हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 169 ☆ जबलपुर में शुभ प्रभात  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता जबलपुर में शुभ प्रभात )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 169 ☆

☆ जबलपुर में शुभ प्रभात ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

रेवा जल में चमकतीं, रवि-किरणें हँस प्रात।

कहतीं गौरीघाट से, शुभ हो तुम्हें प्रभात।।१।।

*

सिद्धघाट पर तप करें, ध्यान लगाकर संत।

शुभप्रभात कर सूर्य ने, कहा साधना-तंत।।२।।

*

खारी घाट करा रहा, भवसागर से पार।

सुप्रभात परमात्म से, आत्मा कहे पुकार।।३।

*

साबुन बिना नहाइए, करें नर्मदा साफ़।

कचरा करना पाप है, मैया करें न माफ़।।४।।

*

मिलें लम्हेटा घाट में, अनगिन शिला-प्रकार।

देख, समझ पढ़िये विगत, आ आगत के द्वार।।५।।

*

है तिलवारा घाट पर, एक्वाडक्ट निहार।

नदी-पाट चीरे नहर, सेतु कराए पार।।६।।

*

शंकर उमा गणेश सँग, पवनपुत्र हनुमान।

देख न झुकना भूलना, हाथ जोड़ मति मान।।७।।

*

पोहा-गरम जलेबियाँ, दूध मलाईदार।

सुप्रभात कह खाइए, कवि हो साझीदार।।८।।

*

धुआँधार-सौन्दर्य को, देखें भाव-विभोर।

सावधान रहिए सतत, फिसल कटे भव-डोर।।९।।

*

गौरीशंकर पूजिए, चौंसठ योगिन सँग।

भोग-योग संयोग ने, कभी बिखेरे रंग।।१०।।

*

नौकायन कर देखिये, संगमरमरी रूप।

शिखर भुज भरे नदी को, है सौन्दर्य अनूप।११।।

*

बहुरंगी चट्टान में, हैं अगणित आकार।

भूलभुलैयाँ भुला दे, कहाँ गई जलधार?।१२।।

*

बंदरकूदनी देख हो, लघुता की अनुभूति।

जब गहराई हो अधिक, करिए शांति प्रतीति।।१३।।

*

कमल, मगर, गज, शेर भी, नहीं रहे अब शेष।

ध्वंस कर रहा है मनुज, सचमुच शोक अशेष।।१४।।

*

मदनमहल अवलोकिए, गा बम्बुलिया आप।

थके? करें विश्राम चल, सुख जाए मन-व्याप।।१५।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 96 ☆ मुक्तक ☆ ॥ मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 96 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये।

प्रेम से दूर अपनी हर तकरार हो जाये।।

महोब्बत हर जंग पर होती भारी है।

यह दुनिया बस इतनी सी समझदार हो जाये।।

[2]

संवेदना बस हर किसी का सरोकार हो जाये।

हर कोई प्रेम का खरीददार हो जाये।।

नफ़रतों का मिट जाये हर गर्दो गुबार।

धरती पर ही स्वर्ग सा यह संसार हो जाये।।

[3]

काम हर किसीका परोपकार हो जाये।

हर मदद को आदमी दिलदार हो जाये।।

जुड़ जाये हर दिल से हर दिल का ही तार।

तूफान खुद नाव की पतवार हो जाये।।

[4]

अहम हर जिंदगी में बस बेजार हो जाये।

धार भी हर गुस्से की बेकार हो जाये।।

खुशी खुशी बाँटे आदमी हर इक सुख को।

गले से गले लगने को आदमी बेकरार हो जाये।।

[5]

हर जीवन से दूर हर विवाद हो जाये।

बात घृणा की जीवन में कोई अपवाद हो जाये।।

राष्ट्र की स्वाधीनता हो प्रथम ध्येय हमारा।

देश हमारा यूँ खुशहाल आबाद हो जाये।।

[6]

वतन की आन ही हमारा किरदार हो जाये।

दुश्मन के लिए जैसे हर बाजू ललकार हो जाये।।

राष्ट्र की गरिमा और सुरक्षा हो सर्वोपरि।

बस इस चेतना का सबमें संचार हो जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शपथ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  शपथ ? ?

जब भी

उबारता हूँ उन्हें,

कसकर जकड़ लेते हैं 

और

मिलकर

डुबोने लगते हैं मुझे,

सुनो-

डूब भी गया मैं तो

मुझे यों श्रद्धांजलि देना,

मिलकर

डूबतों को उबारने की

शपथ लेना !

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #219 – 106 – “करने कितने काम हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल करने कितने काम हैं …” ।)

? ग़ज़ल # 106 – “करने कितने काम हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जब से तेरे इश्क़ की शहद ओंठों से लगाई है,

तब से दिल में मीठ सा दर्द मीठी सी तन्हाई है।

सांसद चुनते रहते हम हर दफ़ा पाँच सालों में,

सरकारी मेहनत का फल सिर पर मंहगाई है।

वो पेड़ा भगवान को दिखाकर ख़ुद ही चढ़ा जाते,

भ्रष्टाचारी की अब तक बनी ना कोई दवाई है।

भारत को राष्ट्र हितैषी नेता अब मिल पाया है,

असली आज़ादी पचहत्तर वर्ष बाद मिल पाई है।

करने कितने काम हैं अभी बाक़ी देश हित में,

देखिए आगे है क्या अभी तो लम्बी लड़ाई है।

राष्ट्र में एकरूप नागरिक संहिता लागु होना है,

तब कौन कहेगा अलग हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई है।

रामलला दरबार सज़ रहा है सरयू किनारे पर,

आतिश को अब रोज-रोज मिलनी मीठी मलाई है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 159 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “कामना…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “कामना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “कामना” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

