हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – जीवन की सवारी ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि  – जीवन की सवारी 

भयमिश्रित एक चुटकुला सुनाता हूँ। अँधेरा हो चुका था। राह भटके किसी पथिक ने श्मशान की दीवार पर बैठे व्यक्ति से पूछा,’ फलां गाँव के लिए रास्ता किस ओर से जाता है?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मुझे क्या पता? मुझे तो गुजरे 200 साल बीत चुके।’

पथिक पर क्या बीती होगी, यह तो वही जाने। अलबत्ता यह घटनाक्रम किसी को डरा सकता है, चुटकुला है सो हँसा भी सकता है पर महत्वपूर्ण है कि डरने और हँसने से आगे चिंतन की भूमि भी खड़ी कर सकता है। चिंतन इस बात पर कि जो जीवन तुम बिता रहे हो, वह जीना है या गुजरना है?

अधिकांश लोग अपनी जीवनशैली, अपनी दैनिकता से खुश नहीं होते। वे परिवर्तन जानते हैं पर परिवर्तित नहीं होते। पशु जानता नहीं सो करता नहीं। मनुष्य जानता है पर करता नहीं।

”आपकी रुचि कौनसे क्षेत्र में हैं?”…”मैं नृत्य करती थी। नृत्य मेरा जीवन था पर ससुराल में इसे हेय दृष्टि से देखा जाता था, तो….”,  “शादी से पहले मैं पत्र-पत्रिकाओं में लिखती थी। पति को यह पसंद नहीं था सो….”, “मैं तो स्पोर्ट्स के लिए बना था पर….”, “घुमक्कड़ी बहुत पसंद है। अब व्यापार में हूँ। बंध गया हूँ….।”

टू व्हीलर पर जब सवारी करते हैं तो अलग ही आनंद आता है। कई बार लगता है मानो हवा में उड़ रहे हैं। यही टू व्हीलर रास्ते में  पंक्चर जाये और ढोकर लाना पड़े तो बोझ लगता है।

जीवन ऐसा ही है। जीवन की सवारी कर हवा में उड़ोगे तो आसमान भी पथ पर  उतर आया अनुभव होगा। जीवन को ढोने की आदत डाल लोगे तो ढोना और रोना, दोनों समानार्थी लगने लगेंगे।

मनोविज्ञान एक प्रयोग है। हाथी के पैर में चार रोज नियमित रूप से रात को बेड़ी डालो, सुबह खोल दो। पाँचवें दिन बेड़ी डालने का ढोंग भर करो। हाथी रोज की तरह खुद को बेड़ी में बंधा हुआ अनुभव करेगा। आदमी बेड़ी के इसी ढोंग का शिकार है।

आमूल परिवर्तन का अवसर हरेक को नहीं मिलता। जहाँ है वहाँ उन स्थितियों को अपने अनुकूल करने का अवसर सबको मिलता है। उस अवसर का बोध और सदुपयोग तुम्हारे हाथ में है।

सुख यदि धन से मिलता तो मूसलाधार बरसात में भागते-दौड़ते, उछलते-कूदते, नहाते, झोपड़ियों में रहने वाले नंगधड़ंग बच्चों के चेहरे पर आनंद नहीं नाचता और कार में बंद शीशों में बैठा बच्चा उदास नहीं दिखता।

शीशा नीचे कर बारिश का आनंद लेने का बटन तुम्हारे ही हाथ में है। विचार करो, जी रहे हो या गुजार रहे हो? बचे समय में कुछ कर गुजरोगे या यूँ ही गुजर जाओगे?

 

समय रहते कुछ कर गुजरो। वह समय आज ही है। शुभ आज।

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©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

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हिन्दी साहित्य- आलेख – ☆ मित्र और मित्रता ☆ – श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

मैत्री दिवस विशेष 

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है । आप  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है।आज प्रस्तुत है मैत्री दिवस पर आपका विशेष आलेख “मित्र और मित्रता”। 

हम भले ही  मित्रता दिवस वर्ष में एक ही दिन मनाते और मित्रों का स्मरण करते हैं।  किन्तु, मित्रता सारे वर्ष निभाते हैं। अतः  मित्रता दिवस पर प्राप्त आलेखों एवं कविताओं का प्रकाशन सतत जारी है। कृपया पढ़ें, अपनी प्रतिक्रियाएँ दें तथा उन्हें आत्मसात करें।) 

संक्षिप्त परिचय 

शिक्षा : हिंदी साहित्य में एम ए प्रथम, (मेरिट) बी एड और पीएचडी

सम्मान एवं सेवाएँ :

  • महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन सम्मान से सम्मानित
  • महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्व विद्यालय में त्रिदिवसीय संगोष्ठी में आमंत्रित और शोध पत्र वाचन
  • ”हीर कणी” पुरस्कार से सम्मानित
  • इंडियन एयर फोर्स में एजुकेशन इंस्ट्रक्टर के तौर पर सेवाएँ प्रदत्त
  • गृह पत्रिका” किरण ” की 25 वर्ष संपादक रहीं। इस दौरान पत्रिका को और संस्थापक संपादक के रूप में स्वयं को रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय के अनेक पुरस्कार से सम्मानित।
  • अति उत्कृष्टता एवं निष्ठा हेतु एयर ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ के एओसी-इन-सी कमान- कमेंडेशन से सम्मानित।
  • विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन की तीन दशकों से माननीय प्रतिनिधि  एवं सामाजिक साहित्यिक संस्थाओं की सम्मानित पदाधिकारी
  • शिक्षा संस्थानों तथा प्रतिष्ठित सरकारी गैर सरकारी संगठनों में अतिथि वक्ता, अध्यक्ष निर्णायक के रूप में सतत आमंत्रित।
  • पांच दिवसीय बहुभाषी विदर्भ नाट्य समारोह में सम्मानित निर्णायक
  • मेडिकल विषयों से संबंधित तीन डाक्टरों की पुस्तकों का अनुवाद,
  • नागपुर के प्रतिष्ठित डाक्टरों की एन जी ओ एडोल्सेंट चैप्टर की सम्मानित कार्यकर्ता और पुरस्कारों से सम्मानित।
  • इंडियाज हूज हू हेतु नामित रह चुकी।
  • आरंभ से सेवानिवृत्त तक लगभग 30 वर्षों तक महिला आयोग की अध्यक्ष रही।
  • एयरफोर्स वाईव्ज वेलफेयर एसोसिएशन के कार्यक्रमों में २५ वर्ष तक अनवरत सहयोगी
  • अखिल भारतीय अग्नि शिखा मंच की नागपुर ईकाई की अध्यक्ष
  • ”रचना ” की उपाध्यक्ष

