हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “नव वर्ष अभिनंदन…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता  – “नव वर्ष अभिनंदन…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

बदल रहा है साल तो क्या है

बीती यादों को संजो लो तुम

नव वर्ष के आगमन का

खुशियों से करो अभिनंदन तुम

छोड़ बुराई अच्छे पथ पर

आगे बढ़ते जाना तुम

आंधी तूफान कठिन राह से

कभी नहीं घबराना तुम

नज़र बदल कर सोच बदलकर

जीवन पथ पर चलना तुम

मुश्किल काज ना लगेगा मुश्किल

मंजिल को पाओगे तुम

सजे स्वप्न साकार जब होंगे

धैर्य का दामन थामोगे तुम

अंधेरे जब बन जायेंगे उजाले

प्रज्ज्वलित मन से देखोगे तुम।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सिक्का ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सिक्का ? ?

समूह-एकांत,

सामाजिक-अंतर्मुखी,

मुखर-मौन,

काँटा-छापा,

विरोधाभासी एक ही

धरातल पर खड़े होते हैं,

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।  

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ “नवाशा” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ “नवाशा” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

**

“नवल वर्ष नवाशा  दमके

नयनों में   जलजात खिलें।।

—–

वैदिक ऋचा सी हों सुबहें

हिमकणिका के साथ मिले

—-

सदा प्रमाणित हों निर्दोष

दर्पण  सारे  स्नात मिलें।।

——

मौसम के रूमालों पर भी

सुरभित  पारिजात  मिलें।।

——

शिल्प सनातन गढ़ पायें

वो सारस्वत सौगात मिले।।

——

जीवन में नित गीत गद्य का

सही सही  अनुपात मिले।।

* * *

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 252 ☆ कविता – कैलेंडर बदला ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – कैलेंडर बदला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 252 ☆

? कविता – कैलेंडर बदला ?

(चैट जी पी टी से लिखी गई, किंचित परिष्कृत कविता)

नया साल आया, नयी राहें बनीं,

 जिंदगी में, नई संभावनाएं बनी ।

 

बीता हुआ कल, हुआ आज अतीत,

नए साल के संग, नयी बने रीत।

 

मिलकर लिखें, जिदंगी की कहानी नई,

 पल पल में हो खुशियों की रवानी नई

 

सफलता  सर्वत्र, मिले संपन्नता विपुल

इस साल में हों, सब स्वस्थ सुखी अतुल।

 

दिन की रौशनी, नई रचे इबारत

रात हो, खुशियों से भरी  इबादत

 

भूलें गुजरे समय की कटुता,

वैमनस्य

नये साल के साथ, नए

हों सामंजस्य ।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #28 ☆ कविता – “किस्मत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 28 ☆

☆ कविता ☆ “किस्मत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

किस्मत क्या है

शतरंज की इक चाल है

जिसकी ना कोई पहचान है

बस खेल ही उसकी जान है

 

वो तो अपनी चालें चलेगी

बुद्धि तुम्हारी सुलगेगी

प्रतिचाल तुम्हारी बोलेगी

दो कदम पीछे कभी आगे चलेगी

 

चालें तो आती ही रहेंगी

प्यादे कटाती रहेगी

प्यादों को प्यादे न रहने देना

वजीर उन्हें बना देना

 

कभी आगे कभी पीछे

तुम बस चलते रहना

एक दिन चालें उसकी ख़त्म होगी

उस वक़्त तक, तुम बस

काबिल-ए-कदम रहना…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 188 ☆ बाल गीत – खेलें – कूदें करें धमाल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 188 ☆

☆ बाल गीत – खेलें – कूदें करें धमाल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

आर्यन बाबू बड़े कमाल।

खेलें – कूदें करें धमाल।।

 

कभी खेलते छूई – छूआ

कविता उनकी बिल्ली – चूहा

नव नूतन गाएँ दे ताल।

आर्यन बाबू बड़े कमाल।।

 

बड़े शौक से फल वे खाते।

गाजर , खीरा चट कर जाते।

मौसम से वे पूछें हाल।

आर्यन बाबू बड़े कमाल।।

 

अ आ इ ई पढ़ें पहाड़े।

क, ख , ग , घ व्यंजन सारे।

ए , बी , सी , डी लगे गुलाल।।

आर्यन बाबू बड़े कमाल।।

 

तरह – तरह की मोटर गाड़ी।

परियों को पहनाएँ साड़ी।

हाथी , भालू पीटें ताल।

आर्यन बाबू बड़े कमाल।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #211 – कविता – ☆ लो, फिर से एक साल रीत गए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके लो, फिर से एक साल रीत गए…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #211 ☆

☆ लो, फिर से एक साल रीत गए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(आँग्ल नव वर्ष की आप सभी साथियों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ एक काव्य रचना..)

