हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 91 ☆ # पानी के रंग… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पानी के रंग…  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 91 ☆

☆ # पानी के रंग… # ☆ 

पानी का जो बहाव है

वो जीवन के भाव है

कहीं पर हैं तेज रफ्तार

तो कहीं पर ठहराव है

 

छोटे छोटे झरने राह में मिलते है

खड़ खड़ करते संग संग बहते हैं

जीवन का संगीत मिलकर रचते है

बहना ही जीवन है सबसे कहते हैं

 

झरनों से उठता हुआ संगीत

पत्थरों से टकराकर

फूटते मधुर गीत

कितने कर्णप्रिय है

यह झूमते तराने

प्रीत के मिलन की

यही है रीत

 

यह नजारे मन को लुभाते हैं

यह पल जीवन में

कभी कभी आते हैं

निसर्ग की गोद में

असंख्य नजराने है

जो इससे समरस हो

वें ही इन्हें पाते हैं

 

रिमझिम रिमझिम

बरसती फुहारे हैं 

कितने नयनाभिराम

रंगीन नजारे हैं 

डूबकर जी, इन लम्हों को

कितने दिलकश

कितने प्यारे प्यारे हैं/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 102 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 102 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 102) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 102 ?

☆☆☆☆☆

मैं तो बस एक

खुशनुमा ख़्याल हूँ

कभी भी बिन

बुलाए आ जाऊंगा…!

I’m just a pleasant

thought…

I may visit anytime

uninvited…!

☆☆☆☆☆

हर रोज चुपके से

निकल आते नये पत्ते,

यादों के दरख्तों में

क्यूँ पतझड़ नहीं होते…

New leaves keep coming

out secretly everyday,

Why there’s no autumn in

the trees of memories…

☆☆☆☆☆ 

न थाम हाथ सके

न पकड़ सके दामन,

बड़े क़रीब से उठकर

यूंही चला गया कोई

Couldn’t just clasp the hands

couldn’t even grasp the stole,

Someone just got up from

so close and went away…!

 ☆☆☆☆☆ 

मिजाज़ में थोड़ी सख़्ती

ज़रूर रखिए, हुज़ूर

वरना पी जाते लोग समंदर

अगर वो खारा  ना होता …!

Be a little strict with your

temperament, my dear Sir

Otherwise, people would have even

drunk the sea if it wasn’t salty…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 102 ☆ सॉनेट ~ छंद सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट ~ छंद सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 102 ☆ 

☆ सॉनेट – छंद सलिला ☆

(अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट)

नव मुखिया को नमन है

सबके प्रति समभाव हो

अधिक न न्यून लगाव हो

हर्षित पूरा वतन है

 

भवन-विराजी है कुटी

जड़ जमीन से है जुड़ी

जीवटता की है धनी

धीरज की प्रतिमा धुनी

 

अग्नि परीक्षा है कड़ी

दिल्ली के दरबार में

सीता फिर से है खड़ी

 

राह न किंचित सहज है

साथ सभी का मिल सके

यह संयोग न महज है

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२२-७-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल ।। रिश्ते बहुत कीमती जिंदगी में… ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल  । रिश्ते बहुत कीमती जिंदगी में…)

☆ ग़ज़ल ।। रिश्ते बहुत कीमती जिंदगी में… ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

हर गम का तू   इज़हार न   कर।

तू खुद को बस अखबार न  कर।।

[2]

रिश्ते बहुत   कीमती   जिंदगी में।

इनका कभी   तू  व्यापार न  कर।।

[3]

तेरेआसपास ही खुशियां    हज़ार।

तू खुशियों का   इंतिज़ार न    कर।।

[4]

महोब्बत नियामत   है  दुनिया   में।

नफ़रतों से  कभी  करार   न   कर।।

[5]

इस दुनिया के इन   तौर तरीकों में।

तू अपना बे  खबर घर बार न  कर।।

[6]

सबकी सुन    और   सबको  समझ।

नतीजों में खुद को   सरकार न कर।।

[7]

जीत हार हिस्सा किस्सा जिंदगी का।

मन से तो  कभी  खुद     हार न कर।।

[8]

कोशिश करना ही बस फ़र्ज़ है हमारा।

यूँ ही अपने जी   को    बेकरार न कर।।

[9]

इक  बुरी बला है   अहम   बहुत    ही।

यूँ गुस्से में    ही  तू ललकार     न कर।।

[10]

गरीब के घर मिलें गर मीठे बोल तुझको।

जाने को भी वहाँ तू कभी इंकार न कर।।

[11]

हंस प्रभु ने दी जिंदगी इक मकसद को।

जीते जी इस कर्ज़  को तू उधार न कर।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘विरोधाभास’… श्री संजय भरद्वाज (भावानुवाद) – ‘Paradox…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “विरोधाभास”  .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना 

? विरोधाभास ??

सम्बंधों में खाई चोट का

दोष किसीको दूँ भी तो कैसे,

बटोरना उनका तंत्र रहा,

बाँटना मेरा मंत्र रहा,

पलड़े के एक ओर

दोनों साथ तुलते भी कैसे?

© संजय भारद्वाज

 English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi
? Paradox ??

