हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनवरत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अनवरत ? ?

प्रतीक्षा दोनों ने की,

प्रतीक्षा की अवधि भी

दोनों के लिए समान रही,

फिर भी ज़रा बूझो तो सही,

प्रतीक्षा किसकी लम्बी रही?

?

© संजय भारद्वाज  

मध्यरात्रि, 29 मार्च 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #270 ☆ भावना के दोहे – नवरात्रि ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – नवरात्रि)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 271 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – नवरात्रि  ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

चरणों में श्री मातु के, शुभ जीवन साकार।

भाव दया का रख रही, होकर सिंह सवार।।

*

अम्बे माँ गौरी सदा, करती जग कल्याण।

शक्ति स्वरूपा देविका, सौम्य रूप स्वीकार।।

*

कुष्मांडा शुभकारिणी, इसके रूप अनेक।

पूजा सब निशिदिन करें, बन जाते हैं नेक।।

*

क्रोधित इसकी अग्नि का, किसने पाया पार।

अगणित लाशें दी बिछा, माने यह संसार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #252 ☆ अब तो छोड़ो तुम नादानी… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता अब तो छोड़ो तुम नादानी आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 252 ☆

☆ अब तो छोड़ो तुम नादानी… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

अब तो छोड़ो तुम नादानी

सर से ऊपर निकला पानी

*

कब तक शांत रहोगे भाई

समय ले  रहा है  अँगड़ाई

परशुराम फिर बनना होगा

याद दिला दो तुम भी नानी

अब तो छोड़ो तुम नादानी

*

मातृभारती    है     पुकारती

आओ मिल सब करें आरती

माँ का अब अपमान सहो मत

बनना  होगा  अब  बलिदानी

अब  तो  छोड़ो  तुम  नादानी

*

अपनी संस्कृति को पहचानो

धर्म सनातन को  तुम  जानो

आँच न आए इस  पर  कोई

सार्थक  होगी  तभी  जवानी

अब  तो  छोड़ो  तुम  नादानी

*

छोड़ो   अब   सारी  मजबूरी

नहीं    चलेगी   ये    मगरूरी

आर-पार   की  लड़ो  लड़ाई

नहीं  बनो  तुम  अब  अज्ञानी

अब  तो  छोड़ो   तुम  नादानी

*

जाति-पाँति  अब  भूलो भाई

है   एकता    में   ही   भलाई

तब  ‘संतोष’  मिलेगा  तुमको 

जब   होंगे   बस    हिंदुस्तानी

अब   तो   छोड़ो  तुम नादानी

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अबाध ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अबाध ? ?

एक क्षण में मनुष्य,

वर्तमान से

अतीत हो जाता है,

फिर स्मृतियाँ,

अतीत को

वर्तमान बनाए रखने का

निरंतर यत्न करती हैं,

साकार में अतीत,

निराकार में वर्तमान,

समय की गति अबाध बहती है,

अक्षुण्ण कालचक्र की बारम्बारता,

मनुष्य की अबाध स्मृतिरेखा के आगे

हर बार बौनी सिद्ध होती है..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 6:36 बजे, 1 अप्रैल 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 245 ☆ बाल गीत – नित मुश्किल आसान बनाएँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 245 ☆ 

☆ बाल गीत – नित मुश्किल आसान बनाएँ…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

झूले का पुल झूल – झूल कर

मुश्किल को आसान बनाएँ।

जाते हम स्कूल हमेशा,

रस्सा से सरिता उतराएँ।।

 *

अपना लक्ष्य रहा है पढ़ना

हँसते – हँसते काम करेंगे।

ज्ञान और विज्ञान समझकर

जग में अपना नाम करेंगे।।

 *

खुशियाँ ही जीवन की कुंजी

सबसे ही हम प्रेम बढ़ाएँ।

 *

सोच – समझ कर काम करें हम

बाधाओं से हम लड़ते हैं।

हम हैं पूरे शाकाहारी,

योग हमेशा हम करते हैं।।

 *

विश्वासों को कभी न तोड़ें

मस्ती करें और हर्षाएँ।।

 *

पावन है सच्चा है मन भी

देते नहीं किसी को गच्चा।

ज्योति ज्ञान की जलती अंतस

मुस्काता हर बच्चा – बच्चा।।

 *

मूल्य समय का हम पहचानें

मिले सफलता वंदन गाएँ।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #274 – कविता – नव संवत्सर स्वागत-अभिनंदन… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता नव संवत्सर स्वागत-अभिनंदन…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #274 ☆

☆ नव संवत्सर स्वागत-अभिनंदन… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

