हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 191 ☆ प्रेरणा गीत – भारत के आदर्श राम हैं ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 191 ☆

☆ प्रेरणा गीत – भारत के आदर्श राम हैं ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।

सत्य सनातन विजय पर्व पर

मिलकर हर्ष मनाएँगे।।

 *

जन्मस्थली मुक्त हो गई

बलिदानों की थाती से।

संस्कार , संस्कृति बच पाए

संघर्षी परिपाटी से ।।

 *

राम हमारे पुरषोत्तम हैं

इनको घर – घर लाएँगे।

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।।

 *

स्वाभिमान , अस्तित्व बच गए

भारत माँ का वंदन है।

भक्त समर्पित इसमें उनके

मस्तक रोली चंदन है।।

 *

समता , ऐक्य राष्ट्र की कुंजी

सब ही हम अपनाएँगे।

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।।

 *

मथुरा, काशी आराध्य  हैं

उनको आदर्श  बनाना है।

पीओके में ध्वज फहराकर

राष्ट्रीय धर्म बचाना है।।

 *

शिव , कान्हा संकल्प सुनेंगे

घर – घर दीप जलाएँगे।।

भारत के आदर्श राम हैं

जग में ध्वज फहराएँगे।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #214 – कविता – ☆ समन्वय कर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “समन्वय कर…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #214 ☆

☆ कविता – समन्वय कर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

बन्द हो गया हूँ

अपने आप में

वैचारिक आवाजाही

निरन्तर चलने के बावजूद

रुक सा गया है

प्रवाह जीवन का,

संकल्प-विकल्प

हो गए प्राण-हीन

भाने लगी उदासीन चुप्पियाँ

एकान्त की

बेचैनियाँ मौन संवाद में व्यस्त,

सूखते जा रहा

उम्मीदों का सरोवर

आशा,विश्वास,उम्मीदें

 ये सब गहरे में कहीं

खो गये हैं

बीज हताशा के

मन में बो गये हैं

 बावजूद इन सब के

अब भी रोज-रोज

हर पल सुनाई देती है

साँसों में एक मधुर गूँज

कहती, धीरे-धीरे

स्थितियों से समन्वय कर

थोड़ा खुश-खुश दिख

परिवर्तित समय के साथ

जिंदगी को जीना सीख।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 38 ☆ जीवन दर्शन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “जीवन दर्शन…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 38 ☆ जीवन दर्शन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

 राम नहीं इक नाम

 विचारों का मंथन है।

*

 सरयु का जल

 पीकर जिसने

 मर्यादा ओढ़ी

 निर्वासित हो

 गया लाँघकर

 महलों की ड्योढ़ी

 शब्द एक अविराम

 जगत मिथ्या क्रंदन है।

*

 शापित सी है

 उम्र अहिल्या

 राह रचे सन्यास

 संकल्पों से

 बंधे उदधि तो

 पूरा हो वनवास

 संघर्षों के नाम

 नियति गढ़ती चिंतन है।

*

 संयम शेष

 अशेष कामना

 सीता का संताप

 झूठ के आगे

 सत्य झेलता

 परित्यक्ता का श्राप

 जारी है संग्राम

 यही जीवन दर्शन है।

…।…

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अलिखित ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अलिखित ? ?

सुनो-

कलरव से

नीरव हो जाने में

समय नहीं लगता

पर नीरव से

कलरव लाने में

बीत जाते हैं युग,

चुक जाती हैं सदियाँ,

उपसर्ग भर बदलने से

कितने बदल जाते हैं शब्द,

उनका अर्थ और

अ-लिखा शब्दकोश!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा“)

✍ नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

निगाह से न गिराना भले फ़ना कर दो

अगर नहीं है मुहब्बत उसे जुदा कर दो

 *

किसी गिरे को कभी लात मत लगाना तुम

बने अगर जो ये तुमसे जरा भला कर दो

 *

सबाब में मिले जन्नत न शक जरा इसमें

किसी गरीब के जो रोग की दवा कर दो

 *

नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा

भुला के जुर्म सभी बस उसे क्षमा कर दो

 *

कफ़स की कैद में दम तोड़ परिंदा देगा

वो नाप लेगा ये अंबर उसे रिहा कर दो

 *

गुरूर उसका पड़ा धूल में न काम आया

भुगत रहा वो सज़ा अब उसे दुआ कर दो

 *

अभी तलक मैं जिया सिर्फ खुद की ही खातिर

किसी के काम भी आऊ मुझे ख़ुदा कर दो

 *

लगा ज़हान बरगलाने सौ जतन करके

झुके ख़ुदा न कभी यूँ मेरी अना कर दो

 *

अरुण नसीब का लिख्खा नहीं मिले यूँ ही

उठो तो दस्त से कुछ काम भी बड़ा कर दो

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 37 – वो पहले प्यार के लमहे… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – वो पहले प्यार के लमहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 37 – वो पहले प्यार के लमहे… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