How can I blame anyone for

hurtful impairment in the relationship

Amassing was their way,

Sharing has been my mantra,

How can both be weighed together

on the same side of the pan?

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ह्रास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि –  ह्रास ??

इसने कहा,

उसके भीतर

कुछ कम हो रहा है,

उसने कहा,

उसके भीतर

कुछ कम हो रहा है,

सबने कहा,

सबके भीतर

कुछ कम हो रहा है,

हरेक को भीतर

कुछ कम होने का भास है,

मनुज! संभवत: यही

मनुष्यता का ह्रास है..!

© संजय भारद्वाज

14 जुलाई 2020, प्रात: 11:13 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #149 – ग़ज़ल-35 – “नीति नहीं होती है यहाँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “नीति नहीं होती है यहाँ …”)

? ग़ज़ल # 35 – “नीति नहीं होती है यहाँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

साँप तुम सभ्य नही हुए नगर भी कहाँ बनाया,

तुम ड़सना कहाँ सीखे तुमने ज़हर कहाँ बनाया।

 

सभ्य हम हुए और स्मार्ट नगर भी यहाँ बसाया,

लालच ईर्ष्या द्वेष विष हमने है यहाँ बनाया।

 

मैं मेरा अहंकार घमंड़ी बीन बजाती यहाँ काया। 

वो मिट गया जिसने मिलन बसेरा यहाँ बनाया। 

 

जब बनता नहीं काम अच्छी बातों से हमारा,

हमने एक नया तरीक़ा राजनीति यहाँ बनाया। 

 

नीति नहीं होती है यहाँ कभी राजनीति में कोई,

खुद की छवि चमका दूसरे को पशु यहाँ बनाया।

 

काम मद क्रोध लोभ मोह को सहज अपनाया,

प्रेम दया स्नेह करुणा से अंतर यहाँ बनाया।

 

जब चले निभाने लोकतंत्री धर्म सत्ता प्राप्ति के,

जाति   बाहूबल  प्रशासन  पैसा यहाँ बनाया।

 

जब बनता नहीं किसी कुटिलता से काम हमारा,

जीतने चुनाव मंदिर मस्जिद मुद्दा यहाँ बनाया।

 

मारते जिस रावण को और जलाते हर दशहरा,

रावण नीति लक्ष्मण को सिखा के जहाँ बनाया।

 

दस इनके बीस उनके धूर्तता से तोड़ तुड़ाकर,

सत्ता गलियारे में हमने मुख्यमंत्री यहाँ बनाया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 91 ☆ ’’खो उसको नैन आज फिर…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता  “खो उसको नैन आज फिर …”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 91 ☆ ’’खो उसको नैन आज फिर…”  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मुस्कानों में दुख-दर्द को बहलाये हुये हैं

चोटों पै चोट दिल पै कई खाये हुये हैं।

 

है याद मैं जब से चला खपता ही रहा हूँ

पर फर्ज को कर याद बढ़े आये हुये हैं।

 

करता रहा आये दिनों मुश्किल का सामना

किससे कहें कि किस तरह सताये हुये हैं।

 

जिसने जो कहा सुन लिया पर जो सही किया

इससे ही उलझनों से निकल आये हुये हैं।

 

हित करके सबके साथ ही कुछ भी न पा सका

चुप सारा बोझ अपना खुद उठाये हुये हैं।

 

औरों से तो कम अपनों से ही ज्यादा मिला है

जो बेवजह ही अपना मुंह फुलाये हुये है।

 

मन पूछता है बार-बार गल्ती कहाँ है ?

चुप रहने की पर हम तो कसम खाये हुये हैं।

 

लगता है अकेले में कही बैठ के रोयें

पर तमगा समझदारी का लटकाये हुये हैं।

 

दुनियाँ ने किसी को कभी पूछा ही कहाँ है ?

संसार में सब स्वार्थ में भरमाये हुये हैं।

 

लगता है मुझे यहाँ पै कुछ हर एक दुखी हैं

यह सोच अपने मन को हम समझाये हुये हैं।

 

अवसाद के काँटों से दुखी मन को बचाने

आशा के मकड़जालों में उलझाये हुये हैं।

 

पर जिसका हर कदम पै सहारा रहा सदा

खो उसको नैन आज फिर भर आये हुये हैं।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विरोधाभास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – विरोधाभास ??

सम्बंधों में खाई चोट का

दोष किसीको दूँ भी तो कैसे,

बटोरना उनका तंत्र रहा,

बाँटना मेरा मंत्र रहा,

पलड़े के एक ओर

दोनों साथ तुलते भी कैसे?

© संजय भारद्वाज

प्रात: 7:40 बजे , 16 जुलाई 2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #141 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे …।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 141 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … ☆

पीड़ा मेरी समझ लो, धरती करे पुकार।

आकुल व्याकुल हो रही, डाल रहे क्यों भार।।

 

धरती कबसे कह रही, सुन लो मेरी बात।

हरियाली छीनों नहीं, छिन जायेगी रात।।

 

आँसू बहने लगे है, सहते सहते भार।

अब मैं तुमसे क्या कहूँ, लगी मानने हार।। 

 

समझ गए हैं आज हम, तेरी पीड़ा आज।

दूर करें हम गंदगी, तभी धरा पर राज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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