हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 96 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 2 ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे। 

इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 96 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 2 ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

घर की चमक-दमक बहुएँ हैं, 

उत्सव की रौनक बहुएँ हैं,

संस्कृति के सुरभित फूलों की 

देती हमें महक बहुएँ हैं।

0

सृष्टि के सद्ग्रन्थ की पावन रहल हैं बेटियाँ, 

पारिवारिक पुण्य तरु का श्रेष्ठ फल हैं बेटियाँ, 

प्रीति, ममता और करुणा की त्रिवेणी हैं यही 

दो कुलों के संगमों का तीर्थ जल हैं बेटियाँ।

0

माँ, बहिन, बेटी, बहू, पत्नी कहातीं नारियाँ 

फर्ज ये हर रूप में अपना निभाती नारियाँ, 

शक्ति हैं ये आस्था अपनत्व के अहसास की 

इस धरा पर स्वर्ग का वैभव रचाती नारियाँ।

0

बाहर नहीं बताना घर की बुराईयों को, 

लज्जित कभी न करना अपने ही भाईयों को, 

बेटी-बहू के सँग-सँग बहिनों को मान देना 

यह मातृशक्ति देती ताकत कलाईयों को।

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जिजीविषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – जिजीविषा ? ?

संकट, कठिनाई,

अनिष्ट, पीड़ादायी,

आपदा, अवसाद,

विपदा, विषाद,

अरिष्ट, यातना,

पीड़ा, यंत्रणा,

टूटन, संताप,

घुटन, प्रलाप,

इन सबमें सामान्य क्या है?

क्या है जो हरेक में समाता है,

उत्कंठा ने प्रश्न किया..,

मुझे इन सबमें चुनौती

और जूझकर परास्त

करने का अवसर दिखता है,

जिजीविषा ने उत्तर दिया..!

?

© संजय भारद्वाज  

दोपहर 3: 24 बजे, सोमवार 9 मार्च 2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 170 – सजल – साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं…  ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण सजल “साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 170 – सजल – साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं…  ☆

(समांत – अस्त, पदांत – हैं, मात्राभार – 16)

साहित्यकार बहुत व्यस्त हैं।

हर संचालक बड़े त्रस्त हैं।।

 *

छपवाने की होड़ मची कुछ।

प्रकाशक अब सभी मस्त हैं।।

 *

खुद का लिखा पीठ खुद ठोंका।

छंद-विज्ञानी सभी पस्त हैं।।

 *

श्रोताओं की कहाँ कमी अब।

उदरपूर्ति कर हुए लस्त हैं।।

 *

लंबी-चौड़ी कविता पढ़ लें।

चाँद-सितारे नहीं अस्त हैं।

परिहासों का दौर चल रहा।

पिछली आमद सभी ध्वस्त हैं।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

3/4/25

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 232 – बुन्देली कविता – बढ़त जात उजयारो… भाग-२ ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – बढ़त जात उजयारो।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 232 – बढ़त जात उजयारो… भाग-२  ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

मुरझाओ मन हरया बैठी

लागत लगो बसकारो।

बढ़त जात उजयारो ।

 

जैसे घाम धान के जोरें

भिजा देत है छैंया

वैसइ कछू लगत है हमस्खों

देख देख के मुइयां ।

 

बरस बरस में फली मनौती

अँखियन में जल ढारो ।

बढ़त जात उजयारो।

 

जुड़ा गई हैं अँखियां मन की

चंदा सो उग आओ

जौ मुईयाँ चंदा से बड़ के

लख चंदा सकुच्याओ।

 

सरद जुन्हैया देखन काजै

घूँघट तनक उधारो ।

बढ़त जात उजयारो ।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 232 – “गौना नहीं करा पाये…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत गौना नहीं करा पाये...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 232 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “गौना नहीं करा पाये...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

जेबो को था ढका

अनगिनत इन सालो ने

बदल दिये थे मुँह तक

पीले सभी रुमालो ने

 

घर में फसल उमीदों की

ऐसी आ पसरी थी

बिकने से बच गई

भाग बश काली बकरी थी

 

राम भरोसे का ईश्वर

पर यही भरोसा था

यों तो कसर न छोड़ी

कम कुछ सभी दलालों ने

 

एक अँगोछे के दो

पंचे पुत्र पिता को थे

धन्यवाद देते दिलसे

वे परमपिता को थे

 

कसर रह गई बस पनहीं

न ले पाये अबतक

कठिन परीक्षायें दी

थी पावों के छालों ने

 

गौना नहीं करा पाये

हलकू की दुलहिन का

गड़ता रहा आँख में ज्यों

सूखा कोई तिनका

 

परमू कक्का इंतजार में

थे मेहमानी के

नशा चढ़ाया था समधिन

के गोरे गालों ने

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

31-03-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विचार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विचार ? ?

