हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 119 ☆ “सॉनेट ~ नर्मदा” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “सॉनेट ~ नर्मदा”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 119 ☆ 

☆ सॉनेट ~ नर्मदा ☆

नर्मदा सलिला सनातन,

करोड़ों वर्षों पुरानी,

हर लहर कहती कहानी।

रहो बनकर पतित पावन।।

 

शिशु सदृश यह खूब मचले,

बालिका चंचल-चपल है,

किशोरी रूपा नवल है।

युवा दौड़े कूद फिसले।।

 

सलिल अमृत पिलाती है,

शिवांगी मोहे जगत को।

भीति भव की मिटाती है।।

 

स्वाभिमानी अब्याहा है,

जगज्जननी सुमाता है।

शीश सुर-नर नवाता है।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-१२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ माँ के दियें ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी ☆

डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी

(डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी एक संवेदनशील एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार के अतिरिक्त वरिष्ठ चिकित्सक  के रूप में समाज को अपनी सेवाओं दे रहे हैं। अब तक आपकी चार पुस्तकें (दो  हिंदी  तथा एक अंग्रेजी और एक बांग्ला भाषा में ) प्रकाशित हो चुकी हैं।  आपकी रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी और गुजराती  भाषाओं में अनुवाद हो  चुकाहै। आप कथाबिंब ‘ द्वारा ‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार (2013, 2017 और 2019) से पुरस्कृत हैं एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा “हिंदी सेवी सम्मान “ से सम्मानित हैं।)

☆ कविता ☆ माँ के दियें ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी 

थक कर जब घर लौटा तो छू

गई मुझे पुरवाई।

दस्तक देते मानो माँ ने

कहा, ‘ठहर मैं आई।’

मेरे बालों को सहलाकर

हवा भी फुसफुसाई,

‘तेरी माँ की छूअन लेकर

तुझको देने आई।’

पारिजात का पेड़ खड़ा था

खूब हिलायी शाखें,

उसके सफेद फूल गिरे सब

मेरे सिर पर आके।

माँ की ममता ऐसे ही क्या

बरस रही है मुझ पर?

चारों ओर बिखर गये फूल

माँ की खुशबू लेकर।

एकबार माँ तुझको देखूँ

तरस रही थी आँखें,

तुझको छूने मन था आतुर

फैलाया था पाँखें।

मन आँगन में फिर से कोई

खिड़की ही खुल जाती।

माँ खिड़की से झाँक झाँक कर

मानो मुझे बुलाती।

दूर गगन में बैठी माँ ने

दियें जलाये सारे –

रात अँधेरी, राह दिखाने –

आसमान में तारे !

♦♦♦

© डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधरी

नया पता: द्वारा, डा. अलोक कुमार मुखर्जी, 104/93, विजय पथ, मानसरोवर। जयपुर। राजस्थान। 302020

मो: 9455168359, 9140214489

ईमेल: [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #151 ☆ कविता – आज ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 151 ☆

☆ ‌कविता – आज ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

जो बीत गया वो भूतकाल था,

जो‌ बचा हुआ वह आज है।

उसका संबंध है भविष्य काल से,

यही तो गहरा‌ राज है।

आज की मेहनत पर टिका हुआ,

सफल भविष्य  का साज है।

कर्मवीर मानव  अपने कर्मों पे

करता नाज है।

आज की मेहनत का परिणाम ‌

सदैव भविष्य में मिलता है।

अकर्मण्य पछताता है,

उसका दुखी मिजाज है।

भूतकाल ना लौट के आए,

खाली स्मृतियों में दिखता है।

जिसने मेहनत किया आज,

वह नई उंचाई छूता है।

वह चढ़ा बुलंदी की छाती पर,

उसे आज दुआएं  देता है।

इस समय के रूप तीन है भाई,

 कल आज और कल।

  बीते समय को आज भुला कर,

आगे आगे  तू अब  चल।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

14.12.2022, 10.04 

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #168 – 54 – “तेरी ख़ुश्बू मुझ पर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तेरी ख़ुश्बू मुझ पर …”)

? ग़ज़ल # 54 – “तेरी ख़ुश्बू मुझ पर …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

चश्मे पुरनम मुसक़ाती रही रात भर,

तेरी  याद  मुझे  आती रही रात भर।

कोई आहट सी भी आती रुकरुक कर,

नागिन  जुल्फ  लहराती रही रात भर।

सारी रात चिढ़ाता चाँद भी  फलक  पर,

शबनम मुझको झुलसाती रही रात भर।

सुलग गया तन मन आ बैठा हैं अनंग

तेरी ख़ुश्बू मुझ पर छाती रही रात भर,

आतिश से बिछड़न होता है एक जंजाल,

ख़लिश पुरानी मुझे सताती रही रात भर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – रोज़ाना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻

अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – रोज़ाना ??

सुनो,

रोज़ाना लिखते हो,

एक दिन नहीं लिखोगे

तो क्या घट जाएगा…?

अब मेरी सुनो,

रोज़ाना साँस लेते हो,

एक दिन नहीं लोगे

तो क्या बच पाएगा…?

© संजय भारद्वाज 

17 दिसम्बर 2022, रात्रि 9:54 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘उपचार’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Treatment…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~उपचार ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – उपचार ??