☆ मित्र और मित्रता ☆

 

मित्र और मित्रता देखने दिखाने की नहीं, महसूस करने की चीज है।जब तक ब्रम्हांड में हर शै एक दूसरे की मित्र हैं तभी तक यह पृथ्वी और इसके निवासी सुरक्षित हैं। क्षिति जल पावक गगन समीरा – – – इनका संतुलन ही पर्यावरणीय मित्रता  की द्योतक है। “जियो और जीने दो “इस मित्रता की प्रथम शर्त है तो दूसरी ओर survival of the fittest भी अत्यावश्यक है। यह विरोधाभास ही ब्रम्हांड का क्षितिजीय सत्य है। तो चलिए मित्रता-दिवस के व्यापक अर्थों में घुसपैठ करें और ब्रम्हांड की समस्त विधाओं में पर्यावरणीय मित्रता की हिमायत करते हुए इस मित्रता दिवस को वैश्विक मित्रता से जोड़ें।

आसपास का वातावरण शुभ होगा तो दिलों में शुभता अपने आप उद्भासित होगी और मानवीय मित्रता में भी शुभता का आविर्भाव होगा। अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति न होने से ही जंगल राज का प्रादुर्भाव होता है। मित्रता अनाम शै बन जाती है।

ना कृष्ण सुदामा की मैत्री आदर्श है ना दुर्योधन कर्ण की–मैत्री के मानदंड परिवर्तनशील होते हैं और होने भी चाहिए। घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या? ब्रम्ह सत्य है– मगर यहां मित्रता अपेक्षित ही कब है! मित्रता की परिभाषा में आपका किसी के प्रति अतिरिक्त स्नेह भाव शामिल है जो दिल से होता है। सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है कि कभी-कभी कोई व्यक्ति अनायास आपके दिल के द्वार पर दस्तक देता है एकाएक आपको अच्छा लगने लगता है और कोई बरसों तक निकटता के बावज़ूद भी दिल के करीब नहीं हो पाता—- इसका अर्थ यह नहीं कि वह आपका शुभेच्छु नहीं है शायद वह आपका सबसे बड़ा शुभचिंतक होगा लेकिन दिल बड़ा निर्णायक होता है मित्रता के चयन के मामले में।

मैया को अपना काला कलूटा बदसूरत बेटा भी कनुआ कन्हैया लगता है – – कुछ ऐसा ही अदृश्य अपनापन अनिवार्य होता है  सच्ची मित्रता के संगोपन के लिए। कहावतें पुरानी हुई  – – “The friend in need is a friend indeed”। आजकल ” in need और indeed” की परिभाषाएं बदल गई हैं। आपके अर्थतंत्र के हिसाब से अर्थों के अर्थ निर्धारित किए जाते हैं। कहा जाता था धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपतकाल परखिए चारी ” लेकिन ये मानदंड भी बदल गये हैं। छलछंदी आपतकाल भी वे ही मित्र ले आते हैं जो आपके साथ खडे़ होने का दावा करते हैं।

खैर जिंदगी चल रही थी चल रही है चलती रहेगी हमेशा। बात से बात चल कर बात बनती ही रहेगी फिर हम क्यों  कुछ सोचने पर मजबूर करें अपने आप पर कि काजीजी दुबले क्यों, तो शहर के अंदेशे से चलिए निकल लेते हैं एक हाईकु की पतली गली से – – अर्ज किया है

 

मित्र दिवस

स्वप्न जीवी सच

धूप पावस।।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” ✍

नागपुर, महाराष्ट्र

4 अगस्त 2019

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हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – ईडन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – ईडन

 

…..उस रास्ते मत जाना, आदम को निर्देश मिला। आदम उस रास्ते गया। एक नया रास्ता खुला।

 

….पानी में खुद को कभी मत निहारना। हव्वा ने निहारा। खुद के होने का अहसास जगा।

 

….खूँख़ार जानवरों का इलाका है। वहाँ कभी मत घुसना।….आदम इलाके में घुसा, जानवरों से उलझा। उसे अपना बाहुबल समझ में आया।

 

…..आग से हमेशा दूर रहना, हव्वा को बताया गया। हव्वा ने आग को छूकर देखा। तपिश का अहसास हाथ और मन पर उभर आया।

 

….उस पेड़ का फल मत खाना। आदम और हव्वा ने फल खाया। ईडन धरती पर उतर आया।

 

©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

[email protected]

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #11 – वैश्विक पहुंच का साधन ब्लाग ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज  ग्यारहवीं कड़ी में प्रस्तुत है “वैश्विक पहुंच का साधन ब्लाग”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 11 ☆

 

☆ वैश्विक पहुंच का साधन ब्लाग ☆

किसी भी सामाजिक बदलाव के लिये सर्वाधिक महत्व विचारों का ही होता है, और आज ब्लाग वैश्विक पहुंच के साथ वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज, सस्ते, सर्वसुलभ साधन बन चुके हैं. विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के तीन संवैधानिक स्तंभो के बाद पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई है. आम आदमी की ब्लाग तक पहुंच और उसकी त्वरित स्व-संपादित प्रसारण क्षमता के चलते ब्लाग जगत को लोकतंत्र के पांचवे स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है.

हाल ही अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक सफल जन आंदोलन बिना बंद, तोड़फोड़ या आगजनी के चलाया गया, और उसे मिले जन समर्थन के कारण सरकार को विवश होकर उनके सम्मुख झुकना पड़ा. उल्लेखनीय है कि इस आंदोलन में विशेष रुप से नई पीढ़ी ने इंटरनेट, मोबाइल एस एम एस, यहां तक कि मिस्डकाल के द्वारा भी तथा ब्लाग लेखन के द्वारा ही अपना महत्वपूर्ण समर्थन दिया.

