(श्री जयेश कुमार वर्मा जी बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता मैं औऱ वो….।)
☆ कविता ☆ मैं औऱ वो…. ☆
बार बार याद आते वो पल, थे हम दोनों साथ, जाने कहाँ थे,
हाथो में हाथ थे, बहते अश्क थे, हम दो दिल, एक एहसास से,
लम्हा लम्हा दिल भीगे, अश्कों से तर, नैन सजल हुए,
उसे ना थी कोई जल्दी, शिद्दत से पकड़े थी हाथ मेरे,
ज़िन्दगी चली बीतने, कुछ बीते, लम्हे आने लगे याद मुझे,
ज़िया वो पल, उसे जीना, थी वही ज़िन्दगी, सब याद मुझे,
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की संस्कारधानी जबलपुर शहर पर आधारित एक भावप्रवण कविता “किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान“। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)
We present an English Version of Ms. Neelam Saxena Chandra’s mesmerizing poem “चाँदनी”. We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this awesome translation.)
Ms Neelam Saxena Chandra
(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division.
☆ चाँदनी… ☆
आसमान की चादर पर चांदनी
मस्त हो, इतरा रही थी,
उसकी ग़ज़ब सी नज़ाकत थी,
एक पाँव भी आगे बढ़ाती
तो हवा पायल बन खनक उठती,
और उसकी मुस्कान पर तो
सेंकडों लोग फ़िदा थे –
उनमें से एक उसका आशिक़
बेपरवाह समंदर भी था!
समंदर ने उससे कहा,
“बहुत मुहब्बत करता हूँ तुमसे!”
और वो चांदनी इठलाती हुई
उसकी आगोश में समा गयी!
चांदनी तो
यह भी न समझ पायी
कि उसका रूप ही बदल गया है
और वो हो गयी है क़ैद
समंदर के घेरे में…
वो तो उसे एक हसीं मकाँ समझ
खुश रहती!
यह तो उसने कई दिनों बाद जाना
कि शांत सा समंदर
दिखता कुछ और था
पर उसके मन में कुछ और था;
उसके मन के ऊफ़ान को देख,
और उसका यह बनावटी पहलू देख,
आज़ादी को तरसने लगी!
आज मैंने देर रात को देखा
वो करवा चौथ के दिन
पहुँच गयी थी वापस आसमान में
और फिर मुसकुरा रही थी!
☆ Enchanting Moon… ☆
Spirited moonlight,
in the lap of sky
Kept swaying galore!
Amazingly rollicking gait,
Even the swinging
movement of steps
Would make the wind blow like tinkling of sprightly anklets…