिटल मध्ये

भरती करून घेत असतानाच

बायकोचा फोन आला..

गेल्या पंधरा दिवसांत

तिचा ठरलेला तोच प्रश्न तिन विचारला

आज तरी तुम्ही

घरी येणार अहात का…?

हे ऐकल्यावर….,

डोळ्यांच्या पापण्यांवर

जमा झालेल पाणी ओघळून

तोडांवर लावलेल्या मास्क च्या

आत कधी गेल कळलंच नाही

मनात आलं

आजचं सोड

ही करोना ची महामारी बघता

मी पुन्हा घरी येतोय की नाही

माहीत नाही….,

गेले पंधरा दिवस मी काहिच न बोलता

फोन ठेऊन देतोय…

पण ती मात्र रोज फोन करून

तिचा ठरलेला प्रश्न विचारल्या

शिवाय रहात नाही…

कदाचित…

तिला खात्री आहे

मी पुन्हा घरी येईन याची…!

 

….©सुजित कदम

मो. ७२७६२८२६२६

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 29 ☆ चैत्र चाहूल ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है।  श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  चैत्र पक्ष एवं श्री रामनवमी  पर्व पर विशेष रचना  “चैत्र चाहूल ”। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 29 ☆

☆ चैत्र चाहूल ☆ 

(काव्यप्रकार:-हायकू)

चैत्र चाहूल
आलं नवं वरीस
सोन्यापरीस. !!१!!
गुढी पाडवा
करु पुरणपोळी
शत्रूला गोळी. !!२!!
सण वर्षांचा
गुढीला साडी नवी
पुण्याई हवी. !३!!
पूजन करु
नूतन पंचांगाचे
श्रीगणेशाचे. !!४!!
चैत्र मासात
चैत्रांगणाची शोभा
श्रीराम उभा. !!५!!
चैत्र महिना
रामाचे नवरात्र
सारे एकत्र. !!६!!
चैत्र चाहूल
पाने लुसलुसती
साजिरी किती. !!७!!
चैत्र मासात
फुले चाफा पिवळा
सुंदर माळा. !!८!!
चैत्र हा खासा
मोगरा बहरला
धुंद जाहला. !!८!!
फुलली लाल
काटेसावर छान
येई उधाण. !!९!!
चैत्रात फुले
ऋतु वसंत रानी
रमले वनी. !!१०!!
सुगंधा सह
बकुळ बहरला
वारा आला. !!११!!
कसा बहरे
छान नीलमोहर
खूप सुंदर. !!१२!!
गॅझेनियाला
आला मस्त बहर
केला कहर. !!१३!!
मालवणात
सुरंगीही फुलते
आनंद देते.  !!१४!!
चैत्र मासात
फुलला बहावा
अरे वाहवा !!१५!!
चैत्र मासात
राम जन्मला बाई
आनंद होई !!१६!!
©®उर्मिला इंगळे
दिनांक:-३-४-२०
 !!श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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मराठी साहित्य – कविता ☆ नामनवमी विशेष  –  रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव समसामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  श्री रामनवमी पर्व पर विशेष  कविता “रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम।)

☆ श्री रामनवमी विशेष  –  रघुकुल शिरोमणी – जय श्रीराम 

 

सूर्यवंशी रामराया , विष्णू रूप अवतार

एकपत्नी न्यायप्रिय,करी सत्य अंगीकार.. . . !

 

राम लक्षुमण जोडी, शत्रुघ्नाचा बंधुभाव

भरताचे स्नेहपाश, घेती अंतरीचा ठाव.. . !

 

माता कौसल्येचा राम, राम सुमित्रा नंदन

राम पुत्र कैकेयीचा, जणू वात्सल्य मंथन.. . !

 

रघुकुल शिरोमणी, कोटी श्लोक याची गाथा

ऐकताच रामरक्षा, लीन होई माझा माथा.. . . !

