हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बिटिया दिवस विशेष – बिटिया ☆ श्रीमती सुधा भारद्वाज 

श्रीमती सुधा भारद्वाज 

सुप्रसिद्ध साहित्यकार, रंगकर्मी  एवं समाजसेवी श्रीमती सुधा भारद्वाज जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है।

संक्षिप्त परिचय 

शिक्षा- एम.ए., बी.एड., बी.ए. में एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय की प्रवीणता सूची (मेरिट लिस्ट) में रहीं।

कुछ समय अध्यापन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, आकाशवाणी पुणे से कहानियों तथा कविताओं का प्रसारण। कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्मों को स्वर दिया है। सामाजिक कार्यों में रुचि, स्त्रियों और बच्चों के प्रश्न पर यथाशक्ति काम।

सम्प्रति – क्षितिज प्रकाशन की प्रमुख।

आज 27/9/2020 बिटिया दिवस के उपलक्ष्य में – 

☆ बिटिया दिवस विशेष – बिटिया  (तीन कवितायेँ)☆   

 

[1]

बिना कहे

कपड़े तह

कर देती है,

थकान को

गर्मागर्म चाय

की प्याली से

भगा देती है,

कभी रोटी सेक देती है,

कभी झाड़ू बुहार देती है,

बिजली का बिल भर आती है,

बिटिया है मेरी पर

प्राय: माँ बन जाती है!

 

[2]

नकचढ़ी हँसी के

कान उमेठे तो

और खिलखिलाई,

बोली- क्या करुँ?

आपकी बिटिया

मुझे अपने मायके

बंधुआ बना लाई!

 

[3]

रसोई से आती महक,

दीवारों से गूँजती हँसी,

पड़ोसिन के चेहरे की

रौनक बतला रही है,

उसकी बिटिया

पीहर आ रही है!

 

© श्रीमती सुधा भारद्वाज

संस्थापक सदस्या – ‘हिंदी आंदोलन परिवार’, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बिटिया दिवस विशेष – मैं बिटिया भारत की ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी की  बिटिया दिवस पर विशेष रचना – मैं बिटिया भारत की। )

आज 27/9/2020 बिटिया दिवस के उपलक्ष्य में – 

☆ बिटिया दिवस विशेष – मैं बिटिया भारत की ☆   

 

ना मैं नन्ही छुई-मुई सी पापा की कोमल सी परी

ना ही हाथ लगे मुरझाती लाड़ली गुड़िया मम्मा की

 

मैं  हूँ बिटिया बड़ी सयानी माँ, बाबा, दादी-दादू की।

अमराई पनघट नदिया और नीम तले चौपाल गाँव की।।

 

झूला बाबा की बाहों का निंदिया लोरी में माँ की

बस इसमें ही पायी मैंने हर पल  खुशियाँ जीवन की।।

 

बाबा ने पट्टी लेखनी से बाँध दिये सब ताने-बाने।

दो चोटी संग गूँथ दिये माँ ने सपने सारे अपने।।

 

लैपटॉप है नहीं हाथ में ना एनड्राॅयड मोबाईल।

लगती भले पुराने युग की मत समझो मुझको जाहिल।।

 

मैं बस्ता पुस्तक और लैंप का ले कर के उजियारा।

अपनी कलम से तिमिर और स्याही से छाँटूगी अँधियारा ।।

 

बारिश में चमके बिजली दृढ़ता संकल्प भरे मुझमें।

मैं तब भी रहूंगी वहीं डटी सपने न कभी बिकने दूँगी ।।

 

मेरी पायल के मधुर गीत अंबर तक मैं पहुंँचाऊँगी

आकाशगंगा और अंतरिक्ष तक जब मैं दौड़ लगाऊँगी

 

खूब पढूँगी खूब बढूँगी हार नहीं मानूँगी।

सेना में भर्ती होकर दुश्मन के छक्के छुडा़ दूँगी।।

 

मैं बिटिया भारत माँ की पढ़ रही देश की खातिर।

जान लडा़ दूँगी सरहद पर आँच नहीं आने दूँगी ।।

 

© श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र 440010

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बिटिया दिवस विशेष – जादू! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

आज 27/9/2020 बिटिया दिवस के उपलक्ष्य में – 

☆ संजय दृष्टि  ☆ बिटिया दिवस विशेष – जादू!