मेरे पास एक विचार है

जो मैं दे सकता हूँ

पर खरीददार नहीं मिलता,

यों भी विचार के

अनुयायी होते हैं

खरीददार नहीं,

विचार जब बिक जाता है

तो व्यापार हो जाता है

और व्यापार

प्रायः खरीद लेता है

राजनीति, कूटनीति

देह, मस्तिष्क और

विचार भी..,

विचार का व्यापार

घातक होता है मित्रो!

?

© संजय भारद्वाज  

(गुरुवार दि. 14 जुलाई 2017, प्रातः 9 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 214 ☆ # “एक नई दास्तां…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “एक नई दास्तां…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 214 ☆

☆ # “एक नई दास्तां…” # ☆

यह कैसी हवा आजकल बह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

मुरझाई हुई हर कली हर चमन है

कशमकश में उलझा हुआ पवन है

खामोश खड़ा चुप सा गगन है

आंसुओं में डूबे सबके नयन हैं

आहत भावनाएं सब कुछ सह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

जकड़ी हुई हैं उमंगों की बांहें

कांटो भरी हैं सपनों की राहें

कैसे कोई अब वादों को निभाए

तरसती खड़ी है अपनों की निगाहें

मन मंदिर की दीवारें हर पल ढह रही हैं

एक नई दास्तान हम सब से कह रही हैं

 

कुछ दिलों में यह कैसी लहक है

कुछ चेहरों पर यह कैसी चहक है

कुछ युवाओं में यह कैसी बहक है

कुछ बुझती आंखों में कैसी दहक है

छुपी हुई आग इनके अंदर रह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

काली घटाएं धरती पर छा रही है

तूफान आने की एक आहट आ रही है

बिजलियां चमककर संदेश ला रही है

दिशाएं खुशी में गीत गा रही है

समंदर की लहरें निर्भय बह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

 

यह कैसी हवा आजकल बह रही है

एक नई दास्तान हम सब से कह रही है

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ कविता – वादा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय लघुकथा ‘वादा।)

☆ लघुकथा – वादा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

बीते वक्त की तरह, याद आते हो, आते नहीं हो,

कभी तो बहारों की तरह, लौटने का वादा कर लो.

*

बहारों की तरह, लौटने का वादा कर लो,

हाथों में लेकर हाथ, चलने का वादा कर लो.

*

इस बेजान दिल को धड़कने का बहाना दे दो,

नज़ारे लौट आएंगे, साथ आने का वादा कर लो.

*

इस बेनूर से चमन में, खिल उठेंगी कलियां,

गर तुम साथ बहारें लाने का वादा कर लो. 

*

न रुठो और न रूठने दो, कभी किसी को,

दोबारा नेमत ए इश्क देने का वादा कर लो.

*

कभी, कोई न कोई रंज होगा, दिल में तेरे,

अब हमेशा मुस्कराने का वादा कर लो.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/ ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 230 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 230 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 230) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 230 ?

☆☆☆☆☆

मुझे भी यकीन है,

और मौत पर भी एतबार है,

देखते हैं पहले कौन मिलता है,

हमे दोनो का इंतजार है…!

☆☆

I have faith in you and trust even death;

Let’s see who meets me first – I await both.

☆☆☆☆☆

किस्मत के खेल भी कितने निराले हैं,

जिसको चाहा वो मिला नही,

जो मिला उससे मोहब्बत ना हुई…!

☆☆

Fate’s games are indeed so strange;

I didn’t get the one who I desired,

And I didn’t fall in love with the one I got…

☆☆☆☆☆

ये वक़्त का सफर भी बड़ा अजीब सा चल रहा है

दौड़ तो रहा है, मगर खामोशी से…

☆☆

This journey of time is too strange,

It keeps unfolding but silently…

☆☆☆☆☆

हमें रुलाने वाले भी वही हैं जो कहते कि

हँसते हुए तुम बहुत अच्छे लगते हो…

☆☆

The who bring tears to my eyes is the same one 

who would say I resplendently shine when I smile.

