(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार , पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सीमा सूरीजी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत हैं। आपकी उपलब्धियां इस सीमित स्थान में उल्लेखित करना संभव नहीं है। आपने कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है एवं आयोजनों का सफल संचालन भी किया है। आपकी कई रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं । आप कई राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों / अलंकारों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता अगर अंधेरा हो…..‘। )
( डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज ससम्मान प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता कलियुग। इस बेबाक कविता के लिए डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी की लेखनी को सादर नमन।)
( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें सफर रिश्तों का तथा मृग तृष्णा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता नफरत का बीज कहाँ पैदा होता है?
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 3 – नफरत का बीज कहाँ पैदा होता है? ☆
उड़ना चाहता हूँ आसमान की ओर,
देखना चाहता हूँ नफरत का बीज कहाँ पैदा होता है ||
उड़ना चाहता हूँ परिंदो की तरह,
देखना चाहता हूँ दुनिया में पाप कहाँ पैदा होता है ||
रहना चाहता हूँ दोस्तों में घुल मिलकर,
देखना चाहता हूँ अब सुदामा सा दोस्त कहाँ होता है ||
रहना चाहता हूँ रिश्तों की हवेली में,
देखना चाहता हूँ रिश्तों का धागा कैसे मजबूत होता है ||
जीना चाहता हूँ मैं सब के लिए,
देखना चाहता हूँ मेरे लिए दुनिया में कौन जीना चाहता है ||
माफ़ी चाहता हूँ सबसे अपनी हर गलती के लिए,
देखना चाहता हूँ खुद की गलतियां मान कौन मुझे गले लगाता है ||
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता हमको दर्द छिपाने होंगे। )
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। अपनी कालजयी रचना याद के संदर्भ में दोहे को ई- अभिव्यक्ति के पाठकों के साथ साझा करने के लिए आपका हृदय से आभार।)
(ई- अभिव्यक्ति पर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी ख्यातिलब्ध शब्द-साधक डॉ मनोहर अभय जी का हार्दिक स्वागत है। आपका स्नेहाशीष ई-अभिव्यक्ति पर पाकर हम गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं ।
साहित्यिक यात्रा : जन्म 3 अक्टूबर 1937 को तत्कालीन अलीगढ़ जिले के नगला जायस नामक गाँव में हुआ। आपने वाणिज्य में पीएचडी के अतिरिक्त एलटी, साहित्यरत्न और आचार्य की उपाधि अर्जित की। ग्यारह वर्ष के अध्यापन के बाद हरियाणा के राज्यपाल के लोक संपर्क अधिकारी का कार्यभार सम्हाला। तत्पश्चात इक्कतीस वर्ष तक अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था आईपीपीएफ लन्दन के भारतीय प्रभाग (एफपीए इंडिया) में विभिन्न वरिष्ठ पदों पर कार्य करते हुए संस्था के सर्वोच्च पद (महासचिव) से 2004 में अवकाश ग्रहण किया। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सभा-सम्मेलनों, कार्यशालाओं, परिसंवादों में प्रतिनिधि वक्ता के रूप में आपने चीन, जापान, कम्बोडिया, इजिप्ट, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड तथा भारत के प्रायः सभी महानगरों, ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी अंचलों का सर्वेक्षण-अध्ययन-प्रशिक्षण-मूल्यांकन हेतु परिभ्रमण किया। डॉ.अभय की प्रथम कहानी 1953 में प्रकाशित हुई। वर्ष 1956 में हिंदी प्रचार सभा, सादर, मथुरा की स्थापना की।
आपने हस्तलिखित पत्रिका ‘नव किरण’ से लेकर संस्था के मुखपत्र हिमप्रस् के अतिरिक्त ग्राम्या, माध्यम, पेन जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के साथ बीस पुस्तकों का सम्पादन-प्रकाशन किया। ‘एक चेहरा पच्चीस दरारें’, ‘दहशत के बीच’ (कविता संग्रह), ‘सौ बातों की बात’ (दोहा संग्रह), ‘आदमी उत्पाद की पैकिंग हुआ’ (समकालीन गीत संग्रह) के अतिरिक्त श्रीमद्भगवद्गीता की हिन्दी-अंग्रेजी में अर्थ सहित व्याख्या, रामचरित मानस के सुन्दर कांड पर शोध-प्रबंध (करि आये प्रभु काज), ‘अपनों में अपने’ (आत्म कथा) आपकी विशष्ट कृतियाँ में हैं। साहित्यिक सेवाओं के लिए महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी ने 2014 में डॉ. अभय को संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त राष्ट्र भाषा गौरव, काव्याध्यात्म शिरोमणि, सत्कार मूर्ती आदि अनेक अलंकारों से अलंकृत डॉ. अभय नवी मुम्बई से प्रकाशित ‘अग्रिमान’ नामक साहित्यिक पत्रिका के प्रधान संपादक हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके “दस दोहे”।)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “ वो चीखें ”। यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है से उद्धृत है। )
आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –
(श्री मनीष खरे “शायर अवधी”जी का परिचय उनके ही शब्दों में – “मैंने 300 से अधिक शायरी, गजल, कविताएं लिखीं किन्तु, कभी इस तरह से प्रकाशित करने की कोशिश नहीं की। इस लॉकडाउन में मैंने महसूस किया कि मुझे अपनी इस सोच नुमा चौकोर कमरे से बाहर आना चाहिए और अपनी “अभिव्यक्ति” को अपनी डायरी से बाहर डिजिटल मीडिया में ले जाना चाहिए। मैं ऑटोमोबाइल क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संस्थान में मानव संसाधन टीम का सदस्य हूँ। अपने समग्र कैरियर के दौरान मैं ऐसे कई लोगों से मिला हूँ, जिन्होंने मेरे मस्तिष्क में विभिन्न संवेदनाओं को जगाने का प्रयास किया है और उनके साथ उनकी भावनाओं को जिया है। मेरी सभी रचनाएँ उन सभी को समर्पित हैं जिन्होंने अब तक मेरे जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श किया है।” आज प्रस्तुत है आपकी द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने वाले परिवारों की संवेदनाओं की पृष्ठभूमि पर आधारित एक भावप्रवण रचना “गिरा जो कल वो ख़ून था….”।)