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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 11 ☆ मसाईमारा की रोमांचक यात्रा ☆ सुश्री ऋता सिंह ☆

सुश्री ऋता सिंह (सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण - मेरी डायरी के पन्ने से...मसाईमारा की रोमांचक यात्रा - ) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण - यायावर जगत # 11 ☆   मेरी डायरी के पन्ने से... मसाईमारा की रोमांचक यात्रा नेशनल जॉग्राफ़ी और एनीमल प्लैनेट पर हमेशा ही जानवरों को देखना और उनके बारे में जानकारी हासिल करते रहना मेरा पुराना शौक है। फिर कहीं मन में एक उत्साह था कि किसी दिन इन्हें अपनी नजरों से भी देखें। वैसे तो जब चाहो इन पशुओं के दर्शन चिड़ियाघर में तो कभी भी हो सकते हैं पर मेरी तमन्ना थी कि इन प्राणियों को प्राकृतिक खुले स्थान में ही...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 62 ⇒ माड़ साब… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "माड़ साब"।)   अभी अभी # 62 ⇒ माड़ साब… श्री प्रदीप शर्मा    जिस तरह सरकारी दफ्तरों में एक किस्म बड़े बाबू की होती है, ठीक उसी तरह सरकारी स्कूलों में शिक्षक की एक किस्म होती है, जिसे माड़ साब कहते हैं। बड़े बाबू, नौकरशाही का एक सौ टका शुद्ध, टंच रूप है, जिसमें रत्ती भर भी मिलावट नहीं, जब कि शिक्षा विभाग में माड़ साब जैसा कोई शब्द ही नहीं, कोई पद ही नहीं। माड़ साब, एक शासकीय प्राथमिक अथवा माध्यमिक विद्यालय के अध्यापक यानी शिक्षक महोदय, जिन्हें कभी मास्टर साहब भी कहा जाता था, का अपभ्रंश यानी, बिगड़ा स्वरूप है।। हमें आज भी याद है, हमारी प्राथमिक स्कूल की नर्सरी राइम, ए, बी, सी, डी, ई, एफ, जी,...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 216 ☆ आलेख – व्यंग्य नकारात्मक लेखन नहीं… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ (प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख -व्यंग्य नकारात्मक लेखन नहीं...।)  ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 216 ☆   आलेख - व्यंग्य नकारात्मक लेखन नहीं... व्यंग्य का प्रहार दोषी व्यक्ति को आत्म चिंतन के लिये मजबूर करता है. जिस पर व्यंग्य किया जाता है, उससे न रोते बनता है, न ही हंसते बनता है. मन ही मन व्यंग्य को समझकर स्वयं में सुधार करना ही एक मात्र सभ्य विकल्प होता है. पर यह भी सत्य है कि कबीर कटाक्ष करते ही रह गये, जिन्हें नहीं सुधरना...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “विश्व साइकिल दिवस’-३ जून २०२३ – उत्तरार्ध” ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆

डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆ “विश्व साइकिल दिवस'-३ जून २०२३- उत्तरार्ध” 🚴🏾‍♂️☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆ नमस्कार मित्रों, इस भाग में मैं ‘साइक्लोफन-२०२३’ के हमारे अनुभवों और ३० अप्रैल २०२३ को आयोजित समापन समारोह का वृत्तांत प्रस्तुत कर रही हूँ| श्रीमती आरती बॅनर्जी ने डॉ शीतल पाटील के साथ आयोजित किया हुआ 'सायक्लोफन-२०२२' बेहद सफल रहा था। इसलिए दोनों ने इस साल भी ऐसा ही आयोजन किया। पिछले साल की तरह ही इसे भी निवासियों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इसमें ६५ सदस्यों ने भाग लिया। खुशी की बात यह थी कि, इस आयोजन को बच्चों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। जैसा कि पिछले भाग में उल्लेख किया है, 'विश्व वसुंधरा दिवस' (२२ अप्रैल २०२३) से प्रत्येक सदस्य अपनी उम्र और क्षमता के अनुसार पैदल चल रहा था या साइकिल चला रहा था। साइकिल सवारों में से बारह लोग सामूहिक साइकिल की सवारी का आनंद उठाने हेतु २९ अप्रैल को सुबह-सुबह ठाणे के निकट एक खाड़ी पर पहुँच गए| ग्रुप राइड की समन्वयक आरती ने कहा,...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 37 – देश-परदेश – उल्टा समय☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार (श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।) ☆ आलेख # 37 ☆ देश-परदेश – उल्टा समय ☆ श्री राकेश कुमार ☆ कुछ दिनों से प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ऐसे विज्ञापनों की बाढ़ आ गई है, जो उधार लेकर बिना आवश्यकता के सामान खरीदने के लिए आकर्षित ही नहीं बाध्य कर रहे हैं। हमारी संस्कृति या सामाजिक व्यवस्था में उधार लेना बुरी बात मानी जाती हैं। बाजारू ताकतें हमारी अदातें बदल कर हमें मजबूर कर रही हैं। बैंक और अन्य वाणिज्यिक संस्थाएं भी खजाने खोल कर बैठी हैं, लोन देने के लिए। आप बस कोरे कागज़ात...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 61 ⇒ क्रोध और अपमान… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "क्रोध और अपमान"।)   अभी अभी # 61 ⇒ क्रोध और अपमान… श्री प्रदीप शर्मा    क्रोध और अपमान एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी ने आपका सम्मान किया हो, और आपको क्रोध आया हो। क्रोध को पीकर किसी का सम्मान भी नहीं किया जा सकता। इंसान और पशु पक्षियों की तरह, शब्द भी अपनी जोड़ी बना लेते हैं। खुदा जब हुस्न देता है, तो नज़ाकत आ ही जाती है। बांसुरी कृष्ण के मुंह लग जाती है और गांडीव अर्जुन के कंधे पर ही शोभायमान होता है। हुस्नलाल के साथ भगतराम ही क्यों ! शंकर प्यारेलाल की जोड़ी नहीं बनी, लक्ष्मीकांत जयकिशन के लिए नहीं बने। जहां कल्याणजी हैं, वहां आनंदजी ही...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “विश्व पर्यावरण दिन-५ जून २०२३…” ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆

डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆ ♻️ “विश्व पर्यावरण दिन-५ जून २०२३…” 🌻 ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆ नमस्कार पाठकों, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के नेतृत्व में १९७३ से हर साल ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस २०२३ की थीम है 'Beat Plastic Pollution' अर्थात, 'प्लास्टिक पॉल्यूशन पर काबू पाओ', क्योंकि बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण प्रदूषण का एक प्रमुख कारण पाया गया है। हर साल ४०० मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से आधे को केवल एक बार उपयोग करने के लिए डिजाइन किया गया है (एकल उपयोग प्लास्टिक अर्थात सिंगल यूज प्लास्टिक)| आज की तारीख में अत्यावश्यक होने के कारण २०२३ की थीम के अंतर्गत प्लास्टिक प्रदूषण पर काबू पाने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के साथ-साथ नागरिकों की भागीदारी के साथ वैश्विक पहल लागू की जाएगी। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण प्लास्टिक का उत्पादन जीवाश्म ईंधन का उपयोग करता है, जो ग्रीनहाउस गैस (कार्बन डाइऑक्साइड) को बाहर फेंकता है और वैश्विक तापमान में वृद्धि...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 193 – कबीर जयंती विशेष – साधो देखो जग बौराना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज (“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।” हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।) ☆  संजय उवाच # 193 ☆ कबीर जयंती विशेष - साधो देखो जग बौराना आज कबीर जयंती है। यूँ कहें...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 60 ⇒ दो जून की रोटी… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "दो जून की रोटी"।)   अभी अभी # 60 ⇒ दो जून की रोटी… श्री प्रदीप शर्मा    दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ ! पूरी दुनिया में लड़ाई का कारण सिर्फ़ रोटी है। इंसान सब कुछ कर सकता है, भूखा नहीं रह सकता ! रोटी का महत्व वे लोग नहीं जान सकते, जो रोज पिज़ा, बर्गर खाते हैं। एक देश में अकाल पड़ा ! रानी के पास शिकायत गई, लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है। ये लोग केक क्यों नहीं खाते, रानी ने मासूमियत से पूछा। आज दो जून है ! हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि वो हमें दो जून की रोटी नसीब करवा रहा है। आज की रोटी में ऐसा क्या खास है, रोटी को...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 59 ⇒ सृजन सुख… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "सृजन सुख "।)   अभी अभी # 59 ⇒ सृजन सुख … श्री प्रदीप शर्मा    जीवन, सृजन का ही तो परिणाम है। सृष्टि का चक्र सतत चलायमान रहता है, यहां कुछ भी स्थिर नहीं हैं। सब अपनी अपनी धुरी पर घूम रहे हैं, घूमते वक्त पहिया हो या चाक, वह स्थिर ही नजर आता है। पंखा गति में चलकर हमें हवा दे रहा है, लेकिन स्थिर नजर आता है। संगीत में, नृत्य में, जितनी गति है, उतनी ही स्थिरता भी है। एक थाल मोती भरा, सबके सर पर उल्टा पड़ा। लेकिन वह कभी हम पर गिरता नहीं। चलायमान रहते हुए भी स्थिर नज़र आना ही इस सृष्टि का स्वभाव है, इसीलिए इसे मैनिफेस्टशन कहते हैं। इसके ऊपर, अंदर, बाहर, रहस्य ही...
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