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 229 – नवरात्रि विशेष – सप्तश्लोकी दुर्गा  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्रि विशेष – सप्तश्लोकी दुर्गा )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 229 ☆

☆ नवरात्रि विशेष – सप्तश्लोकी दुर्गा ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

(नवरात्रि और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद सहित)

नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना तथा विशेष कामनापूर्ति हेतु दुर्गा सप्तशती, चंडी तथा सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती तथा चंडी पाठ जटिल तथा प्रचण्ड शक्ति के आवाहन हेतु है। इसके अनुष्ठान में अत्यंत सावधानी आवश्यक है, अन्यथा क्षति संभावित हैं। दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ करने में अक्षम भक्तों हेतु प्रतिदिन दुर्गा-चालीसा अथवा सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ का विधान है जिसमें सामान्य शुद्धि और पूजन विधि ही पर्याप्त है। त्रिकाल संध्या अथवा दैनिक पूजा के साथ भी इसका पाठ किया जा सकता है जिससे दुर्गा सप्तशती,चंडी-पाठ अथवा दुर्गा-चालीसा पाठ के समान पूण्य मिलता है।

कुमारी पूजन

नवरात्रि व्रत का समापन कुमारी पूजन से किया जाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन दस वर्ष से कम उम्र की ९ कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ रूप (दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी चार वर्ष की कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा, दस वर्ष की सुभद्रा) मान पूजन कर मिष्ठान्न, भोजन के पश्चात् व दान-दक्षिणा भेंट करें।

सप्तश्लोकी दुर्गा

निराकार ने चित्र गुप्त को, परा प्रकृति रच व्यक्त किया।

महाशक्ति निज आत्म रूप दे, जड़-चेतन संयुक्त किया।।

नाद शारदा, वृद्धि लक्ष्मी, रक्षा-नाश उमा-नव रूप-

विधि-हरि-हर हो सके पूर्ण तब, जग-जीवन जीवन्त किया।।

*

जनक-जननि की कर परिक्रमा, हुए अग्र-पूजित विघ्नेश।

आदि शक्ति हों सदय तनिक तो, बाधा-संकट रहें न लेश ।।

सात श्लोक दुर्गा-रहस्य को बतलाते, सब जन लें जान-

क्या करती हैं मातु भवानी, हों कृपालु किस तरह विशेष?

*

शिव उवाच-

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।

कलौ हि कार्यसिद्धयर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥

*

शिव बोले:

सब कार्यनियंता, देवी! भक्त-सुलभ हैं आप।

कलियुग में हों कार्य सिद्ध कैसे?, उपाय कुछ कहिये आप।।’

*

देव्युवाच-

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्‌।

मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥

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देवी बोलीं:

सुनो देव! कहती हूँ इष्ट सधें कलि-कैसे?

अम्बा-स्तुति बतलाती हूँ, पाकर स्नेह तुम्हारा हृद से।।’

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विनियोग-

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः

अनुष्टप्‌ छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः

श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।

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ॐ रचे दुर्गासतश्लोकी स्तोत्र मंत्र नारायण ऋषि ने

छंद अनुष्टुप महा कालिका-रमा-शारदा की स्तुति में

श्री दुर्गा की प्रीति हेतु सतश्लोकी दुर्गापाठ नियोजित।।

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ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥१॥

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ॐ ज्ञानियों के चित को देवी भगवती मोह लेतीं जब।

बल से कर आकृष्ट महामाया भरमा देती हैं मति तब।१।

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दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः

स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या

सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥२॥

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माँ दुर्गा का नाम-जाप भयभीत जनों का भय हरता है,

स्वस्थ्य चित्त वाले सज्जन, शुभ मति पाते, जीवन खिलता है।

दुःख-दरिद्रता-भय हरने की माँ जैसी क्षमता किसमें है?

सबका मंगल करती हैं माँ, चित्त आर्द्र पल-पल रहता है।२।

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सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥

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मंगल का भी मंगल करतीं, शिवा! सर्व हित साध भक्त का।

रहें त्रिनेत्री शिव सँग गौरी, नारायणी नमन तुमको माँ।३।

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शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥

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शरण गहें जो आर्त-दीन जन, उनको तारें हर संकट हर।

सब बाधा-पीड़ा हरती हैं, नारायणी नमन तुमको माँ ।४।

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सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥५॥

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सब रूपों की, सब ईशों की, शक्ति समन्वित तुममें सारी।

देवी! भय न रहे अस्त्रों का, दुर्गा देवी तुम्हें नमन माँ! ।५।

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रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥६॥

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शेष न रहते रोग तुष्ट यदि, रुष्ट अगर सब काम बिगड़ते।

रहे विपन्न न कभी आश्रित, आश्रित सबसे आश्रय पाते।६।

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सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।

एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥७॥

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माँ त्रिलोकस्वामिनी! हर कर, हर भव-बाधा।

कार्य सिद्ध कर, नाश बैरियों का कर दो माँ! ।७।

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॥इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌॥

।श्री सप्तश्लोकी दुर्गा (स्तोत्र) पूर्ण हुआ।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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