युवाओ में बढ़ी कम्प्यूटर साक्षरता से उनके द्वारा देखे जा रहे ब्लाग के विषय युवा केंद्रित अधिक हैं.विज्ञापन, क्रय विक्रय, शैक्षिक विषयो के ब्लाग के साथ साथ  स्वाभाविक रूप से जो मुक्ताकाश ब्लाग ने सुलभ करवाया है, उससे सैक्स की वर्जना, सीमा मुक्त हो चली है. पिछले दिनो वैलेंटाइन डे के पक्ष विपक्ष में लिखे गये ब्लाग अखबारो की चर्चा में रहे.प्रिंट मीडिया में चर्चित ब्लाग के विजिटर तेजी से बढ़ते हैं, और अखबार के पन्नो में ब्लाग तभी चर्चा में आता है जब उसमें कुछ विवादास्पद, कुछ चटपटी, बातें होती हैं, इस कारण अनेक ब्लाग हिट्स बटोरने के लिये गंभीर चिंतन से परे दिशाहीन होते भी दिखते हैं. भारतीय समाज में स्थाई परिवर्तन में हिंदी भाषा के ब्लाग बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति में हैं,क्योकि ज्यादातर हिंदी ब्लाग कवियों, लेखको, विचारको के सामूहिक या व्यक्तिगत ब्लाग हैं जो धारावाहिक किताब की तरह नित नयी वैचारिक सामग्री पाठको तक पहुंचा रहे हैं. पाडकास्टिंग तकनीक के जरिये आवाज एवं वीडियो के ब्लाग, मोबाइल के जरिये ब्लाग पर चित्र व वीडियो क्लिप अपलोड करने की नवीनतम तकनीको के प्रयोग तथा मोबाइल पर ही इंटरनेट के माध्यम से ब्लाग तक पहुंच पाने की क्षमता उपलब्ध हो जाने से ब्लाग और भी लोकप्रिय हो रहे हैं.

ब्लाग के महत्व को समझते हुये ही बी बी सी, वेबदुनिया, स्क्रेचमाईसोल, रेडियो जर्मनी, या देश के विभिन्न अखबारो तथा न्यूज चैनल्स ने भी अपनी वेबसाइट्स पर पाठको के ब्लाग के पन्ने बना रखे हैं. ब्लागर्स पार्क दुनिया की पहली ब्लागजीन के रूप में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है जो ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री को पत्रिका के रूप में संजोकर प्रस्तुत करने का अनोखा कार्य कर रही है.यह सही है कि अभी ब्लाग आंदोलन नया है, पर जैसे जैसे नई कम्प्यूटर साक्षर पीढ़ी बड़ी होगी, इंटरनेट और सस्ता होगा तथा आम लोगो तक इसकी पहुंच बढ़ेगी ब्लाग मीडिया और भी ज्यादा सशक्त होता जायेगा, एवं ब्लाग भविष्य में सामाजिक क्रांति का सूत्रधार बनेगा.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 3 – महादेव ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “महादेव ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – #3  ☆

 

☆ महादेव 

 

नन्दी तेजी से भाग कर रावण की ओर अपने सींग से आक्रमण करने के लिए आया, लेकिन जैसे ही वह रावण के पास आया, तो रावण आकाश में गायब हो गया और जल्द ही दूसरी जगह पर प्रकट हुआ ।उसने अपने शरीर को आकाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर विस्थापित कर लिया था ।

लेकिन रावण ने ऐसा कैसे किया ?

क्योंकि रावण को लय योग (विघटन का योग) का ज्ञान था, जिससे वह सूर्य की ऊर्जा के माध्यम से एक तत्व को अन्य तत्व में परिवर्तित कर सकता था। ब्रह्मांड का प्रत्येक तत्व परमाणुओं की एक संरचना है, और यदि हम परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या बदलते हैं तो एक तत्व दूसरे तत्व में परिवर्तित हो सकता है । रावण ध्यान केंद्रित करके सूर्य की ऊर्जा को एक बिंदु पर केंद्रित करके उसका उपयोग करने का विशेषज्ञ था । तो रावण ने क्या किया?, उसने अपने शरीर पर सूर्य की ऊर्जा केंद्रित की और अपने शरीर के अंदर के तत्वों की संरचना को पूरी तरह से पारदर्शी जगह में बदल दिया। फिर वह उस रचना को किसी अन्य स्थान पर ले गया और अपने मूल रूप में वापस लाने के लिए इसे फिर से मूल संरचना में परिवर्तित कर दिया । रावण की शक्ति को देख के नन्दी भी आश्चर्यचकित था ।

अप्सरा ‘अप’ का अर्थ है पानी और ‘सरा’ का अर्थ है मादा या स्त्री, इसलिए अप्सरा बादलों और पानी की स्त्रीलिंग भावनायेंहैं। अप्सरा सुंदर,अलौकिक स्त्री योनि की प्राणी हैं। वे युवा और सुरुचिपूर्ण, और नृत्य की कला में शानदार हैं। वे इंद्र के दरबार के संगीतकार, गंधर्वो की पत्नियां हैं। वे आमतौर पर देवताओं के महल में गंधर्व द्वारा बनाए गए संगीत पर नृत्य करती हैं, देवताओं का मनोरंजन करती हैं और कभी-कभी देवताओं और पुरुषों के साथ छेड़छाड़ भी करती हैं। अप्सराओं को अक्सर आसमान के निवासियों के रूप में, ईश्वरीय प्राणी के रूप में, और आकाश में उड़ते हुए या भगवान की सेवा करते हुए चित्रित किया जाता है, उनकी तुलना स्वर्गदूतों से की जा सकती है। कहा जाता है कि अप्सराएँ इच्छा अनुसार अपना आकार बदल सकती हैं, और जुआ जैसे किस्मत केखेलों में खिलाड़ी का भाग्य बदल सकती हैं। उर्वशी, मेनका, रम्भा, तिलोत्तम, अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा और घृताची आदि कुछ सबसे प्रसिद्धअप्सराएँ हैं।