 

मरा मरा म्हणताना, राम मनी साकारला

वाल्मिकीच्या रामायणी,मूर्तीमंत आकारला.. . !

 

आकाशीचा चंद्र मागे,खेळायला बालपणी

जिंकुनीया स्वयंवर,सीतानाथ रघुमणी . . . . !

 

जानकीचा झाला नाथ ,राम दुःख निवारक

रावणास निर्दालूनी ,राम आदर्श प्रेरक. . . . !

 

विधात्याचा अभिलेख, राम भोगी वनवास

ऋषीमुनी उपदेश, रमणीय सहवास. . . . !

 

रामराज्य पहाण्याला, चौदा वर्षे गेला काळ

पापनाशी झाली धरा,यश कीर्ती घाली माळ.. . !

 

एकश्लोकी रामायण , राम कथा बोधामृत

रामलीला वर्णायला, प्रतिभेचे शब्दांमृत . . . !

 

जन्म आणि मृत्यू मधे ,राम चैतन्याचा सेतू

क्लेशमुक्त व्हावी प्रजा, राम मनी हाची हेतू. .. !

 

राम  असा राम तसा, राम कैवल्याचे धाम

कविराजे  वर्णियेला, कर्मफल रामनाम. . . !

 

श्री राम जय राम जय जय राम

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆ चंद्रकोर ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है असमय भयावह वर्षा पर आधारित रचना  “चंद्रकोर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 44 ☆

☆ चंद्रकोर ☆

 

पाणी पाणी ओरडत राती उठलं शिवार

कसा अंधाऱ्या रातीला आला पावसाला जोर

 

वीज कडाडली त्यात आणि विझली ही वात

धडधडते ही छाती भीती दाटलेली आत

झोप उडाली घराची जागी रातभर पोरं

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

मेघ रडवेला झाला कुणी डिवचल त्याला

गडगड हा लोळला ओला चिंब केला पाला

त्याला शांतवण्यासाठी बघा नाचला हा मोर

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

चंद्र होता साक्ष देत शुभ्र होतं हे आकाश

क्षणभरात अंधार कुठं गेला हा प्रकाश

काळ्या ढगानं झाकली कशी होती चंद्रकोर

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

डोळ्यांसमोर तरळे जसा कापसाचा धागा

एका दिसात टाचल्या त्यानं धरतीच्या भेगा

इंद्र देवाने सोडला वाटे जादूचा हा दोर

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

जाऊ पावसाच्या गावा सोडू कागदाच्या नावा

नावेमधे हा संदेश ठेवा लक्ष तुम्ही देवा

जशी खेळातली नदी दिसो उघडता दार

कसा अंधाऱ्या रातीला…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 41 –  गाठोडे ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  नानी / दादी की स्मृतियों में खो जाने लायक संयुक्त  परिवार एवं ग्राम्य परिवेश में व्यतीत पुराने दिनों को याद दिलाती एक अतिसुन्दर मौलिक कविता   “ गाठोडे”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 41 ☆ 

 ☆  गाठोडे 

 

कुठे गेले आजीबाई

तुझे गाठोडे ग सांग।

खाऊ, खेळणी, औषध

यांची देत आसे बांग।

 

गाठोड्यात पोटलीची

असे जादू  लई भारी।

क्षणार्धात दिसेनासी

होई समूळ बिमारी।

 

काच कांगऱ्या कवड्या

खेळ पुन्हा रोज रंगे।

सारीपाट  सोंगट्यांची

हवी मला जोडी संगे।

 

मऊशार उबदार

तुझी गोधडी जोडाची।

जादू तिची वाढविते

कशी रंगत स्वप्नाची।

 

गाठोड्याची कळ तुझ्या

कुणी दाबली ग बाई।

सर त्याची कपाटाला

कशी येईल ग बाई।

 

श्रीमतीचे आईचे हे

भूत जाईल का देवा

गाठोड्याच्या मायेचा तो

पुन्हा देशील का ठेवा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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