तपता मरुस्थल,

निर्वसन धरती,

सूखा कंठ,

झुलसा चेहरा,

चिपचिपा बदन,

जलते कदम,

दूर-दूर तक

शुष्क और

बंजर वातावरण,

अकस्मात

मेरी बिटिया हँस पड़ी,

अब, लबालब

पहाड़ी झरने हैं,

आकंठ तृप्ति है,

कस्तूरी- सा महकता तन है

तलवों में जड़ी मखमल है,

उर्वरा हर रजकण है,

चहुँ ओर श्रावण है!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 22 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 22 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 22) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 22☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

माना  तेरी  उलझन हूँ  मैं

पर तेरी सुलझन भी हूँ  मैं…

थोड़ा दीवाना ही सही मैं

मगर  बड़ा दिलदार हूँ  मैं…

 

Agreed I’m your riddle only…

But I’m your solution too…

Though I am  bit crazy

But a large-hearted one!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

क्या करोगे अब तुम

मेरे पास आकर भी..

खो दिया है तुमने मुझे

बार-बार आजमा कर…

 

What will you do now

By coming close to me…

You’ve lost me for good

By trying again and again

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

हर  वक़्त  फ़िजाओं  में,

महसूस करोगे तुम हमको…

हम दोस्ती की वो ख़ुशबू हैं,

जो महकते रहेंगे  उम्र भर…

 

At all times in environment

You  will  always  feel  me

I’m fragrance of friendship

That will last the whole life

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

बस यहीं मोहब्बत

अधूरी रह गई  मेरी…,

मुझे उसकी फ़िक्र रही

और  उसे  दुनिया की…!

 

That’s  why  my  love

 just remained incomplete,

I kept caring about her

and she about the world..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 22 ☆ सवैया मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी का एक नव प्रयोग  सवैया मुक्तिका। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 21 ☆ 

☆ सवैया मुक्तिका ☆ 

 अमरेंद्र विचरें मही पर, नर तन धरे मुकुलित मना।

अर्णव अरुण भुज भेंटते, आलोक तम हरता घना।।

श्री धर मुदित श्रीधर हुए, श्रीधर धरें श्री हैं जयी।

नीलाभ नभ इठला रहा, अखिलेश के सिर पर तना।।

मिथिलेश कर संतोष मति रख विनीता; जनहित करें

सँग मंजरी झूमें बसंत सुगीत रच; कर अर्चना

मन्मथ न मन मथ सका; तन्मय हो विजय निज चाहता

मृण्मय न रह निर्जीव हो संजीव कर नित साधना

जब काम ना तब कामना, श्री वास्तव में दे सखे!

कुछ भाव ना पर भावना से ही सफल हो प्रार्थना

कंकर बने शंकर; न प्रलयंकर कभी हो देवता!

कर आरती नित भारती; जग-वाक् हो है वंदना

कलकल बहे; कलरव करे जल-खग; न हो किलकिल सलिल

अभियान करना सफल, मैया नर्मदा अभ्यर्थना

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ कस्तूरी मृग ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ कस्तूरी मृग 

मैं परिधि पर

जीना चाहता हूँ

पर केंद्र भी

छोड़ नहीं पाता,

केंद्र और परिधि पर

एक साथ जीने की जिजीविषा,

अधर में बने रहने की

स्वयंसिद्ध तितिक्षा,

न वृत्त सिमटकर

बिंदु हो पाता है,

न सीमाओं का विस्तार कर

बिंदु परिधि बन पाता है,

लगता है,

मनुष्य के विकास के

डार्विन के सिद्धांतों के साथ,

अनुभूति का

जब कोई इतिहास लिखेगा,

यात्रा वृत्तांत में

वानरों के साथ

कस्तूरी मृग का

नाम भी जुड़ेगा।

 

©  संजय भारद्वाज 

24.9.2012

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 9 ☆ कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक  समसामयिककविता कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 9☆

☆ कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार ?☆

कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार

लगता है संसद नहीं मछली का बाजार

दिन दिन बढ़ता जा रहा गुंडों का अधिकार

नासमझो के सामने समझदार की हार

जहां नियम संयम बिना चलता कारोबार

मारपीट धरपकड़ से होता गलत प्रचार

बल के आगे बुद्धि जब हो जाती लाचार

चल पाएगी किस तरह वहां कोई सरकार

समझ ना आता कुछ  क्यों बदल गया संसार

जहां नेह सद्भाव गुण जो जीवन आधार

खोते जाते मान नित जैसे हो बेकार

तानाशाही जीतती लोकतंत्र की हार

ऐसे में संभव कहां जनता का उद्धार

हरएक सदन में आए दिन मची हुई तकरार

दुख वर्धक होता सदा ही हिंसक व्यवहार

नीति पूर्ण संवाद ही है वास्तविक उपचार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं/ I’m Like A Little Sparrow Myself… – सुश्री निर्देश निधि ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s  Classical Poem नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं with title  “I’m Like A Little Sparrow Myself… ” .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में  आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.