अप्सराओं की तुलना कभी-कभी प्राचीन ग्रीस की काव्य प्रतिभा से भी की जाती है ।इंद्र की सभा की 26 अप्सराओं में से हर एक प्रदर्शन कला के एक विशिष्ट पहलू का प्रतिनिधित्व करती हैं । अप्सराओं को प्रजनन संस्कार से भी जोड़ कर देखा जाता है । अप्सराओं को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किया गया हैं: लौकिक (सांसारिक), जिनकी संख्या चौबीस निर्दिष्ट हैं, और देविका (दिव्य), जिनकी संख्या दस हैं ।

भागवत पुराण यह भी कहता है कि अप्सरायें कश्यप ऋषि और उनकी पत्नियों में से एक ‘मुनी’ से पैदा हुई है । यह भी कहा जाता है कि बरसात के मौसम के दौरान बादलों में दिखाई देने वाली आकृति और कुछ नहीं बल्कि स्वर्ग में इंद्र के दरबार में नृत्य करती हुई अप्सराएँ हैं और जिनके नृत्य से प्रसन्न होने के बाद, इंद्र पृथ्वी पर बारिश करते हैं ।

 

© आशीष कुमार  

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हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है ☆ – डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

 

(डॉ. ज्योत्सना सिंह रजावत जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आप जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं । आज प्रस्तुत है श्रावण माह के पवित्र अवसर पर आपका  आलेख “देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है”

 

संक्षिप्त साहित्यिक परिचय

  • दो काव्य संग्रह प्रकाशित हाइकू छटा एवं अन्तहीन पथ (मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद हिन्दी अकादमी के सहयोग से …)
  • कहानीं संग्रह प्रकाशाधीन
  • स्थानीय विभिन्न समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन,आकाशवाणी एवं दूरदर्शन एवं अन्य चैनल पर प्रस्तुति एवं साक्षात्कार।
  • 15 राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय शोध आलेख

 

☆ देवों के देव महादेव, महायोगी की महिमा: सर्वविदित है

 

या सृष्टिः स्त्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री,
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति  यया प्राणिनः प्राणवन्तः,
प्रत्यक्षाभिः प्रपत्रस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः1

कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् के मंगलाचरण में शिव की आराधना इस प्रकार की है’ जो विधाता की प्रथम सृष्टि जल स्वरूपा है एवं विधिपूर्वक हवन की गई सामग्री को वहन करने वाली अग्निरूपाा मूर्ति है, जो हवन करने वाली अर्थात् यजमानरूपा मूर्ति है, दो कालों का विधान करने वाली अर्थात् सूर्य एवं चन्द्र रूपा मूर्ति है, श्रवणेन्द्रिय का विषय अर्थात् शब्द ही है गुण जिसका, ऐसी जो संसार को व्याप्त करके स्थित है अर्थात् आकाश रूपा मूर्ति, जिसे सम्पूर्ण बीजों की प्रकृति कहा गया है अर्थात् पृथ्वी रूपा मूर्ति तथा जिससे सभी प्राणी प्राणों से युक्त होते हैं अर्थात् वायुरूपा मूर्ति-इन प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगत होने वाली मूर्तियों से युक्त ‘शिव’ आप इन आठों मूर्तियों को धारण करने वाले शिव एक हैं और शिव के इस स्वरूप का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि इनका प्रत्येक रूप प्रत्यक्ष का विषय है। कालिदास ने स्वयं माना है कि हम जो कुछ देख सकते हैं, जो कुछ जान सकते हैं वह सब शिवस्वरूप ही हैं। अर्थात एक मात्र शिव की ही सत्ता है, शिव से अतिरिक्त  कुछ भी नहीं है। समस्त सृष्टि शिवमयहै। सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं।

शिव स्त्रोत में शिव की प्रार्थना के साथ शिव के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार किया गया है

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय।।

संसार का कल्याण करने वाले शिव नागराज वासुकि का हार धारण किये हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, भस्म की राख को सारे शरीर में लगाये हुए हैं, इस प्रकार महान् ऐश्वर्य सम्पन्न वे शिव नित्य अविनाशी तथा शुभ हैं। दिशायें जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती हैं, ऐसे नकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

वेद वेदांग ब्राह्मण ग्रंथ,तैत्तरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता वाजसनेयी संहिता इन संहिताओं में शिव के विराट स्वरूप का शिव शक्ति का, मंत्रों में वर्णन पढ़ने को आज भी सर्वसुलभ है..

नमः शिवाय च शिवतराय च (वाजसनेयी सं. १६/४१,
यो वः शिवतमो रसः, तस्य भाजयतेह नः। (वाजसनेयी सं. ११/५१)

शिव की महत्ता सृष्टि रचना से पूर्व भी रही होगी शिव ही संसार के नियन्ता है पोषक हैं संघारक है शिव यानि कल्याण, मंगल, शुभ, के देवता। संसार के कण-कण में शिव है। ऐसे निराकारी  शिव की साधना के लिए शिव रात्रि में व्रत पूजापाठ का बहुत विधान है निम्न मंत्र में व्रत की महिमा का वर्णन प्रत्यक्ष है…

देवदेव महादेव नीलकंठ नमोस्तु ते।
कुर्तमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रभावाद्धेवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।

देव को देव महादेव नीलकंठ आपको नमस्कार है। हे देव  मैं आपके शिवरात्रि-व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूं। देव आपके प्रभाव से मेरा यह व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें। इस भांति पूजन करने से आदिदेव शिव प्रसन्न होते हैं।

सावन में शिव पूजा का विशेष महत्व है शिव मंदिरों में सोमवार के दिन बड़ी भक्ति भाव के साथ कांवड़िए दूर दराज से गंगाजल लाकर भगवान भोले का अभिषेक करते हैं। वेदों में शिवलिंग पर चढ़ने वाले बिल्वपत्र के वृक्ष की महिमा असाधारण मानी गई है । प्रार्थना करते हैं कि बिल्वपत्र अपने तपो-फल से आध्यात्मिक शक्ति से  दरिद्रता को मिटाए और शिव उपासक को ‘श्री’कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे। इस वृक्ष की डालियाँ फल और पत्ते सभी की महिमा वर्णित है।