आदमी जब रो नहीं पाता,

आक्रोश में बदल जाता है रुदन,

आक्रोश की परतें

हिला देती हैं सम्बंधों की चूलें,

धधकता ज्वालामुखी

फूटता है सर्वनाशी लावा लिये,

भीतरी अनल को

जल में भिगो लिया करो,

मनुज कभी-कभार

रो लिया करो…!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Treatment ~ ??

When the man cannot cry,

the unrealised lamentation

turns into frustration,

Layers of resentment shake

the foundation of relations,

Flaming volcano erupts

with the apocalyptic lava,

The inner fire must be

drenched in the water…

O’ Mankind, sometimes

you must even cry…!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 45 ☆ मुक्तक ।।यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 45 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ज्ञान बुद्धि विनम्रता तेरे  आभूषण हैं।

सत्यवादिता प्रभुआस्था तेरे भूषण हैं।।

मत रागद्वेष कुभावना    वरण करना।

ईर्ष्या और घृणा कुमति और दूषण हैं।।

[2]

आत्मविश्वास से खुलती सफल राह है।

सबकुछ संभव यदि जीतने की चाह है।।

व्यवहार कुशलता बनती उन्नति साधक।

बाधक बनती हमारी नफरत   डाह है।।

[3]

मत  पालो  क्रोध  प्रतिशोध  बन  जाता  है।

मनुष्य स्वयं  जलता औरों  को  जलाता  है।।

प्रतिशोध   का  अंत  पश्चाताप  से  है  होता।

कभी व्यक्ति प्रायश्चित भी नहीं कर पाता है।।

[4]

विचार   आदतों   से   चरित्र  निर्माण  होता  है।

इसीसे तुम्हारा व्यक्तित्व चित्र निर्माण होता है।।

तभी बनती तुम्हारी  लोगों  के  दिल  में  जगह।

गलत राह पर केवल दुष्चरित्र निर्माण होता है।।

[5]

बस छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए  भी   कम है।

नफरत   बन   जाती   यूं   लोहे   की  जंग   है।।

बदला लेने में बर्बाद  नहीं  करें  इस  वक्त को।

तेरा सही रास्ता ही लायेगा सफलता का रंग है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 110 ☆ ग़ज़ल – “आँसू  कभी  न  टपके…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “आँसू  कभी  न  टपके…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #110 ☆  ग़ज़ल  – “आँसू  कभी  न  टपके…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

जो  भी  मिली  सफलता  मेहनत  से मैंने पायी

दिन रात खुद से जूझा किस्मत से   की लड़ाई।

 

जीवन   की   राह   चलते   ऐसे   भी   मोड़   आये

जहां एक तरफ कुआं था औ’ उस तरफ थी खाई।

 

काटों   भरी   सड़क  थी, सब ओर था अंधेरा

नजरों में सिर्फ दिखता सुनसान औ’ तनहाई।

 

सब  सहते, बढ़ते  जाना  आदत  सी  हो  गई  अब

किसी से न कोई शिकायत, खुद की न कोई बड़ाई।

 

लड़ते मुसीबतों से बढ़ना ही जिन्दगी है

चाहे   पहाड़  टूटे, चाहे  हो  बाढ़  आई।

 

आँसू  कभी  न  टपके, न  ही  ढोल गये बजाये

फिर भी सफर है लम्बा, मंजिल अभी न आई ।

 

दुनिया की देख चालें, मुझको अजब सा लगता

बेबात   की   बातों   में   दी   जाती  जब  बधाई।

 

सुख में ’विदग्ध’ मिलते सौ साथ चलने वाले

मुश्किल दिनों में लेकिन, कब कौन किसका भाई ?

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #160 ☆ भावना के दोहे – हनुमान जी का लंका गमन /सीता की खोज – 1 ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 160 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – हनुमान जी का लंका गमन /सीता की खोज – 1 

पवन वेग से उड़ रहे, उड़ते हैं हनुमान। 

वर्षा पुष्प की कर रहे, देव करे सम्मान।।

 

करते सीता खोज वह, उड़ते सागर पार

पर्वत से सागर कहे, बड़ा करो आकार।।

 

हाथ जोड़ मैनाक है, पवनपुत्र हनुमान।

आड़े आया आपके, कर लो कुछ आराम।।

 

निकले सीता खोज में, वंदन है हनुमान।

मेरे मन में आपका, बहुत बड़ा सम्मान।।

 

लंका की इस राह में, बाधा करें प्रहार।

करना सीता खोज है, पवन न माने हार।।

 

रामदूत हनुमान हूं, बीच करो ना घात।

रूप धरोना सिंहिका, करता हूं आघात।।

 

किया प्रवेश लंका में, भव्य भवन भंडार।

भेंट लंकिनी से हुई, करते पवन प्रहार।।

 

कहा लंकिनी ने बहुत, हे वीर हनुमान।

मेरा जीवन धन्य हुआ, वानर तुझे प्रणाम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उपचार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻

अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – उपचार ??

आदमी जब रो नहीं पाता,

आक्रोश में बदल जाता है रुदन,

आक्रोश की परतें

हिला देती हैं सम्बंधों की चूलें,

धधकता ज्वालामुखी

फूटता है सर्वनाशी लावा लिये,

भीतरी अनल को

जल में भिगो लिया करो,

मनुज कभी-कभार

रो लिया करो…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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