वो, पहले प्यार के लमहे कहाँ बिसराये जाते हैं 

घुमड़कर और गहरे तक, दिलों पर छाये जाते हैं

*

यहाँ काँटों में पलकर भी, जिये हम शान से लेकिन 

वहाँ, फूलों के बिस्तर पर भी, वो मुरझाये जाते हैं

*

यहाँ तो, देखने उनको, ये आँखें कबसे प्यासी हैं 

हमामों में वहाँ, वो देर तक नहलाये जाते हैं

*

वो, सजकर, डोलियों में जब कभी बाहर निकलते हैं 

तो, काँधे आशिकों के ही, वहाँ लगवाये जाते हैं

*

उन्हें जिद है, निशाना साधने, आखेट करने की 

बना गारा, मचानों से हमीं बँधवाये जाते हैं

*

उतारू जान लेने पर है, परवानों की, ये शम्मा 

दिखाने आतिशी जल्वे हमीं बुलवाये जाते हैं

*

तरीका है हसीनों का अजब श्रृंगार करने का 

लहू, आशिक के दिल का ले, अधर रचवाये जाते हैं

*

जलाकर, आशियाँ मेरा, वो दीवाली मनाते हैं 

कहर, आचार्य हम पर इस तरह के ढाये जाते हैं

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मुखौटे ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मुखौटे ? ?

मुखौटों की

भीड़ से घिरा हूँ,

किसी चेहरे तक

पहुँचूँगा या नहीं

प्रश्न बन खड़ा हूँ,

मित्रता के मुखौटे में

शत्रुता छिपाए,

नेह के आवरण में

विद्वेष से झल्लाए,

शब्दों के अमृत में

गरल की मात्रा दबाए,

आत्मीयता के छद्म में

ईर्ष्या से बौखलाए,

बार-बार सोचता हूँ

मनुष्य मुखौटे क्यों जड़ता है..

भीतर-बाहर अंतर क्यों रखता है..?

मुखौटे रचने-जड़ने में

जितना समय बिताता है,

जीने के उतने ही पल

आदमी व्यर्थ गंवाता है,

श्वासोच्छवास में मत्सर

मानो विष का घड़ा है,

गंगाजल-सा जीवन रखो मित्रो,

पाखंड में क्या धरा है..?

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 11.52 बजे, 15.10.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 113 – सड़कों पर उड़ती है धूल… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  आपकी भावप्रवण कविता “सड़कों पर उड़ती है धूल…” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 113 – सड़कों पर उड़ती है धूल…

सड़कों पर उड़ती है धूल।

खिला बहुत कीचड़ में फूल।।

मजहब का बढ़ता है शोर,

दिल में चुभे अनेकों शूल।

मँहगाई का है बाजार,

खड़ी समस्या कबसे मूल।

नेताओं की बढ़ती फौज,

दिखे कहाँ कोई अनुकूल।

सीमाओं पर खड़े जवान,

बँटवारे में कर दी भूल।

हुए एक-जुट भ्रष्टाचारी,

राजनीति में उगा बबूल।

जाति-पाँति की फिर दीवार,

हिली एकता की है चूल।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 178 – आन विराजे राम लला – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर रचित एक गीत “आन विराजे राम लला”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 178 ☆

☆ 🌹 आन विराजे राम लला 🌹 

[1]

हे रघुकुल नायक, हो सुखदायक, पावन सुंदर, राम कथा।

जो ध्यान धरें नित, काज करें हित, राम सिया प्रभु, हरे व्यथा ।।

ये जीवन नैया, पार लगैया, आस करें सब, शीश नवा।

सुन दीनदयाला, जग रखवाला, राम नाम की, बहे हवा।।

[2]

बोले जयकारा, राम हमारा, वेद ग्रंथ में, लिखा हुआ।

लड़- लड़ के हारे, झूठे सारे, हार गये जब, करे दुआ।।

है सत्य सनातन, धर्म रहे तन, बीते दुख की, अब बेला।

उठ जाग गये सब, मंगल हो अब, राम राज्य की, है रेला। ।

[3]

हे ज्ञान उजागर, वंशज सागर, दशरथ नंदन, ज्ञान भरो।

हे भाग्य विधाता, जन सुखदाता, इस जीवन के, पाप हरो।।

ले बाम अंग सिय, धनुष बाण प्रिय, शोभित सुंदर, मोह कला।

शुभ सजे अयोध्या, बजे बधैया, आन विराजे, राम लला।।

🙏 🚩🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – गीत – राम अवध हैं लौटते – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – गीत – राम अवध हैं लौटते  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज।

मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।।

सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व।

भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।।

सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर।

नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।।

सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश।

दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।।

आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान।

आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।।

आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप।

आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।।

बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

जीवन अब अनुरागमय, सधे सभी सुर आज।

प्रभु राघव का हो गया, हर दिल पर तो राज।।

भक्तों ने हनुमान बन, किया राम का काज।

दुष्टों पर आवेग में, गिरी आज तो गाज।।

साँच और शुभ रीति से, चहके हैं घर-द्वार।।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

*

तुलसी बाबा खुश हुए, त्रेता का यह दौर।

सारे सब कुछ भूलकर, करें राम पर गौर।।

दौड़ रहे साकेत को, बोल रहे जय राम।

प्रभुदर्शन में बस गया, दिव्य ललित आयाम।।

आओ राघव! आपका, बार-बार सत्कार।

राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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