नव संवत्सर वर्ष स्वागतम,करें हृदय से अभिनंदन

है उमंग से भरे हुए, प्रमुदित जन-मन स्वागत वंदन ।

*

मातु अन्नपूर्णा नव दुर्गा, सुख सम्पति धन-धान्य भरे

मंगलमय हो नया वर्ष, जन, मन के सब दुख ताप हरे।

*

नई सोच हो नवल आचरण, स्वच्छ सुखद वातायन हो

नवाचार नव दृष्टि सृष्टि, नव संकल्पित नव जीवन हो।

*

रहे पुनीत भाव मन में, दृढ़ता शुचिता कर्मों में हो

स्वस्थ संतुलित समदृष्टि, जग के सारे धर्मों में हो।

*

नव संवत्सर नए वर्ष में, नये-नये प्रतिमान गढ़े

संस्कृति संस्कारों के सँग में, आत्मोन्नति की ओर बढ़े।

*

भेदभाव नहीं रहे परस्पर, हो न शत्रुता का क्रंदन

प्रेम-प्यार करुणा आपस में, हो अटूट स्नेहिल बंधन।

*

नये वर्ष में नवल चेतना, नव गरिमामय नव चिंतन

पुनः पुनः वंदन अभिनंदन, विमल चित्त नव वर्ष नमन।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 98 ☆ भटक रहे बंजारे ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “भटक रहे बंजारे” ।)       

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 98 ☆ भटक रहे बंजारे ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

आँखों के आगे अँधियारे

भीतर तक फैले कजरारे

सुख की बात करो तो लगता

रूठ गये सारे उजियारे ।

*

अब बातों में बात कहाँ है

कदम-कदम पर घात यहाँ है

सन्नाटों से चीख़ उठी है

मौन हुए सारे गलियारे ।

*

टूटे फूटे रिश्ते नाते

सबके सब केवल धुँधवाते

अपनेपन से खाली-खाली

हुए सभी घर-द्वार हमारे।

*

बेइमानी के दस्तूरों में

जंग लगी है तक़दीरों में

बूझ पहेली उम्र रही है

कहाँ खो गए हैं भिन्सारे।

*

काँधे लिए सफ़र को ढोता

जीवन तो बस राहें बोता

कहाँ मंज़िलों पर पग ठहरें

भटक रहे हैं हम बंजारे।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

२०.३.२५

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 95 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 1 ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे। 

इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 95 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 1 ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

केवल तन रहता है घर में 

सदा रहे मन किन्तु सफर में 

बाहर नहीं दिखाई देता 

जो बैठा है अभ्यंतर में।

0

हर साजो-सामान तुम्हारा,

यश वैभव सम्मान तुम्हारा,

माँ जैसे अनमोल रत्न बिन,

नाहक है अभिमान तुम्हारा।

0

जीवन के संघर्ष पिता थे,

सारे उत्सव हर्ष पिता थे,

संस्कृतियों के संगम थे वे,

पूरा भारतवर्ष पिता थे।

0

बच्चों की अठखेली अम्मा, 

दुःख की संग सहेली अम्मा, 

प्यासों को शीतल जल जैसी, 

भूखों को गुड़-ढेली अम्मा।

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 169 – अपनेपन की मुस्कानों पर, जिंदा हूँ… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “अपनेपन की मुस्कानों पर, जिंदा हूँ…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 169 – अपनेपन की मुस्कानों पर, जिंदा हूँ… ☆

अपनेपन की मुस्कानों पर, जिंदा हूँ।

नेह आँख में झाँक-झाँक कर, जिंदा हूँ।।

*

आश्रय की अब कमी नहीं है यहाँ कहीँ,

चाहत रहने की अपने घर, जिंदा हूँ।

*

खोल रखी थी मैंने दिल की, हर खिड़की।

भगा न पाया अंदर का डर, जिंदा हूँ।

*

तुमको कितनी आशाओं सँग, था पाला।

छीन लिया ओढ़ी-तन-चादर, जिंदा हूँ।

*

माना तुमको है उड़ने की, चाह रही।

हर सपने गए उजाड़ मगर, जिंदा हूँ।

*

विश्वासों पर चोट लगाकर, भाग गए।

करके अपने कंठस्थ जहर, जिंदा हूँ।

*

धीरे-धीरे उमर गुजरती जाती है।

घटता यह तन का आडंबर, जिंदा हूँ।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अस्तित्व ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अस्तित्व ? ?

मैं जो हूँ,

मैं जो नहीं हूँ,

इस होने और

न होने के बीच ही

मैं कहीं हूँ..!

?

© संजय भारद्वाज  

11:07 बजे , 3.2.2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

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संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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