हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उत्क्रांति ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – उत्क्रांति ? ?

कुआँ, पेड़,

गाय, साँप,

सब की रक्षा को

अड़ जाता था,

प्रकृति को माँ-जायी

और धरती को

माई कहता था..,

अब कुआँ, पेड़,

सब रौंद दिए,

प्रकृति का चीर हरता है,

धरती का सौदा करता है,

आदिमपन से आधुनिकता,

उत्क्रांति कहलाती है,

जाने क्यों मुझे यह

उल्टे पैरों की यात्रा लगती है!

© संजय भारद्वाज 

(दोपहर 1:55 बजे, दि. 18.12.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 94 ☆ मुक्तक ☆ ।।कर्म पूजा,ऊर्जा,सफलता मंत्र है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 94 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।कर्म पूजा,ऊर्जा,सफलता मंत्र है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

घना कोहराआगेअंधेरा नज़र कुछआता न हो।

हो तनाव अवसाद और    कुछ भाता न  हो।।

पर मत सोचना फिर भी  नकारात्मक विचार।

जो सकारात्मक ऊर्जा जीवन में लाता न हो।।

[2]

आपकी सोचऔर ऊर्जा जीतआधार बनती है।

आपकी उचित जीवन शैली कारगार बनती है।।

कर्म ही पूजा कर्म   ही मन्त्र है  सफलता  का।

उत्साह से ही जाकर जिंदगी शानदार बनती है।।

[3]

संकल्प,दृढ़ दृष्टिकोण हों जीवन के प्रमुखअंग।

अनुशासन हीनता   हो तो   लग जाती है जंग।।

सतत कोशिशऔर बार बार का करना अभ्यास।

निरंतर प्रयास हो और कभी नहीं हो ध्यान भंग।।

[4]

जीवन एक कर्मशाला जगह ऐशो आराम नहीं है।

है यह संघर्ष तपोवन   कोई घृणा मैदान नहीं है।।

पलायन से बदनाम न कर इसअनमोल जीवन को।

बिन किये उपकार  उतरता    यह  एहसान नहीं है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 157 ☆ “भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ “भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

 

भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये ।

औरों के कष्ट का सही अनुमान दीजिये ॥

दुनिया में भाई-भाई से हिलमिल के सब रहें

है द्वेष जड़ लड़ाई की – यह ज्ञान दीजिये ॥

होता नहीं लड़ाई से कुछ भी कभी भला

सुख-शांति के निर्माण का अरमान दीजिये ॥

निर्दोष मन औ’ शुद्ध भावनाओं के लिये

हर व्यक्ति को सबुद्धि औ’ सद्ज्ञान दीजिये ॥

दुनिया सिकुड़ के  आज हुई एक नीड़ सी

इस नीड़ के कल्याण का विज्ञान दीजिये ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संजय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संजय ? ?

सारी टंकार;

सारे कोदंड

डिगा नहीं पा रहे,

एकाग्रता को

मिटा नहीं पा रहे,

जीवन के महाभारत का

दर्शन कर रहा हूँ,

घटनाओं का

वर्णन कर रहा हूँ,

योगेश्वर उवाच का

श्रवण कर रहा हूँ,

‘संजय’ होने का

निर्वहन कर रहा हूँ।

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 9:14 बजे, 3 अक्टूबर 2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #211 ☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 211 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे …  डॉ भावना शुक्ल ☆

(प्रदत्त शब्दों पर दोहा सृजन)

कंबल

तेरे मेरे प्रेम की, कंबल ही बस याद।

सदा सलामत यह रहे,यही करें फरियाद।।

रजाई

प्रेम रजाई ओढ़कर,बैठी है मनप्रीत।

बाट पिया की देखती,निभा रही है रीत।।

शीतलहर

शीत लहर का बढ़ रहा,है भयंकर प्रकोप।

कंबल स्वेटर साथ है,नहीं ठंड का कोप।।

गुनगुनी

धूप गुनगुनी लग रही,ढक लो अपना अंग।

राहत कुछ तो मिल रही,जमा धूप का रंग।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #193 ☆ संतोष के दोहे – आतंक ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – आतंकआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 193 ☆

☆ संतोष के दोहे  – आतंक ☆ श्री संतोष नेमा ☆

मानवता मरती गई, जिंदा बस आतंक

जिनके मन की क्रूरता, खूब मारती डंक

बच्चे, बूढ़े, नौजवां, महिला बनीं  शिकार

नफ़रत की इस जंग में, प्रेम बड़ा लाचार

नफ़रत, हिंसा ईर्ष्या, नहीं सिखाता धर्म

जिनके मन आतंक हो, उनके खोटे कर्म

जिनके मन बस विकृति हो, वे आतंकी लोग

निर्दोषों को मारते, लगा खून का रोग

मानवता की लाश पर, करते जो नित नृत्य

उनको क्या जन्नत मिले, जिनके हिंसक कृत्य

अपने खोटे करम पर, करते वही गुरुर

जिनके हिय न दीन-धरम, रहें अहम में चूर

अपने अपने अहम के, होते सभी शिकार

इनको कब संतोष हो, मन में रखें विकार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मनोरोग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मनोरोग ? ?