…पतरैर्वेदस्वरूपिण स्कंधे वेदांतरुपया तरुराजया ते नमः।

आदित्यवर्णे तपसोऽध्जिातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाहया अलक्ष्मीः।।

महाशिवरात्रि पूजा में शिवलिंग पर चढाने के लिए धतूरे का फल, बेलपत्र, भांग, बेल, आंक का फूल, धतूरे का फूल, गंगा जल, दूध शहद, बेर, सिंदूर फल, धूप, दीप को आवश्यक माना गया है।

परम कल्याणकारी शिव की महिमा अनंत है। शिव अनन्त, शिव कृपा अनन्ता ….भगवान शिव की स्तुति रामचरित मानस के अयोध्याकांड में तुलसीदास ने इस प्रकार की है…

सुमिरि महेसहि कहई निहोरी,

बिनती सुनहु सदाशिव मोरी’।

‘आशुतोष तुम औघड़ दानी,

आरति हरहु दीन जनु जानी।।’

भारत के कोने-कोने में आज भी प्राचीन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में शिव मंदिरों की भव्यता को एवं उस मन्दिर की मान्यता को शिव रात्रि के पर्व पर बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों के द्वारा श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ शिव का पूजन करते हुए देखा जाता है। ग्रामीण इलाकों में छोटे छोटे पत्थरों को शिव का प्रतीक मान कर महिलाएं  बच्चे बच्चियां शिव रात्रि पर व्रत करते, पूजन करते हैं जल चढ़ाते शिव के भजन कीर्तन करते हुए शिवमय हो जाते हैं। हिमालय गाथा के उत्सव पर्व में लेखक सुदर्शन जी ने लिखा है कि महाशिवरात्रि का उत्सव कृष्ण चतुर्दशी के फागुन माह में मनाया जाता है यह पर्व महाशिवरात्रि से आरंभ होकर 1 सप्ताह तक चलता है। यह उत्सव पर्व कुल्लू, के रघुनाथ जी मंडी के माधवराव जी की शोभायात्रा निकाली जाती है।

महाशिवरात्रि के पर्व पर राजा चित्रभानु की कथा का प्रसंग पुराणों में पढ़ने को मिलता है, भले ही आज के लोग इस कथा को कपोल कल्पित कल्पना माने पर यह हमारे ऋषि-मुनियों के आत्मज्ञान और साधना का निचोड़ है। जिन्होंने कथाओं के माध्यम से सृष्टि की प्रत्येक रचना की महत्ता को किसी न किसी रूप में प्रकट की है।
पौराणिक कथाओं में नीलकंठ की कहानी सबसे ज्यादा चर्चित है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विष निकला था। भगवान शिव ने संपूर्ण ब्राह्मांड की रक्षा के लिए स्वंय ही सारा विष पी लिया और नीलकंठ महादेव कहलाये।

शिव ही हैं, जो बंधन, मोक्ष और सुख-दुख के नियामक हैं। समस्त चराचर के स्वामी संसार के कारण स्वरूप रूद्र रूप में संसार के सृजनकर्ता, पालक और संहारक सबका कल्याण करें। श्रीशिवमहापुराण रुद्र संहिता के दशमें अध्याय में ब्रह्मा विष्णु संवाद में विष्णु कहते है कि हे ब्रह्मन वेदों में वर्णित शिव ही समस्त सृष्टि के कर्ता-धर्ता भर्ता, हर्ता,  परात्पर परम ब्रम्ह परेश निर्गुण नित्य, निर्विकार परमात्मा अद्वैत अच्युत अनंत सब का अंत करने वाले स्वामी व्यापक परमेश्वर सृष्टि पालक सत रज तम तीनों गुणों से युक्त सर्वव्यापी माया रचने में प्रवीण,ब्रह्मा विष्णु महेश्वर नाम धारण करने वाले, अपने में रमण करने वाले, द्वन्द्व से रहित, उत्तम शरीर वाले, योगी,गर्व को दूर करने वाले दीनों पर दया करने वाले, सामान्य देव नहीं, देवों के देव हैं, महायोगी हैं।

 

© डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत
असिस्टेंट प्रोफेसर, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
9425339116

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #10 – कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आस्थाओ का महत्व ☆ – सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज  दसवीं कड़ी में प्रस्तुत है “कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आस्थाओ का महत्व”  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 10 ☆

 

☆ कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आस्थाओ का महत्व ☆

 

पुरुषो की तुलना में निरंतर गिरते स्त्री अनुपात के चलते इन दिनो देश में “बेटी बचाओ अभियान”  की आवश्यकता आन पड़ी है.  नारी-अपमान, अत्याचार एवं शोषण के अनेकानेक निन्दनीय कृत्यों से समाज ग्रस्त है. सबसे दुखद ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ से संबंधित अमानवीयता, अनैतिकता और क्रूरता की वर्तमान स्थिति हमें आत्ममंथन व चिंतन के लिये विवश कर रही है. एक ओर नारी स्वातंत्र्य की लहर चल रही है तो दूसरी ओर स्त्री के प्रति निरंतर बढ़ते अपराध दुखद हैं.  साहित्य की एक सर्वथा नई धारा के रूप में स्त्री विमर्श, पर चर्चा और रचनायें हो रही हैं, “नारी के अधिकार “, “नारी वस्तु नही व्यक्ति है”, वह केवल “भोग्या नही समाज में बराबरी की भागीदार है”, जैसे वैचारिक मुद्दो पर लेखन और सृजन हो रहा है, पर फिर भी नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में वांछित सकारात्मक बदलाव का अभाव है.