चाह नहीं मेरी कि मुझको मिले कहीं भी बड़ा इनाम

इच्छा है हो सादा जीवन पर आऊँ जन-जन के काम ॥

निर्भय मन से करूँ सदा कर्त्तव्य सभी रह निरभिमान

सेवाभाव बनाये रक्खे मन में नित मेरे भगवान ॥

रहूँ जगत् के तीन-पाँच से दूर मगर नित कर्म-निरत

भाव कर्म औ’ मन से जग में करता रहूँ सभी का हित ॥

मन में कभी विकार न उपजे, देश प्रेम हो सदा प्रधान

स‌द्विचार का रहूँ पुजारी, बुद्धि सदा यह दें भगवान ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – मानवता का गान – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – मानवता का गान  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है।

जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।

भेदभाव में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं।

मानव-मानव एक बराबर, ऊँचनीच सब घातें हैं।।

नित बराबरी को अपनाना, यह प्रभु का जयगान है।

जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल।

पेट है भूखा, तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल।।

अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है।

जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।

धन-दौलत मत करो इकट्ठा, नहीं खुशी पाओगे।

जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे।।

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है।

जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।

शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा।

वही जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा।।

देव नहीं, मानव कहलाऊँ, यही आज अरमान है।

जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।

जीवन का तो अर्थ प्यार है, अपनेपन का गहना है।

वह ही तो नित शोभित होता, जिसने इसको पहना है।।

जो जीवन को नहिं पहचाना, वह मानव अनजान है।

जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमर्त्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अमर्त्य ? ?

जानता हूँ,

यही सोच रहे हो कि

हर बार उगला

हलाहल तुमने

और मैं अब तक

‘जीवेत् शरद: शतम्!’

चकित हो ना?

सुनो भुजंग,

सहानुभूति है तुमसे,

जानता हूँ,

अमर्त्य नहीं मैं

पर क्या करूँ,

मेरी भावनाओं

के अमृत का घनत्व

बहुत अधिक है;

तुम्हारे दयनीय विष की

द्रव्यता की अपेक्षा! 

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #213 ☆ मुक्तक – नव वर्ष… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  मुक्तक – नव वर्ष…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 213 – साहित्य निकुंज ☆

☆ मुक्तक – नव वर्ष…  डॉ भावना शुक्ल ☆

नया देखें सवेरा जो  नव वर्ष आया है ।

मिला हमको तोहफा ये दिल में समाया है।

तेरी आंखों में हमने तो सपने जो देखे हैं।

उन्हें पूरा ही करने का  मौका जो आया है।

नव वर्ष प्यारा है खुशियां प्यारी ही लाया है।

जगी दिल में जो उम्मीदें फरमान आया है।

सोचा जो हमने है वो हासिल हमें होगा।

आशा का ये दीपक जो हमने जलाया है।।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #195 ☆ संतोष के दोहे – नया वर्ष नव चेतना ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – नया वर्ष नव चेतनाआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 195 ☆

☆ संतोष के दोहे  – नया वर्ष नव चेतना ☆ श्री संतोष नेमा ☆

आते – जाते वर्ष का, करें न हर्ष-विशाद

वर्तमान में खुश रहें, छोड़ सभी अवसाद

लेते जो नव वर्ष में, कसमें खूब कमाल

अमल कभी ना कर सकें, उन पर उठें सवाल

☆ 

नया वर्ष नव चेतना, मन में नई उमंग

चलें राह हम धर्म की, छोड़ें सभी कुसंग

कथनी-करनी एक सी, रखते जो भी लोग

मान बढ़े उनका सदा, दूर रहें अभियोग

ले विदाई चला गया, वर्ष तेइस सहर्ष

स्वागत कर चौबीस का, मना रहे नव वर्ष

संस्कार छोड़ें नहीं, मन में भर उत्कर्ष

मिले सफलता आप को, मंगल हो नव वर्ष

गठबंधन के नाम पर, रखा इंडिया नाम

पर श्रीमन तेइस में, बना न कोई काम

राजनीति के नाम पर, फैलाते अलगाव

बचिए ऐसे दलों से, रखें न कोई लगाव

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “नव वर्ष अभिनंदन…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता  – “नव वर्ष अभिनंदन…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

बदल रहा है साल तो क्या है

बीती यादों को संजो लो तुम

नव वर्ष के आगमन का

खुशियों से करो अभिनंदन तुम

छोड़ बुराई अच्छे पथ पर

आगे बढ़ते जाना तुम

आंधी तूफान कठिन राह से

कभी नहीं घबराना तुम

नज़र बदल कर सोच बदलकर

जीवन पथ पर चलना तुम

मुश्किल काज ना लगेगा मुश्किल

मंजिल को पाओगे तुम

सजे स्वप्न साकार जब होंगे

धैर्य का दामन थामोगे तुम

अंधेरे जब बन जायेंगे उजाले

प्रज्ज्वलित मन से देखोगे तुम।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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