वह मिला था,

वह मिली थी..,

वह आया था,

वह आई थी..,

वह हँसा था,

वह हँसी थी..,

वह सोया था,

वह सोई थी..,

कर्ता का लिंग बदलने से

नहीं बदलता क्रिया का अर्थ,

व्याकरण तटस्थ होता है..,

कर्ता का लिंग बदलते ही

कर देता है सारे अर्थ वीभत्स,

आदमी मनोरोग से ग्रस्त होता है..!

© संजय भारद्वाज 

(प्रात: 5.01 बजे, 11.12.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 186 ☆ बाल कविता – पंख लगाओ पेड़ सखा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 186 ☆

☆ बाल कविता – पंख लगाओ पेड़ सखा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

पेड़ सखा तुम उड़ते वैसे

       जैसे बादल हैं उड़ते ।

डाल तुम्हारी बैठ-बैठ कर

      सैर मजे से हम करते।।

 

बादल राजा सैर कर रहे

         धरती और गगन में नित।

कहीं बरसते, कहीं सरसते

             सबका करते बादल हित।।

 

खुशबू फैलाते दुनिया में

        सुन्दर – सुंदर फूलों की।

सब बच्चों को फल खिलवाते

       पैंग बढ़ाते झूलों की।।

 

बातें करते हर पंछी से

        मिल-जुलकर ही हम सारे।

भोर सदा ही हम जग जाते

             गीत सुनाते नित न्यारे।।

 

खेल-कूद ,योगासन करना

        सबको रोज पढ़ाते हम।

हिंदी, इंग्लिश सब कुछ पढ़कर

        नया ज्ञान बढ़वाते हम ।।

 

कभी न लड़ते आपस में हम

         सदा प्रेम से ही रहते।

हर मुश्किल का समाधान कर

         नदियों जैसा ही बहते।।

 

सुख जैसे तुम सबको देते

       नहीं किसी से लड़ते हो।

धूप, ताप तुम सब सह जाते

       आगे-आगे बढ़ते हो ।।

 

वैसे ही हम बढ़े चलें नित

     कभी न हिम्मत हारेंगे।

सबके ही हितकारी बनकर

      सबको ही पुचकारेंगे।।

 

पंख लगाओ पेड़ सखा तुम

      सैर करें पूरे जग की।

हँसी-खुशी से जीवन जीना

     मूल्यवान पूँजी सबकी।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 229 ⇒ झुक गया आसमान… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी कविता – “झुक गया आसमान…।)

?अभी अभी # 229 ⇒ झुक गया आसमान… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आसमान ,तू क्यूं भरा बैठा है!

सूरज का रास्ता रोके

किस आंदोलन का है

प्रोग्राम ?

तेरे इरादे नेक नहीं लगते!

क्या तू जानता नहीं,

सूरज की रोशनी को रोकना

अपराध है!

बादलों से सूरज का घेराव

अलोकतांत्रिक है।

गरीब का चूल्हा,

किसान की फसल,

धरती के सब प्राणी सुबह

सुबह ठंड में सूरज की

रोशनी में नहाकर दिन

का आरंभ करते हैं।।

तूने बादलों को भेजा

सूरज के काम में

दखलंदाजी की!

कभी बारिश तो कभी

ओलावृष्टि की।

कभी ओला,कभी कोहरा

तो कभी बारिश!

अरे! यह कैसी साजिश ?

आसमान! तुम खुदा तो नहीं

अपने पांव जमीन पर रखो

थोड़ी समझदारी रखो।

सूरज से यह छेड़छाड़

बहुत महंगी पड़ेगी।

अभी आएगा कोई दुष्यंत!

तबीयत से करेगा एक सूराख

और तुम्हारा गुरूर

हो जाएगा ख़ाक।।

ये धरती सूरज के बिना

रह नहीं सकती।

सूरज की किरणें कर रहीं

जबर्दस्त कोशिश!

अराजक कोहरे को

हटाने की।

अब तुम्हारी खैर नहीं

एक बार कोहरा हटा नहीं

साफ हो जाएंगे तुम्हारे

मुगालते ऐ आसमान!

फिर धुंध छंटेगी

सूरज चमकेगा,

किरण मुस्काएगी

आसमान तू झुकेगा

और करेगा

उगते सूरज का

इस्तकबाल।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #26 ☆ कविता – “हाल-ए-दिल…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 26 ☆

☆ कविता ☆ “हाल-ए-दिल…☆ श्री आशिष मुळे ☆

ए आसमां, क्या हाल है तेरा

क्या हाल-ए-दिल में

है जैसे खाली पड़ा

 

मेरा हाल तुम जैसा 

दिल में बसे घना अंधेरा

हाय! धड़कन में खिले सवेरा

 

जैसे है रोशन

भीतर जले मगर सूरज

बस हाल वही मेरा

 

या डूबे गहराई में

दिल समंदर का

हाल वहीं दिल-दर्या का

 

तलाश तुम्हे किस आवाज की

रोशनी कौनसी सूरज जला रही

किसकी याद में, दर्या की खामोशी

 

वहीं चांद मेरी वजह

जैसे तुम तीनों की परेशानी

उसकी पर्दा नशीं परछाई

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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