हमारे देश की पहचान एक धर्म प्रधान, अहिंसा व आध्यात्मिकता के प्रेमी  और नारी गौरव-गरिमा का देश होने की है,  फिर क्या कारण है कि इस शिक्षित युग में भी बेटियो की यह स्थिति हुई है कि उन्हें बचाने के लिये सरकारी अभियान की जरूरत महसूस की जा रही है. एक ओर कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी बेटियां अंतरिक्ष में भी हमारा नाम रोशन कर रही हैं, महिलायें राजनीति के सर्वोच्च पदो पर हैं, पर्वतारोहण, खेल, कला,संस्कृति, व्यापार,जीवन के हर क्षेत्र में लड़कियो ने सफलता की कहानियां गढ़कर सिद्ध कर दिखाया है कि ” का नहिं अबला करि सकै का नहि समुद्र समाय ”  तो दूसरी और माता पिता उन्हें जन्म से पहले ही मार देना चाहते हैं. ये विरोधाभासी स्थिति मौलिक मानवाधिकारो का हनन तथा समाज की मानसिक विकृति की सूचक है.

बेटियों की निर्मम हत्या की  कुप्रथा को जन्म देने में अल्ट्रा साउन्ड से कन्या भ्रूण की पहचान की वैज्ञानिक खोज का दुरुपयोग जिम्मेदार है. केवल सरकारी कानूनो से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के स्थाई प्रयास संभव नही हैं. दरअसल इस समस्या का हल क़ानून या प्रशासनिक व्यवस्था से कहीं अधिक स्वयं ‘मनुष्य’ के अंतःकरण, उसकी आत्मा, प्रकृति व मनोवृत्ति, मानवीय स्वभाव, उसकी चेतना,  मान्यताओ व धारणाओ और उसकी सोच में बदलाव तथा नारी सशक्तिकरण ही इस समस्या का स्थाई हल है.  समाज की  मानसिकता व मनोप्रकृति  में यह स्थाई बदलाव आध्यात्मिक चिंतन तथा ईश्वरीय सत्ता में विश्वास और पारलौकिक जीवन में आज के अच्छे या बुरे कर्मों का तद्नुसार फल मिलने के कथित धार्मिक सिद्धान्तों की मान्यता पर ढ़ृड़ता से संभव है. विज्ञान  धार्मिक आस्थाओ पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, किन्तु सच यह है कि आध्यात्म, विज्ञान का ही विस्तारित स्वरुप है.  विभिन्न धर्मो के आडम्बर रहित धार्मिक विधिविधान वे सैद्धांतिक सूत्र हैं जो हमें ध्येय लक्ष्यो तक पहु्चाते हैं.

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” अर्थात जहाँ नारियो की पूजा होती है वहां देवताओ का वास होता है यह उद्घोष, हिन्दू समाज से कन्या भ्रूण हत्या ही नही, नारी के प्रति समस्त अपराधो को समूल समाप्त करने की क्षमता रखता है, जरूरत है कि इस उद्घोष में व्यापक आस्था पैदा हो. नौ दुर्गा उत्सवो पर कन्या पूजन, हवन हेतु अग्नि प्रदान करने वाली कन्या का पूजन हमारी संस्कृति में कन्या के महत्व को रेखांकित करता है, आज पुनः इस भावना को बलवती बनाने की आवश्यकता है.

पैग़म्बर मुहम्मद  ने कन्या हत्या रोकने के लिये  भाषण देने, आन्दोलन चलाने, और ‘क़ानून अदालत या जेल’ का प्रकरण बनाने के बजाय केवल इतना कहा है कि ‘जिस व्यक्ति के बेटियां हों, वह उन्हें ज़िन्दा गाड़कर उनकी हत्या न कर दे, उन्हें सप्रेम व स्नेहपूर्वक पाले-पोसे, उन्हें नेकी, शालीनता, सदाचरण व ईशपरायणता की उत्तम शिक्षा-दीक्षा दे, बेटों को उनसे बढ़कर न माने, नेक रिश्ता ढूंढ़कर बेटियो का घर बसा दे, तो वह स्वर्ग में मेरे साथ रहेगा’. मुस्लिम समाज कुरानशरीफ की इस प्रलोभन भरी शिक्षा को अपनाकर, बेटी की अच्छी परवरिश से स्वर्ग-प्राप्ति का  अवसर मानकर प्रसन्न हो सकता है और लालच में ही सही पर लड़कियो के प्रति अपराध रुक सकते हैं. जरूरत है इस विश्वास में भरपूर आस्था की.  कुरान में कहा गया है कि परलोक में हिसाब-किताब वाले दिन, ज़िन्दा गाड़ी गई बच्ची से ईश्वर पूछेगा, कि वह किस जुर्म में क़त्ल की गई थी ? इस तरह कन्या-वध करने वालों को अल्लाह ने चेतावनी भी दी है.

ईसाई समाज में भी पत्नी को “बैटर हाफ” का दर्जा तथा लेडीज फर्स्ट की संकल्पना नारी के प्रति सम्मान की सूचक है. जैन संप्रदाय में तो छोटे से छोटे कीटाणुओ की हिंसा तक वर्जित है. इसी तरह अन्य धर्मो में भी मातृ शक्ति को महत्व के अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं. किन्तु इन धार्मिक आख्यानो को किताबो से बाहर समाज में व्यवहारिक रूप में अपनाये जाने की जरूरत है.

मनुष्य  कभी कुछ काम लाभ की चाहत में करता है और कभी  भय से, और नुक़सान से बचने के लिए करता है। इन्सान के रचयिता ईश्वर से अच्छा, भला इस मानवीय कमजोरी  को और कौन जान सकता है ? अतः इस पहलू से भी धार्मिक मान्यताओ में रुढ़िवादी आस्था ही सही किन्तु ईश्वरीय सत्ता में विश्वास, पाप पुण्य के लेखाजोखा की संकल्पना, कन्या भ्रूण हत्या के अनैतिक सामाजिक दुराचरण पर स्थाई रोक लगाने में मदद कर सकता है.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #7 – मिट्टी – जमीन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की  सातवीं कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 7 ☆

 

☆ मिट्टी – जमीन ☆

 