लो,फिर से एक साल रीत गए

आभासी सपनों को बहलाते

शातिर दिन चुपके से बीत गए।

 

साँसों की सरगम का

एक तार फिर टूटा

समय के चितेरे ने

हँसते-हँसते लूटा,

यादों के सतरंगी कुछ

छींटे, छींट गए। शातिर दिन……

 

कहने को आयु में

एक अंक और बढ़ा

खाते में लिखा गया

अब तक जो ब्याज चढ़ा,

कुछ सपने कुछ अपने

अंतरंग मीत गए। शातिर दिन……

 

मिलन औ विछोह

जिंदगी के दो अंग है

सुख-दुख के मिले जुले

भिन्न भिन्न रंग है,

जीत-जीते अब तो

हम जीना सीख गए, शातिर दिन……

 

मन की अभिलाषा

आगे,आगे बढ़ने की

जीवनपथ के अभिनव

पाठ और पढ़ने की,

अभिनंदन, वर्ष नया

लिखें मधुर गीत नये,

शातिर दिन बीत गए।

 

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ भोर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “भोर…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ भोर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

आँगनों की धूप

छत की मुँडेरों पर

बैठ दिन को भज रही है।

 

सुबह की ठिठुरन

रज़ाई में दुबकी

रात भरती उसाँसें

लेती है झपकी

 

सिहरते से रूप

काजल कोर बहती

आँख सपने तज रही है।

 

अलस अँगड़ाई

उठा घूँघट खड़ी है

झटकती सी सिर

हँसी होंठों जड़ी है

 

फटकती है सूप

झाड़ू से बुहारे

भोर उजली सज रही है

 

लगा है पढ़ने

सुआ भी चित्रकोटी

चढ़ा बटलोई

मिलाकर दूध रोटी

 

जग गये हैं कूप

पनघट टेरता है

छनक पायल बज रही है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ “)

✍ न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ … ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जिसे देखिएगा वही ग़म ज़दा है ।

बहारों का अंदाज़ बदला हुआ है ।

##

न पहले से मौसम,न अब वो फ़ज़ाएँ ।

चलन इश्क़ का आज सबसे जुदा है ।

##

न मुंसिफ़ है कोई ,न कोई अदालत ।

मुसलसल गुनाहों का ही सिलसिला है ।

##

सफ़र में अकेला नहीं मैं बलाओं

मिरी हमसफ़र मेरी माँ की दुआ है ।

##

जुदाई की कोई भी सूरत नहीं अब।

मिरी इन लक़ीरों मे तू ही लिखा है ।

##

मुझे तुझसे फ़ुरसत नहीं एक लम्हा ।

मिरा तुझसे अब कोई तो वास्ता है ।

##

है आसां बहुत ज़िन्दगी का सफ़र ये ।

मुझे नेकियों का सिला ये मिला है ।

##

अरुण ढूँढता था ज़माने में जिसको।

वो महबूब उसका मुक़द्दर हुआ है ।

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 34 – कण-कण जहरीला है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कण-कण जहरीला है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 33 – कण-कण जहरीला है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

परवशता में छोड़ गाँव 

हम शहर चले आये 

एक बार टूटे रिश्ते

फिर कभी न जुड़ पाये 

हमने मेहनत कर

खेतों में अन्न उगाया है 

हम मजदूरों से 

मालिक ने वैभव पाया है 

बदले में श्रमिकों ने

अक्सर कोड़े ही खाये 

राशन की दुकानों में भी 

बड़ी कतारें हैं 

लाचारी की नाव

और जर्जर पतवारें हैं 

तृष्णा की भँवरों में

बेबस डूबे उतराये 

दम घुटता है यहाँ 

जहाँ कण-कण जहरीला है 

उजले कागज पर हो जाता 

काला-पीला है 

अस्मत के आभूषण तक

हम बचा नहीं पाये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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