सुश्री निर्देश निधि

 ☆ नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं ☆ 

 

बरसों पहले गाँव के जो नाते

मैं भूल आई थी,

बरसों तक जिनपर

उपेक्षा की धूल मैंने खुद उड़ाई थी

इस बड़े शहर में

खोई हुई पहचान के संग, खोजती हूँ मैं

मरकरी रौशनी की सुन्न सरहदों में

गंवई चाँदनी की चादरें क्यों चाहती हूँ मैं

इस शहर के बुझे – बुझे से अलावों में

ऊष्मा अंगार की क्यों ढूंढती हूँ मैं

भीड़ के रेलों ठुंस – ठुंस कर भी

सब के सब चेहरे अपरिचित देखती हूँ मैं

इस शहर की आधुनिक बूढ़ियों में

माँ का झुर्रियों वाला चेहरा सलौना, ढूंढती हूँ मैं

अविराम से इस शहर के तेज़ कदमों के तले से

नीम की छाया तले के विश्राम वाले कुछ पहर खींचती हूँ मैं

ज्ञान के भंडार से इस शहर में

गाँव की ड्यौड़ी से छिटके कुछ निरक्षर से अक्षर

खूब चीन्हती हूँ मैं

तरण तालों के बदन पर थरथराती लड़कियों में

पोखरों की बत्तखेँ देखती हूँ मैं

सुनहरे बाज के सख्त पंजों में फंसी

नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं

आसमानों ने दिये कब पंछियों को आसरे

उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर

चलूँ अपनी धरतियों से अब गले मिलती हूँ मैं…

 

© निर्देश निधि

संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

 ☆ I’m Like A Little Sparrow Myself… ☆

 

The age-old, long forgotten

relations of my village,

whom I’d buried myself

with the dust of neglect

I desperately search for

them in this big city,

with a lost identity…

 

In the mercury light,

with its insensitive limits

I keep seeking the

sheets of moonlight

of my rustic village…

 

In this town’s

blown-out bonfire

I do keep seeking

hot embers…

In the crowded

surge of humanity

I keep seeing only

the unfamiliar faces…

 

Among the stylish

gammers of this city

I keep searching for

my adorable

mother’s wrinkled face…

 

In midst of ever ceaseless,

fast-paced life of the city

I keep longing for the cool

shadow of my neem tree…

 

In this city, replete with

overflowing knowledge,

I do recognize the

unschooled characters

of my village

strewn across all-over…

 

In the bunch of damsels,

jiving rhythmically

at the glitzy floor

of swimming pools,

I envision the ducks

of rustic ponds…

 

Clutched in the

golden eagle’s talons

I see myself as a

hapless little sparrow…

But then,

when did sky ever

give shelter to the birds…

 

At this terminal stage of life

It’s the time for me to

nostalgically embrace

my own land…!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ पराकाष्ठा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

पुनर्पाठ – 

☆ संजय दृष्टि  ☆ पराकाष्ठा

 

अच्छा हुआ

नहीं रची गई

और छूट गई

एक कविता,

कविता होती है

आदमी का अपना आप

छूटी रचना के विरह में

आदमी करने लगता है

खुद से संवाद,

सारी प्रक्रिया में

महत्त्वपूर्ण है

मुखौटों का गलन

कविता से मिलन

और उत्कर्ष है

आदमी का

शनैः-शनैः

खुद कविता होते जाना,

मुझे लगता है

आदमी का कविता हो जाना

आदमियत की पराकाष्ठा है!

 

©  संजय भारद्वाज 

(सोमवार दि. 30 .05 .2016, संध्या 7:15 बजे )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 62 ☆ मेघ ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपका एक भावप्रवण गीत  “मेघ । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 62 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – मेघ ☆

मेघा छाए काले काले

क्यों नहीं बरस जाते हो।

हर पल वो तो प्यास बुझाते।

क्यों नहीं दरस दिखाते हो।

मेघा..

 

उमड़ घुमड़ कर आते वे तो

सबकी खुशियां लाते है।

उदास किसान करते दुआएं

गीत बारिश के गाते है।

मेघा…

 

रस्ता देखे हम भी इनका

गरज गरज के जाते हो।

कब आओगे तरसे नयना

दुख ही दुख दे जाते हो।

मेघा..

 

ताल तलैया झील भी सूखी

नदिया सूखी जाती है।

नहीं बची है इनकी सांसे

क्यों नहीं  बरस  तुम जाते हो।

मेघा..

 

आस लगाए कब से बैठे

पानी कब बरसाओगे।

धरती को तर्पण कर दो

आकार कब हर्षाओगे।

मेघा छाए….

 

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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