आदमी मिट्टी के घर में रहता था, खेती करता था। अनाज खुद उगाता, शाक-भाजी उगाता, पेड़-पौधे लगाता। कुआँ खोदता, कुएँ की गाद खुद निकालता। गाय-बैल पालता, हल जोता करता, बैल को अपने बच्चों-सा प्यार देता। घास काटकर लाता, गाय को खिलाता, गाय का दूध खुद निकालता, गाय को माँ-सा मान देता। माटी की खूबियाँ समझता, माटी से अपना घर खुद बनाता-बाँधता। सूरज उगने से लेकर सूरज डूबने तक प्रकृति के अनुरूप आदमी की चर्या चलती।

आदमी प्रकृति से जुड़ा था। सृष्टि के हर जीव की तरह अपना हर क्रिया-कलाप खुद करता। उसके रोम-रोम में प्रकृति अंतर्निहित थी। वह फूल, खुशबू, काँटे, पत्ते, चूहे, बिच्छू, साँप, गर्मी, सर्दी, बारिश सबसे परिचित था, सबसे सीधे रू-ब-रू होता । प्राणियों के सह अस्तित्व का उसे भान था। साथ ही वह साहसी था, ज़रूरत पड़ने पर हिंसक प्राणियों से दो-दो हाथ भी करता।

उसने उस जमाने में अंकुर का उगना, धरती से बाहर आना देखा था और स्त्रियों का जापा, गर्भस्थ शिशु का जन्म उसी प्राकृतिक सहजता से होता था।

आदमी ने चरण उटाए। वह फ्लैटों में रहने लगा। फ्लैट यानी न ज़मीन पर रहा न आसमान का हो सका।

अब अधिकांश आदमियों की बड़ी आबादी एक बीज भी उगाना नहीं जानती। प्रसव अस्पतालों के हवाले है। ज्यादातर आबादी ने सूरज उगने के विहंगम दृश्य से खुद को वंचित कर लिया है। बूढ़ी गाय और जवान बैल बूचड़खाने के रॉ मटेरियल हो चले, माटी एलर्जी का सबसे बड़ा कारण घोषित हो चुकी।

अपना घर खुद बनाना-थापना तो अकल्पनीय, एक कील टांगने के लिए भी कथित विशेषज्ञ  बुलाये जाने लगे हैं। अपने इनर सोर्स को भूलकर आदमी आउटसोर्स का ज़रिया बन गया है। शरीर का पसीना बहाना पिछड़ेपन की निशानी बन चुका। एअर कंडिशंड आदमी नेचर की कंडिशनिंग करने लगा है।

श्रम को शर्म ने विस्थापित कर दिया है। कुछ घंटे यंत्रवत चाकरी से शुरू करनेवाला आदमी शनैः-शनैः यंत्र की ही चाकरी करने लगा है।

आदमी डरपोक हो चला है। अब वह तिलचट्टे से भी डरता है। मेंढ़क देखकर उसकी चीख निकल आती है। आदमी से आतंकित चूहा यहाँ-वहाँ जितना बेतहाशा भागता है, उससे अधिक चूहे से घबराया भयभीत आदमी उछलकूद करता है। साँप का दिख जाना अब आदमी के जीवन की सबसे खतरनाक दुर्घटना है।

लम्बा होना, ऊँचा होना नहीं होता। यात्रा आकाश की ओर है, केवल इस आधार पर उर्ध्वगामी नहीं कही जा सकती। त्रिशंकु आदमी आसमान को उम्मीद से ताक रहा है। आदमी ऊपर उठेगा या औंधे मुँह गिरेगा, अपने इस प्रश्न पर खुद हँसी आ रही है। आकाश का आकर्षण मिथक हो सकता है पर गुरुत्वाकर्षण तो इत्त्थमभूत है। सेब हो, पत्ता, नारियल या तारा, टूटकर गिरना तो ज़मीन पर ही पड़ता है।

 

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©  संजय भारद्वाज , पुणे

[email protected]

 

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हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ व्यक्तित्व ही हमारी पहचान ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी का  व्यक्तित्वपर  विशेष  लेख।  )

 

☆ व्यक्तित्व ही हमारी पहचान

 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा उसका स्वभाव ही उसका भविष्य है।  समाज का दर्पण साहित्य को कहा गया है, क्योंकि समाज की अच्छाइयां और बुराइयां, सामाजिक गतिविधियों की जानकारी साहित्य में ही परिलक्षित होती हैं।

कुदरत की रची इस सुंदर एवं हसीन दुनिया में हर इंसान समाज में रहते अपने लिए एक सुंदर, अपना कह सकने वाला, घर हो इसकी कल्पना करता है और बनाता भी है। अपने श्रम से निरंतर उसे सिंचित कर एक समय ऐसा आता है जब वह बगिया हरी-भरी हो जाती है। इस बगिया को हरी-भरी बनाए रखने के लिए और हमारे व्यक्तित्व निर्माण में वाणी (बोलचाल) का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्ति के बाहरी रूप को देखने के बाद वाणी से ही उसकी पहचान होती है, और मीठा- मधुर बोलने वाला व्यक्ति अपना चिर – स्थाई जगह बना लेता है। मीठी वाणी व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है।

व्यक्ति का बोलना संसार में सबसे बड़ा आभूषण माना जाता है। अच्छी बोली, अच्छा व्यवहार एक असाधारण इंसान बनने की ओर पहला कदम है। क्या बोलना है ये लगभग सभी जानते हैं। लेकिन व्यक्तित्व की सही पहचान, तभी बनती है जब यह ज्ञान आ जाए कि कब और कहां बोलना है। इसी से वाणी की पहचान भी होती है। सज्जनता और शालीनता हमारी जीभ में ही रहती है।

“ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।”

आप जीभ से मिठास बांटना शुरू कीजिए, यकीनन आपके मुंह से निकले हुए शब्द वरदान बनेंगे। हमारी वाणी सूर्य की किरणों के समान बलशाली होती हैं । लेजर किरणों के हिसाब से इस वाणी की सामर्थ भी बहुत अधिक होती है। वाणी का दिया हुआ श्राप भी काम का हो सकता है। वाणी में नुकसान करने की क्षमता अधिक होती है। इसीलिए जीभ पर नियंत्रण होना भी बहुत जरूरी है।

दूसरों से वार्तालाप करते समय शालीनता का ध्यान रखना, सज्जनता का ध्यान रखना, सेवा का ध्यान रखना और वाणी का विश्राम होना बहुत ही आवश्यक है। आपने देखा होगा कि मरते समय आदमी में क्या परिवर्तन होता है। आंखें काम करती हैं, हाथ पैर काम करते हैं पर वाणी का चलना बंद हो जाता है। जीभ में आफत आ जाती है। होठं चल रहे हैं, आंख काम करती हैं, आंसू आ रहे हैं पर मृत्यु के समय आवाज नहीं निकलती है। यह वोकल साउंड साधारण चीज नहीं हैं, इसीलिए शब्दों का उच्चारण हमेशा रोकथाम कर, सोच – विचार कर करने की आदत होना चाहिए।

हम अच्छा काम करें, अपने पीछे ऐसी छाप छोड़ दें कि समय भी उसे मिटा न सके। आप और हम जो जीवन जी रहे हैं उस पर असर करने वाले शब्दों का चयन अक्लमंदी से करना चाहिए। कबीर दास जी एक संत, ज्ञानी, भक्त, कवि व समाज सुधारक के रूप में याद किए जाते हैं और जाने जाते रहेंगे। उनके व्यक्तित्व अनोखा था, उन्होंने झूठ का सहारा कहीं और कभी भी नहीं लिया। उनके जीवन की सबसे बड़ी सौगात उनकी वाणी और सर्वजयी व्यक्तित्व रहा। जो सदैव अमर रहेगा। बहुत ही सरल शब्दों में उन्होंने जीवन की चार बातें कह दी हैं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने वाणी के संदर्भ में बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखी हैं।

“तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।

बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर॥”

महात्मा विदुर जी ने महाभारत में सुंदर वर्णन किया है की वाणी से विधा हुआ घाव भी भर जाता है, कुल्हाड़ी से काटा गया वृक्ष भी समय पश्चात हरा- भरा हो जाता है, परंतु कटु वाणी द्वारा बोले गए शब्दों के घाव कभी भी नहीं भरते हैं। हर युग में वही महाभारत का कारण बनता है। अपने व्यक्तित्व निर्माण में मधुर भाषण, नम्रता, विनयशीलता, हमेशा हंसते मुस्कुराते और यथासंभव सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत को अपनाना चाहिए।

सिर्फ वही आदमी अच्छे और बुरे का निर्माता हो सकता है जो आदमी की मंजिल की रचना कर सके और दुनिया को उसका अर्थ और भविष्य दे सके। शब्द उनके लिए होते हैं जो वजन सह सकते हैं। हल्के लोगों के लिए शब्द व्यर्थ हैं।

वाणी एक पर रूप अनेक हैं, शब्द एक पर अर्थ अनेक हैं। कभी शब्द सी मीठी वाणी, कभी कोयले – सी कड़वी वाणी, कभी प्रशंसा का पात्र बनाती, कभी तिरस्कृत करती वाणी सारे संयम ओं में वाणी, सारे संयम अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे शरीर में जीभ खुद तो बात कह कर मुंह के अंदर चली जाती है, परंतु उसका परिणाम कहने वाले को भुगतना पड़ता है।

 “रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल

आपु तो कही भीतर रही जूती सहत कपाल।”

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 

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हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – डायलर-रिसीवर ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )

 

☆ संजय दृष्टि  – डायलर-रिसीवर

यात्रा पर हूँ और गाड़ी की प्रतीक्षा है। देख रहा हूँ कि कुछ दूर चहलकदमी कर रही चार- पाँच साल की एक बिटिया अपनी माँ से मोबाइल लेकर जाने किससे क्या-क्या बातें कर रही है। चपर-चपर बोल रही है। बीच-बीच में जोरों से हँसती है। ध्यान देने पर समझ में आया कि मोबाइल के दोनों छोर पर वही है। जो डायल कर रहा है, वही रिसीव भी कर रहा है। माँ के आवाज़ देने पर बोली, ‘अरे मम्मा, फोन पर बात कर रही हूँ, झूठी-मूठी की बात…’ और खिलखिला पड़ी। अलबत्ता उसके झूठमूठ में दुनिया भर की सच्चाई भरी हुई है। सच्चे मोबाइल पर सच्ची सहेली से बातें। सब कुछ इतना सुथरा, इतना पारदर्शी, इतना सच्चा कि मोबाइल  सैटेलाइट की जगह मन के तारों से कनेक्ट हो रहा है।

बच्चों के चेहरे तपाक से कनेक्ट कर लेते हैं। निष्पाप, सदा हँसते, ऊर्जा से भरपूर। उनकी सच्चाई का कारण स्पष्ट है, जो डायल कर रहा है, वही रिसीव कर रहा है। भीतर-बाहर कोई भेद नहीं। भीतर-बाहर एक। द्वैत भीड़ में अद्वैत।

इस एकात्म ‘डायलर-रिसीवर’ फॉर्मूले को क्या हम नहीं अपना सकते? याद करो पिछली बार अपने आप से कब बातचीत की थी? अपने आप से बात करना याने अपने सर्वश्रेष्ठ मित्र से बात करना, ऐसी आत्मा से बात करना जिससे अपना भीतर या बाहर कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता। अपने आप से वार्तालाप याने परमात्मा से संवाद।

एकाएक बिना कोई नम्बर फिराये अपने आप से बात कर रहा हूँ। अनुभव कर रहा हूँ कि यों चपर- चपर बोलना और खिलखिलाना ज़रा भी कठिन नहीं। भीतर नई ऊर्जा प्रवाहित हो रही है।

अब तुम्हारा मेरी ओर खिंचा आना स्वाभाविक है पर सुनो, सदा लौह बने रहने के बजाय चुंबक बनने का प्रयास करो। खुद को डायल करो, खुद रिसीव करो, चुंबकत्व खुद तुम्हारे भीतर प्रवेश कर जाएगा।

आइए, आज खुद से बतियाएँ।

 

©  संजय भारद्वाज , पुणे

9890122603

[email protected]

 

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